विसंगति है कि हम गांधी जयंती के दिन ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की बात कर रहे हैं। पर यह सवाल आज ही पूछा जा सकता
है कि क्या शांति-स्थापना का रास्ता युद्ध से होकर नहीं जाता है? खासतौर से तब जब कोई हथियार लेकर
सिर पर खड़ा हो? गुरुवार 28-29 सितम्बर की रात भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके आतंकवादियों
के सात लांच पैड पर हमले किए थे। यह प्रिवेंटिव कार्रवाई थी। हमले को रोकने की
पेशबंदी।
युद्ध किसी के हित में नहीं है। न भारत के और न पाकिस्तान के। नरेन्द्र मोदी
ने गरीबी, बेरोजगारी और बदहाली के खिलाफ जिस लड़ाई का आह्वान किया है, वह भी यह
नहीं है। पर उस लड़ाई के पहले यह लड़ाई भी लड़नी होगी। हमें यदि लोकतांत्रिक और
जिम्मेदार व्यवस्था को कायम रखना है तो मध्ययुगीन कट्टरपंथी मनोवृत्तियों से टक्कर लेनी होगी।
इस कार्रवाई के मार्फत भारत ने वह लक्ष्मण रेखा खींची है, जिसे पार करने का
मतलब है इस इलाके में बड़े युद्ध को निमंत्रण देना। हमने अपनी सहनशीलता की सीमा
बताई है। पाकिस्तान की हरकतों का पर्दाफाश भी किया है, ताकि वह अलग-थलग पड़े। यह सब
आत्मरक्षार्थ है। किसी पर हमला नहीं है। अपने ऊपर हुए हमले का जवाब है और भविष्य
में होने वाले हमलों को रोकने की कोशिश। यह पहली चेतावनी है, जिसके कम से कम तीन
संदेश हैं।
लगातार हो रहे हमलों के जवाब में भारत ने अब तक जवाबी फौजी कार्रवाई कभी नहीं
की। पहली बार फौजी वार किया है। अनौपचारिक रूप से इसके पहले भी भारत सीमा पार करके
ऐसी कार्रवाइयाँ कर चुका है, पर पहली बार इसकी घोषणा की गई है। पहला संदेश
पाकिस्तान को है कि ऐसी गतिविधियाँ किसी भी वक्त बड़े युद्ध में बदल जाएंगी। यह
हमला पाकिस्तानी सेना पर नहीं था, बल्कि आतंकवादी अड्डों पर था। पाकिस्तान कहता है
कि वह आतंकवाद का शिकार है। एक तरह से यह वह काम है जो पाकिस्तानी सेना को करना
चाहिए।
दूसरा संदेश देश
की आंतरिक राजनीति के नाम है। कश्मीर में चल रहे ‘पत्थर मारो आंदोलन’ के दौरान देश के विपक्षी राजनीतिक दलों ने मोदी
सरकार की प्रकारांतर से आलोचना की थी। पर इस ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की खबर के बाद राजनीतिक दलों का रुख बदला। प्रायः
सभी दलों ने सरकार का समर्थन करने की घोषणा की। यह घोषणा इसलिए जरूरी थी क्योंकि
जनमत पाकिस्तान के खिलाफ है और उड़ी हमले के बाद भारतीय जनता के मन में पाकिस्तान
के प्रति वैसा ही गुस्सा है जैसा 2008 के मुम्बई हमले के वक्त था।
बहरहाल सरकार ने भी सर्जिकल अटैक के बाद फौरन सभी दलों को बुलाकर इसकी जानकारी दी। विदेश मंत्री
श्रीमती सुषमा स्वराज ने व्यक्तिगत रूप से श्रीमती सोनिया गांधी को वस्तुस्थिति से
अवगत कराया। यह आम सहमति सरकार के लिए बड़ी राहत और ताकत है। ऐसे में अक्सर
सरकारों को श्रेय मिलता है। पर यह श्रेय पूरी राजनीति को मिलना चाहिए। यह देश की
लोकतांत्रिक व्यवस्था की परीक्षा की घड़ी भी है।
तीसरा संदेश
अमेरिका और चीन के नाम है। दोनों देशों का पाकिस्तान पर किसी न किसी रूप में असर
है। सम्भवतः भारत ने अपनी कार्रवाई से अमेरिका को अवगत करा दिया था। गुरुवार की सुबह
अमेरिका की सुरक्षा सलाहकार सूसन राइस ने भारत के सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से
फोन पर बात की थी। उन्होंने भारत को आश्वासन दिया उड़ी मामले में पाकिस्तान पर इस
बात के लिए दबाव बनाया जा रहा है कि वह आतंकवादी गुटों पर कार्रवाई करे। पिछले कुछ
समय से भारत ने स्पष्ट किया है कि हमारी शैली बदल रही है। हम केवल डिप्लोमैटिक
तरीके काम नहीं करेंगे।
हमारे पास सैनिक
विकल्प हुए तो उनका इस्तेमाल भी करेंगे। यह दुनिया पर है कि वह पाकिस्तान पर दबाव
बनाए। इस बीच इस्लामाबाद में होने वाली दक्षेस शिखर वार्ता स्थगित हो गई है। इस
सम्मेलन को स्थगित करने के पीछे भारत के अलावा बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान
का हाथ है। अब श्रीलंका ने भी आतंकवाद की निंदा करते हुए सम्मेलन से हाथ खींच लिया
है। यह डिप्लोमैटिक दबाव है।
भारतीय सेना ने
इस अभियान के बारे में ज्यादा जानकारी मीडिया को नहीं दी है। यही कारण है कि
पाकिस्तान ने फौरन ही इस स्ट्राइक को खारिज कर दिया। सेना के सूत्रों के अनुसार इस
अभियान को वीडियो में दर्ज किया गया है। जरूरी होने पर सेना उन्हें सार्वजनिक रूप
से जारी भी कर सकती है। पर कोशिश इस बात की होगी कि सम्बद्ध पक्ष संदेश को ग्रहण
करें। पाकिस्तान को भी नाक बचाने का अवसर दिया गया है। हमें अभी अगले कुछ दिन तक
घटनाक्रम की प्रतीक्षा करनी होगी। यदि पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई करेगा तो भारत को
और भी कड़ा जवाब देना होगा। तब हालात बिगड़ेंगे।
भारत को यह कदम
तब उठाना पड़ा है जब पाकिस्तान ने अपने यहाँ सक्रिय आतंकी गिरोहों के खिलाफ कोई भी
कार्रवाई करने से इंकार कर दिया और कश्मीरी स्वतंत्रता आंदोलन के नाम पर आतंकवादी
हिंसा को जायज ठहराना शुरू कर दिया। पठानकोट हमले के बाद भारत ने जैशे मोहम्मद से
जुड़े लोगों के नाम और ठिकानों की जानकारी पाकिस्तान को दी। पाकिस्तान की एक टीम
ने भारत आकर घटनास्थल को भी देखा और राष्ट्रीय जाँच एजेंसी से जरूरी जानकारियाँ भी
हासिल कीं, पर उसकी अगली कार्रवाई की कोई इत्तला नहीं दी।
यह सर्जिकल
स्ट्राइक उड़ी पर हुए हमले का जवाब नहीं है, बल्कि भविष्य में आतंकवादी हमलों की
सम्भावनाओं को खत्म करने वाली कार्रवाई है। यह पेशबंदी है, हमला नहीं। यह कार्रवाई
बहुत बड़े स्तर पर नहीं की गई है। और इसका दायरा केवल थल सेना तक सीमित है। इसमें
वायुसेना की मदद नहीं ली गई। हालांकि डीजीएमओ ने इसकी जानकारी देते हुए बताया था
कि और ऑपरेशंस की योजना नहीं है, पर सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। कोशिश
इस बात की होनी चाहिए कि टकराव बढ़ने न पाए।
अभी कुछ सवालों
के जवाब हमारे पास नहीं हैं। मसलन पाकिस्तान में राहिल शरीफ के सेवा-विस्तार के
साथ पाकिस्तान का भविष्य जुड़ा है? क्या पाकिस्तानी फौज इसीलिए इस कार्रवाई को नकार रही है, क्योंकि उसकी
कार्य-कुशलता पर धब्बा लगा है? और क्या पाकिस्तान में फौजी शासन आने वाला है? जवाब जो भी हों, भारत
का भविष्य युद्धों के साथ नहीं जुड़ा है। हमें जल्द से जल्द अपने आर्थिक विकास के
बारे में सोचना होगा।
हरिभूमि में प्रकाशित
No comments:
Post a Comment