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Sunday, October 20, 2013

राडिया टेपों की तार्किक परिणति

सुप्रीम कोर्ट ने कॉरपोरेट लॉबीस्ट नीरा राडिया के साथ प्रभावशाली लोगों की बातचीत से जुड़े छह मामलों में आगे जाँच के आदेश देकर इसे तार्किक परिणति तक पहुँचा दिया है। नीरा राडिया की नौकरशाहों, कारोबारियों और नेताओं के साथ रिकार्ड की गई बातचीत के बारे में अदालत ने कहा है कि पहली नजर में इसमें सरकारी अधिकारियों और निजी उद्यमियों की मिलीभगत से किसी गहरी साजिशका पता चलता है। बातचीत से जाहिर होता है कि प्रभावशाली लोग किसी दूसरे मकसद से निजी लाभ उठाने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं। नीरा राडिया मामला हमारी व्यवस्था के भीतर छिपे भ्रष्ट-आचरण और उसके निराकरण की सामर्थ्य का टेस्ट-केस साबित होगा। अभी तक यह मामला टू-जी के साथ पुछल्ले की तरह जुड़ा था। अब यह पूरी तरह स्वतंत्र मामलों का एक समूह बनेगा। अदालत ने इसके पहले सीबीआई को फटकार लगाई थी कि वह इसे केवल टू-जी से जोड़कर न चले। अब कोर्ट ने मिली-भगत और गहरी साजिश जैसे शब्दों का प्रयोग करके इस मामले को काफी महत्वपूर्ण बना दिया है। सम्भव है कल केवल ये टेप देश के रूपांतरण के सूत्रधार बनें।

इस मामले में अदालत के सामने दो याचिकाएं हैं। एक है टाटासंस के पूर्व चेयरमैन रतना टाटा की, जिसमें उन्होंने कहा है कि इन टेपों में काफी बातें निजी हैं, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। दूसरी याचिका सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की है, जिसने माँग की है कि व्यापक जन-हित को देखते हुए इन्हें सार्वजनिक किया जाए। सन 2010 में जब यह मामला उठा ही था रतन टाटा ने सवाल उठाया कि जो टैपिंग जाँच के लिए हुई थी, वह सार्वजनिक रूप से जारी क्यों हो गई? उनका आशय यह था कि लीक के पीछे किसी का स्वार्थ है लोकहित नहीं। सम्भव है लीक के पीछे किसी का स्वार्थ रहा हो, पर अब लगता है कि यह लीक नहीं होती तो सार्वजनिक जीवन से जुड़ी तमाम बातें सामने न आई होतीं।

इन टेपों में बस खरीदने के सौदों से लेकर मोबाइल फोन के स्पेक्ट्रम की खरीद, सरकारी अफसरों को रिटायरमेंट के बाद नौकरी देने के आधार पर फायदे उठाने की कहानियाँ, माइनिंग के लाइसेंस हासिल करने के वास्ते मुख्यमंत्रियों की जेब गरम करने के मामले, तथ्यों के साथ छेड़खानी, न्याय-व्यवस्था को अपने पक्ष में करने की कोशिश और टैक्स चोरी जैसी तमाम बातें दर्ज हैं। इनसे यह भी पता लगता है कि कारोबारी लोग अपने फायदे के लिए सरकार में अपने लोगों को बैठाने की कोशिशें किस प्रकार करते हैं। हालांकि इन टेपों का काफी छोटा अंश सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, पर उतने से ही व्यवस्था से जुड़े तमाम लोग नंगे दिखाई पड़ते हैं। ये टेप सिर्फ 300 दिन की बातचीत के हैं और केवल एक व्यक्ति की फोन टैपिंग से जुड़े हैं। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि हम किस व्यवस्था में जी रहे हैं?

देश के आयकर विभाग ने गृह मंत्रालय से अनुमति लेकर नीरा राडिया की तमाम महत्वपूर्ण व्यक्तियों के बीच सन 2008-09 में हुई बातचीत 300 दिन तक टैप की थी। सीबीआई का कहना है कि उसके पास 5851 रिकॉर्डिंग्स मौजूद हैं। कहना मुश्किल है कि इससे ज्यादा रिकॉर्डिंग भी हैं या नहीं। ज्यादा से ज्यादा कुछ सौ रिकॉर्डिंग ही सार्वजनिक रूप से सामने आ पाईं हैं। उनके वे अंश ही उपलब्ध हैं जिन्हें लीक करने वाले ने उचित समझा। चूंकि हमारी संसद ने अभी तक ह्विसिल ब्लोवर कानून पास नहीं किया है इसलिए यह लीक भी अपराध है। पर यह अपराध देर-सबेर देश की व्यवस्था को पाप-मुक्त करने में महत्वपूर्ण साबित होगा। टेलीफोन टैपिंग यों तो अनैतिक है, पर सार्वजनिक हित में उसकी अनुमति है। जिस टैपिंग के विवरण हम पढ़ रहे हैं, क्या अब उसके विवरण सार्वजनिक करने की माँग की जा सकती है?

लगभग छह हजार रिकॉर्डिंगों को सुनना और उन्हें संदर्भों से जोड़ना आसान काम नहीं है। अदालत की ओर से नियुक्त समिति ने टेलीफोन बातचीत का विश्लेषण किया था। अब इस विश्लेषण के आधार पर अदालत ने सीबीआई को दो महीने के भीतर जाँच पूरी करके अदालत में रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने जांच का आदेश देते वक्त हालांकि उन 14 मामलों का खुलासा नहीं किया, जिनकी जांच सीबीआई करेगी लेकिन इतना जरूर कहा कि जांच ब्यूरो को इनमें आपराधिक अंश मिले थे। माना जा रहा है कि न्यायपालिका से संबंधित एक मसला उचित आदेश के लिए चीफ जस्टिस के पास भेजा गया है। इसी तरह एक और मसला खान विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी के पास जांच के लिए भेजा गया है। अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी। अदालत ने इस बातचीत का विश्लेषण करने वाले विशेष दल में आयकर विभाग के दस और सब इंस्पेक्टर शामिल करने की भी अनुमति भी दे दी है। इससे पहले अदालत ने कहा था कि नीरा राडिया की फोन वार्ताओं से पता लगता है कि यह सिर्फ 2-जी तक ही सीमित नहीं थीं बातचीत के विवरण से राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों के बारे में भी संकेत मिलते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में राडिया टेप का मामला न गया होता तो जिन मामलों में सीबीआई को जाँच के आदेश दिए गए हैं क्या उनकी जाँच होती? पत्रकार के रूप में हम अभी तक केवल कुछ पत्रकारों की भूमिका को लेकर परेशान थे और इसके पीछे टाँग खींचने की प्रवृत्ति को देख रहे थे। चूंकि मर्यादाओं की गम्भीरता को हम समझते नहीं हैं इसलिए इसे व्यक्तिगत राग-द्वेष का विषय माना गया। पर यह इतना भर नहीं था। राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों और उद्योगपतियों से संवाद किए बगैर पत्रकार काम नहीं कर सकते। पर इस संवाद या सम्पर्क की मर्यादा रेखा कैसे तय होगी? पत्रकार किसके हित में काम करेगा, यह कैसे तय होता है?

यह बात कई बार रेखांकित हो चुकी है कि राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सीमा पर सेना तैनात करने से ही हासिल नहीं होती। नब्बे के दशक में जैन हवाला मामला कश्मीरी आतंकवादियों को पैसा पहुँचाने वाले नेटवर्क की तलाश के दौरान खुला था। इसके बाद 1993 में गठित एनएन वोहरा समिति ने इस बात की ओर इशारा किया था कि दुश्मन हमारे भीतर है। राडिया टेप भी इस ओर ही इशारा कर रहे हैं।  


मंजुल का कार्टून




Indian Express

Express news service Posted online: Sun Oct 20 2013, 01:50 hrs

New Delhi : Allegations about favours done to top industrial groups, kickbacks paid in the aviation sector, irregularities in the supply of buses and allotment of mines, corruption in the judiciary and collusion of income tax officials are among a host of cases that will be probed by the CBI following the Supreme Court order in the Niira Radia tapes case. The order was passed by a bench of Justices G S Singhvi and V Gopala Gowda on Thursday and published on the website of the apex court Saturday.

It said the CBI will register preliminary enquiries (PEs) and complete the probe within two months in as many as 14 of the 23 issuesflagged by the court-mandated special team.

The team had examined intercepted conversations of former corporate lobbyist Radia with several people, including industrialists and journalists, between 2008 and 2009.

“The subjects mentioned in the eight issues are prima facie indicative of deep rooted malaise in the system of which advantage has been taken by private enterprises in collaboration/connivance with the government officers and others,” the court said.

“The conversations...suggest that unscrupulous elements have used corrupt means to secure favours from the government officers, who appear to have acted for extraneous considerations.”

The cases the CBI has been directed to investigate include:

*Allotment of coal blocks to Anil Ambani Group’s (ADAG) Sasan Ultra Mega Power Project.

*Alleged fudging of subscribers base/record by ADAG’s Reliance Communications and its submission to the Bombay Stock Exchange and TRAI to save money.

* Favours allegedly shown by V K Sibal, the then director general of the Directorate General of Hydrocarbon to Mukesh Ambani’s Reliance Industries Ltd., and quid-pro-quo received.

*Supply of low-floor buses by Tata Motors to Tamil Nadu government under JNNURM scheme.

* Allotment of iron ore mines in Ankua in Singhbhum District of Jharkhand to Tata Steel.

*Appointment of Pradip Baijal, ex-chief of TRAI, as chairman of Pipeline Advisory Committee.

*Working of touts and middlemen and alleged payment of kickbacks in the aviation sector.

*Alleged market manipulation and hammering of stocks of Unitech.

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