अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कामकाज के 100 दिन पूरे नहीं हुए हैं. इतने
कम समय में ही वे कई तरह के विवादों में फँसने लगे हैं. स्पष्ट है कि शत्रु उनका
पीछा नहीं छोड़ रहे हैं. ट्रंप ने मीडिया की भी तल्ख आलोचना की है. इन विवादों की
वजह से उनके राजनीतिक एजेंडा को चोट लग रही है. आतंकवाद से लड़ाई की बिना पर
उन्होंने पश्चिम एशिया के कुछ देशों के नागरिकों के अमेरिका आगमन पर पाबंदियाँ
लगाने की जो कोशिशें कीं, उन्हें अदालती अड़ंगों सा सामना करना पड़ा. हैल्थ-केयर
और टैक्स रिफॉर्म के उनके एजेंडा पर भी काले बादल छाए हैं.
पिछले हफ्ते ओबामा केयर की जगह नया हैल्थ-केयर बिल लाने की उनकी कोशिशों को धक्का
लगा. यह उनकी बड़ी राजनीतिक पराजय है. उनके हैल्थ-केयर बिल को पर्याप्त समर्थन नहीं
मिल पाया और मतदान के एक दिन पहले सरकार को इसे वापस लेना पड़ा. पिछले राष्ट्रपति
बराक ओबामा के हैल्थ-केयर प्लान को बदलकर ट्रंप नया हैल्थकेयर प्लान लाना चाहते
हैं. यह उनके चुनावी मुद्दों में एक अहम मुद्दा था. हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स यानी
प्रतिनिधि सभा के स्पीकर पॉल रेयान के मुताबिक जब यह साफ हो गया कि बिल के पक्ष
में डेमोक्रेटिक पार्टी के विरोध के साथ-साथ अपने रिपब्लिकन प्रतिनिधियों के जरूरी
वोट भी नहीं मिलेंगे तो बिल पर वोटिंग नहीं कराने का फैसला किया गया.
435 सदस्यों वाली प्रतिनिधि सभा में 235 सदस्यों के साथ रिपब्लिकन पार्टी
बहुमत में है, लेकिन कई रिपब्लिकन सांसद ट्रंप के हैल्थ-केयर
कायर्क्रम के विरोध में हैं. यह स्पष्ट था कि बिल को पास कराने के लिए जरूरी वोटों
में 10 से 15 कम पड़ जाते. इससे जो अपमानजनक स्थिति पैदा होती, उसके दरपेश वोटिंग
न कराने का फैसला किया गया. इस बड़ी पराजय के बाद ट्रंप ने कहा कि ओबामाकेयर को
रद्द करने के अपने चुनावी वादे को पूरा करने की इस कोशिश में मैंने बहुत कुछ सीखा
है. उन्होंने उन सासंदों को भी कोसा, जिन्होंने बिल का विरोध किया. सवाल है कि
क्या वे पार्टी के भीतर इस बात पर विमर्श करके बिल को पास कराने की कोशिश करेंगे?
ट्रंप ने कहा कि मैं उन लोगों को छोड़ूंगा नहीं, जिन्होंने विरोध किया. अब
अगले साल होने वाले संसद के मध्यावधि चुनाव में कई सांसद हारेंगे. फिलहाल अब मैं अपना
ध्यान टैक्स सुधार पर लगाऊंगा. इसके पहले ट्रंप को पश्चिम एशिया के कुछ देशों के
निवासियों की अमेरिका यात्रा पर रोक लगाने के उनके आदेश को अदालती चुनौतियों के
कारण झटका लगा था. अब एक और खतरा उनके सामने है.
आरोप है कि पिछले साल हुए राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान ट्रंप की टीम ने रूस
के साथ साठगांठ की थी. कहना मुश्किल है कि यह मामला कहाँ तक जाएगा, पर विशेषज्ञ
मानते है कि इसे महाभियोग की शक्ल भी दी जा सकती है, बशर्ते रूस के साथ साठगांठ
साबित हो जाए. अमेरिकी जाँच एजेंसी एफबीआई चुनाव में रूसी दखलंदाजी और ट्रंप की
प्रचार टीम के साथ उसके रिश्तों की जांच कर रही है. अमेरिकी कांग्रेस की कुछ कमेटियाँ
भी इस मामले में पूछताछ कर रही हैं. उधर ट्रंप ने आरोप लगाया है कि ओबामा सरकार ने
मेरे फोन टैप कराए थे.
पिछले सोमवार को एफबीआई के डारेक्टर जेम्स कोमी ने संसद की इंटेलिजेंस कमेटी
के सामने कहा कि हमें इस बात की जानकारी नहीं है कि ट्रंप ने किस आधार पर ओबामा पर
आरोप लगाए. ट्रंप ने ट्विटर पर दावा किया था कि राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उनके
प्रचार केंद्र ट्रंप टावर के फोन टैप कराए गए थे. कोमी ने हम इस आरोप की जाँच भी
कर रहे हैं कि ट्रंप की प्रचार टीम ने हिलेरी क्लिंटन को हराने के लिए रूस से
साठगांठ की थी या नहीं. इस खबर के बाबत ट्रंप ने देश के मीडिया पर ‘फेक न्यूज’ फैलाने का आरोप भी लगाया था. उनका कहना है कि सवाल
यह है कि गोपनीय जानकारी को किसने लीक किया. यानी कुल मिलाकर माहौल खराब होता जा रहा
है.
ट्रंप के ट्वीट बजाय उनका
भला करने के उल्टे नुकसान पहुँचा रहे हैं. इससे एक तरफ उनका राजनीतिक एजेंडा पीछे जा रहा है और उनकी पार्टी जिन सवालों को उठाना चाहता है, वे पिछड़ रहे
हैं. हाल में रिपब्लिकन सांसद पीटर किंग ने, जो इंटेलिजेंस कमेटी के सदस्य भी हैं,
न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि ये ट्वीट हमारा काम बिगाड़ रहे हैं. हम अमेरिकी सरकार
की खुफिया जानकारियों के लीक होने का सवाल उठाते हैं तो हमें ट्वीट का जवाब देना
पड़ता है. ऐसे में हम हमला करने के बजाय बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं.
ट्रंप की राजनीतिक लड़ाई का एक चरण अभी और बाकी है. उन्होंने देश के सुप्रीम
कोर्ट में न्य़ायाधी की नियुक्ति के लिए नील गोरश के नाम की संसस्तुति की है. इस
नाम की संसद से पुष्टि होने से ट्रंप की मर्यादा बची रहेगी. हालांकि जितने मुखर
उनके विरोधी है, उतने ही मुखर उनके समर्थक भी हैं. उनके समर्थक कहते हैं कि ट्रंप
सोच-समझकर आगे बढ़ रहे हैं और वे अपने एजेंडा को पूरा कराएंगे, और वोटर यही चाहता
है.
ट्रंप ने पद संभालने के बाद कम से कम तीन मामलों में जो पहल की, उनसे लगता है
कि उनकी बातें सिर्फ बातें नहीं थीं. सबसे पहले उन्होंने ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप
(टीटीपी) संधि से अमेरिका के हटने की घोषणा की. फिर सात मुस्लिम देशों के नागरिकों
को वीजा देने पर रोक लगाने के सिलसिले में प्रशासनिक प्रक्रिया शुरू की. फिर उन्होंने
मैक्सिको से लगी सीमा पर दीवार निर्माण और बिना वैध दस्तावेज के वहां रह रहे प्रवासियों
के निर्वासन से संबंधित दो कार्यकारी आदेशों पर हस्ताक्षर कर दिए. उन्होंने नॉर्थ
अमेरिका फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (नाफ्टा) पर फिर से विचार-विमर्श करने की बात भी कही
है. अभी कई तरह के विवादास्पद फैसले होंगे. उन फैसलों का निहितार्थ अंतरराष्ट्रीय
है, पर उसके पहले उन्हें राष्ट्रीय विवादों से पिंड छुड़ाना होगा.
inext में प्रकाशित
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