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Saturday, February 17, 2018

राफेल पर गैर-वाजिब राजनीति

पिछले कुछ समय से कांग्रेस पार्टी राफेल विमान के सौदे को लेकर सवाल उठा रही है. वह मतदाता को मन में संशय के बीज बोकर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है. बेशक राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर सवाल उठाइए, पर उसकी बुनियादी वजह को भी बताइए. सन 2001 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 126 विमान खरीदने का फैसला किया था. इस फैसले को लागू करने की प्रक्रिया 2007 से शुरू हुई और 2012 में तय हुआ कि दासो का राफेल विमान खरीदा जाए. पर यूपीए सरकार ने समझौता नहीं किया. क्यों नहीं किया, यह कांग्रेस को बताना चाहिए.
यह सौदा दो देशों की सरकारों के बीच हुआ है, इसलिए इसमें बिचौलियों के कमीशन वगैरह का मसला नहीं है. कांग्रेस का कहना है कि यूपीए ने जो समझौता किया था, उसमें कीमत कम थी. अब ज्यादा है. मूल कार्यक्रम बदल चुका है. अब 126 के बजाय केवल 36 विमान जरूर खरीदे जा रहे हैं. पर विमानों के पूरे उपकरण और लम्बी अवधि का रख-रखाव भी इसमें शामिल है. यूपीए सरकार जिस समझौते को करना चाहती थी, उसमें केवल 18 विमान फ्रांस से आने थे. शेष 108 विमान भारत में ही बनने थे. वे फ्लाई अवे विमान थे, उनमें लाइफ साइकिल कॉस्ट शामिल नहीं थी.

ऐसा नहीं कीमत और ऑफसेट से जुड़ी जानकारियाँ आधिकारिक रूप से नहीं दी गईं हैं. जो जानकारियाँ हैं उनके आधार पर ही तो कहा जा रहा है कि विमान की कीमत ज्यादा है. कांग्रेस डिटेल चाहती है. खाली विमान की एक कीमत होती है. मिसाइलों, रेडारों तथा दूसरे उपकरणों की कीमत अलग होती है. रख-रखाव की कीमत अलग होती है. विमानों की संख्या जैसे-जैसे बढ़ेगी, वैसे-वैसे उनकी कीमत कम होगी. इस सौदे के टलते जाने से भी कीमत बढ़ी.
राहुल गांधी का कहना है कि कोई घपला हुआ है, मोदी खुद इस सौदे के लिए गए थे. सरकार संसद में पूरी जानकारी क्यों नहीं दे रही है वगैरह. मोदी के सीधे जाने से घपला क्यों हो गया? न्यूक्लियर डील के लिए मनमोहन सिंह भी सीधे गए थे. तो क्या उसमें घपला था? रक्षा सौदों में गोपनीयता बड़ा मसला होता है. दुनिया की कोई सरकार खुले सौदों की अनुमति नहीं देती.
हम रूसी तकनीक से हटकर पश्चिमी देशों की तकनीक की दिशा में जा रहे हैं. इसका मतलब यह नहीं कि हम रूसी गोपनीयता को खत्म कर देंगे. रूसी तकनीक के जो भी खुफिया कोड और जानकारियाँ हैं, उनकी गोपनीयता की रक्षा करने की जिम्मेदारी हमारी है. उपकरणों के विवरण देते ही उनका नाम सामने आएगा. विमान के उपकरणों की गोपनीय सूचनाएं कोई भी देश सार्वजनिक नहीं करता.
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पूर्व रक्षामंत्री प्रणब मुखर्जी के एक बयान का हवाला दिया, जिन्होंने संसद में कहा था कि अमेरिका से हथियार खरीद की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती. एके एंटनी ने भी इजरायल से हथियार खरीद की जानकारी नहीं दी थी. इसपर राहुल गांधी ने यूपीए कार्यकाल में सांसदों के सवालों के जवाबों को ट्वीट किया. ठीक है, पर इससे क्या साबित हुआ? यही कि दोनों तरह के उदाहरण हैं. कुछ सवालों के जवाब सार्वजनिक रूप से दिए जा सकते हैं और कुछ के नहीं दिए जा सकते. नेताजी के निधन से जुड़ी तमाम बातें आज भी गोपनीय हैं.
राहुल गांधी को घपले का अंदेशा है, तो बताना चाहिए कि अंदेशा क्या है. कांग्रेस का कहना है कि सरकार अब 58,000 करोड़ रुपये में 36 विमान खरीद रही है, जबकि हम इससे कम धनराशि में इन विमानों को खरीद रहे थे. उसका यह भी कहना है कि सरकार अब इन विमानों का निर्माण भारत में नहीं करके मेक इन इंडिया नीति से हट रही है. सच यह है कि पहली बार रक्षा के क्षेत्र में भारत ने कोई औद्योगिक नीति बनाई है.
हमारे पास 45 स्क्वॉड्रन लड़ाकू विमान होने चाहिए. पर उनकी संख्या 36 से भी नीचे चली गई है. मिग-21 की जगह लेने के लिए तेजस विमानों का विकास किया जा रहा है. चूंकि यह विमान पूरी तरह तैयार नहीं है, इसलिए भारत सरकार ने किसी विदेशी कंपनी के सहयोग से एक और लड़ाकू विमान को भारत में बनाने का फैसला किया है. अब अब एफ-16 या ग्रिपेन में से किसी एक के बारे में अगले कुछ महीनों में फैसला होगा. हमें केवल विमान ही नहीं तकनीक भी चाहिए. तकनीक पैसे से नहीं डिप्लोमेसी से मिलती है. राफेल के सौदे के साथ 30 फीसदी तकनीकी ऑफसेट का सौदा भी है. कावेरी इंजन कार्यक्रम को फ्रांसीसी कंपनी सैफ्रान से मदद मिलेगी.
भारत ने आजादी के फौरन बाद वैमानिकी के विश्व प्रसिद्ध जर्मन डिज़ाइनर कुर्ट टैंक की सेवाएं ली थीं. कुर्ट टैंक पहले मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में और बाद में हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स की सेवा में आए. उन्होंने एचएफ-24 मरुत विमान का डिज़ाइन तैयार किया. उसके लिए अपेक्षित इंजन की तकनीक ब्रिटेन से ली जा रही थी कि वह काम अधूरा रह गया. एचएफ-24 विमान ने 1971 की लड़ाई में हिस्सा भी लिया. हम उसके विकास पर ध्यान नहीं दे पाए. मजबूरी में हमें मिग-21 को मुख्य विमान बनाना पड़ा.
अस्सी के दशक में हमने फिर से विमान विकसित करने पर विचार किया. एलसीए तेजस कम्पोज़िट फाइबर के फ्रेम, कलाबाजी के लिए उपयुक्त डिज़ाइन और नेवीगेशन प्रणाली वगैरह के लिहाज से शानदार विमान है. पर वह भी अवरोधों का शिकार हुआ. एरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी ने वायुसेना से वादा किया था कि उसे 2010 तक बीस तेजस विमान सौंप दिए जाएंगे. पर सन 1998 के परमाणु परीक्षण के कारण अमेरिका ने भारत पर पाबंदियाँ लगा दीं, जिनसे तेजस पर भी असर पड़ा. इसके कावेरी इंजन का विकास नहीं हो पाया. इसके साथ पाँचवीं पीढ़ी के एमएमआरसीए का विकास रुका पड़ा है.

सौ बात की एक बात है कि ऐसे मसलों को राजनीति से दूर रखना चाहिए. अफसोस इस बात पर है कि 2001 में फैसला हुआ था और आजतक एक राफेल विमान देश में नहीं आया है.   

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-02-2018) को "सौतेला व्यवहार" (चर्चा अंक-2885) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. यह बात भी समझ लेनी चाहिए कि यदि आज कांग्रेस यह समझौता करती तो वह भी गोपनीय ही होता, सरकारों के बीच हुए समझौते में लाभ उठाने की बात केवल जनता को बरगलाने के लिए व अपने काले कारनामों पर पर्दा डालने का एक प्रयास है ,, वैसे भी भ्रस्टाचार कांग्रेस के जीन्स में है इसलिए उसे सब से पहले यही नजर आता है , सत्ता से दूरी उसे और भी उग्र कर देती है

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