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Friday, June 16, 2017

राष्ट्रपति चुनाव के पेचोख़म

राष्ट्रपति चुनाव में राजनीतिक शक्ति परीक्षण हो जाता है और गठबंधनों के दरवाजे भी खुलते और बंद होते हैं। गुरुवार को चुनाव की अधिसूचना जारी होने के साथ राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं। अब अगले हफ्ते यह तय होगा कि मुकाबला किसके बीच होगा। और यह भी कि मुकाबला होगा भी या नहीं। सरकार ने विपक्ष की तरफ हाथ बढ़ाकर इस बात का संकेत किया है कि क्यों न हम मिलकर एक ही प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाएं।

बीजेपी अध्‍यक्ष अमित शाह ने प्रत्याशी चयन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। समिति में वेंकैया नायडू, अरुण जेटली और राजनाथ सिंह शामिल हैं। यह समिति विपक्ष सहित ज्यादातर राजनीतिक दलों से बातचीत करेगी। बुधवार को बीजेपी की समिति की बैठक हुई, जिसमें तय हुआ कि एनडीए के प्रत्याशी के नाम का ऐलान 23 जून को किया जाएगा। शुक्रवार को यह समिति कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करेगी। इसके बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी के साथ बातचीत होगी।

चुनाव के लिए बुधवार को नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इसके अनुसार नामांकन की अंतिम तिथि 28 जून है और मतदान 17 जुलाई को होगा। प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल 24 जुलाई को समाप्त हो रहा है। वेंकैया नायडू ने बुधवार को बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रफुल्ल पटेल से टेलीफोन पर बातचीत की। दोनों पार्टियों का कहना है कि वे अपना रुख तभी स्पष्ट करेंगी, जब बीजेपी की कमेटी उनसे औपचारिक तौर पर मुलाकात करेगी।

विपक्ष ने कहा है कि हम एनडीए के प्रत्याशी के नाम की घोषणा तक इंतजार करेंगे, पर अब तक के आसार हैं कि वह टकराव मोल लेना चाहेगा, क्योंकि यह चुनाव सन 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले बनने वाले गठबंधनों की बुनियाद भी डालेगा। बुधवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में आरजेडी, जेडीयू, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दलों के नेताओं की बैठक में विपक्षी नेताओं की राय थी कि हम ऐसे व्यक्ति को समर्थन देंगे, जिसका साफ-सुथरा धर्मनिरपेक्ष व्यक्तित्व हो और जो संविधान की अभिरक्षा कर सके। कांग्रेस ने बाद में स्पष्ट किया कि सरकारी पेशकश के बाद हमने किसी नाम पर विचार नहीं किया।

बैठक में यह फैसला भी किया गया कि किसानों की बदहाली के विरोध में और स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने के समर्थन में इस महीने के अंतिम तीन दिनों में से किसी एक दिन भारत बंद का आयोजन किया जाएगा। लगता यह भी है कि बीजेपी ने विपक्ष की तरफ जो हाथ बढ़ाया है उसका उद्देश्य अपने विमर्श को लम्बा खींचना है और विरोधी दलों को फैसला करने का ज्यादा मौका देने से वंचित करने का है।

हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने बयान दिया था कि बेहतर हो कि सत्तापक्ष और विपक्ष मिलकर एक ही प्रत्याशी का नाम आगे बढ़ाएं। बुधवार की बैठक में तृणमूल प्रतिनिधि ने कहा कि हमें सरकार की ओर से प्रत्याशी के नाम का इंतजार करना चाहिए। सीपीएम के सीताराम येचुरी का कहना था कि ठीक है, पर यह इंतजार अनंत काल तक नहीं हो सकता। वाममोर्चा चाहता है कि बीजेपी के प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ा जाए।

एनडीए ने सन 2002 में प्रत्याशी का निर्णय करने के लिए समिति नहीं बनाई थी, बल्कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने खुद कांग्रेस अध्यक्ष से मुलाकात की थी। उन्होंने एपीजे अब्दुल कलाम का नाम सामने रखकर ऐसी स्थिति पैदा कर दी, जिसे कांग्रेस नकार नहीं पाई थी। सन 2012 में कांग्रेस ने प्रणब मुखर्जी का नाम घोषित करने के बाद मुख्य विपक्षी दल भाजपा से सम्पर्क किया था।

यह भी करीब-करीब तय है कि जीत एनडीए प्रत्याशी की ही होगी। उसके पास अपने प्रत्याशी को जितना लायक स्पष्ट बहुमत नहीं है, पर विपक्ष भी इतना एकजुट नहीं है कि वह अपने प्रत्याशी को जिता सके। एनडीए के पास 776 सांसदों, और देशभर की विधानसभाओं के 4120 विधायकों के निर्वाचक मंडल के 46.8 फीसदी वोट हैं। यानी उसे करीब 3 प्रतिशत से कुछ ज्यादा वोटों की जरूरत है। राष्ट्रपति-चुनाव का एक गणित है, जिसमें वोटों का कुल मूल्य 11 लाख से कुछ कम है. मोटा अनुमान है कि बीजेपी के पाँच लाख के आसपास वोटों का इंतजाम हो गया है।

बीजेपी के अनुसार वाईएसआर कांग्रेस, अन्नाद्रमुक के दोनों खेमे, टीआरएस और इनेलो का समर्थन भी उसके पास है। इतने भर से उसके प्रत्याशी की जीत हो जाएगी। बीजेपी की कोशिश है कि वह ज्यादा से ज्यादा बड़े बहुमत को अपने साथ दिखाने में कामयाब हो ताकि उनका देश पर मानसिक प्रभाव हो। इसलिए वह बीजू जनता दल को भी अपने साथ लाने का प्रयास करेगी। बीजद को फैसला करना होगा। उसने अब तक अपने आप को महागठबंधन की राजनीति से अलग रखा है और एनडीए से भी दूर रखा है। राज्य की वित्तीय जरूरतों के लिहाज से ओडिशा ने केंद्र के साथ टकराव भी मोल नहीं लिया।

विरोधी दल चाहते हैं कि बीजद को एनडीए के खेमे में जाने से रोका जाए। यों भी ओडिशा में बीजेपी मुख्य विरोधी दल के रूप में उभर रही है। इसलिए बीजद का उसके साथ जाना सम्भव नहीं लगता। विरोधी खेमे में कई नामों की चर्चा है, पर बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी के नाम पर सहमति बनती नजर आ रही है। वे महात्मा गांधी के पौत्र हैं। विरोधी दल चाहते हैं कि इस मौके पर अमित शाह को उनके चतुर बनिया बयान पर रगड़ा जाए।

देश में अब तक हुए राष्ट्रपति चुनावों में 1977 में नीलम संजीव रेड्डी के चुनाव को छोड़ कभी ऐसा मौका नहीं आया जब सर्वानुमति से चुनाव हुआ हो। दो बार चुने गए राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को भी चुनाव लड़ना पड़ा था। सन 2002 में कांग्रेस ने एनडीए के प्रत्याशी का समर्थन कर दिया था, पर वाममोर्चे ने कैप्टेन लक्ष्मी सहगल को खड़ा करके सर्वानुमति नहीं होने दी।

राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित

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