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Wednesday, August 21, 2024

लेटरल एंट्री: यानी दूध के जले…


भारत सरकार ने मिड-लेवल पर सरकार में विशेषज्ञों को शामिल करने की पार्श्व-प्रवेश योजना (लेटरल एंट्री) से फौरन पल्ला झाड़ लिया है, पर यह बात अनुत्तरित छोड़ दी है कि क्यों तो इस भर्ती का विज्ञापन दिया गया और उतनी ही तेजी से क्यों उसे वापस ले लिया गया? केंद्रीय लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) ने मिड-लेवल पर 45 विशेषज्ञों की सीधी भर्ती के लिए 17 अगस्त को विज्ञापन निकाला था, जिसे तीसरे ही दिन वापस ले लिया गया। विज्ञापन के अनुसार 24 केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, डायरेक्टर और उप सचिव के पदों पर 45 नियुक्तियाँ होनी थीं।

इन 45 पदों में संयुक्त सचिवों के दस पद वित्त मंत्रालय के अधीन डिजिटल अर्थव्यवस्था, फिनटेक, साइबर सुरक्षा और निवेश और गृह मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) जैसे मामलों से जुड़े थे, जिनमें तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत होती है। इन पदों को सिंगल काडर पद कहा गया था, जिनमें आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी।

सरकार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा सामाजिक न्याय के पक्षधर रहे हैं, पर व्यावहारिक सच यह है कि जैसे दूध का जला, छाछ भी फूँककर पीता है वैसे ही लोकसभा चुनाव में धोखा खाने के बाद भारतीय जनता पार्टी कोई राजनीतिक जोखिम मोल नहीं लेगी। पर विज्ञापन जारी करते वक्त सरकार ने इस खतरे पर विचार नहीं किया होगा। लेटरल एंट्री का विरोध केवल कांग्रेस ने ही नहीं किया है, एलजेपी जैसे एनडीए के सहयोगी दल ने भी किया। अभी तो यह तीसरा दिन ही था। देखते ही देखते विरोधी-स्वरों के ऊँचे होते जाने का अंदेशा था।

कांग्रेस पार्टी का निशाना आरक्षण तो है ही, वह पहले से कहती रही है कि इस बहाने सरकार आरएसएस के लोगों को भर्ती कर रही है। चार राज्यों में विधानसभा चुनाव बहुत जल्द होने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में दस सीटों के उपचुनाव हैं। जम्मू-कश्मीर को छोड़ दें, तो शेष जगहों पर जातीय-आरक्षण की महत्वपूर्ण भूमिका है। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने कौन जात का मंत्र अपना लिया है और इस पार्श्व-प्रवेश (लेटर एंट्री) को दलितों, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला घोषित कर दिया। सरकार ने खतरे को सूँघ लिया और अपने पैर वापस खींच लिए।

यह लेटरल एंट्री पहली बार नहीं हो रही थी। ऐसी नियुक्तियाँ जवाहर नेहरू के जमाने से होती आ रही है। नरेंद्र मोदी की सरकार भी इसके पहले चार बार ऐसी नियुक्तियाँ कर चुकी है। पचास के दशक में नेहरू जी ने ही इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट पूल की शुरुआत की थी। इसके तहत मंतोष सोधी सरकारी सेवा में आए, जो देश के भारी उद्योग मंत्रालय के पहले गैर आईएएस सचिव बने। अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रहने के अलावा वे बोकारो स्टील प्लांट के वे संस्थापक चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर थे।

आईजी पटेल, मनमोहन सिंह, वी कृष्णमूर्ति, मोंटेक सिंह अहलूवालिया और आरवी शाही जैसे विशेषज्ञों का प्रशासन में प्रवेश इसी किस्म की भर्ती से हुआ था। बीएचईएल और सेल जैसे सार्वजनिक उपक्रमों का संचालन करने वाले वी कृष्णमूर्ति इसी रास्ते से आए। डीवी कपूर ने बिजली, भारी उद्योग और रसायन और पेट्रोकेमिकल-तीन मंत्रालयों का काम देखा। आईजी पटेल उप आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए और बाद में आर्थिक मामलों के सचिव और रिजर्व बैंक के गवर्नर बने। मनमोहन सिंह वाणिज्य मंत्रालय में सलाहकार के रूप में आए थे।

तब ऐसी नियुक्तियाँ वरिष्ठ पदों तक सीमित थीं, पर अब सरकार में तकनीकी विशेषज्ञता की जरूरत भी बढ़ रही है। वर्तमान सिविल सेवा व्यवस्था में प्रशासनिक-प्रशिक्षण दिया जाता है, पर उसमें गहन विशेषज्ञता की कमी है। यूपीएससी ने जो विज्ञापन जारी किया था, उसमें आवश्यक शैक्षिक योग्यताओं में टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट, पब्लिक पॉलिसी, डेवलपमेंट स्टडीज़, इकोनॉमिक्स, लिबरल आर्ट्स और लॉ की स्नातकोत्तर उपाधि का उल्लेख किया गया था।

विशेषज्ञता के लिहाज से यह अभिनव व्यवस्था है। इसके तहत प्राइवेट कंपनियों या विदेशी संस्थानों में काम कर चुके विशेषज्ञों को जगह दी जाती है। इन्हें परीक्षा नहीं देनी होती और चयन इंटरव्यू से होता है। इन्हें तीन से पाँच साल के लिए नियुक्ति किया जाना था। सरकार का कहना है कि अब इस विषय पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए और सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ऐसी नियुक्तियों का इंतजाम किया जाएगा। फिलहाल खतरा टला। 

नवोदय टाइम्स में 21 अगस्त, 2024 को प्रकाशित

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