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Sunday, April 23, 2017

राष्ट्रीय राजनीति को कैसे प्रभावित करेेंगे एमसीडी चुनाव परिणाम?

पूरे देश की नजरें क्यों हैं एमसीडी चुनाव पर?

मतदाताइमेज कॉपीरइटEPA
यह पहला मौक़ा है, जब एमसीडी के चुनावों ने इतने बड़े स्तर पर देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. वजह है इसमें शामिल तीन प्रमुख दलों की भूमिका. तीनों पर राष्ट्रीय वोटर की निगाहें हैं.
सहज रूप से नगर निगम के चुनाव में साज-सफाई और दूसरे नागरिक मसलों को हावी रहना चाहिए था, पर प्रचार में राजनीतिक नारेबाज़ी का ज़ोर रहा.
सवाल तीन हैं. क्या एमसीडी की इनकम्बैंसी के ताप से बीजेपी को 'मोदी का जादू' बचा ले जाएगा? क्या 'आप' की धाक बदस्तूर है? और क्या कांग्रेस की वापसी होगी?
नतीजे जो भी हों विलक्षण होंगे, क्योंकि दिल्ली का वोटर देश के सबसे समझदार वोटरों में शुमार होता है.
आम आदमी पार्टी का पोस्टरइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES

तीन टुकड़ों में एमसीडी

साल 2012 में जिस वक़्त एमसीडी को तीन टुकड़ों में बाँटा जा रहा था, तब दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी. उस वक्त विभाजन के पीछे प्रशासनिक कारणों के अलावा राजनीतिक हित भी नजर आ रहे थे.
कांग्रेस को लगता था कि इस तरह से एमसीडी पर क़ाबिज होने के विकल्प बढ़ जाएंगे. पर कांग्रेस को उसका लाभ कभी नहीं मिला.
एमसीडी के साल 1997 से 2012 तक के चार में से तीन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई है.
मनोज तिवारीइमेज कॉपीरइटGETTY IMAGES
साल 2002 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तब एमसीडी की 134 में से 107 सीटें कांग्रेस ने जीत कर पहला करारा राजनीतिक संदेश दिया था. उस चुनाव में बीजेपी को केवल 17 सीटें मिलीं थीं.
उसके पहले 1997 के चुनाव में बीजेपी को 79 और कांग्रेस को 45 सीटें मिलीं थीं. साल 2007 के चुनाव में कुल सीटों की संख्या बढ़कर 272 हो गई.

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