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Saturday, November 26, 2016

कांग्रेस एक पायदान नीचे

नोटबंदी के दो हफ्ते बाद राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष की भावी रणनीति भी सामने आने लगी है। इसमें सबसे ज्यादा तेजी दिखाई है ममता बनर्जी ने, जिन्होंने जेडीयू, सपा, एनसीपी और आम आदमी पार्टी के साथ सम्पर्क करके आंदोलन खड़ा करने की योजना बना ली है। इसकी पहली झलक बुधवार को दिल्ली में दिखाई दी। जंतर-मंतर की रैली के बाद अचानक ममता बनर्जी का कद मोदी की बराबरी पर नजर आने लगा है। पर ज्यादा महत्वपूर्ण है कांग्रेस का विपक्षी सीढ़ी पर एक पायदान और नीचे चले जाना। नोटबंदी के खिलाफ एक आंदोलन ममता ने खड़ा किया है और दूसरा आंदोलन कांग्रेस चला रही है। बावजूद संगठनात्मक लिहाज से ज्यादा ताकतवर होने के कांग्रेस के आंदोलन में धार नजर नहीं आ रही है। राहुल गांधी अब मुलायम सिंह, मायावती और नीतीश कुमार के बराबर के नेता भी नजर नहीं आते हैं।

इस रैली में कुछ नेताओं के भाषणों से संकेत मिला कि ममता बनर्जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाया जा सकता है। हालांकि अभी यह दूर की कौड़ी है, पर राजनीति में संकेत मिलते भी इसी तरह से हैं। इन बातों में कांग्रेस पार्टी और खासतौर से राहुल गांधी के लिए महत्वपूर्ण संदेश छिपा है। क्या कांग्रेस किसी राष्ट्रीय महागठबंधन में शामिल होने को तैयार है? क्या वह ममता बनर्जी के नेतृत्व को स्वीकार कर सकती है? क्या उसके पास चुनाव को जीतने का कोई फॉर्मूला है? क्या अब भी एनडीए का विकल्प यूपीए है?
सन 2004 में यूपीए बनने के पहले से सोनिया गांधी ने अन्य विरोधी दलों के साथ सम्पर्क शुरू कर दिया था। पर अब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सम्भावना बनती नजर नहीं आ रही है। सोनिया गांधी ने अपने व्यक्तिगत प्रभाव से पार्टी को एक नाजुक मौके पर बचाकर रखा था। अब नेतृत्व में बदलाव की घड़ी है। और यह नजर आने लगा है कि देश का विपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में आने से संकोच कर रहा है। बुधवार को विपक्षी दलों के सदस्य भी संसद भवन के बाहर गांधी प्रतिमा के पास एकजुट हुए। करीब 200 सांसदों ने गांधी प्रतिमा के पास विरोध प्रदर्शन किया। इनमें से आधे कांग्रेस के थे।
राहुल गांधी की भागीदारी के बावजूद विपक्ष के आंदोलन का श्रेय ममता बनर्जी ले गईं। इसके पहले ममता बनर्जी की पहल पर ही विपक्षी सदस्यों ने राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च किया था और विमुद्रीकरण के फैसले को वापस लेने की माँग की थी। तब तक शिवसेना, नेशनल कांफ्रेंस और आम आदमी पार्टी खासतौर से उनके साथ आए थे। हालांकि शिवसेना ने उसके बाद से नोटबंदी पर अपने रुख को बदल लिया है। पर ममता बनर्जी के साथ पहले से ज्यादा दल आ गए हैं। इनमें जेडीयू भी शामिल है, जिसने पहले नोटबंदी का समर्थन किया था। अब ममता बनर्जी इस सवाल को लेकर लखनऊ, पटना और पंजाब के शहरों में रैलियाँ करने की योजना बना रहीं हैं।
कांग्रेस का इरादा था कि संसद में सरकार को घेरेंगे। ममता बनर्जी ने इसे आंदोलन का शक्ल देकर इसे दूसरी शक्ल दे दी है। इस वक्त हो रहा विरोध प्रदर्शन किसी एक संगठन के झंडे तले नहीं है और न इसका समन्वय किसी ने किया है, पर विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस इसमें सबसे आगे होने का आभास नहीं दे पाई है। बहरहाल अब 28 नवम्बर के आक्रोश दिवस पर आंदोलन का दूसरा चरण शुरू होगा। विरोधी दलों की संगठन क्षमता का भी इसमें परीक्षण होगा।
विरोधी दलों में केवल कांग्रेस पार्टी के पास राष्ट्रीय स्तर पर संगठन है, इसलिए काफी दारोमदार उसपर है। पर क्या कांग्रेस इस आंदोलन का नेतृत्व कर पाएगी? क्या वह दूसरे विरोधी दलों को अपने साथ लाने में कामयाब होगी? नोटबंदी के कारण आम जनता के जीवन में दिक्कतों का एक बड़ा दौर अब शुरू होने वाला है। अंदेशा इस बात का है कि नकदी की कमी के कारण ट्रकों का आवागमन प्रभावित होगा, जिसकी वजह से खाद्य सामग्री के परिवहन की दिक्कतें पैदा होंगी। यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस इस परिस्थिति का फायदा उठा भी पाएगी या नहीं।
नोटबंदी के फैसले का विपरीत प्रभाव जनता पर पड़ रहा है, पर जनता का काफी बड़ा हिस्सा उसे सहन करने को तैयार है। अब जनता इसके विरोध में विपक्षी आंदोलन को किस रूप में लेगी इसे भी देखना होगा। जैसे यह मोदी सरकार की परीक्षा की घड़ी है, उसी तरह विपक्ष के सबसे बड़े दल के नाते कांग्रेस की परीक्षा भी है। खासतौर से तब जब पार्टी का नेतृत्व धीरे-धीरे पूरी तरह राहुल गांधी के कंधों पर आता जा रहा है।
कांग्रेस पार्टी ने उत्तर प्रदेश के चुनाव में जनता की परेशानियों को मुद्दा बनाने का फैसला किया है। पार्टी ने कानपुर में रिजर्व बैंक के घेराव की योजना बनाई है। इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक यह घेराव हो चुका होगा। यह उत्तर प्रदेश में आंदोलन का पहला कदम है। इससे कांग्रेस की क्षमता का पता लगेगा, साथ ही जनता की प्रतिक्रिया भी सामने आएगी। राहुल गांधी ने सितम्बर में देवरिया से दिल्ली तक की 26 दिन की यात्रा की थी। इसके अलावा जिलों में राहुल संदेश यात्राएं चलीं।
कांग्रेस अब इस आंदोलन को विमुद्रीकरण से पैदा हुई दिक्कतों की और मोड़ना चाहती है। कानपुर से शुरू करके यह आंदोलन बहराइच, गोरखपुर, वाराणसी होता हुआ प्रदेश के दूसरे इलाकों में ले जाया जा सकता है। बाद में इन सभाओं में राहुल गांधी को मुख्य वक्ता के रूप में ले जाने की योजना है। राहुल गांधी ने अपनी 26 दिन की यात्रा के दौरान समाजवादी पार्टी और बसपा को निशाना नहीं बनाया। केवल बीजेपी को ही निशाने पर रखा। अब नोटबंदी के बाद उन्हें बीजेपी पर वार करने का मौका मिला है।
बुधवार की सुबह विरोध प्रदर्शन के दौरान राहुल गांधी ने विमुद्रीकरण को 'बिना सोचे-समझे किया गया दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय प्रयोग' करार दिया, और कहा कि पूरा विपक्ष एकजुट होकर चुनींदा लोगों को पहले से विमुद्रीकरण की जानकारी दिए जाने के आरोप की संयुक्त संसदीय समिति से जांच करवाए जाने की अपनी मांग पर डटा है। पार्टी कहना चाहती है कि मोदी सरकार ने इस फैसले के सहारे अपने पसंदीदा पूंजीपतियों को लाभ पहुँचाया है।

कांग्रेस विमुद्रीकरण को लागू करने के तौर-तरीके को विवाद का विषय बना रही है, विमुद्रीकरण को नहीं। उसने अभी तक इस फैसले के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर साफ-साफ राय नहीं रखी है। राहुल गांधी कहते हैं कि हम भ्रष्टाचार और काले धन से लड़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन 'एक अरब लोगों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए...।' यानी कि पार्टी को लगता है कि इस फैसले के सकारात्मक पहलू भी हैं। फिलहाल कांग्रेस संसदीय गतिरोध के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की रणनीति पर चल रही है। 

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