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Sunday, December 3, 2017

अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत

पिछले एक साल से आर्थिक खबरें राजनीति पर भारी हैं। पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी और फिर साल की पहली तिमाही में जीडीपी का 5.7 फीसदी पर पहुँच जाना सनसनीखेज समाचार बनकर उभरा। उधर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकोनॉमी (सीएमआईई) ने अनुमान लगाया कि नोटबंदी के कारण इस साल जनवरी से अप्रेल के बीच करीब 15 लाख रोजगार कम हो गए। इन खबरों का विश्लेषण चल ही रहा था कि जुलाई से जीएसटी लागू हो गया, जिसकी वजह से व्यापारियों को शुरूआती दिक्कतें होने लगीं।

गुजरात का चुनाव करीब होने की वजह से इन खबरों के राजनीतिक निहितार्थ हैं। कांग्रेस पार्टी ने गुजरात में अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं। राहुल गांधी ने ‘गब्बर सिंह टैक्स’ के खिलाफ अभियान छेड़ दिया है। उनका कहना है कि अर्थ-व्यवस्था गड्ढे में जा रही है। क्या वास्तव में ऐसा है? बेशक बड़े स्तर पर आर्थिक सुधारों की वजह से झटके लगे हैं, पर अर्थ-व्यव्यस्था के सभी महत्वपूर्ण संकेतक बता रहे हैं कि स्थितियाँ बेहतर हो रहीं है।
बहरहाल सरकार के पक्ष में दो-तीन बड़ी खबरें आने से स्थितियाँ बदलीं हैं। नवम्बर के आखिरी रोज आए दूसरी तिमाही के परिणामों ने बताया कि 5.7 फीसदी से बढ़कर अर्थ-व्यवस्था 6.3 फीसदी पर आ गई है। यह वृद्घि भी मामूली है, पर 6.1 फीसदी और 5.7 फीसदी की दो तिमाहियों के बाद यह दर इस बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था दोहरे झटकों से उबरने लगी है। हालांकि पी चिदंबरम मानते हैं कि हमें तीन-चार तिमाहियों के परिणामों का इंतजार करना चाहिए, पर ज्यादातर अर्थशास्त्रियों की राय है कि खराब हालात से देश बाहर निकल आया है।

यह भी तय है कि हम अचानक बहुत तेज गति से नहीं बढ़ सकेंगे। बुनियादी बदलाव अभी चल ही रहा है। वित्त मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वह राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.2 फीसदी तक सीमित रखेगा। यानी कि अगले कुछ महीनों में सरकारी खर्च रोके जाएंगे। यह भी साफ है कि रिजर्व बैंक कुछ समय तक ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें 63 डॉलर प्रति बैरल पर हैं जो पिछले दो साल के औसत से 40 फीसदी ज्यादा है। यानी ऐसा खर्च बढ़ेगा, जो अर्थ-व्यवस्था की साहत नहीं बनाएगा। उधर देश का निजी क्षेत्र अब भी पूँजी निवेश के लिए आगे नहीं आ रहा है।

इन दबावों के बावजूद अगली दो तिमाहियों में जीडीपी की वृद्धि दर सात फीसदी को पार करने की उम्मीद है। पूरे साल का औसत भले ही सात को पार न करे, पर उसके करीब पहुँच जाएगा। अगले वित्त वर्ष में इसे सात के पार होना चाहिए। यानी 2019 के चुनाव के पहले अर्थ-व्यवस्था 7.3 से 7.5 फीसदी के आसपास होगी। कम्पनियों के दिवालिया कानून के लागू होने के बाद सिस्टम में अनुशासन आने की उम्मीदें हैं।

इस हफ्ते के आँकड़ों में बहुत ज्यादा खुश-खबरी भले ही छिपी न हो, पर कुछ महत्वपूर्ण सेक्टरों में संवृद्धि नजर आ रही है। विनिर्माण, माइनिंग और यूटिलिटी (बिजली, गैस और पानी वगैरह) सेक्टर में सुधार है। इस तिमाही में विनिर्माण (मैन्यूफैक्टरिंग) क्षेत्र में 7 फीसदी की संवृद्धि हुई जो इससे पिछली तिमाही में 1.2 फीसदी थी। निर्माण (कंस्ट्रक्शन) में भी सुधार है। अभी नहीं कहना चाहिए कि अर्थ-व्यवस्था तेजी से संवृद्धि के रास्ते पर है। कहा जा सकता है कि गिरावट रुक गई है। यह अलग सवाल है कि गिरावट क्यों आई? इसके जवाब में कई तरह के राजनीतिक निहितार्थ छिपे हैं।

एक बात इन आँकड़ों से यह स्पष्ट हुई है कि जीएसटी के कारण विनिर्माण क्षेत्र पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव नहीं पड़ा। देश के विनिर्माण क्षेत्र के स्वास्थ्य का संकेतक निक्की इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) बता रहा है कि नवम्बर में यह इंडेक्स पिछले 13 महीनों के उच्चतम स्तर 52.6 पर पहुँच गया है, जो पिछले महीने 50.3 पर था। सर्वेक्षण बताता है कि जीएसटी की दरों में कमी के साथ बढ़ी मात्रा में ऑर्डर मिलने से उत्पादन बेहतर हुआ है।

उत्पादन और नए ऑर्डरों में इस माह हुई यह वृद्धि अक्‍टूबर 2016 के बाद अब तक की सबसे तेज वृद्धि है। इसे जीएसटी की दरें कम होने और मजबूत मांग स्थितियों का समर्थन मिला है। पिछले चार महीनों से इसमें लगातार सुधार हो रहा है। इस इंडेक्स में 50 के नीचे की रीडिंग गतिरोध को बताती है और 50 के ऊपर विस्तार को। निष्कर्ष यह है कि जीएसटी की दरों में कटौती का फायदा विनिर्माण क्षेत्र को मिला है।

उधर देश के मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत ने कहा है कि जीएसटी संग्रहण की तस्वीर साफ होने के बाद जीडीपी आंकड़े संशोधित होंगे, क्योंकि रिटर्न अब भी भरे जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि तिमाही के लिए रिटर्न अब भी अधूरे हैं और अभी फाइलिंग की प्रक्रिया में हैं। लोग सितंबर तिमाही के लिए भी कर चुका रहे हैं। उस तिमाही में प्राप्तियां बढ़ सकती हैं। उनके अनुसार नोटबंदी की वजह से नकदी की अस्थायी किल्लत पैदा हुई और उसे सुलझा लिया गया। जीएसटी का असर पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़े में दिखा था। उसका पूर्वाभासी प्रभाव अब समाप्त हो चुका है।

अब अर्थ-व्यवस्था की तीसरी तिमाही के आँकड़े 28 फरवरी 2018 को जारी होंगे। तब तक सरकार अपने इस दौर का आखिरी बजट पेश कर चुकी होगी। यह बजट लोक-लुभावन हो सकता है। देखना होगा कि सरकार माहौल को बेहतर बनाने के लिए कौन से कदम उठाने जा रही है। उसे इस महीने मूडीज़ अपग्रेड से काफी मदद मिली। उसके बाद स्टैंडर्ड और पुअर ने भारत की रैंकिंग में अपग्रेड नहीं किया, पर उसने भी अर्थ-व्यवस्था के सुधारों की तारीफ की। इसके पहले विश्व बैंक के ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स में भारत 30 पायदान की लंबी छलांग के साथ 100वें स्थान पर पहुंच गया था। यह पहला मौका था, जब भारत ने इतनी लंबी छलांग लगाई।

मोटे तौर पर आंतरिक कारोबार और विदेशी निवेश के दोनों मोर्चों से सकारात्मक खबरें हैं। इसी हफ्ते की खबर यह भी है कि हमारा विदेशी मुद्रा कोष 400 अरब डॉलर पार कर गया है। अभी 5 दिसम्बर को सरकार विदेश व्यापार नीति की समीक्षा पेश करेगी। इन खबरों का चुनाव की राजनीति पर जरूर असर होगा। क्या असर होगा, इसे देखने के लिए 18 दिसम्बर तक का इंतजार करें।



हरिभूमि में प्रकाशित

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