औपनिवेशिक व्यवस्था को बदलने की बातें अरसे से होती रही हैं, पर जब बदलाव का मौका आता है, तो सवाल भी खड़े होते हैं। ऐसा ही तीन नए आपराधिक कानूनों के मामले में हो रहा है, जो गत 1 जुलाई से देशभर में लागू हो गए हैं। स्वतंत्रता के बाद से न्याय-व्यवस्था में परिवर्तन की यह सबसे कवायद है। ये कानून नए मामलों में लागू होंगे। जो मामले भारतीय दंड संहिता के तहत पहले से चल रहे हैं, उनपर पुराने नियम ही लागू होंगे। इसलिए दो व्यवस्थाओं का कुछ समय तक चलना चुनौती से भरा काम होगा।
इस लिहाज से नए कानूनों को लागू करने से जुड़े
तमाम तकनीकी-मसलों को चुस्त-दुरुस्त करने में भी चार-पाँच साल लगेंगे। इसका अर्थ यह
भी है कि देश में जब 2029 में लोकसभा चुनाव होंगे, तब इन कानूनों की उपादेयता और
निरर्थकता भी एक मुद्दा बनेगी। इस लिहाज से इन कानूनों का लागू होना बहुत बड़ा काम
है। चूंकि कानून-व्यवस्था संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं, इसलिए राजनीतिक और
प्रशासनिक सवाल भी खड़े होंगे। कर्नाटक उन राज्यों में से एक है, जिसने तीन नए कानूनों का अध्ययन करने के लिए औपचारिक रूप से एक
विशेषज्ञों की समिति का गठन किया है। संभव है कि कुछ मसले अदालतों में भी जाएं।
इन कानूनों की दो बातें ध्यान खींचती हैं। दावा किया गया है कि अब मुकदमों का फैसला तीन-चार साल में ही हो जाएगा। पुराने दकियानूसी कानूनों और उनके साथ जुड़ी प्रक्रियाओं की वजह से मुकदमे दसियों साल तक घिसटते रहते थे। दूसरे कुछ नए किस्म के अपराधों को इसमें शामिल किया गया है, जो समय के साथ जीवन और समाज में उभर कर आए हैं। इनमें काफी साइबर-अपराध हैं और कुछ नए सामाजिक-सांस्कृतिक माहौल में उभरी प्रवृत्तियाँ हैं।
जिस आईपीसी का स्थान भारतीय न्याय संहिता ने
लिया है, वह अंग्रेज शासकों के हित में बनाई गई थी। उसका उद्देश्य न्याय से ज्यादा
शासन करना था। सरकार का दावा है कि ये कानून औपनिवेशिक कानूनों की जगह पर
राष्ट्रीय-दृष्टिकोण की स्थापना करेंगे, इसीलिए इनके नाम अंग्रेजी में नहीं,
हिंदी में हैं। हालांकि स्वतंत्रता के बाद से पुराने कानूनों में कई
बार संशोधन किए गए, पर जैसाकि गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि ये कानून भारतीयों
द्वारा भारतीयों के लिए बनाए गए हैं।
इन नए कानूनों ने तीन पुराने कानूनों का स्थान
लिया है। भारतीय दंड संहिता, 1860- आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता
(बीएनएस) 2023, दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (सीआरपीसी) की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 (आईई
एक्ट) की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) 2023
लागू किए गए हैं। देश में इस बात को लेकर काफी हद तक आमराय रही है कि पुराने
कानूनों में ‘भारी बदलाव’ की जरूरत है। नए कानून इस ‘भारी
बदलाव’ को व्यक्त करते हैं या नहीं, यह इस वक्त चर्चा
का विषय है।
नए कानून की धारा 69 में शादी, रोजगार, प्रमोशन,
झूठी पहचान आदि के झूठे वादे के आधार पर यौन संबंध बनाना नया अपराध जोड़ा गया है। इस आरोप में 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। कुछ आलोचकों का कहना है कि इस प्रावधान का दुरुपयोग किया जा सकता है और सहमति से बने रिश्तों को भी अपराध साबित किया जा सकता है। इसके जवाब में कहा जाता है कि कानून के किसी भी उपबंध का दुरुपयोग भी संभव है। सवाल सही जाँच और साक्ष्यों का है, जिससे जुड़े कानून भी बदले गए हैं।इसी तरह धारा 103 के अंतर्गत नस्ल, जाति या
समुदाय के नाम पर हत्या को हत्या के सामान्य अपराध से अलग श्रेणी में रखा गया है। उच्चतम
न्यायालय ने 2018 में केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि ‘मॉब
लिंचिंग’ के अपराध के लिए अलग कानून बनाया जाए। अब नस्ल,
जाति, समुदाय आदि के आधार पर लिंचिंग के लिए
न्यूनतम सात साल की कैद या आजीवन कैद या मृत्युदंड की सजा होगी।
राजद्रोह कानून अब निरस्त हो जाएगा। वस्तुतः
उच्चतम न्यायालय ने मई, 2022 में कहा था कि राजद्रोह का अपराध प्रथमदृष्ट्या
अवैधानिक है और इसे समाप्त किया जाना चाहिए। नए कानून के अनुसार सरकार के खिलाफ
नफरत, अवमानना, असंतोष
पर दंडात्मक प्रावधान नहीं होंगे, लेकिन इसमें देशद्रोह को नए अपराध के
रूप में शामिल किया गया है। राष्ट्र के खिलाफ कोई भी गतिविधि दंडनीय होगी। महिलाओं
और बच्चों को हिंसा से बचाने के लिए इसमें नए प्रावधान हैं।
कानून में आतंकवाद को परिभाषित किया गया है।
सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियों, अलगाववादी गतिविधियों या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को
खतरा पहुंचाने वाली गतिविधि के लिए नए प्रावधान जोड़े गए हैं। गैंगरेप के लिए 20
साल की कैद या आजीवन जेल की सजा होगी। पीड़िता नाबालिग है तो आजीवन कैद/मृत्युदंड
का प्रावधान किया गया है। स्नैचिंग के मामले में गंभीर चोट लगे या स्थायी
विकलांगता हो, तब कठोर सजा की व्यवस्था इसमें है। धारा
304 (1) के तहत स्नैचिंग अब नया अपराध है, जिसे चोरी से अलग किया गया है।
धारा 377 को पूर्ण रूप से हटाकर समलैंगिकता,
बल्कि पुरुषों और महिलाओं के बीच सहमति या गैर-सहमति से हुए
अप्राकृतिक संबंधों को वैध घोषित कर दिया जाएगा। बच्चों को अपराध में शामिल करने
पर कम से कम 7-10 साल की सजा होगी। चोरी, घर में नकबजनी,
सेंध लगाने जैसे कम गंभीर मामलों में संक्षिप्त सुनवाई यानी समरी
ट्रायल अनिवार्य कर दिया गया है। जिन मामलों में सजा तीन साल तक है, उनमें मजिस्ट्रेट लिखित में कारण दर्ज करने के बाद संक्षिप्त सुनवाई
कर सकता है। सज़ा को कम करने के नियम निर्धारित- मौत की सज़ा को उम्रकैद में,
उम्रकैद को सात साल, सात साल की सज़ा को तीन साल में तब्दील
करना वगैरह। यह सूची बहुत लंबी है। सामुदायिक सेवा को सजा के नए तरीके के रूप में
लाया गया है।
समय के साथ नई तकनीकों का इस्तेमाल भी बढ़ा है।
इसके अनुरूप साक्ष्य अधिनियम में बदलाव हुए हैं। अब 'दस्तावेज'
में इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड, ईमेल,
सर्वर लॉग, कंप्यूटर में फाइलें, स्मार्टफोन/लैपटॉप संदेश; वेबसाइट,
लोकेशन डाटा; डिजिटल उपकरणों पर मेल संदेश शामिल हो गए
हैं। एफआईआर, केस डायरी, चार्ज
शीट और फैसलों का डिजिटलीकरण जरूरी हो गया है। समन और वॉरंट जारी करना, तामील करना, शिकायतकर्ता और गवाहों की जाँच,
साक्ष्य की रिकॉर्डिंग, मुकदमेबाजी और
सभी अपीलीय कार्यवाही, थानों और अदालतों में ईमेल के रजिस्टर, किसी भी संपत्ति की
तलाशी और जब्ती अभियान की वीडियो रिकॉर्डिंग होगी वगैरह-वगैरह।
नए कानूनों को लागू करना आसान काम नहीं है,
क्योंकि काफी समय तक पुलिस-प्रशासन और न्यायिक-प्रशासन को नए और पुराने कानूनों
में अंतर करना होगा। पुराने मुकदमे चलते रहेंगे और नए आते जाएंगे। सरकार ने
कानूनों को संसद में पेश करने के साथ ही इन्हें लागू करने की प्रक्रिया पर काम शुरू
कर दिया था। दिसंबर 2023 के बाद से केंद्रीय गृह सचिव ने केंद्रीय मंत्रालयों तथा
राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के मुख्य सचिवों के साथ दर्जन से ज्यादा बैठकें
इस सिलसिले में की हैं। वकीलों के प्रशिक्षण के साथ-साथ कानूनी शिक्षा के
पाठ्यक्रम में तदनुरूप बदलाव हो रहा है। अधिकारियों की कार्यशालाएं चल रही हैं
वगैरह। इस दृष्टि से यह एक बड़ी क्रांति की शुरुआत है।
No comments:
Post a Comment