उत्तराखंड को
लेकर अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आए, यह मामला खत्म होने वाला नहीं
है। बल्कि समर अब तेज होगा। तलवारें खिंच चुकी हैं और पेशबंदियाँ चल रहीं हैं। उत्तराखंड
के अलावा मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के भीतर बगावत के स्वर
ऊँचे हो रहे हैं। यह सब बीजेपी के ‘कांग्रेस मुक्त अभियान’ के तहत भी हो रहा है। दूसरी तरफ
कांग्रेस पार्टी ‘अस्तित्व रक्षा’ के लिए पूरी तरह मैदान में उतरने
जा रही है। इसके लिए उसने नीतीश कुमार के ‘संघ मुक्त भारत’ अभियान में शामिल होने का फैसला किया है। वस्तुतः यह
कांग्रेस का ‘हमें बचाओ’ अभियान भी है। बंगाल में कांग्रेस और वामदलों का गठबंधन यदि सफल हुआ तो राजनीति की दिशा बदल भी सकती है।
उत्तराखंड के घटनाक्रम की गूँज सोमवार से शुरू हो रहे संसद सत्र में सुनाई
देगी। पिछले कुछ सत्रों में राज्यसभा में कांग्रेस और वामदलों ने मिलकर भाजपा के
खिलाफ अभियान चला रखा था, जो अब और जोर पकड़ेगा। सदन में कांग्रेस के उपनेता आनंद
शर्मा ने नियम 267 के तहत नोटिस दिया है। इसके तहत पार्टी एक प्रस्ताव पास कराना
चाहेगी, जिसमें उत्तराखंड सरकार को अस्थिर करने की मोदी सरकार की कार्रवाई की
निन्दा की जाएगी। लगता यह है कि सत्र के शुरूआती कुछ दिनों में उत्तराखंड मामला
हावी रहेगा। कांग्रेस को इसे लेकर अदालत, संसद और सड़क यानी तीन मोर्चों पर लड़ाई
चलानी होगी।
पिछले मॉनसून
सत्र से संसद के अधिवेशन के ठीक पहले कोई न कोई बड़ी घटना हो रही है। इसके कारण
सारा ध्यान उसपर चला जाता है और आवश्यक संसदीय कर्म पीछे चला जाता है। कल से शुरू
हो रहा संसदीय अधिवेशन हालांकि बजट अधिवेशन का ही शेषांश है, पर उत्तराखंड के
घटनाक्रम के कारण तकनीकी दृष्टि से यह नया सत्र है। सोलहवीं लोकसभा का यह सातवें
के बजाय आठवाँ सत्र होगा। कांग्रेस ने उत्तराखंड को बड़ा मुद्दा बनाने का फैसला कर
लिया है। वह राज्यसभा में सरकार पर तीखे वार करने का फैसला कर चुकी है।
सवाल है कि क्या
इस सत्र में राज्यसभा जीएसटी विधेयक पर विचार करेगी? विचार किया भी तो उसपर कोई फैसला करेगी? कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य राजीव
गौडा ने इधर कहा है कि तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल में चुनाव होने के कारण
हमारे ज्यादातर सांसद बाहर होंगे, इसलिए जीएसटी के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।
लगता यह है कि इस सत्र में दोनों पक्ष राजनीतिक सवालों को जमकर उठाएंगे। कांग्रेस
के पास दस राज्यों में सूखे की स्थिति, श्रीनगर एनआईटी और कश्मीर में असंतोष के
अलावा पाकिस्तान के साथ बातचीत में आई रुकावट का मसला है।
अरुणाचल कांग्रेस के हाथ से गया। उत्तराखंड में बगावत चल रही है और कम से कम
उन नौ विधायकों के साथ रिश्ते सुधरने वाले नहीं हैं, जो सीना तानकर खड़े हैं। मणिपुर
में पार्टी के 48 में से 25 विधायकों ने मुख्यमंत्री ओकरम इबोबी सिंह के खिलाफ
बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के खिलाफ
बगावत का माहौल बन रहा है। और हिमाचल में भी वीरभद्र सिंह सरकार के खिलाफ करीब दो
दर्जन विधायक मुख्यमंत्री के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा रहे हैं। भाजपा विद्रोह
को हवा दे रही है।
हिमाचल विधानसभा के चुनाव अगले साल होने हैं, पर बीजेपी नेता प्रेम कुमार धूमल
का कहना है,''हिमाचल प्रदेश में नई सरकार 2017
नहीं, 2016 में ही बनेगी।'' भाजपा के अनुसार कांग्रेस को अपने भीतर झाँकना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है? पार्टी के प्रवक्ता सुधांशु
त्रिवेदी ने कहा है कि कांग्रेस इस बात पर विचार करे कि अरुणाचल में कालिको पुल
जैसा पुराना नेता उसका साथ क्यों छोड़ गया। क्या वजह है कि उत्तराखंड का एक पूर्व
मुख्यमंत्री बगावत कर रहा है? क्या बीजेपी की वजह से अर्जुन सिंह, बाबू जगजीवन राम, शरद पवार और नीलम संजीव
रेड्डी जैसे नेता कांग्रेस छोड़कर गए थे?
कांग्रेस शासित राज्यों में बगावत भारतीय जनता पार्टी के हित में जाती है।
कांग्रेस के बागी पार्टी के सम्पर्क में भी होंगे, पर उत्तराखंड के घटनाक्रम को
देखते हुए लगता है कि भाजपा के प्लान बी में दोष है। इसके सांविधानिक निहितार्थ सामने आने के बाद ही पता लगेगा कि यह योजना कितनी
परिपक्व थी, पर इतना जरूर है कि शेष राज्यों में उसे सावधानी बरतनी होगी। संसद का
यह सत्र 13 मई तक चलेगा। जबकि 19 मई को विधानसभा चुनावों के परिणाम आएंगे। इस दौरान संसदीय गतिविधियाँ मतदाताओं को
प्रभावित करेंगी।
उधर इशरत जहाँ मामले को लेकर भाजपा ने पूर्व गृहमंत्री पी चिदम्बरम को कठघरे
में खड़ा करने की योजना बना रखी है। समझौता एक्सप्रेस, मालेगांव और मक्का मस्जिद
विस्फोट जैसे मामलों को लेकर यूपीए के दौर में ‘भगवा आतंकवाद’ की एक नई शब्दावली प्रचलित हुई थी। अब भाजपा इसे
लेकर कांग्रेस को घेरने की योजना बना रही है। भाजपा के किरीट सोमैया और अनुराग
ठाकुर ने इशरत जहाँ मामले में सरकार की ओर से अदालत में दाखिल किए गए हलफनामे में
किए गए बदलाव का मामला लोकसभा में उठाने का फैसला किया है। समझौता एक्सप्रेस मामले
के आरोपी कर्नल श्रीकांत पुरोहित के बारे में एनआईए अपने हाथ खींच लिए हैं।
भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने पी चिदंबरम पर आरोप लगाया कि उन्होंने उन
लोगों को सूचना लीक की, जो यूपीए सरकार का
हिस्सा नहीं थे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को स्पष्ट करना चाहिए कि तत्कालीन सरकार
में शामिल नहीं रहे लोग आखिर खुफिया अधिकारियों या जांच एजेंसियों के साथ संपर्क
में कैसे थे। चिदंबरम को बताना चाहिए कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और
संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को कितनी जानकारियां उपलब्ध कराई गईं। त्रिवेदी ने यह
आरोप भी लगाया कि कांग्रेस ने देश की शिक्षा प्रणाली को सांप्रदायिक बना दिया, और सांप्रदायिक आधार पर बैंक ऋण वितरित किए।
भाजपा अब खुलकर कह रही है कि ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी राजनीतिक
स्तर पर तैयार की गई थी। इसका उद्देश्य था मुसलमानों के वोट हासिल करना। इस आरोप
की पेशबंदी में कांग्रेस ने अभी से कहना शुरू कर दिया है कि केन्द्र सरकार योजनाबद्ध
तरीके से काम कर रही है। उसका कहना है कि एनआईए के महानिदेशक को हटाकर आतंकवादी
मामलों की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराई जाए। सच यह है कि आतंकवाद और
अपराध से जुड़े मामलों में धर्म का नाम जुड़ जाने से इसका इस्तेमाल वोटरों के
ध्रुवीकरण में होगा। ये बातें अगले साल यूपी में होने वाले चुनाव तक और ज्यादा पुख्ता
हो चुकी होंगी।
और उत्तराखंड का मतदाता खम्बे नोच रहा है ।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मुद्दे उछले या कि उछले जूते - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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