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Monday, April 4, 2016

राजनीतिक घमासान : अभी तो पार्टी शुरू हुई है

उत्तर भारत में मार्च-अप्रैल के महीने आँधियों के होते हैं. पश्चिम से उठने वाली तेज हवाएं धीरे-धीरे लू-लपेट में बदल जाती हैं. राजनीतिक मैदान पर मौसम बदल रहा है और गर्म हवाओं का इंतजार है. असम और बंगाल में आज विधान सभा चुनाव का पहला दौर है. इसके साथ ही 16 मई तक लगातार चुनाव के दौर चलेंगे, जिसका नतीजा 19 मई को आएगा. इन नतीजों में भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति के कुछ संकेत सूत्र होंगे, जो नीचे लिखी कुछ बातों को साफ करेंगे:-· इस बीच मोदी सरकार की जीत के दो साल पूरे हो जाएंगे. भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह जमी नहीं है और कांग्रेस पूरी तरह परास्त नहीं है. अगले दो महीने में देश निर्णायक विजय-पराजय की और बढ़ेगा. इस वक्त जो पाला मारेगा वही मीर साबित होगा. जेएनयू प्रकरण में भाजपा और वामपंथियों ने अपने-अपने लक्ष्य हासिल कर लिए. पर इसके आगे क्या? फिलहाल चुनाव परिणाम का इंतजार करें. 
· पिछले साल बिहार में एक महागठबंधन ने मोदी सरकार के विजय रथ को रोक लिया था. यों तो उसके पहले दिल्ली में ही यह विजय रथ रुक गया था, पर उसके कारण वही नहीं थे, जो बिहार में थे. बिहार में भाजपा को रोकने के लिए एक वैकल्पिक गठबंधन सामने आया था. अब पाँच राज्यों के चुनाव में इस गठबंधन की जमीनी राजनीति सामने आएगी. 
· इन राज्यों में से असम और केरल में कांग्रेस की सरकारें हैं. दोनों जगह उसकी हार का खतरा मंडरा रहा है. हाल में अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गई. इस हफ्ते उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार के भविष्य को लेकर महत्वपूर्ण फैसले हो रहे हैं. हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय और कर्नाटक में मुख्यमंत्रियों के खिलाफ बगावतों की सुगबुगाहट है.

· पिछले साल उम्मीद थी कि राहुल गांधी पूरी तरह अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठ जाएंगे. ऐसा नहीं हो सका. पर एक लम्बे अवकाश के बाद लौटकर उन्होंने संसद में आक्रामक रणनीति अपनाकर मोदी सरकार को परेशान कर दिया. पर अपने संगठन को अभी तक खड़ा नहीं कर पाए हैं. सोनिया गांधी ने जब भी अपना हाथ संगठन से खींचा है, कोई न कोई विवाद खड़ा हुआ है.

चार राज्यों के ओपीनियन पोल इन सवालों पर अलग-अलग संदेश दे रहे हैं. हालांकि सारे पोल एक ही भाषा नहीं बोल रहे हैं, पर ज्यादातर के रुझान एक से हैं. असम में कांग्रेस पार्टी की पराजय और भाजपा की जीत का संकेत मिल रहा है. कुछ पोल कहते हैं कि भाजपा और उसके सहयोगी दल सीधे-सीधे बहुमत हासिल कर लेंगे. वहीं कुछ का अनुमान है कि त्रिशंकु विधान सभा भी सम्भव है. इस स्थिति में हो सकता है कि कांग्रेस बद्रुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ की मदद से सरकार बनाए.

कांग्रेस के लिए दूसरा बड़ा मोर्चा केरल में है, जहाँ उसकी हार सामने खड़ी दिखाई पड़ रही है. वहाँ मुख्यमंत्री ऊमन चैंडी समेत चार मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हैं. हालांकि वहाँ भारतीय जनता पार्टी काफी तैयारी के साथ उतर रही है, पर उसकी सफलता की कोई उम्मीद नहीं. अलबत्ता वह प्रतीक रूप में भी सफल हो गई तो कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत की राजनीति में इसे भाजपा का महत्वपूर्ण दखल माना जाएगा.

केरल में गलाकाट प्रतियोगिता में शामिल कांग्रेस ने बंगाल में उसी वाम मोर्चा के साथ गठबंधन किया है, जो भारतीय राजनीति में नया प्रयोग है. ओपीनियन पोल मान कर चल रहे हैं कि बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ही जीतकर आएगी. अलबत्ता कांग्रेस के साथ गठबंधन करके वाम मोर्चा कुछ फायदे में रहेगा. पर कांग्रेस की स्थिति कमजोर ही होगी. पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा को 24 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी, पर लगता नहीं कि विधानसभा चुनाव में उसे विशेष सफलता मिलेगी. कुछ ओपीनियन पोल उसे एक सीट और कुछ एक भी नहीं दे रहे हैं. अलबत्ता भाजपा बंगाल में किसी तरह अपने पैर जमाना चाहती है.

तमिलनाडु की राजनीति में परम्परा से अद्रमुक और द्रमुक के बीच सीधी लड़ाई होती आई है. इस बार लगता है कि कम से कम तीन मोर्चे खुलेंगे. फिल्म अभिनेता विजय कांत की पार्टी डीएमडीके और पाँच पार्टियों के पीपुल्स वेलफेयर एलायंस के बीच समझौता हुआ है. पहले इस पार्टी के साथ बीजेपी की बात भी चली थी. यह मोर्चा वोट खींचेगा, पर कितने और किसके इसका जवाब देना अभी सम्भव नहीं. माना जा रहा है कि इसका नुकसान डीएमके को होगा. भाजपा और रामदॉस की पार्टी पीएमके को खास सफलता मिलने की आशा नहीं है. फिर भी भाजपा की दक्षिण मुहिम को ध्यान से देखना होगा.

ये चुनाव सन 2019 के लोकसभा की पूर्व-पीठिका भी तैयार करेंगे. पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी विकास के मुद्दे पर जीतकर आई थी. पर उसने धीरे-धीरे राष्ट्रवाद को अपनी राजनीति में आगे कर दिया है. असम में वह साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के सहारे है. अगले साल उत्तर प्रदेश के चुनाव हैं, जो लोकसभा चुनाव में विजय का सबसे महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है.

इस बीच राष्ट्रीय स्तर पर जनता परिवार और कांग्रेस का गठबंधन बनाने की कोशिशें चल रहीं है. बीजू जनता दल के सांसद तथागत सत्पथी ने हाल में कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा फीका पड़ रहा है, पर कांग्रेस की स्वीकार्यता भी बढ़ नहीं रही है. उन्हें नहीं लगता कि 2019 में किसी राष्ट्रीय दल की सरकार बनेगी. बल्कि क्षेत्रीय दलों का भविष्य उज्ज्वल नजर आता है. पर कैसे? उनकी समझ से क्षेत्रीय क्षत्रपों के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए टकराव नहीं होगा. पर अभी तक लगता नहीं कि भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कोई शक्ति तैयार है और न कोई उसका सर्वमान्य नेता दिखाई पड़ता है.

सन 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी ने ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दिया था. कांग्रेस पार्टी अपने इतिहास के सबसे खराब दौर में प्रवेश कर चुकी है. इस चुनाव के बाद लगता है कि दक्षिण में कर्नाटक ही उसका सबसे महत्वपूर्ण गढ़ बचेगा. उसे बचाना है तो कुछ राज्यों में विजय जरूरी है. सबसे बड़ी दिक्कत संगठन को लेकर है. उत्तराखंड का घटनाक्रम और आगामी चुनावों के सम्भावित परिणाम उसके लिए खतरे की घंटी बजा रहे हैं. खासतौर से राहुल गांधी के लिए. एक के बाद एक राज्य से बगावत की खबरें हैं. इस बगावत को भड़काने में भाजपा का हाथ भी है, पर राजनीति में यह सामान्य बात है. पार्टी का संगठनात्मक ढाँचा बुरी तरह चरमरा गया है. और नेतृत्व उदासीन है.
प्रभात खबर में प्रकाशित

1 comment:

  1. लगभग सभी राजनितिक पंडित कान्रेस के किसी के भी साथ मिलने को (चाहे सत्ता के लिए वाम मोर्चा हो या मुस्लिम लीग) प्रयोग कहते हैं और अगर भाजपा मिल ले तो घोर विलाप करने लगते हैं ... कभी इस पर प्रकाश जरूर डालियेगा ...

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