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Thursday, November 26, 2015

शीत सत्र में उम्मीदों पर भारी अंदेशे!

प्रमोद जोशी

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संसद के शीतकालीन सत्र के पहले सरकार और विपक्ष ने मोर्चेबंदी कर ली है. पहले दो दिन मोर्चे पर शांति रहेगी, पर उसके बाद क्या होगा कहना मुश्किल है. फिलहाल सत्र को लेकर उम्मीदों से ज़्यादा अंदेशे नज़र आते हैं.
सरकार इस सत्र में ज़रूरी विधेयकों को पास कराना चाहती है. उसने विपक्ष की तरफ सहयोग का हाथ भी बढ़ाया है. प्रधानमंत्री ने सर्वदलीय सभा में जीएसटी जैसे विधेयक को देश के लिए महत्वपूर्ण बताया है.
इधर, लोकसभा अध्यक्ष ने गरिमा बनाए रखने की आशा के साथ सांसदों को पत्र लिखा है. पर क्या इतने भर से विपक्ष पिघलेगा?
मॉनसून सत्र पूरी तरह हंगामे का शिकार हो गया. लोकसभा में कांग्रेस के 44 में से 25 सदस्यों का निलंबन हुआ. इस बार तो बिहार विधानसभा चुनाव में जीत से विपक्ष वैसे भी घोड़े पर सवार है.
सत्र के पहले दिन 'संविधान दिवस' मनाया जाएगा. सन 1949 की 26 नवंबर को हमारे संविधान को स्वीकार किया गया था. देश में इस साल से 'संविधान दिवस' मनाने की परंपरा शुरू की जा रही है.
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Image captionफिल्म अभिनेता आमिर ख़ान के बयान के बाद असहनशीलता पर फिर बहस तेज़ हो गई है
इस साल डॉ. भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती भी है. सत्र के पहले दो दिन संविधान-चर्चा को समर्पित हैं. यानी शेष संसदीय कर्म सोमवार 30 नवंबर से शुरू होगा.
असहिष्णुता को लेकर जो बहस सड़क पर है, वह अब संसद में प्रवेश करेगी. यहाँ बहस किस रूप में होगी और उसका प्रतिफल क्या होगा यह देखना ज़्यादा महत्वपूर्ण है. ख़ासतौर से राज्यसभा में जहाँ सरकार निर्बल है.
सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने राज्यसभा और कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने लोकसभा में असहिष्णुता पर चर्चा का नोटिस दिया है. येचुरी चाहते हैं कि नियमावली 168 के तहत इस पर चर्चा हो और सदन 'देश में व्याप्त असहिष्णुता के माहौल की निंदा का प्रस्ताव' पास करे.
देखना होगा कि पीठासीन अधिकारी किस नियम के तहत इस विषय पर चर्चा को स्वीकार करते हैं. फिलहाल सरकार घिरी हुई है. सम्मान वापसी ने उसकी छवि को पहले से बिगाड़ रखा है.

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