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Monday, June 13, 2022

भस्मासुर साबित होने लगे हैं इमरान खान

जबसे इमरान खान की कुर्सी छिनी है, उन्होंने आंदोलन छेड़ रखा है। पाकिस्तान के सामने तमाम तरह की चुनौतियाँ खड़ी हैं। उनके बीच इमरान खुद बड़ी समस्या बन गए हैं। वे फौरन चुनाव चाहते हैं। उन्हें लगता है कि आज चुनाव हों, तो उन्हें भारी जीत मिलेगी। सच है कि उनकी लोकप्रियता बढ़ी है और भड़काऊ भाषणों से उनके समर्थकों का हौसला बुलंद है। पर, अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है। आंदोलनों की आँधी के कारण उसे सुधारने की कोशिशों को पलीता लग रहा है। अब उन्होंने देश के तीन टुकड़े होने, सेना की तबाही और एटम बम छिनने का शिगूफा छेड़कर जनता को भयभीत कर दिया है।

फौरन चुनाव की माँग

गत 10 अप्रैल को नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के बाद वे सत्ता से बाहर हो गए थे। इसके बाद उन्होंने सार्वजनिक भाषणों में बार-बार दावा किया था कि हम 20 लाख पीटीआई कार्यकर्ताओं को इस्लामाबाद लाएंगे और तब तक वहीं रहेंगे, जब तक चुनाव की तारीख़ों की घोषणा नहीं की जाती। फिर 25 मई को देशव्यापी ‘लांग मार्च’ की घोषणा की और ‘पूरे देश’ को इस्लामाबाद पहुंचने का आह्वान किया।

उनकी अपील बेअसर रही और उन्होंने उसे इस घोषणा के साथ मार्च समाप्त कर दिया, कि हम ‘अगले छह दिनों में दोबारा मार्च करेंगे’। अब कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे। अब कह रहे हैं कि सरकार मुझपर ग़द्दारी का मुक़दमा बनाकर रास्ते से हटाना चाहती है। 4 जून को ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह में एक जलसे में उन्होंने कहा, जब तक ख़ून है वक़्त के यज़ीदों का मुक़ाबला करता रहूँगा। वे अपने भाषणों में धार्मिक प्रतीकों का जमकर इस्तेमाल करते हैं।

तबाह अर्थव्यवस्था

इमरान खान ने आंदोलन के लिए ‘लांग मार्च’ का सहारा लिया है। एक शहर से दूसरे शहर के बीच कारों, बसों और ट्रकों पर बैठे आंदोलनकारियों के काफिले सड़कों पर हैं। एक तरफ देश आर्थिक संकट से घिरा है और दूसरी तरफ आंदोलनों की बाढ़ है। जुलूसों को रोकने के लिए इस्लामाबाद में कंटेनरों के ढेर लगे हैं। इससे सड़कों पर यातायात प्रभावित हुआ है, आए दिन स्कूल बंद होते हैं खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो जाती है।

अर्थव्यवस्था तबाही का श्रेय भी इमरान खान को ही जाता है। महामारी और यूक्रेन की लड़ाई ने इसे और बढ़ा दिया है। दशकों से देश की आर्थिक-व्यवस्था बिगड़ी हुई है। सुरक्षा पर अतिशय जोर होने की वजह से दुर्दशा और ज्यादा है। मई के महीने में मुद्रास्फीति 13.8 प्रतिशत के ऊपर चली गई। 6 जून को डॉलर की कीमत 200 रुपये के ऊपर चली गई। इसके पहले 2 जून को रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने पाकिस्तान की रेटिंग निगेटिव में कर दी थी।

27 मई को विदेशी मुद्रा कोष 9.72 अरब डॉलर रह गया, जो केवल पाँच-छह हफ्ते के आयात के लिए पर्याप्त है। 2019 के बाद से विदेशी मुद्रा कोष अपने न्यूनतम स्तर पर है। तब आईएमएफ से मदद माँगी गई थी और 6 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज स्वीकृत हुआ था। उसकी आधी राशि प्राप्त हो चुकी है। इमरान खान ने कई तरह की सब्सिडी कम करने का वायदा किया था, पर लोकप्रिय होने के चक्कर में बिजली और पेट्रोल की कीमतें कम कर दीं। नए वित्तीय वर्ष में देश को 37 अरब डॉलर की जरूरत है।

गत 26 मई को सरकार ने ईंधन की सब्सिडी में कमी की घोषणा की, जिससे कीमतों में 20 फीसदी की वृद्धि हुई। इससे आईएमएफ के कर्जे को फिर से जारी करने की प्रक्रिया में तेजी आई है। सरकार को अभी और ऐसे अलोकप्रिय-कदम उठाने होंगे। पर आईएमएफ को भी भरोसा होना चाहिए कि यह सरकार चलेगी। चुनाव आयोग जल्द चुनाव कराने की स्थिति में नहीं है और आईएमएफ को भी सत्ता-परिवर्तन को लेकर अंदेशा है। इमरान खान की वापसी की सम्भावना से ही आईएमएफ हाथ खींच लेगा। इस कर्ज की स्वीकृति मिलने के बाद ही सऊदी अरब और चीन से कुछ और सहायता मिलने की आशा है।

सेना का आशीर्वाद

यह बात साफ हो चुकी है कि 2018 के चुनाव में आईएसआई ने उनकी मदद की थी। यह साथ टूटने का उन्हें मलाल है। सेना के वरिष्ठ अफसर उनके साथ नहीं हैं, पर कुछ सीनियर अफसर और युवा अफसरों का एक वर्ग उनका समर्थक भी है। नए सेनाध्यक्ष की नियुक्ति का फैसला नवम्बर में होना है। इमरान खान चाहते हैं कि उसके पहले वे किसी तरह सत्ता हासिल कर लें।

इमरान कह रहे हैं कि सेना ने उनका साथ नहीं दिया, जिसके कारण यह खतरा खड़ा हुआ है। टीवी चैनल ‘बोल’ पर उनके इंटरव्यू ने तहलका मचा दिया है। इसमें इमरान ने कहा, अगर हम डिफॉल्ट (यानी कर्ज चुकाने में विफल) करेंगे तो सबसे बड़ा इदारा कौन सा है जो मुतास्सिर होगा, पाकिस्तानी फ़ौज। वे कहते हैं कि सेना ने उनका साथ छोड़कर अपनी और मुल्क की तबाही का रास्ता खोल दिया है। अमेरिका ने देश के राजनीतिक दलों के साथ मिलकर उन्हें हटाया है। शहबाज़ शरीफ की सरकार ‘इम्पोर्टेड-सरकार’ है, अमेरिका, भारत और इसरायल मिलकर पाकिस्तान के तीन टुकड़े कर देंगे। हमें एटमी हथियारों से वंचित कर दिया जाएगा वगैरह।  

पाकिस्तान की मीडिया रेगुलेटरी अथॉरिटी (पीएमआरए) ने इस इंटरव्यू के कुछ हिस्सों को दोबारा प्रसारित करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। मुल्क के तीन टुकड़े होने की बात पर पर्यवेक्षकों का कहना है कि किसी की साजिश से तो मुल्क टूट नहीं जाएगा। मान लिया कि कोई हमारे तीन टुकड़े करना चाहता है, पर उसके पास इसका तरीका क्या है? कैसे होगे तीन टुकड़े? क्या हमारी ही फौज करेगी? या जनता करेगी? इमरान डर पैदा करके अपने महत्व को साबित करना चाहते हैं। उन्हें इस बात का गलत इलहाम है कि उनके अलावा पाकिस्तान को बचाने की कुव्वत किसी में नहीं है।

नवजीवन में प्रकाशित

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-06-2022) को चर्चा मंच     "तोल-तोलकर बोल"  (चर्चा अंक-4462)     पर भी होगी!
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    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'    
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  2. सनद रहे सत्ता सुख को किसी रोग से कम नहीं समझा जा सकता है

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