वस्तु
एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने की तारीख नजदीक आने के पहले उससे जुड़ी सारी
प्रक्रियाएं तकरीबन पूरी हो चुकी हैं। जीएसटी कौंसिल की श्रीनगर में हुई बैठकों
में वस्तुओं और सेवाओं की दरों को मंजूरी मिल चुकी है। अभी अटकलें हैं कि कौन सी
चीजें या सेवाएं सस्ती होंगी और कौन सी महंगी। यह मानकर चलना चाहिए कि इस व्यवस्था
के लाभ सामने आने में दो साल लगेंगे। एक बड़ा काम हो गया, फिलहाल यह बड़ा लाभ है।
मोदी
सरकार के तीन साल पूरे होने पर टीका-टिप्पणियों का दौर चल रहा है। ज्यादातर बातें
राजनीतिक हैं, पर इस राजनीति के पीछे बुनियादी बातें आर्थिक हैं। जीएसटी के अलावा आर्थिक
सवालों का सबसे बड़ा रिश्ता रोजगार से है। सरकार की बागडोर संभालते ही नरेन्द्र मोदी
ने हर साल एक करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा किया था। यह वादा पूरा होता दिखाई
नहीं पड़ रहा है। लेबर ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट के अनुसार फीसदी की आर्थिक संवृद्धि
के बावजूद पिछले साल रोजगार सृजन में केवल 1.1 फीसदी का इजाफा हुआ। यानी कि जितने
नए रोजगार बनने चाहिए थे, उतने नहीं बने। सवाल है कितने नए रोजगार बने? यह सवाल भटकाने वाला है। इसे लेकर रोज सिर
फुटौवल होता है, पर कोई नहीं जानता कि कितने नए रोजगार बने या कितने नहीं बने।
बहरहाल अब सरकार ने रोज़गार के आंकड़ों के लिए कार्यबल
का गठन किया है। यह कार्यबल ऐसे समाधान सुझाएगा जिन पर समयबद्ध तरीके से अमल हो
सके। इस कार्यबल की अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. अरविंद पनगढ़िया करेंगे।
अर्थव्यवस्था के गैर कृषि क्षेत्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में बेरोजगारी दर
सर्वाधिक पांच फीसदी पर पहुंच गई है। इस बीच, आईटी सेक्टर से
खराब खबर आई है। आईटी सेक्टर की 7 बड़ी कंपनियों ने कहा है के वे इस साल 56,000
इंजीनियरों की छंटनी करेंगी। देश में बेरोजगारी की स्थिति को देखते हुए साफ है कि
2019 के चुनाव में रोजगार बड़ा मुद्दा होगा।
देश के आर्थिक परिदृश्य को बताने वाले दो बड़े सूचकांक
और हैं। एक है शेयर बाजार, जिससे निवेश की स्थिति का पता लगता है और दूसरा है रुपए
की कीमत- जिससे पूरी अर्थ-व्यवस्था की सेहत का पता लगता है। इन दिनों सेंसेक्स
30,000 के ऊपर चल रहा है, जो रिकॉर्ड ऊँचाई है। तीन साल पहले मोदी सरकार के
कार्यभार संभालते वक्त डॉलर करीब 70 रुपये पर पहुंच गया
था। तब कोई नहीं कह सकता था कि वह 4 रुपये पर आएगा। अभी
जनवरी में उसकी कीमत 68 रुपये थी।
यह मजबूती अच्छी ग्रोथ, घटती मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटे
पर नियंत्रण, भुगतान संतुलन में चालू खाते के कम घाटे (जीडीपी के दो फीसदी से
नीचे) के कारण है। एक वजह यह भी है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति
बनने के बाद से डॉलर के मजबूत होने का क्रम रुका है। तेल और दूसरी जिंसों की
कीमतों में गिरावट आई है और नवंबर 2016 के शुरुआती सप्ताहों
की निकासी के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने भारत में वापसी की है। हो सकता
है कि यह मजबूती स्थायी न हो, पर हो भी सकती है। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा
कि अर्थ-व्यवस्था का रुझान क्या है।
इस लिहाज से जीएसटी के प्रभाव को देखने-समझने की जरूरत
भी होगी। उसके बारे में बात करने के पहले एक और छोटी सी खबर का जिक्र करना उपयोगी
होगा। खबर यह है कि नोटबंदी के बाद इस साल इनकम टैक्स भरने वालों की संख्या में
बड़ा इजाफा हुआ है। टैक्स रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या 95 लाख तक बढ़ी है।
नोटबंदी के फायदे और नुकसान को लेकर बहस अभी खत्म नहीं हुई है, पर लगता यह है कि
इस साल रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या और बढ़ेगी। जो भी है प्रत्यक्ष कर राजस्व
में इजाफा होगा।
सरकारी आय बढ़ने का मतलब है सरकारी निवेश बढ़ना, जो नए
रोजगार पैदा करने में मददगार होगा। इस साल बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर पर 3,96,135 करोड़ रुपये का आबंटन हुआ है। देश में
इतने बड़े स्तर पर निर्माण पर निवेश पहले कभी नहीं हुआ। इसके परिणाम साल के आखिर
में दिखाई पड़ने चाहिए। जीएसटी लागू होने के बाद अप्रत्यक्ष राजस्व में वृद्धि का
अनुमान इस आधार पर है कि अब टैक्स चोरी कम होगी, क्योंकि टैक्स जमा करने के स्रोत
कम हो जाएंगे। चुनौती उस व्यवस्था को लागू करने की है। साथ ही समूचे
उद्योग-व्यापार को नई व्यवस्था के मुताबिक ट्रेंड करने की जरूरत भी है।
जीएसटी परिषद के सदस्य तमाम राज्यों के प्रतिनिधि हैं। उन्हें
व्यापार समूहों का सामना भी करना होगा। ताकतवर उद्योग जगत और दबाव समूह भी सक्रिय होंगे। इसमें उन्हें मिलकर
राय बनानी होगी। एक शिकायत उद्योग-व्यापार से आ रही है कि जीएसटी के तहत उन्हें
साल भर में कम-से-कम 37 रिटर्न जमा करने पड़ेंगे। हरेक महीने तीन रिटर्न जमा करने
के साथ ही साल के अंत में एक समग्र रिटर्न भरने की बात कही जा रही है। इसके अलावा
एक से अधिक राज्यों में लेनदेन करने वाले कारोबारियों को वहां पर भी यही प्रक्रिया
अपनानी होगी।
इस कार्य में तकनीक
की भूमिका भी है। कारोबारियों को अपने आँकड़े समय पर अपलोड करने होंगे। आंकड़ों
में मेल न होने पर विवाद खड़े होंगे। इससे जुड़े सॉफ्टवेयर की ट्रेनिंग अभी
पर्याप्त नहीं है। जीएसटी
का फायदा यह है कि इसमें अप्रत्यक्ष कर की गणना और उसके संग्रहण में टैक्स-अधिकारियों
की भूमिका खत्म हो गई है। इससे व्यापारियों की दिक्कतें भी दूर होंगी। बिक्री की
गलत जानकारी वाली फर्मों के लिए ई-बिल बहुत बड़ा खतरा पेश करेगा।
जीएसटी
से जुड़े विधेयक सभी राज्यों की विधानसभाओं से अभी पास नहीं हुए हैं। अभी इसके लिए
समय है, पर जो राज्य 1 जुलाई के पहले जीएसटी विधेयकों को पारित नहीं कर पाएंगे, वे अपने कारोबारियों और उद्यमियों के लिए
परेशानी पैदा करेंगे, क्योंकि जीएसटी के तहत ज्यादा टैक्स जमा करने पर रिफंड की
व्यवस्था भी है। उन राज्यों में रिफंड नहीं हो पाएगा। इसलिए राज्यों को जल्द से
जल्द इस काम को पूरा करना चाहिए। जीएसटी लागू होने का मतलब है देश के व्यापार का
एक नए युग में प्रवेश। इसका लाभ लेने के लिए अभी हमें थोड़ा इंतजार करना होगा।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राजा राममोहन राय जी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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