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Tuesday, January 4, 2022

उत्तर प्रदेश में चुनावी सफलता का सूत्र है सांप्रदायिक ध्रुवीकरण

सीएसडीएस के प्रोफेसर संजय कुमार के अनुसार उत्तर प्रदेश के चुनाव में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। आज के मिंट में प्रकाशित उनकी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण राजनीतिक फसल काटने का अच्छा जरिया है। एक पार्टी हिंदू वोट को हथियाने का प्रयास करती है तो दूसरी पार्टी मुसलमानों के वोटर को लुभाती है। राज्य में मुस्लिम आबादी 19.3 फीसदी है।

हालांकि मुस्लिम आबादी प्रदेश के सभी हिस्सों में उपस्थित है, पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और रूहेलखंड में उसकी उपस्थिति सबसे अच्छी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 32 फीसदी और रूहेलखंड की 35 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। राज्य की कुल 403 सीटों में से 30 सीटें ऐसी हैं, जहाँ 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। इसके बाद 43 सीटें ऐसी हैं, जहाँ 30-40 फीसदी आबादी मुस्लिम है।

बीजेपी की दिलचस्पी बहुसंख्यक हिंदू वोटर को अपनी तरफ खींचने की होती है, तो समाजवादी पार्टी की दिलचस्पी मुस्लिम वोट को हासिल करने की होती है। पार्टी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि मुसलमान किसका साथ देते हैं।

सीएसडीएस के चुनाव बाद के सर्वेक्षणों से प्राप्त डेटा का अध्ययन करने से निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में और 2017 के विधानसभा चुनाव में हिंदुओं के कुल वोटों में से आधे भारतीय जनता पार्टी के खाते में गए। जिन सीटों पर बीजेपी की हार हुई, उनमें भी हिंदुओं के वोट भारी संख्या में बीजेपी को मिले।

इसके विपरीत समाजवादी पार्टी को मुस्लिम वोट बड़ी संख्या में मिले। जिन क्षेत्रों में मुसलमानों के वोट कांग्रेस, बसपा और सपा के बीच बँटे, वहाँ भी सपा को सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट मिले। 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब मुस्लिम वोटरों ने सपा का साथ दिया, फिर भी पार्टी को भारी अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा।

ध्रुवीकरण मददगार

एक बात यह भी स्पष्ट हुई है कि जो पार्टियाँ मुस्लिम वोटों के सहारे हैं, वे भी हिंदू वोटों की अनदेखी नहीं कर सकती हैं। सन 2017 के चुनाव में बीजेपी ने उन सब सीटों पर सफलता हासिल की, जहाँ मुसलमान 30 से 40 फीसदी हैं। बीजेपी के पक्ष में हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के कारण दूसरी पार्टियाँ केवल मुस्लिम वोट के सहारे जीत नहीं सकतीं। जिन क्षेत्रों में मुसलमान 40 फीसदी से ज्यादा है, वहाँ बीजेपी नहीं जीत सकती। 2017 में जहाँ बीजेपी ने राज्य में भारी बहुमत हासिल किया, वहीं जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 40 फीसदी से ज्यादा है, वहाँ सपा को जीत मिली। बीजेपी ऐसी 60 फीसदी सीटों पर हारी।

स्विंग वोटर

जबर्दस्त सांप्रदायिक अभियान ऐसे वोटरों को अपनी तरफ खींचने में कामयाब होता है, जो मतदान के एक-दो दिन पहले फैसला करते हैं। स्विंग वोटर किसी पार्टी के वफादार नहीं होते, और वे प्रत्याशी या मुद्दों पर वोट देते हैं। आमतौर पर वे उसे वोट देते हैं, जिसकी जीत नजर आ रही हो। सीएसडीएस सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में करीब 25 फीसदी स्विंग वोटर हैं।

2014 के लोकसभा चुनाव में 41 फीसदी स्विंग वोटरों ने ऐसे प्रत्याशी को वोट दिया, जो उनकी निगाह में जीतता नजर आ रहा था, जबकि 8 फीसदी ने यह जानते हुए भी वोट दिया कि पार्टी हार जाएगी। जीतने वाली पार्टी के पक्ष में स्विंग मुसलमानों के बीच ज्यादा है। सर्वेक्षण के दौरान आधे से ज्यादा वोटरों ने कहा कि उन्होंने उस प्रत्याशी को वोट दिया, जो हमें लगा कि जीत जाएगा। सांप्रदायिक अभियान का एक उद्देश्य स्विंग वोटर को अपने साथ लाना भी होता है।

 

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