लम्बे अरसे से टलती
जा रही जीएसटी व्यवस्था आखिरकार शक्ल लेने लगी है। पिछले गुरुवार को जीएसटी कौंसिल
ने आम सहमति से टैक्स की चार दरों पर सहमति कायम करके एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया
है। अब जो सबसे जटिल मसला है वह यह कि इस राजस्व के वितरण का फॉर्मूला क्या होगा।
चूंकि इसे 1 अप्रैल 2017 से लागू होना है, इसलिए यह काम जल्द से जल्द निपटाना
होगा। चूंकि इस साल बजट भी अपेक्षाकृत जल्दी आ रहा है, इसलिए यह उत्सुकता बनी है
कि यह सब कैसे होगा।
टैक्स की चार दरों
की घोषणा और कई तरह के सेस यानी उपकरों के जारी रहने के बाद के बाद पहली नजर में
निराशा हुई है। लम्बे अरसे से हम सुनते आ रहे थे कि देशभर में एक टैक्स होगा, पर
यह तो एक टैक्स नहीं है। यह माना जा रहा है कि मोदी सरकार की आर्थिक संवृद्धि और
नए रोजगार पैदा करने की गाड़ी काफी कुछ जीएसटी के सहारे है। कांग्रेस पार्टी ने
लम्बे समय तक इसमें अड़ंगे लगाए। अब जब गाड़ी आधे रास्ते पर आ गई है तो लगता है कि
जटिलताएं हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाली हैं। देश के 27 राज्यों और केन्द्र के बीच
सहमति कायम करना हँसी-खेल नहीं है। देश की संघीय प्रणाली के लिए यह बड़ी चुनौती
है।
वित्तमंत्री अरुण
जेटली ने यह समझाने का प्रयास किया है कि पूरे देश में एक ही जीएसटी लागू करना
इसलिए सम्भव नहीं है, क्योंकि उसका सीधा असर गरीबों पर पड़ेगा। कौंसिल की बैठक में
तय किया गया कि अनाज जैसी आम आदमी की रोजाना जरूरत की चीजों पर कोई टैक्स नहीं
लगेगा। अतिआवश्यक चीजों पर यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में शामिल 50 फीसदी प्रोडक्ट पर
कोई टैक्स नहीं लगेगा। ज्यादा खपत वाले प्रोडक्ट पर 5 फीसदी टैक्स लगेगा।
अनाज पर जीरो परसेंट टैक्स रेट लागू होगा।
वित्त मंत्री के
मुताबिक जीएसटी लागू होने पर वैसी चीजें सस्ती होंगी जो 5 फीसदी टैक्स रेट के
दायरे में आएंगी, पहले उनपर ज्यादा टैक्स लगता था। इसके अलावा कुछ चीजों को 28 फीसदी से 18 फीसदी के स्लैब में
लाया जाएगा और वे भी सस्ती होंगी। सबसे ज्यादा 28 फीसदी टैक्स अमीरों के इस्तेमाल
की चीजों पर लगेगा। सेस भी फौरन हटाए नहीं जाएंगे, पर वे लग्जरी कारों और तम्बाकू
जैसी हानिकारक चीजों पर लगेंगे। अभी सोने पर टैक्स के बारे में फैसला नहीं हुआ है।
बहरहाल अभी उन
वस्तुओं की सूची बनेगी, जो टैक्स की अलग-अलग दरों के दायरे में आएंगे। चूंकि यह
सर्वानुमति से हुआ है इसलिए उम्मीद है कि संसद के शीत सत्र में जीएसटी कानून पास
हो जाएगा और राज्यों की विधानसभाएं भी इस आशय के कानून पास कर देंगी। इस नई कर
प्रणाली को पहले साल लागू करते समय कई प्रकार की जटिलताएं सामने आएंगी।
पहली जटिलता भारतीय
समाज में गरीब और अमीर के बीच की बड़ी खाई के कारण पैदा हुई है। हमारी कर प्रणाली
को इसका समाधान खोजना होगा। अलबत्ता जीएसटी के कारण टैक्स के दायरे में काफी बड़ी
व्यापार प्रणाली आ जाएगी। अभी हम तमाम चीजें खरीदते समय बिक्री कर नहीं देते हैं।
दुकानदार हमसे लेता भी है तो वह सरकार को देता है या नहीं, हमें पता नहीं। पर अब
एक जगह टैक्स जमा होने से वस्तु पर टैक्स सुनिश्चित हो जाएगा। इससे राजकोषीय
समस्या का समाधान होगा।
बहुत सी वस्तुएं देश
के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग भाव पर बेची जाती हैं। उसमें एकरूपता आएगी।
व्यापारियों और छोटे-छोटे उद्यमियों को भी आसानी होगी। पर यह सब तब होगा जब सारी
चीजें व्यवस्थित होंगी। अभी उसकी शुरुआत हुई है। वैश्विक अनुभव है कि सुधार की
प्रक्रिया धीरे-धीरे चलने पर ही सफल होती है। एक बार रियायत देने के बाद उसे वापस
लेना मुश्किल हो जाता है। इसलिए टैक्स को कम करने में भी जल्दबाजी ठीक नहीं होगी।
हमारे यहाँ
मुद्रास्फीति और महंगाई के खतरे भी हैं, इसलिए सरकार को कदम फूँककर रखने होंगे।
राजनीतिक लिहाज से हमारे देश की संघीय व्यवस्था में भी तमाम पेच हैं। जीएसटी से
जुड़ा संविधान संशोधन विधेयक जिन परिस्थितियों में पास हुआ, उसे हमने खुद देखा है।
संविधान संशोधन के अनुसार जीएसटी का क्रियान्वयन इसकी अधिसूचना जारी होने के एक
वर्ष के भीतर होना है। अधिसूचना जारी होने के एक साल बाद उत्पाद शुल्क, सेवा कर, मूल्य वर्धित कर से
संबंधित कानून अनुच्छेद 20 के अधीन वैध नहीं रहेंगे। सरकार के पास कई तरह के अधिकार
होते हैं, जिनकी मदद से वह क्रियान्वयन की दिक्कतें दूर कर सकती है। फिर भी देखना
होगा कि यह 1 अप्रैल 2017 से ठीक-ठाक लागू हो जाए।
हमारे देश में सरकार
से दोस्ती करके अपने पक्ष में नीतियों को बदलवाने वाले कारोबारी भी है। जबकि
उदारीकरण का लक्ष्य कारोबार की मदद करना है, किसी एक कारोबारी की नहीं। कारोबार की
मदद के पीछे उद्देश्य है आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाना ताकि नए रोजगार पैदा हों। पर
अभी कारोबारी भ्रष्टाचार को सामने आना है। गलत इनवॉइसिंग, छद्म कम्पनियाँ और झूठे
सौदे भी सामने आएंगे। इसलिए जरूरी है पूरी व्यवस्था को पारदर्शी बनाना। सन 1991
में जब देश ने पहली बार सब्सिडी की व्यवस्था को खत्म करना शुरू किया था तब इस
प्रकार के छल छद्म काफी सामने आए थे।
उम्मीद है कि जीएसटी
के कारण उत्पादकता बढ़ेगी और निवेश भी। कर और इससे सकल घरेलू उत्पाद में 0.5 फीसदी से लेकर दो
फीसदी तक की बढ़ोत्तरी की उम्मीद है। यानी कि दो से ढाई लाख करोड़ रुपया
अर्थ-व्यवस्था में शामिल होगा। यह सब रातों-रात नहीं होने वाला। इसके जितने लाभ
हैं शायद खतरे भी उतने ही हों। इसलिए फिलहाल इसे सफलतापूर्वक लागू करना चाहिए।
इसके बाद इसकी जटिलताओं को देखना होगा। उदारीकरण अपनी तार्किक परिणति तक तभी
पहुँचेगा जब इसके पीछे जनता का समर्थन होगा। हमारे देश में यह प्रक्रिया उस वक्त
चल रही है जब अर्थ-व्यवस्था तेजी से उठने लगी है। सन 2007-2008 के बाद यह स्थिति
फिर से आई है। और अब हम पीछे मुड़कर नहीं देखेंगे।
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