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Saturday, February 4, 2017

चुनाव में बजट भी बनेगा मुद्दा

बजट हो या कोई भी सरकारी नीति उसका संबंध चुनाव से नहीं हो, ऐसा संभव नहीं। इसमें कोई निराली बात नहीं है। सरकारें चुनाव जीतने के लिए ही काम करती हैं। खुद को देश का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने की कोशिश की जाती है। पाँच राज्यों के चुनाव के ठीक पहले बजट लाने का कांग्रेस ने विरोध ही इसलिए किया था कि सरकार कहीं खुद को ज्यादा बड़ा देश-हितैषीसाबित न कर दे। इसलिए सरकार की कोशिशों पर नजर डालनी चाहिए और इसपर भी कि विपक्ष इन कोशिशों पर पानी कैसे डालेगा।
चुनाव के पहले सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों की नजर में नोटबंदी चुनाव में बड़ा मुद्दा बन चुकी थी। बजट भी नोटबंदी के नकारात्मक असर को कम करने की कोशिश करता नजर आता है। बीजेपी को व्यापारियों की पार्टी और उद्योगपतियों तथा उच्च मध्यवर्ग की हमदर्द माना जाता है और नोटबंदी की पहली मार व्यापारियों पर ही पड़ी है।
बीजेपी का बदलता जनाधार
बजट पर नजर डालें तो केंद्र सरकार अपनी छवि को बदलने की कोशिश करती नजर आती है। आयकर में सबसे निचले तबके को छूट देकर और अमीर तबके पर सरचार्ज बढ़ाकर उसने राजनीतिक संदेश भी दिया है। वह यह जता रही है कि हम अमीरों से वसूलकर गरीबों को दे रहे हैं।
नोटबंदी की तमाम तकलीफों के बावजूद यदि उसके खिलाफ कोई बड़ा बवाल नहीं हुआ तो उसकी वजह यही थी कि गरीबों को लगा कि अमीरों के नोट बाहर निकल रहे हैं। मोदी अमीरों की बाँहें मरोड़ रहा है। नोटबंदी का पहला निशाना व्यापारी ही थे, जो भारतीय समाज में परंपरा से किसानों का दोहन करने वाले दिखाए जाते हैं। बजट में सरकार ने खुद को देहाती गरीबों, दलितों, जनजातियों और समाज के पिछड़े तबकों की हितैषी के रूप में रेखांकित किया है।
50 हजार गाँवों से गरीबी का सफाया
वित्तमंत्री ने कहा है कि विमुद्रीकरण के लाभ गरीबों और वंचितों को दिए जाएंगे। हम 2019 यानी महात्मा गांधी की 150वीं जयंती तक एक करोड़ परिवारों को गरीबी से निजात दिलाने और 50 हजार ग्राम पंचायतों को गरीबी-मुक्त बनाने के लिए अंत्योदय मिशन पर काम करेंगे। यह चुनावी भाषण ही है, क्योंकि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए किसी कार्यक्रम की घोषणा नहीं है। ऐसा किस तरह से होगा और किन गाँवों में होगा वगैरह स्पष्ट नहीं है। अच्छा होता कि सरकार लक्ष्य रखती कि फलां गाँवों को गरीबी मुक्त किया जाएगा।
बजट के कागजों में ग्रामीण, वंचित और दलित शब्दों पर जोर है। ग्रामीण और संबद्ध क्षेत्रों के लिए किए गए प्रावधानों को एक साथ जोड़कर बताया गया है कि इसके 1,87,223 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। अनुसूचित जातियों के लिए बजट में बड़ा इजाफा किया है। 2016-17 में यह राशि 38,833 करोड़ रुपये थी जिसे 2017-18 में बढ़ाकर 52,393 करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह 35 फीसदी वृद्धि सीधे-सीधे सरकार के नजरिए को रेखांकित करती है।
मनरेगा और ग्रामीण सड़कें
ऐसी ही एक संख्या मनरेगा के संदर्भ में 48,000 करोड़ रुपये के प्रावधान की है, जो इस मद में अब तक रखी गई सबसे बड़ी रकम है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना जिसके लिए 19,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. इसमें राज्यों की धनराशि को भी जोड़ दें तो पूरी धनराशि 27,000 करोड़ रुपये होती है। खेती-किसानी के लिए नाबार्ड के माध्यम से 10 लाख करोड़ रुपये के कृषि ऋण का लक्ष्य रखा गया है, जो सीधे इस बजट का हिस्सा नहीं है, पर जिसे सिर्फ इस बात को रेखांकित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है कि सरकार खेती को तवज्जोह दे रही है। फसल बीमा, सिंचाई वगैरह के प्रावधानों का जिक्र इस सिलसिले में महत्त्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 2019 तक एक करोड़ घर बनाने की बात सीधे उत्तर प्रदेश को लक्ष्य करके कही गई है। देश में उत्तर प्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां आबादी के सबसे बड़े हिस्से कुल 20 फीसदी लोगों के पास घर नहीं है। अन्य राज्यों में यह 8-10 प्रतिशत ही है। यह कार्यक्रम सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश को प्रभावित करेगा। उत्तर प्रदेश की शहरी आबादी के लिहाज से भी यही स्थिति है।
देशभर में भारी निर्माण
सरकार ने 3.96 लाख करोड़ रुपये के आसपास के जिस भारी इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश की घोषणा की है, वह जबर्दस्त है बशर्ते वोटर उसपर ध्यान दे। देश में इतने बड़े स्तर पर निर्माण पर निवेश पहले कभी नहीं हुआ। सड़कों, पुलों, भवनों, बिजली की लाइनों और रेल लाइनों के निर्माण से विकास की गाड़ी तेज होगी। ये निर्माण गाँवों और शहरों से होकर गुजरेंगे। इनके सहारे छोटे रोजगारों को बढ़ने का मौका मिलेगा। बड़ी तादाद में मजदूरों का काम मिलेगा।
प्रधानमंत्री कौशल केन्द्रों को मौजूदा 60 जिलों से बढ़ाकर देशभर के 600 जिलों में फैलाने की घोषणा भी महत्वाकांक्षी है. देशभर में 100 भारतीय अंतर्राष्ट्रीय कौशल केन्द्र स्थापित होंगे. इनमें उन्नत प्रशिक्षण तथा विदेशी भाषा के पाठ्यक्रम संचालित किए जाएंगे. इससे विदेशों में रोजगार की संभावना तलाश रहे युवाओं को लाभ होगा. रोजगार का मतलब सरकारी नौकरियाँ ही नहीं हैं, अपने रोजगार खड़े करना भी है.
श्रम-सुधार की चुनौती
भारत में आर्थिक सुधारों में सबसे बड़ा अवरोध श्रम-सुधारों को लेकर है। विदेशी पूँजी निवेशक हायर एंड फायर जैसी व्यवस्थाएं चाहते हैं। चीन में निवेश करते समय उन्हें ऐसी सुविधाएं मिल गईं थी, पर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह इतना सरल नहीं है। यहाँ श्रम-सुधारों की बात करना राजनीतिक लिहाज से आत्मघाती होता है। इसीलिए वित्तमंत्री ने इसे मीठी गोली के रूप में पेश किया है। उन्होंने कहा कि कामगारों के अधिकारों के संरक्षण एवं श्रम तथा उद्योगों के बीच पूर्ण सामंजस्य बनाने के लिए श्रम कानूनों को सरल और तर्कसंगत बनाने के सुधार जारी रहेंगे।
मौजूदा श्रम कानूनों को सरल एवं तर्कसंगत बनाने और चार संहिताओं में इनका विलय करने के लिए विधायी सुधारों को लागू किया जाएगा। इन चार संहिताओं में पारिश्रमिक, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण और सुरक्षा एवं कार्य की स्थितियां शामिल हैं। जेटली ने कहा कि मॉडल शॉप एवं प्रतिष्ठान विधेयक 2016 की प्रतियां सभी राज्यों को मुहैया करा दी गई हैं ताकि वे इस पर विचार करने के साथ-साथ उसे अपना सकें। इससे महिलाओं के रोजगार के लिए अतिरिक्त अवसर उपलब्ध होंगे।
भाजपा के अनुषंगी संगठन भारतीय मजदूर संघ ने ही सबसे पहले श्रम सुधारों को लेकर विरोध व्यक्त किया है। बीएमएस ने बजट पर नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि इसमें कामगारों, वेतनभोगियों और गरीबों की अनदेखी की गई है। बीएमएस के महासचिव ब्रजेश उपाध्याय का कहना है कि नोटबंदी के कारण बड़ी संख्या में श्रमिकों को शहर छोड़कर वापस गांव जाना पड़ा, लेकिन इस मुद्दे पर बजट में कोई बात नहीं आई।
अच्छी या बुरी नोटबंदी
बजट के राजनीतिक निहितार्थ को जितना भाजपा भुनाने की कोशिश करेगी, उतना ही विरोधी दल भी अपने पक्ष में भुनाएंगे। इसीलिए पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने बजट को ऐसा पटाखा कहा जो सिर्फ शोर करता है। उनसे बजट की तारीफ की आशा नहीं है, पर देखना होगा कि उनका मुख्य निशाना क्या है। नोटबंदी उनकी आलोचना का मुख्य विषय है। उन्होंने कहा, नोटबंदी के कारण किसानों, मजदूरों, मिस्त्रियों, गरीबों को करोड़ों रुपये का घाटा हुआ, लेकिन बजट में इनके लिए एक भी ऐलान ना होना निराश करता है।
नोटबंदी का असर हर घर और हर जेब पर पड़ा है। जेटली के बजट के काफी बड़े हिस्से में उसका डर बोल रहा है। विरोधी दल साबित करने की कोशिश करेंगे कि सरकार ने वह नहीं किया जो वह कर सकती थी। सरकार साबित कर रही है कि इस साल आपका भला होगा, तो नोटबंदी की वजह से।
दोनों तरफ से इस बात को खबरों में बनाए रखने की कोशिश की जाएगी। इसे खबरों में बनाए रखने के लिए ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने बजट के दिन संसद का बहिष्कार भी इसीलिए किया। इसीलिए राज्यसभा में राष्ट्रपति के बजट अभिभाषण में विरोधी दलों ने 651 संशोधन अभी से पेश कर दिए हैं। और इसीलिए बीजेपी की सभाओं में बजट के आँकड़े पेश किए जा रहे हैं। 
राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित

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