यूक्रेन की लड़ाई के पीछे दो पक्षों के सामरिक हित ही नहीं, वैश्विक-राजनीति के अनसुलझे प्रश्न भी हैं। संयुक्त राष्ट्र क्या उपयोगी संस्था रह गई है? वैश्वीकरण का क्या होगा, जो नब्बे के दशक में धूमधाम से शुरू हुआ था? रूस चाहता क्या है? किस शर्त पर यह लड़ाई खत्म होगी? रूस और पश्चिमी देशों से ज्यादा महत्वपूर्ण है यूक्रेन की जनता। व्लादिमीर पुतिन ने कई बार कहा है कि यूक्रेन हमारा है, पर यह गलतफहमी है। नागरिकों का एक वर्ग रूस के साथ है, पर ज्यादा बड़ा तबका स्वतंत्र यूक्रेनी राष्ट्रवाद का समर्थक है।
लड़ाई खत्म कैसे हो?
रूस को लड़ाई खत्म करने के लिए बहाने की जरूरत है।
अमेरिका और नेटो क्या यूक्रेन को
‘तटस्थ’ बनाने पर राजी हो जाएंगे? ऐसा संभव है, तो वे अभी तक माने क्यों
नहीं हैं? पुतिन के मन को पढ़ना आसान नहीं, पर उनके गणित को पढ़ा जा सकता है। उन्हें लगता है कि अमेरिका ढलान पर
है। नए राष्ट्रपति के चुनौतियाँ हैं। आंतरिक राजनीति-विभाजित है। अपनी कमजोरियों
की वजह से वह अफगानिस्तान से भागा। सीरिया से सेना हटाई। नेटो भी विभाजित है। जर्मनी
ने नाभिकीय ऊर्जा का परित्याग करके खुद को रूसी गैस पर निर्भर कर लिया है। फ्रांस
अपने राष्ट्रपति के चुनाव में फँसा है और यूके कोविड-19, ब्रेक्जिट और बोरिस जॉनसन
के अजब-गजब तौर-तरीकों का शिकार है।
रूस आंशिक रूप से भी सफल हुआ, तो मान लीजिएगा
कि अमेरिका का सूर्यास्त शुरू हो गया है। पर लड़ाई जारी रखना रूस के लिए नुकसानदेह
है। वह चक्रव्यूह में फँसता जाएगा। अमेरिका ने हाइब्रिड वॉर और शहरी छापामारी का
इंतजाम किया है। ठेके पर सैनिक मुहैया करने वाली ब्लैकवॉटर जैसी संस्थाओं ने
यूक्रेन में मोर्चे संभाल लिए हैं। रूस के वैग्नर ग्रुप के भाड़े के सैनिक भी
यूक्रेन में सक्रिय हैं। संयुक्त राष्ट्र और दूसरे मंचों पर पश्चिमी देशों का दबाव
है। वैश्विक-व्यवस्थाएं अभी पश्चिमी प्रभाव में हैं। खबरें हैं कि पश्चिमी देश
रूसी तेल की खरीद पर रोक लगाने जा रहे हैं। इन बातों से निपटना आसान नहीं है।
चीन का सहारा
रूस ने इस लड़ाई के पहले अपने आप को आर्थिक-प्रतिबंधों के लिए भी तैयार कर लिया था। पिछले दिसंबर में उसका विदेशी मुद्राकोष 630 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था। उसे विश्वास है कि चीन का राजनयिक-समर्थन उसके साथ है और जरूरत पड़ी, तो आर्थिक सहायता भी वहाँ से मिलेगी। पिछली 4 फरवरी को बीजिंग में शी चिनफिंग के साथ पुतिन की शिखर-वार्ता से यह भरोसा बढ़ा है। पर चीन किस हद तक रूस का सहायक होगा? रूस से दोस्ती बढ़ाने का मतलब अमेरिका से रिश्तों को और ज्यादा बिगाड़ना है, जो पहले से ही बिगड़े हुए हैं।
चीन और अमेरिका के बीच 2021 में 657 अरब डॉलर
से ज्यादा का व्यापार हुआ था। चीन ने अमेरिका को 506 अरब डॉलर के माल और सेवाओं को
बेचा और अमेरिका ने चीन को 151 अरब डॉलर का। करीब 355 अरब के व्यापार घाटे के
बावजूद अमेरिका भी चीन से कारोबारी रिश्ते बिगाड़ने को तैयार नहीं है। अक्तूबर
2021 तक चीन के पास अमेरिका के 1.065 ट्रिलियन डॉलर के ट्रेज़री बॉण्ड थे। अमेरिका
के सकल राष्ट्रीय कर्ज का 3.68 प्रतिशत। दूसरी तरफ रूस-चीन व्यापार केवल 147 अरब डॉलर का है।
चीन ने सुरक्षा से जुड़ी रूसी फिक्र को वाजिब
बताया है और नेटो के विस्तार के लिए अमेरिका को कोसा है, पर यूक्रेन की संप्रभुता
को भी स्वीकार किया है। आर्थिक-प्रतिबंधों का सामना कर पाना चीन के बस में भी नहीं
है। चीनी माल की बिक्री और चीनी पूँजी निवेश के लिए अमेरिका और पश्चिमी देशों के
बाजार खुले हैं। पाबंदियाँ लगीं, तो चीन के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। लगता यह भी है
कि चीन युद्ध के हालात बनाए रखने के पक्ष में था, लड़ाई छेड़ने के पक्ष में नहीं।
पुतिन ने 24 फरवरी को अपने टीवी संबोधन में कहा,
हमारी योजना यूक्रेन पर कब्जा करने की नहीं है…पर सोवियत संघ के
विघटन ने हमें बताया कि ताकत और इच्छा-शक्ति को लकवा मार जाने के दुष्परिणाम क्या
होते हैं। उनकी बातों के पीछे यह दर्द भी छिपा था कि हमारी वैध जमीन हमसे छिन गई।
चीन के मन में भी अपने पुराने साम्राज्य के सपने हैं। पश्चिमी देश तो औपनिवेशिक-दादागीरी
दौर के ध्वजवाहक ही हैं। यह धौंसपट्टी और पुराने रसूखों का टकराव है। 7 मई 1999 को
अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने बेलग्रेड में चीनी दूतावास के ऊपर बमबारी की थी,
जिसमें तीन लोग मारे गए थे,
और 20 घायल हुए थे। वह अपमानजनक हमला था, पर
चीन ने खून का घूँट पी लिया था। दोनों के मन में रोष है, पर वे क्या कर सकते हैं?
पेच दर पेच
नब्बे के दशक के बाद दुनिया आर्थिक रूप से इस
कदर जुड़ गई है कि उसे तोड़ना आसान लगता नहीं। यूरोप के देश रूस से गैस खरीदते हैं,
जिसका भुगतान इसके माध्यम से होता है। बेल्जियम
से संचालित होने वाली सोसायटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल
टेलीकम्युनिकेशंस (स्विफ्ट) बैंकों के बीच लेन-देन को आसान बनाती है। यह प्रणाली
पश्चिमी देशों द्वारा नियंत्रित है।
यूरोप की लीज़िग कंपनियों ने रूस की विमान
सेवाओं से कहा है कि वे 28 मार्च तक पट्टे पर दिए गए विमानों को वापस कर दें।
दुनियाभर की विमान सेवाओं के पास आधे से ज्यादा विमान पट्टे पर हैं। रूस के पास
500 से ज्यादा विमान हैं। इन्हें वापस करना और वापस लेना आसान काम नहीं है। दुनिया के 36 देशों ने रूसी विमान सेवाओं
के लिए एयरस्पेस बंद कर दिया है। रूसी विमान बाहर जाएंगे भी तो कैसे? रूस इन विमानों का शुल्क दे नहीं सकता,
क्योंकि स्विफ्ट से बाहर है। यूरोपियन लीज़िंग कंपनियों के दिवालिया
होने का खतरा पैदा हो गया है। यह केवल एक उदाहरण है। ऐसे तमाम पेच सामने आएंगे, जो साबित करेंगे कि लम्बी लड़ाई चलाना
आसान नहीं।
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