विदेश-नीति के मोर्चे पर एकसाथ कई बातें हो रही हैं, जिनमें भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर शुरू हुई सुगबुगाहट शामिल है. अगले महीने पाकिस्तान में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है. सवाल है कि क्या मोदी, पाकिस्तान जाएंगे?
उनका जाना और नहीं
जाना, दोनों बातें दोनों देशों के रिश्तों के लिहाज से महत्वपूर्ण होंगी. उनपर बात
जरूर होनी चाहिए, पर उसके पहले वैश्विक-राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका से जुड़ी
कुछ बातों पर रोशनी डालने की जरूरत भी है.
पिछले दिनों पीएम मोदी
की यूक्रेन-यात्रा के बाद संभावनाएं बढ़ी हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत में
भारत
की भूमिका हो सकती है. अब खबर है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ब्रिक्स
के एनएसए सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस जा रहे हैं. 10-12 सितंबर को सेंट
पीटर्सबर्ग में हो रहा, यह सम्मेलन प्रकारांतर से उसी उद्देश्य से आयोजित किया जा
रहा है।
इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया
मेलोनी ने शनिवार को कहा कि भारत और चीन जैसे देश यूक्रेन के संघर्ष को सुलझाने
में भूमिका निभा सकते हैं. उसके एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत
जैसे दोस्तों की तारीफ की थी, जो मौजूदा संघर्ष का
हल निकालना चाहते हैं.
व्लादीवोस्तक में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में एक पैनल चर्चा के दौरान पुतिन ने कहा कि भारत, ब्राजील और चीन संघर्ष का हल निकालने में भूमिका निभा सकते हैं. उनकी यह टिप्पणी उन संभावित देशों के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में आई जो रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं.
भू-राजनीतिक
भूमिका
हाल में यूक्रेन में राष्ट्रपति
ज़ेलेंस्की के साथ वार्ता में मोदी ने कहा था कि यूक्रेन और रूस को बिना समय
बर्बाद किए एक साथ बैठकर चल रहे युद्ध को समाप्त करना चाहिए. और यह भी कि क्षेत्र
में शांति बहाल करने में भारत ‘सक्रिय भूमिका’ निभाने के लिए तैयार है।
इन बातों से लगता है
कि पीएम मोदी किसी बड़े कार्य से जुड़े हैं. इस
महीने वे अमेरिका-यात्रा पर जा रहे हैं. वे 22-23 सितंबर को संरा के ‘समिट ऑफ द फ्यूचर’ में शामिल
होंगे. संभावना है कि वहाँ उनकी भेंट यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की से एकबार
फिर होगी. उन्हें 22-24 अक्तूबर को ब्रिक्स के सम्मेलन में फिर से रूस जाना है.
भारत ने अतीत में गुट-निरपेक्ष
आंदोलन का नेतृत्व किया था, पर व्यावहारिक अर्थ में आज का वक्त पहले के मुकाबले
ज्यादा महत्वपूर्ण है. हमारा वैश्विक-व्यापार इस समय देश की जीडीपी का 40 से 50 फीसदी के बीच
रहता है. जीडीपी के साथ यह बढ़ ही रहा है.
व्यापार के अलावा
भारतवंशियों की वैश्विक भूमिका बढ़ रही है. दुनिया के ज्यादातर देशों में उन्हें देखा जा सकता है. इसमें
भारतीयों की शिक्षा और कौशल की भूमिका है. मोटा अनुमान है कि इस समय करीब 3.6
करोड़ भारतीय विदेश में हैं.
भारत-पाकिस्तान
संबंध
इस व्यस्तता के दौरान वे पाकिस्तान जाएंगे या
नहीं जाएंगे, अभी स्पष्ट नहीं है. एससीओ का शिखर सम्मेलन 15-16 अक्तूबर को
इस्लामाबाद में होने वाला है. इस सिलसिले में भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर की एक
बात का उल्लेख करना उपयोगी होगा. उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान के साथ चलने वाला सतत-संवाद
अब खत्म हो चुका है. उनके आशय पर कुछ रोशनी इस महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उनके
वक्तव्य से भी पड़ेगी.
भारत और चीन के रिश्तों में भी गतिरोध कायम है,
जो भारत-पाकिस्तान रिश्तों को भी प्रभावित करेगा. एससीओ में भारत और पाकिस्तान की
सदस्यता भी इसे प्रभावित करती है. अब पाकिस्तान की ओर से ब्रिक्स की सदस्यता हासिल
करने की कोशिशें होने लगी हैं, उसका भी कुछ न कुछ असर होगा.
गत 29 अगस्त को बीजिंग में भारत-चीन सीमा
मामलों पर परामर्श और समन्वय के कार्यतंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) की 31वीं बैठक में वास्तविक
नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर ‘मतभेदों को कम करने और लंबित प्रश्नों का ‘शीघ्र समाधान’ खोजने के लिए ‘स्पष्ट,
रचनात्मक और दूरंदेशी विचारों का आदान-प्रदान’
किया गया।
सकारात्मक या नकारात्मक?
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने हाल में दिल्ली में
हुए एक कार्यक्रम में कहा कि अब ध्यान पाकिस्तान के साथ भारत के संबंधों की
प्रकृति निर्धारित करने पर है. भारत घटनाओं पर प्रतिक्रिया करेगा. हम निष्क्रिय
नहीं हैं और घटनाएं सकारात्मक या नकारात्मक हों, हम तदनुरूप प्रतिक्रिया करेंगे.
उन्होंने पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकवाद का हवाला
देते हुए अपने इस रुख को दोहराया कि आतंकवाद और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते. साथ
ही इस बात को भी रेखांकित किया कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त हो चुका है. इस मामले पर कोई समझौता नहीं होगा.
पाकिस्तान की रणनीति भारत को बातचीत की मेज पर लाने
के लिए दबाव डालने और आतंकवाद के इस्तेमाल की है. भारत फिलहाल उसे स्वीकार करेगा
नहीं.
बांग्लादेश का बदलाव
विदेशमंत्री ने बांग्लादेश के हवाले से कहा कि हम
वर्तमान सरकार के साथ रिश्ते रखेंगे, पर वहाँ का सत्ता-परिवर्तन हालात में उलट-फेर
करने वाला हो सकता है. उनकी यह टिप्पणी नरेंद्र मोदी द्वारा बांग्लादेश में
हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चिंता व्यक्त करने के बाद आई है.
उन्होंने मुहम्मद यूनुस से बात भी की. पिछले कुछ
समय से बांग्लादेश से जो खबरें निकल कर आ रही हैं, उनसे लगता है कि तल्खी बढ़ेगी. बांग्लादेश
के साथ रिश्तों पर अलग से विमर्श की जरूरत है, इसलिए हमें पाकिस्तान की ओर वापस
लौटना चाहिए.
मोदी पाकिस्तान जाएंगे?
प्रधानमंत्री पिछले कुछ समय में रूस, पोलैंड,
यूक्रेन, ब्रूनेई और सिंगापुर जैसे देशों की यात्रा कर आए हैं. अब वे अमेरिका जा
रहे हैं. कुछ समय में जर्मन चांसलर की यात्रा भी होने वाली है. तब क्या वे इस्लामाबाद में एससीओ की बैठक में शामिल नहीं
होंगे? फिलहाल भारत ने स्पष्ट नहीं किया है कि वहाँ
जाएंगे या नहीं.
एससीओ की बैठकों में प्रधानमंत्री
की अनुपस्थिति में भारत की ओर से उपराष्ट्रपति और विदेशमंत्री शामिल होते रहे हैं.
क्या इसबार भी ऐसा ही होगा? 2016 के बाद से भारत
ने पाकिस्तान में प्रस्तावित दक्षेस सम्मेलन में शामिल होने से मना कर दिया था.
मई 2023 में जब एससीओ
विदेशमंत्रियों की बैठक गोवा में हुई थी, तब पाकिस्तान के तत्कालीन विदेशमंत्री
बिलावल भुट्टो ज़रदारी आए थे. उसके बाद जुलाई में हुई दिल्ली-बैठक आमने सामने न
होकर वर्चुअल तरीके से हुई, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ शामिल
हुए. अब इस्लामाबाद की बैठक आमने-सामने हो रही है. इसमें शामिल होने या नहीं होने
के राजनीतिक मायने हैं.
व्यापार की
बहाली
इस साल मार्च में पाकिस्तान
के तत्कालीन विदेशमंत्री मोहम्मद इसहाक डार ने कहा है कि हम भारत से व्यापार को
बहाल करने पर ‘गंभीरता’ से विचार कर रहे हैं. ब्रसेल्स में परमाणु ऊर्जा शिखर
सम्मेलन में भाग लेने के बाद डार ने लंदन में एक संवाददाता सम्मेलन में यह बात
कही.
उन्होंने कहा, पाकिस्तानी कारोबारी चाहते हैं कि भारत के साथ व्यापार
फिर से शुरू हो. हम इसपर विचार कर रहे हैं. इसके फौरन बाद पाकिस्तानी विदेश
मंत्रालय की प्रवक्ता ने सफाई दी कि ऐसा कोई औपचारिक-प्रस्ताव नहीं है. उस दौरान
भारत की ओर से कोई औपचारिक-प्रतिक्रिया नहीं आई.
वस्तुतः अगस्त, 2019
में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी की थी, पाकिस्तान ने एकतरफा
तरीके से भारत के साथ व्यापारिक-संबंध तोड़ने की घोषणा की थी और दिल्ली स्थित अपने
हाई कमिश्नर को वापस बुला लिया था, जिसके जवाब में भारत ने भी अपने हाई कमिश्नर को
वापस बुला लिया.
इन दिनों पाकिस्तानी
विशेषज्ञ इस बात को बार-बार कह रहे हैं कि भारत ने पाकिस्तानी पहल पर कोई
सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी, पर रिश्ते तोड़ने का फैसला तो पाकिस्तान का था,
भारत का नहीं. भारत से उनके बेहतर रिश्ते तभी संभव हैं, जब वे अपने
कश्मीर-उन्माद को त्यागें और माहौल को बेहतर बनाएं.
सुधार की ठंडी
हवा
फरवरी 2021 में दोनों
देशों ने नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी रोकने का फैसला किया, तब लगा कि
शायद अब बातचीत की ज़मीन तैयार होगी. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान खान और
नरेंद्र मोदी के बयानों से लगा कि सुधार की दिशा में रिश्ते बढ़ रहे हैं.
23 मार्च 2021 को
‘पाकिस्तान दिवस’ पर नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान
खान को बधाई का पत्र भेजा कि पाकिस्तान के साथ भारत दोस्ताना रिश्ते चाहता है. साथ
ही यह भी कि दोस्ती के लिए आतंक मुक्त माहौल जरूरी है.
जवाब में इमरान खान की
चिट्ठी आई, 'हमें भरोसा है कि दक्षिण एशिया में शांति और
स्थिरता के लिए दोनों देश सभी मुद्दों को सुलझा लेंगे, खासकर
जम्मू-कश्मीर को सुलझाने लायक बातचीत के लिए सही माहौल बनना जरूरी है.' दोनों पत्रों में रस्मी बातें थीं, पर दोनों ने अपनी सैद्धांतिक शर्तों को भी लिख दिया था.
फिर भी लगा कि माहौल ठीक हो रहा है.
यू-टर्न पर यू-टर्न
उसके बाद 31 मार्च को
खबर मिली कि पाकिस्तान की इकोनॉमिक कोऑर्डिनेशन काउंसिल (ईसीसी) ने भारत से चीनी
और कपास मँगाने का फैसला किया है, तो लगा कि रिश्तों को
बेहतर बनाने का जो ज़िक्र एक महीने से चल रहा है, यह उसका पहला
कदम है.
उस वक्त खबर थी कि
यूएई की सरकार ने बीच में पड़कर माहौल को बदला है. तीन महीनों से दोनों देशों के
बीच बैक-चैनल बात चल रही है वगैरह. यूएई के अमेरिका स्थित राजदूत ने ऐसा दावा भी
किया.
आंशिक-व्यापार शुरू
करने के ऐलान का स्वागत हो ही रहा था कि वहाँ की कैबिनेट ने इस फैसले को रोक दिया
और कहा कि जब तक भारत 5 अगस्त, 2019 के फैसले को रद्द
करके जम्मू-कश्मीर में 370 की वापसी नहीं करेगा, तब तक कारोबार
नहीं होगा. इतने तेज यू-टर्न की उम्मीद किसी को नहीं थी.
पाकिस्तानी
आशावाद
पाकिस्तान एक लंबे अरसे की उथल-पुथल के बाद
स्थिरता की ओर बढ़ रहा है. हाल में पाकिस्तान के सीनेटर मुशाहिद हुसैन सैयद ने इस्लामाबाद
में सेंटर फॉर इंटरनेशनल स्ट्रैटेजिक स्टडीज (सीआईएसएस) द्वारा आयोजित प्रशिक्षकों
की एक कार्यशाला में एक को कहा कि पाकिस्तान एक रणनीतिक सफलता के मुहाने पर है.
उनका उत्साह खासतौर से बांग्लादेश में हुए
राजनीतिक परिवर्तन से बढ़ा हुआ है. दूसरे उन्हें लगता है कि भारतीय प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का प्रभाव पिछले कार्यकाल की तुलना में कम हुआ है.
जनवरी 2016 में
पठानकोट पर हुए हमले के बाद से भारत ने ‘माइनस पाकिस्तान’ नीति को अपनाया है और क्षेत्रीय सहयोग के लिए अपना रुख
पूर्व के देशों की ओर किया है. ऐसे में अब भारत से यदि कोई मंत्री भी पाकिस्तान
जाएगा, तो वह सकारात्मक संकेत होगा.
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