पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू अपनी ही पार्टी की
सरकार के लिए
समस्या बन
गए हैं। राज्य में कांग्रेस की सरकार अपने ही प्रदेश अध्यक्ष के जुबानी हमलों का
सामना कर रही है।
नवजोत सिंह सिद्धू को जब से पंजाब कांग्रेस का
प्रमुख बनाया गया है, तब से पार्टी के भीतर का विवाद
बढ़ता ही जा रहा है। पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए मुश्किल स्थिति हो गई है
कि वे अपनी वफ़ादारी मुख्यमंत्री के नेतृत्व के साथ रखें या प्रदेश अध्यक्ष के साथ।
अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दू
ने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है। अख़बार ने लिखा है कि मुख्यमंत्री चरणजीत
सिंह चन्नी लगातार मज़बूती से कांग्रेस का एजेंडा रख रहे हैं, जबकि सिद्धू लगातार अलग-अलग मुद्दों पर सरकार को कोस रहे हैं।
सिद्धू 2015 में 'गुरु ग्रंथ साहिब' के अपमान और उससे जुड़ी हिंसा के साथ ड्रग्स के मुद्दे पर अपनी सरकार
को लगातार घेर रहे हैं।
अख़बार ने में लिखा है कि सिद्धू
लगातार उन मुद्दों को उठा रहे हैं, जिनसे सिख वोटों को लामबंद किया जा सके।
पार्टी के भीतर आमराय यह बन रही है कि सिख मुद्दों को हद से ज़्यादा उठाने के कारण
कांग्रेस हिन्दू वोट बैंक के ठोस समर्थन को खो सकती है।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी ने इस बार सामूहिक नेतृत्व के ज़रिए पंजाब विधानसभा चुनाव
लड़ने का फ़ैसला किया था लेकिन सिद्धू सरकार पर हमला कर दबाव की रणनीति चल रहे हैं
और उनका निशाना मुख्यमंत्री के पद पर है।
अख़बार से पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कहा कि
अगर प्रदेश अध्यक्ष लगातार अपनी ही सरकार पर सार्वजनिक रूप से हमला बोलते रहेंगे
तो एक कार्यकर्ता अपनी सरकार के कामों का विपक्षियों के सामने कैसे बचाव करेगा।
सिद्धू के सरकार पर बढ़ते हमले के कारण पार्टी
के भीतर भी नाराज़गी बढ़ रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के राष्ट्रीय समन्वयक
और पंजाब कांग्रेस के प्रवक्ता प्रीतपाल सिंह बालिवाल ने हाल में पार्टी छोड़ने की
घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि वह सिद्धू की सरकार और पार्टी विरोधी टिप्पणी के
साथ उनकी बकवास का बचाव नहीं कर सकते।
पंजाब कांग्रेस के भीतर जितनी चीज़ें हो रही
हैं, उन्हें ठीक करने की अभी तक कोई ठोस कोशिश नहीं
हुई है। उप-मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, खाद्य मंत्री भारत भूषण और तकनीकी शिक्षा मंत्री राना गुरजीत सिंह ने
सिद्धू के व्यवहार को लेकर सार्वजनिक रूप से आपत्ति जताई है।
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