हिंद महासागर के दो पड़ोसी देशों, श्रीलंका और मालदीव के घटनाक्रम में कुछ बातें भारत की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। अपने पड़ोसियों, खासतौर से हिंद महासागर के देशों की, अनदेखी भारी पड़ सकती है। यह बात श्रीलंका के ताजा आर्थिक-संकट और चीन के विदेशमंत्री वांग यी के इन दोनों देशों के दौरे से रेखांकित हुई। दोनों देशों में हाल के वर्षों तक चीन का काफी प्रभाव रहा है, जो अब कम हो गया है। मालदीव में 2018 के चुनाव के बाद चीन समर्थक-समर्थक सरकार चली जरूर गई है, पर कुछ समय से चल रहे भारत-विरोधी अभियान ‘इंडिया-आउट’ पर ध्यान देने की जरूरत है।
श्रीलंका और मालदीव
दोनों चीन के कर्जे में दबे हैं, पर इस समय श्रीलंका की दशा ज्यादा खराब है। वह
विदेशी देनदारी में डिफॉल्ट की स्थिति में पहुँच गया है। विदेशी-मुद्रा कोष के
क्षरण के कारण डिफॉल्ट की स्थिति पैदा हुई है। वहाँ जरूरी चीजों का संकट पैदा होने
लगा है। इस संकट के पीछे उसका चीनी कर्ज में दबा होना भी एक बड़ा कारण है, फिर भी उसे
चीन से मदद माँगने जाना पड़ा।
चीन से मदद
चीन से मदद माँगे जाने में हैरत नहीं है। सत्तारूढ़ राजपक्षा परिवार चीनी प्रशासन के करीब रहा है, इसलिए वे चीन के पास गए। साथ ही लगता है कि भारत ने देरी की। पिछले साल उन्होंने भारत की तरफ भी हाथ बढ़ाया था, पर भारत ने अनदेखी की या उसकी गंभीरता को कुछ देर से समझा। बहरहाल शनिवार 15 जनवरी को विदेशमंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका के वित्तमंत्री बासिल राजपक्षे के साथ बातचीत की, जिससे स्थिति बिगड़ने से बची है।
इसके पहले दिसंबर में
पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने श्रीलंका के साथ 1.5 अरब डॉलर का करेंसी स्वैप किया। उसके बाद गुरुवार 13 जनवरी को भारत ने
फौरी तौर पर 90 करोड़ डॉलर के ऋण की घोषणा की थी, ताकि श्रीलंका खाद्य-सामग्री का आयात
जारी रख सके। इस दोनों वित्तीय पैकेजों ने कुछ समय के लिए उसे बड़े संकट से बचा
लिया है, पर आखिरकार उसे आईएमएफ की शरण में जाना होगा। हैरत इस बात में है कि अभी
तक वह गया क्यों नहीं।
भारत की
जिम्मेदारी
भारत की दृष्टि से श्रीलंका
का चीन के रहमो-करम पर छोड़ना उचित नहीं है। भारत ने हस्तक्षेप किया, पर कुछ देर
से। बेशक इस संकट के पीछे श्रीलंका के सत्ताधारियों की राजनीतिक नासमझी जिम्मेदार
है, पर भारत को अपनी दीर्घकालीन जिम्मेदारी को निभाना चाहिए।
फिलहाल श्रीलंका ने
चीन और भारत की सहायता से अपनी मुद्रा के बदले डॉलर हासिल कर लिए हैं और इस तरह से
उसके पास तीन अरब डॉलर से ज्यादा की विदेशी मुद्रा हो गई है। पर यह स्थायी समाधान
नहीं है। इस देश की वर्तमान बदहाली के पीछे राजनीतिक
अनुशासनहीनता का हाथ भी है। 2019 में गोटाबाया राजपक्षा के राष्ट्रपति बनने के बाद
आईएमएफ की उन मौद्रिक और राजकोषीय नीतियों को त्याग दिया गया, जो उसके तीन साल
पहले इसी किस्म का संकट पैदा होने पर अपनाई गई थीं।
अनुशासनहीनता
श्रीलंका में सत्ता-परिवर्तन के पीछे लंबी
जद्दो-जहद थी। नई सरकार ने आते ही तैश में या लोकप्रियता बटोरने के इरादे से
टैक्सों और ब्याज में कमी कर दी। यह देखे बगैर की जरूरत किस बात की है। ऊपर से
कोविड-19 ने परिस्थिति को बदल दिया। फिर से आईएमएफ के पास जाना राजनीतिक रूप से तमाचा
होगा, क्योंकि वे आईएमएफ की शर्तों की खुली आलोचना कर चुके हैं। वे इसे संप्रभुता
में हस्तक्षेप मानते हैं।
बेशक हस्तक्षेप है, पर उसके लिए हालात किसने
तैयार किए? इन दिनों पाकिस्तान भी इन्हीं परिस्थितियों का
सामना कर रहा है। लंबे समय तक अंतरराष्ट्रीय विमान सेवाओं पर लगी रोक के कारण श्रीलंका
में पर्यटन-कारोबार ठप हो गया। पर्यटक अब आ रहे हैं, पर पहले के मुकाबले 20 फीसदी
भी नहीं हैं। निर्यात बढ़ा है, कंपनियों की आय बढ़ी है, फिर भी अर्थव्यवस्था
लंगड़ा रही है।
वस्तुओं का संकट
पुराने कर्जों को निपटाने में उसकी विदेशी
मुद्रा का भंडार खत्म होता जा रहा है। इससे पेट्रोल, रसोई गैस, गेहूँ और दवाओं के
आयात पर असर पड़ा है। रुपये
की कीमत घट रही है, जिससे विदेशी सामग्री और महंगी हो गई है। मुद्रास्फीति 12
फीसदी के ऊपर है। राजस्व की 72 फीसदी राशि ब्याज में जा रही है। इन बातों के
मद्देनज़र रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर और फिच ने उसे डाउनग्रेड कर दिया है।
नवंबर 2021 में उसका विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 1.2 अरब डॉलर रह गया और दिसंबर में एक महीने के आयात के लायक एक अरब
डॉलर की मुद्रा हाथ में थी। 18 जनवरी को 50 करोड़ डॉलर
के इंटरनेशनल सॉवरिन बॉण्ड की अदायगी अलग से होनी थी, जिसके डिफॉल्ट की स्थिति
पैदा हो गई थी। इससे बचाने के लिए बाहरी मदद की जरूरत पड़ी।
हाल में केंद्रीय बैंक ने जानकारी दी कि 38.2 करोड़ डॉलर के स्वर्ण
भंडार में से आधा बेच दिया गया है। अफवाह है कि बाकी भी बिक गया। बाजार में 100 ग्राम हरी मिर्च की क़ीमत 71 रुपये, 200
रुपए किलो आलू। गैस सिलेंडर के लिए लंबी लाइनें लग रही हैं। केवल एक महीने में खाद्य
सामग्री की क़ीमत में 15 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
इस साल अक्तूबर तक
श्रीलंका को 5.4 अरब डॉलर का भुगतान करना है। ईरान से तेल खरीद के एवज में 25.1
करोड़ डॉलर की रकम के बदले में चाय भेजी गई है। कारों के आयात पर रोक लगा दी गई
है। उर्वरकों के आयात को रोकने की कोशिश की गई, पर उसका परिणाम खेती पर देखने को
मिला, जिसकी वजह से उसे जारी रखा गया। सरकारी संपत्तियाँ बेचने का फैसला हुआ है,
पर खरीदार नहीं हैं।
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