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Sunday, July 17, 2022

भारत के उपराष्ट्रपति की भूमिका

जगदीप धनखड़

उपराष्ट्रपति पद के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में जगदीप धनखड़ का नाम सामने आने के बाद दो तरह की बातें सामने आई हैं। एक, धनखड़ से जुड़ी और दूसरी देश के उपराष्ट्रपति की भूमिका को लेकर। हालांकि राष्ट्रपति की तुलना में उपराष्ट्रपति पद छोटा है, पर राजनीतिक-प्रशासनिक जीवन में उसकी भूमिका ज्यादा बड़ी है, बल्कि संसदीय प्रणाली में भारत के उपराष्ट्रपति का पद अपने आप में अनोखा है। ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में ऐसा सम्भव ही नहीं है, क्योंकि वहाँ राजा के बाद कोई उप-राजा नहीं होता। 

राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति उसकी भूमिका निभाता है। राष्ट्रपति की भूमिका कार्यपालिका-प्रमुख तक सीमित है, जबकि उपराष्ट्रपति की भूमिका विधायिका के साथ है। वह राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष है। भारत के उपराष्ट्रपति की तुलना अमेरिकी उपराष्ट्रपति से की जा सकती है, जो सीनेट का अध्यक्ष भी होता है। अमेरिका में सीनेट राज्यों का प्रतिनिधि सदन है और भारत में भी राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधि सदन है। प्रतिनिधित्व के मामले में अमेरिकी सीनेट का स्वरूप वही है, जैसा बताया गया है, जबकि राज्यसभा का स्वरूप धीरे-धीरे बदल गया है।

देश के वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू का कार्यकाल 10 अगस्त को पूरा हो रहा है। उसके पहले 6 अगस्त को उपराष्ट्रपति पद का चुनाव होगा। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 में कहा गया है, भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। अनुच्छेद 64 में कहा गया है कि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होगा, परन्तु किसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति, अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्यसभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और वह अनुच्छेद 97 के अधीन राज्यसभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।

संविधान सभा में उपराष्ट्रपति पद से जुड़े उपबंधों को स्वीकार किए जाने के बाद 29, दिसम्बर 1948 को संविधान की दस्तावेज (ड्राफ्टिंग) समिति के अध्यक्ष भीमराव आम्बेडकर ने इस पद के व्यावहारिक स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा कि हालांकि संविधान में उपराष्ट्रपति पद का उल्लेख है, पर वस्तुतः वह राज्यसभा का सभापति है। दूसरे शब्दों में वह लोकसभा अध्यक्ष का समतुल्य है।

इस पद के अतिरिक्त वह किसी कारण से राष्ट्रपति पद के रिक्त हो जाने पर राष्ट्रपति पद पर कार्य करेगा। अनुच्छेद 65(1) के अनुसार, राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा, जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है।

अनुच्छेद 65(2) के अनुसार, जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी  किसी अन्य कारण से अपने कर्तव्यों के निर्वहन में असमर्थ है, तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कर्तव्यों का निर्वहन करेगा, जिस तारीख क राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।

कोई भी नागरिक जिसकी आयु कम से कम 35 वर्ष है और किसी राज्य या केंद्र शासित क्षेत्र में पंजीकृत मतदाता है, इस पद के लिए प्रत्याशी बन सकता है। इसके लिए उसके नाम का प्रस्ताव कम से कम 20 सांसद करें और 20 सांसद उसके नाम का समर्थन करें। अनुच्छेद 66(2) के अनुसार उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा। यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है, तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद-ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।

जहाँ राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक-मंडल करते है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य और सभी राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य होते हैं, अनुच्छेद 66(1) के अनुसार उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा। इसका अर्थ है कि लोकसभा के 524 और राज्यसभा के 237 सदस्य, जिनमें हाल में मनोनीत चार नए सदस्य शामिल हैं, उपराष्ट्रपति के चुनाव में मतदान के अधिकारी हैं।

अनुच्छेद 67 के अनुसार उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष तक पद धारण करेगा। (ग) अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने के बाद भी तब तक पद धारण करता रहेगा, जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता। अनुच्छेद 68 के अनुसार उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा। अलबत्ता संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि यदि उपराष्ट्रपति का पद अपनी पदावधि के पहले रिक्त हो जाता है या जब वह राष्ट्रपति का पद संभाल रहा हो, तब उपराष्ट्रपति पद का निर्वहन कौन करेगा। अलबत्ता राज्यसभा के सभापति के पद की रिक्ति होने पर उपसभापति या राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित सदन का कोई अन्य सदस्य सभापति के कार्यों का निष्पादन कर सकता है।

उपराष्ट्रपति जो बाद में राष्ट्रपति बने

सर्वपल्ली राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति थे। उन्होंने 1952 से 1962 तक दो कार्यकालों में काम किया। उसके बाद वे 1962 में राष्ट्रपति चुने गए। उनके अलावा जो अन्य उपराष्ट्रपति बाद में राष्ट्रपति भी बने उनके नाम हैं-ज़ाकिर हुसेन (1967-69), वीवी गिरि (1969-74), आर वेंकटरामन(1987-1992), शंकर दयाल शर्मा (1992-97) केआर नारायण (1997-2002)। सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बाद हामिद अंसारी अकेले ऐसे उपराष्ट्रपति हुए हैं, जिन्हें 2007 से 2017 तक दो बार उपराष्ट्रपति पद का कार्यकाल मिला।

राज्यसभा की भूमिका

भारत के उपराष्ट्रपति की भूमिका को समझने के लिए एक नजर राज्यसभा की भूमिका पर भी डालनी चाहिए। इस सिलसिले में बीबीसी हिंदी में मैंने 2015 में एक लेख लिखा था, जिसे यहाँ पढ़ा जा सकता है। 2014 के बाद जब लोकसभा से पास हुए कुछ प्रस्ताव राज्यसभा में रुक गए, तब तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने एक साक्षात्कार में कहा कि जब एक चुने हुए सदन ने विधेयक पास कर दिए तो राज्यसभा क्यों अड़ंगे लगा रही है? जेटली के स्वर से लगभग ऐसा लगता था कि राज्यसभा की हैसियत क्या है?

भारत में दूसरे सदन की उपयोगिता को लेकर संविधान सभा में काफी बहस हुई थी। दो सदन वाली विधायिका का फैसला इसलिए किया गया क्योंकि इतने बड़े और विविधता वाले देश के लिए संघीय प्रणाली में ऐसा सदन जरूरी था। धारणा यह भी थी कि सीधे चुनाव के आधार पर बनी एकल सभा देश के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए नाकाफी होगी।

पूछा जा सकता है कि क्या राज्यसभा चुनी हुई नहीं? ऐसा नहीं है। बस इसके चुनाव का तरीका लोकसभा से पूरी तरह अलग है। इसका चुनाव राज्यों की विधान सभाओं के सदस्य करते हैं। चुनाव के अलावा राष्ट्रपति द्वारा सभा के लिए 12 सदस्यों के नामांकन की भी व्यवस्था की गई है।

असल में राज्यसभा, संतुलन बनाने वाला या विधेयकों पर फिर से ग़ौर करने वाला पुनरीक्षण सदन है। उसका काम है लोकसभा से पास हुए प्रस्तावों की समीक्षा करना। सरकार मे विशेषज्ञों की कमी भी यह पूरी करता है, क्योंकि साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से जुड़े कम से कम 12 विशेषज्ञ इसमें मनोनीत होते ही हैं। जवाहर लाल नेहरू ने सदन की ज़रूरत को बताते हुए लिखा है, "निचली सदन से जल्दबाजी में पास हुए विधेयकों की तेजी, उच्च सदन की ठंडी समझदारी से दुरुस्त हो जाएगी."

राज्यसभा की गरिमा के लिए देश के उपराष्ट्रपति को इसका सभापति बनाया गया है। राज्यसभा सरकार को बना या गिरा नहीं सकती, फिर भी वह सरकार पर लगाम रख सकती है। यह काम खासतौर से उस समय बहुत महत्वपूर्ण होता है जब सरकार को राज्यसभा में बहुमत हासिल न हो। दोनों सभाओं के बीच गतिरोध को दूर करने के लिए संविधान में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाने की व्यवस्था है। वित्तीय मामलों में लोकसभा को राज्यसभा की तुलना में प्रमुखता हासिल है।

 

 

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