चार राज्यों के विधानसभा चुनाव से बदला माहौल
लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से राष्ट्रीय राजनीति की बहस अभी चल ही रही है कि चार राज्यों के विधान सभा चुनाव सिर पर आ गए हैं। राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में दस सीटों पर उप चुनाव होने हैं। प्रदेश के नौ विधायकों ने लोकसभा की सदस्यता प्राप्त करके अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। प्रदेश की फूलपुर, खैर, गाजियाबाद, मझवाँ, मीरापुर, मिल्कीपुर, करहल, कटेहरी और कुंदरकी यानी नौ सीटें खाली हुई हैं। दसवीं सीट सीसामऊ सपा विधायक इरफान सोलंकी को अयोग्य करार दिए जाने से खाली हुई है। जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें से पाँच पर समाजवादी पार्टी के विधायक थे, भाजपा के तीन और राष्ट्रीय लोक दल तथा निषाद पार्टी के एक-एक। यानी इंडिया गठबंधन और एनडीए की पाँच-पाँच सीटें हैं। अब दोनों गठबंधन अपने महत्व और वर्चस्व को साबित करने के लिए चुनाव में उतरेंगे। उधर बीजेपी के भीतर से बर्तनों के खटकने की आवाज़ें सुनाई पड़ रही हैं। ये चुनाव बीजेपी और इंडिया गठबंधन दोनों को अपनी ताकत आजमाने का मौका देंगे।
दो राज्यों के चुनाव
चुनाव आयोग ने चार में से फिलहाल दो राज्यों के विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा की है। जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में और हरियाणा में एक चरण में मतदान होगा। नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में 30 सितंबर तक चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग से कहा था। राज्य में अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। जम्मू-कश्मीर में पहले चरण का मतदान 18 सितंबर, दूसरे का 25 सितंबर और तीसरे का 1 अक्तूबर को होगा। उसी दिन हरियाणा में भी वोट पड़ेंगे। वोटों की गिनती 4 अक्टूबर को होगी।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने चुनाव
कार्यक्रम की घोषणा करते हुए कहा कि महाराष्ट्र और हरियाणा में पिछले कुछ चक्रों
में एक साथ चुनाव हुए हैं। 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल केवल 9 नवंबर
तक था, जबकि इसबार यह 26 नवंबर है। हरियाणा विधानसभा
का कार्यकाल काफी पहले 3 नवंबर को समाप्त हो रहा है, इसलिए चुनाव आयोग के पास या
तो हरियाणा के चुनावों को जम्मू-कश्मीर के साथ जोड़ने या हरियाणा में चुनावों की
घोषणा करने के लिए जम्मू-कश्मीर चुनावों के समापन तक इंतजार करने के विकल्प था। झारखंड
का कार्यकाल 5 जनवरी तक है।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के बाद महाराष्ट्र तथा
झारखंड की तारीखों का भी इंतज़ार है, जो संभवतः अक्तूबर-नवंबर में होंगे। इन चारों
राज्यों के परिणामों का अलग-अलग कारणों से केंद्रीय राजनीति पर असर होगा। आकार की
दृष्टि से इनमें सबसे महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र है, जो लोकसभा में 48 सांसद
चुनकर भेजता है। क्या वहाँ भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगियों के साथ फिर से सरकार
बनाने में कामयाब होगी? यही सवाल हरियाणा को लेकर है, जहाँ कांग्रेस
पार्टी को सत्ता में आने की उम्मीद है। कुछ ओपीनियन पोल ऐसा दावा कर भी रहे हैं।
हरियाणा
हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं। 2019
में कराए गए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 40 सीटें जीती थीं और उसे 36।49 प्रतिशत
वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस ने 31 सीटें जीती थीं और 28।06
प्रतिशत वोट मिले थे। जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी तीसरे स्थान पर रही थी। उसने 10
सीटें जीती थीं। उसका वोट शेयर 14।8 प्रतिशत था। इसबार आम आदमी पार्टी और जेजेपी
का गठबंधन होने की संभावनाएं हैं। हरियाणा के पूर्व उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला
ने इस आशय के संकेत दिए हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि यदि आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन
का हिस्सा बनी रही और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ेगी, तो जेजेपी उसके साथ गठबंधन
नहीं करेगी।
‘आप’ और इंडिया गठबंधन के रिश्तों का भविष्य भी
शायद इस चुनाव में स्पष्ट हो जाएगा, क्योंकि अगले साल होने वाले दिल्ली विधानसभा
चुनावों में भी ‘आप’ और कांग्रेस एक-दूसरे के खिलाफ होंगे।
बहरहाल ‘आप’ और जेजेपी गठबंधन बना भी, तो वह सत्ता में भले ही न आ पाए, पर किसी पक्ष की सीटें जरूर काटेगा। हरियाणा
में 2019 में पिछले विधानसभा चुनाव हुए थे। जिसमें भाजपा को 41 और जेजेपी को 10
सीट मिली थीं। 6 निर्दलीय और एक हलोपा विधायक के साथ भाजपा ने सरकार बनाई। मनोहर
लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया, पर पार्टी के आंतरिक कारणों से वे पांच साल
कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
इस साल 12 मार्च को जेजेपी और भाजपा का गठबंधन
टूट गया। मनोहर लाल खट्टर की जगह सैनी को विधायक दल की बैठक में नेता चुना गया।
इसके बाद मुख्यमंत्री नायब सैनी ने दावा किया कि उनके पास 48 विधायकों का समर्थन
है। मीटिंग में भाजपा के 41 और 7 निर्दलीय विधायक शामिल हुए थे यानी 48। विधानसभा में
बहुमत साबित करने के लिए 46 विधायकों के समर्थन की जरूरत थी, जो पूरा हो गया। अब
सवाल है कि क्या बीजेपी आगामी चुनाव की कसौटी पर भी खरी उतरेगी?
इस साल हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने राज्य की दस में से पाँच सीटें जीतकर
बीजेपी के सामने चुनौती पेश कर दी है। इसबार भाजपा को पाँच सीटों पर जीत मिली,
जबकि 2019 में उसने यहां दस में से दस सीटें जीती थीं।
जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में चुनाव हुए
थे। उसके बाद महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी और पीडीपी के
गठबंधन की सरकार बनी। यह सरकार ज्यादा चली नहीं और जून 2018 में यह गठबंधन टूट
गया। उसके बाद से यहाँ राष्ट्रपति शासन है। कश्मीर की यह सरकार अपने आप में अजूबा
थी, क्योंकि दो विपरीत विचारधाराओं वाली पार्टियों
ने करीब साढ़े तीन साल तक सरकार को चलाया। वहाँ भविष्य में भी ऐसी सरकारें ही तब
तक बनेंगी, जब तक कोई अकेली ऐसी पार्टी सामने न आए जो जम्मू और घाटी दोनों जगह
समान रूप से लोकप्रिय हो।
देश का सबसे बड़ा राजनीतिक अंतर्विरोध
जम्मू-कश्मीर में है। सरकार बनाने के पहले दोनों पक्षों ने जिस न्यूनतम साझा
कार्यक्रम पर दस्तखत किए थे, वह महत्वपूर्ण दस्तावेज है। राज्य की
जनता अलग-अलग तरह से सोचती है। राज्य की राजनीति खंडित है। इस टूट के बीच में से
रास्ता निकालने के लिए जनवरी 2015 में तकरीबन एक महीने तक भाजपा के महासचिव राम
माधव और पीडीपी के नेता हसीन अहमद द्राबू के बीच चंडीगढ़, जम्मू
और दिल्ली में गठबंधन की बारीकियों पर चर्चा हुई थी।
अनुच्छेद 370 की वापसी
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370
खत्म होने के साथ वहाँ का माहौल बदला है, पर कहा नहीं जा सकता कि चुनाव-परिणाम
वहाँ किस प्रकार की सरकार देंगे। राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर
और लद्दाख में बांट दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर, 2023
में चुनाव आयोग को निर्देश दिया था कि सितंबर, 2024
तक हर हाल में जम्मू-कश्मीर में चुनाव करा लिए जाएं। इस वर्ष हुए लोकसभा चुनाव में
जम्मू कश्मीर की पाँच में से जम्मू और ऊधमपुर सीट भाजपा को मिली। जम्मू कश्मीर
नेशनल कॉन्फ्रेंस को दो सीटें मिलीं। बारामूला सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी की विजय
हुई।
जम्मू-कश्मीर राज्य के पुनर्गठन के साथ
चुनाव-क्षेत्रों का परिसीमन भी हुआ है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अब 90 सीटें और
पाँच संसदीय सीटें होंगी। विधानसभा सीटों में से 43 जम्मू क्षेत्र में और 47 सीटें
कश्मीर घाटी में होंगी। 90 विधानसभा सीटों में से सात सीटें अनुसूचित जाति और नौ
सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होंगी। जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम,
2019 में विधानसभा सीटें बढ़ाने के बाद परिसीमन ज़रूरी हो गया था। इससे
पहले जम्मू-कश्मीर में 111 सीटें थीं-46 घाटी में, 37
जम्मू में और चार लद्दाख में। इसके अलावा 24 सीटें पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर (पीओके)
में थीं। जब लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया, इससे यहाँ सिर्फ़ 107
सीटें रह गईं। पुनर्गठन अधिनियम में इन सीटों को बढ़ाकर 114 कर दिया गया है। इनमें
90 सीटें जम्मू-कश्मीर के लिए और 24 पीओके के लिए हैं, जहाँ चुनाव कराना संभव नहीं
है।
गठबंधन
राज्य में 10 साल बाद चुनाव हो रहे हैं, जहाँ 90
विधानसभा सीटों के लिए तीन चरण में वोट पड़ेंगे। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने मिलकर
चुनाव लड़ने का फैसला किया है। गत 22 अगस्त को श्रीनगर में राहुल गांधी से मुलाकात
के बाद नेशनल कांफ्रेंस के चीफ फारुक अब्दुल्ला ने इसका ऐलान किया। अब्दुल्ला ने
कहा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य दर्जा बहाल हो, हम इसके लिए काम करेंगे। यह
पूछे जाने पर कि क्या गठबंधन में पीडीपी के लिए कोई जगह है, तो फारुक अब्दुल्ला ने
कहा कि किसी के लिए दरवाजे बंद नहीं है। संभव है कि पीडीपी भी इस गठबंधन में शामिल
हो। अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद बने गुपकार गठबंधन से इसका संकेत मिला भी था।
लोकसभा चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस और
कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़े थे। तीन सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस के प्रत्याशी थे,
दो पर कांग्रेसी। कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। नेशनल
कांफ्रेंस को दो सीटें मिली थी। दो सीटें बीजेपी और एक सीट निर्दलीय के खाते में
गई थी। प्राप्त जानकारी के अनुसार कांग्रेस ने घाटी में 12 सीटें मांगी हैं, साथ
ही इतनी ही सीटें नेशनल कांफ्रेंस को जम्मू डिवीजन में कांग्रेस ने देने की पेशकश
की है। विधानसभा चुनावों में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस 36 और कांग्रेस सात
विधानसभा सीटें पर आगे रही थी।
2014 के परिणाम: कुल सीटें 87। पीडीपी 28, बीजेपी 25, नेशनल कांफ्रेंस 15, कांग्रेस
12, पीपुल्स कांफ्रेंस 2, सीपीएम 1, अन्य 1, निर्दलीय 3।
शेष दो राज्य
ऐसा लगता है कि चुनाव आयोग 4 अक्तूबर को
जम्मू-कश्मीर और हरियाणा चुनाव के नतीजों के बाद ही महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभाओं
के चुनावों की घोषणा करेगा। इन दोनों राज्यों में चुनाव नवंबर में हो सकते हैं। मौजूदा
महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल 26 नवंबर को समाप्त होना है। इसलिए उसके पहले ही
चुनाव पूरे कराने होंगे। आयोग ने जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव घोषित करने के
मौके पर महाराष्ट्र में बारिश और त्योहारी सीजन होने का उल्लेख किया था।
जम्मू-कश्मीर के चुनाव सुप्रीम कोर्ट द्वारा
निर्धारित 30 सितंबर की समय सीमा के भीतर पूरे होने थे और चुनाव प्रक्रिया 20
अगस्त को शुरू हो सकती थी (चूंकि अमरनाथ यात्रा एक दिन पहले खत्म हो जाएगी। चुनाव
आयोग के पास जम्मू-कश्मीर चुनावों के बाद हरियाणा चुनाव कराने के लिए कोई अच्छा
समय नहीं था। एक चुनाव आयोग अधिकारी ने कहा कि हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 2
नवंबर, 2019 के काफी करीब है। यही वजह है कि दोनों
राज्यों में एक साथ चुनाव हुए थे।
महाराष्ट्र
2019 में महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर हुए
चुनाव में 106 विधायकों के साथ बीजेपी राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनी। मुख्यमंत्री
पद को लेकर शिवसेना और बीजेपी गठबंधन में बात नहीं बन पाई। 56 विधायकों वाली
शिवसेना ने 44 विधायकों वाली कांग्रेस और 53 विधायकों वाली राकांपा के साथ मिलकर
महाविकास अघाड़ी बनाकर सरकार बनाई। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने। मई
2022 महाराष्ट्र सरकार में नगर विकास मंत्री और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने 39
विधायकों के साथ बगावत कर दी। वे बीजेपी के साथ मिल गए और 30 जून को एकनाथ शिंदे
ने राज्य के 20वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। इसके साथ ही शिवसेना पार्टी दो
गुटों में बँट गई। एक धड़ा शिंदे गुट और दूसरा उद्धव गुट का बना। 17 फरवरी, 2023 को चुनाव आयोग ने आदेश दिया कि पार्टी का नाम 'शिवसेना' और पार्टी का चुनाव चिह्न 'धनुष और तीर' एकनाथ शिंदे गुट के पास रहेगा। इसके
बाद राकांपा में भी टूट हुई और अजित पवार बीजेपी के साथ आ गए।
सवाल है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में
बनी महायुति विधानसभा चुनाव में सफलता पाएगी या नहीं, वह बनी रहेगी भी या नहीं? शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) ने दावा किया है कि
सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन शिवसेना, बीजेपी और अजित पवार नीत राष्ट्रीय
कांग्रेस पार्टी के बीच आंतरिक फूट के कारण महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले टूट
जाएगा। सरकार ने चुनाव के पहले एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम 'लाडकी
बहिन योजना' को शुरू किया है, पर इसका श्रेय लेने की
कोशिशें अलग-अलग नेता कर रहे हैं। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की 48
सीटों में बीजेपी 9 पर और उसकी गठबंधन सहयोगी राकांपा ने एक सीट जीती। शिव सेना
(शिंदे गुट) को 7 सीटों पर जीत मिली। इंडिया ब्लॉक में शामिल कांग्रेस ने 13 सीटें
जीतीं। शिव सेना (उद्धव) को 9 सीटें मिलीं। शरद पवार की राकांपा ने 8 सीटों पर जीत
हासिल की। सांगली सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता।
झारखंड
झारखंड की राजनीति में हाल में पूर्व
मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन की इस घोषणा से हलचल मची हुई है कि वे एक अलग पार्टी
बनाने पर विचार कर रहे हैं। इसके पहले चर्चा यह भी थी कि वे भारतीय जनता पार्टी
में शामिल हो सकते हैं। बीजेपी के साथ
जाने की चर्चाओं के बीच झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के
वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन ने कहा है कि वो तीन विकल्पों पर विचार कर रहे हैं-
राजनीति से संन्यास, नई पार्टी शुरू करना या किसी भरोसेमंद दल के
साथ जाना। इस बयान से इतना स्पष्ट जरूर हो रहा है कि वे झारखंड मुक्ति मोर्चा को
छोड़ रहे हैं। कोल्हान के टाइगर कहे जाने वाले चंपाई को हेमंत सोरेन को ज़मानत
मिलने के बाद पार्टी के कहने पर पद छोड़ना पड़ा था। 3 जुलाई 2024 को उन्होंने
इस्तीफ़ा दे दिया था।
मुख्यमंत्री हेमंत
सोरेन को ज़मीन घोटाले के आरोप में जेल जाना पड़ा था। इस वर्ष 31 जनवरी वे गिरफ्तार हुए थे। जेल जाने से पहले उन्होंने इस्तीफ़ा दिया था और उनकी जगह
चंपाई सोरेन मुख्यमंत्री बने थे। हेमंत सोरेन अब जेल से बाहर हैं और फिर से
मुख्यमंत्री हैं। विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा समय नहीं है, इसलिए राजनीतिक
गतिविधियाँ तेज हो रही हैं।
चंपाई सोरेन ने हाल
में ट्विटर पर लिखा, ‘…पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक
सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट
गया। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर
आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा।
सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर
लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता? अपनों द्वारा दिए गए
दर्द को कहां जाहिर करता?’
उनके इस बयान से
जेएमएम की अंदरूनी राजनीति सामने आ गई है, यह भी स्पष्ट हुआ
है कि पार्टी पर सोरेन परिवार का वर्चस्व है। चंपाई के जाने को पार्टी नैतिक
नुकसान के रूप में तो देख रही है लेकिन इससे कोई राजनीतिक नुक़सान होगा, यह स्वीकार नहीं कर रही है। माना जा रहा है कि भारतीय
जनता पार्टी उन्हें अपनी अलग पार्टी खड़ी करने में मदद कर सकती है। चंपाई के मैदान
में उतरने से बीजेपी को फ़ायदा पहुँचने की संभावना है। वे अगर अपनी पार्टी बनाएंगे
और बीजेपी के साथ चुनाव लड़ेंगे, तो इसका कुछ न कुछ फ़ायदा बीजेपी को होगा।
राज्य की 81 सदस्यों वाली विधानसभा में 2019
में चुनाव हुए थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने गठबंधन के साथ सरकार बनाई। बहुमत के
लिए 42 विधायकों की जरूरत होती है। गठबंधन के पास 48 विधायक हैं। झामुमो के 29,
कांग्रेस के 17, राजद का एक और माकपा का एक विधायक है। इस
साल हुए लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 सीटों में से भाजपा को 8 सीटों पर जीत
मिली। उसके सहयोगी दल आजसू को एक सीट भी नहीं मिली। इंडिया गठबंधन में कांग्रेस दो सीट पर जीती। झारखंड मुक्ति मोर्चा ने तीन सीटों
पर जीत दर्ज की। 2019 में
बीजेपी ने 12 सीटें जीतीं थीं। पिछले चुनाव की तुलना में बीजेपी का प्रदर्शन भले
ख़राब रहा हो लेकिन इस बार भी बीजेपी ने सर्वाधिक सीटें जीतीं हैं।
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