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Sunday, December 20, 2015

इतनी तेजी में क्यों हैं केजरीवाल?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि केंद्र सरकार उन सभी विरोधियों के खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल करने जा रही है जो बीजेपी की बात नहीं मानते। ट्वीट में केजरीवाल ने दावा किया कि यह बात उन्हें एक सीबीआई अधिकारी ने बताई है। प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा, केजरीवाल को सीबीआई के अधिकारी का नाम बताना चाहिए और सबूत देने चाहिए, पर नाम कौन बताता है? यह बात सच हो तब भी यह राजनीतिक बयान है। इसका उद्देश्य मोदी विरोधी राजनीति और वोटों को अपनी तरफ खींचना है।

केजरीवाल धीरे-धीरे विपक्षी एकता की राजनीति की अगली कतार में आ गए हैं। इस प्रक्रिया में एक बात तो यह साफ हो रही है कि केजरीवाल ‘नई राजनीति’ की अपनी परिभाषाओं से बाहर आ चुके हैं। वे अपने अंतर्विरोधों को आने वाले समय में किस तरह सुलझाएंगे, इसे देखना होगा। फिलहाल उनकी अगली परीक्षा पंजाब में है। शायद वे असम की वोट-राजनीति में भी शामिल होने की कोशिश करेंगे।
आम आदमी पार्टी और अरुण जेटली के बीच के विवाद में किसी भी नतीजे पर फौरन नहीं पहुँचा जा सकता। तो डीडीसीए मामले की जाँच सन 2012 में हो चुकी है। उस समय दिल्ली में कांग्रेस सरकार थी। यदि अब केजरीवाल सरकार कोई कार्रवाई करना चाहती है तो उसे रोका किसने है? पर इसकी तार्किक परिणति का सामना उसे ही करना होगा। इस मामले पर ‘आप’ जो तेजी दिखा रही है वह दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव के दफ्तर पर पड़े सीबीआई छापे के बाद आई है। उसके एक दिन पहले तक वह डीडीसीए को लेकर इस कदर मुखर नहीं थी।

पिछले दो-तीन साल में अरविन्द केजरीवाल खुद को ‘विक्टिम’ के रूप में पेश करते रहे हैं। यह राजनीति भविष्य में भी सफल रहेगी कहना मुश्किल है। वे राजेन्द्र कुमार के मामले में बोलने के बजाय अरुण जेटली पर वार कर रहे हैं। दो बातें स्पष्ट हैं। एक यह कि राजेन्द्र कुमार उनकी व्यक्तिगत पसंद हैं। दूसरे यह कि उनके बारे में शिकायतें कई महीने से हैं और केजरीवाल को इन बातों की जानकारी है। उचित या अनुचित जो भी होगा, वह समय बताएगा।

छापे की खबरें आते ही सुबह केजरीवाल ने ट्वीट शुरू कर दिए थे कि यह देश के संघीय ढाँचे और व्यक्तिगत रूप से केजरीवाल पर हमला है। दोपहर होते-होते उन्होंने अपनी बात के समर्थन में विपक्षी नेताओं के बयान भी जारी करवा दिए। इनमें बीजद और बसपा का शामिल होना आश्चर्यजनक है। प्रकारांतर से इसमें कांग्रेस का समर्थन भी नजर आता है। पहले अरुण जेटली ने संसद में और बाद में सीबीआई ने प्रेस कांफ्रेंस करके स्पष्ट किया कि यह छापा मुख्यमंत्री कार्यालय पर नहीं है। ‘आप’ ने यह बात भी कहा कि सीबीआई डीडीसीए की फाइल को हासिल करने के लिए आई होगी। पर पहले दिन ‘आप’ ने अरुण जेटली के मसले पर ज्यादा जोर नहीं दिया था। पर गुरुवार और शुक्रवार को पार्टी ने अपनी सारी ऊर्जा अरुण जेटली पर खर्च की।

दस महीने पहले जब से दिल्ली में ‘आप’ सरकार बनी है, केन्द्र के साथ उसकी तनातनी चली आ रही है। यह बात दिल्ली की जनता के हित में नहीं है। दिल्ली में ‘आप’ सरकार बनने के बाद से पुलिस का राजनीतिकरण हुआ है। इसके साथ लेफ्टिनेंट गवर्नर के अधिकारों और दायित्वों को लेकर कड़वाहट का माहौल बना हुआ है। पिछले दस महीनों में दिल्ली में ऐसी अनेक घटनाएं हो चुकी हैं, जिनसे राजनीति और प्रशासन को बदनामी मिली है। अति तब हो गई जब इस साल अप्रैल में पार्टी के एक कार्यकर्ता ने बीच सभा में आत्महत्या कर ली।

राजनीति में नाटकीयता और प्रतीकात्मकता का एक हद तक मतलब होता है, पर दिल्ली में अति होती जा रही है। यह मान लें कि केन्द्र की भाजपा सरकार की दिलचस्पी केजरीवाल सरकार को अस्थिर करने में है, पर सन 2014 में ‘आप’ की 49 दिन की सरकार का अनुभव भी कोई बेहतर नहीं था। यह भी माना जा सकता है कि केन्द्र सरकारें सीबीआई का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करती रहीं हैं। सम्भव है कि राजेन्द्र कुमार के मामले में भी ऐसा हुआ हो। पर ‘आप’ ने राजेन्द्र कुमार को भुलाकर एक नया मोर्चा खोला है।

डीडीसीए केस पर इतना हंगामा क्या इसीलिए मचाया जा रहा है कि राजेन्द्र कुमार का मामला दब जाए? डीडीसीए का मामला हो या राजेन्द्र कुमार का दोनों को अपनी तार्किक परिणति तक पहुँचना चाहिए। संयोग से इसी दौरान नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस की उग्र प्रतिक्रिया सामने आई है। यह प्रतिक्रिया अदालती प्रक्रिया के जवाब में है। क्या हम अपनी व्यवस्था को इस अराजक तरीके से चला सकते हैं? आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के सहारे सामने आई थी। उसे तो कम से कम आगे बढ़कर कहना चाहिए था कि हम राजेन्द्र कुमार की सीबीआई जाँच का समर्थन करते हैं।

यह सच है कि सीबीआई का राजनीतिक इस्तेमाल होता रहा है, पर क्या सीबीआई की तमाम जाँचें गलत साबित हुई हैं? क्या चारा घोटाला, टूजी, कॉमनवैल्थ गेम्स और कोयला खानों के मामलों में भी सीबीआई की जाँच गलत थी? दिल्ली सरकार का कहना है कि राजेन्द्र कुमार का ऐसा कोई मामला नहीं है जो केजरीवाल सरकार के दौरान हुआ हो। इसलिए यह छापा गलत है। दूसरी ओर वह अरुण जेटली के खिलाफ पुराना मामला उठा रही है। सीबीआई को राजेन्द्र कुमार के मामले में किन दस्तावेजों की जरूरत थी, वह आज के उनके दफ्तर में क्या देखना चाहती थी, यह उसके विवेक का विषय है। राजेन्द्र कुमार के खिलाफ शिकायत दिल्ली सरकार के एक पूर्व अधिकारी ने की थी। सम्भव है कि उनकी हाल की गतिविधियाँ भी जाँच के दायरे में हों।

केजरीवाल ने अभी इस बात का जवाब नहीं दिया कि राजेन्द्र कुमार पर आरोपों के छींटे होने के बावजूद उन्हें अपना प्रमुख सचिव क्यों बनाया। केजरीवाल ने उन्हें अपने 49 दिन के पहले कार्यकाल के दौरान भी प्रधान सचिव बनाया था। केजरीवाल फिल्मी अंदाज में सामने आते हैं। यह बात काफी असरदार होती है, पर वह कितनी टिकाऊ होगी, अभी कहना मुश्किल है।

हरिभूमि में प्रकाशित

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