रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सोमवार 6 दिसंबर को दो दिन की भारत-यात्रा पर आ रहे हैं। इस दौरान वे दोनों देशों के बीच सालाना शिखर-वार्ता में शामिल होंगे। भारत-रूस वार्षिक शिखर वार्ता सितंबर 2019 में हुई थी जब मोदी व्लादीवोस्तक गए थे। पिछले साल कोविड-19 महामारी के कारण शिखर वार्ता नहीं हो सकी। पुतिन सोमवार को दिल्ली पहुंचेंगे जबकि रूस के विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव और रक्षामंत्री सर्गेई शोयगू रविवार की रात को पहुंच जाएंगे।
टू प्लस टू वार्ता
इस यात्रा के दौरान ही दोनों देशों के बीच ‘टू
प्लस टू’ वार्ता की शुरुआत होगी। रक्षामंत्री राजनाथ
सिंह और विदेशमंत्री एस जयशंकर रूसी मंत्रियों के साथ ‘टू प्लस टू’ वार्ता करेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शिखर वार्ता में
रक्षा, व्यापार और निवेश, ऊर्जा
और तकनीक के अहम क्षेत्रों में सहयोग मजबूत करने के लिए कई समझौतों पर हस्ताक्षर
करने की संभावना है।
इस यात्रा के पहले भारत के सरकारी सूत्रों ने
अनौपचारिक रूप से मीडिया को जो संकेत दिए हैं, उनके अनुसार यह यात्रा काफी
महत्वपूर्ण साबित होगी। दोनों देशों के बीच रिश्तों को लेकर हाल के वर्षों में कभी
तनाव और कभी सुधार की खबरें आती रही हैं। हाल में रूस और पाकिस्तान के रिश्तों में
सुधार हुआ है। रूसी सिक्योरिटी कौंसिल के महासचिव निकोलाई पात्रुशेव ने हाल में
पाकिस्तान की यात्रा की है। रूस की दिलचस्पी अफगानिस्तान में है, जिसमें पाकिस्तान
से उसे उम्मीदें हैं।
आर्थिक सहयोग
भारत और रूस मुख्यतः रक्षा-तकनीक में साझीदार हैं। भारतीय सेनाओं के पास करीब 60 फीसदी शस्त्रास्त्र रूसी तकनीक पर आधारित हैं। इस यात्रा के ठीक पहले सुरक्षा से संबद्ध कैबिनेट कमेटी ने अमेठी के कोरवा में एके-203 असॉल्ट राइफल्स के विनिर्माण के लिए करीब 5,000 करोड़ रुपए के समझौते को मंजूरी दे दी है। संभवतः इस समझौते पर इस दौरान हस्ताक्षर होंगे। इसके अलावा हाल में आर्थिक रिश्ते भी बने हैं। खासतौर से भारत ने रूस के पेट्रोलियम-कारोबार में निवेश किया है।
भारत रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र के साथ
व्यापार संबंध बढ़ाने की भी इच्छा रखता है और इस क्षेत्र के 11 गवर्नर्स को आगामी वाइब्रैंट
गुजरात सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया गया है। नरेंद्र मोदी स्वयं ईस्टर्न इकोनॉमिक
फोरम के शिखर सम्मेलनों में शामिल हो चुके हैं, जो रूस के सुदूर पूर्व का आर्थिक-सहयोग
कार्यक्रम है।
अफगानिस्तान
तीसरा महत्वपूर्ण क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय-मंचों पर
दोनों की भूमिका है। खासतौर से अफगानिस्तान में हुए बदलाव के बाद से रूस और भारत
के रिश्ते महत्वपूर्ण हो गए हैं। अफगानिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद
जैसे समूहों की भूमिका और आतंकवाद के बढ़ते खतरे को लेकर दोनों देशों के बीच
सहमतियाँ बन सकती हैं। कहा जा रहा है कि शिखर-वार्ता के बाद जारी होने वाले संयुक्त
बयान में सीमा पार आतंकवाद और अफगान संकट के कारण सुरक्षा पर पड़ने वाले असर को
लेकर भारत की चिंताओं को व्यक्त किया जा सकता है।
कामोव हेलिकॉप्टर
भारत और रूस के प्रौद्योगिक और विज्ञान पर
संयुक्त आयोग की घोषणा करने के अलावा शिखर वार्ता में सैन्य-तकनीकी सहयोग के लिए
अगले दशक की रूपरेखा तय करने की भी संभावना है। दोनों पक्ष भारतीय सशस्त्र सेनाओं
के लिए 200 दोहरे इंजन वाले कामोव-226टी हल्के हेलीकॉप्टर के संयुक्त उत्पादन के
लिए लंबित परियोजना पर विचार विमर्श करने के अलावा कई रक्षा खरीद प्रस्तावों पर भी
बातचीत कर सकते हैं।
कामोव हेलिकॉप्टरों को लेकर कहा जा रहा है कि
भारत को अब स्वदेशी हेलिकॉप्टरों को अपनाना चाहिए। फौरी जरूरतों को पूरा करने के
लिए कुछ कामोव-226टी खरीद कर एचएएल को स्वदेशी हेलिकॉप्टर के निर्माण पर जोर देना
चाहिए। कामोव के निर्माण में रूस को स्वदेशी प्रतिशत बढ़ाने में दिक्कतें पेश आ
रही हैं। भारत ने जो एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर विकसित किया है, वह भी कामोव की
श्रेणी का है।
भारत-चीन रिश्ते
रूस के साथ बातचीत में चीन के साथ अपने रिश्तों
को भी परिभाषित करना है। रूस ने भारत के क्वॉड में शामिल होने पर अपनी असहमति जताई
थी, पर अब समय है कि रूस को भारत क्षेत्रीय घटनाक्रम पर अपनी चिंताओं के साथ ही
पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद पर अपना रुख भी बता सकता है।
भारत, अमेरिका,
जापान और ऑस्ट्रेलिया वाले क्वाड पर रूस की कड़ी आपत्ति के बारे में
पूछे जाने पर सूत्रों ने बताया कि नई दिल्ली किसी भी गुट का नहीं है और वह
हिंद-प्रशांत में पैदा हो रही स्थिति के आधार पर मुद्दे पर आधारित सहयोग दे रहा है।
उन्होंने कहा कि रूस हिंद-प्रशांत के लिए भारत की दूरदृष्टि की सराहना करता है।
दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, संस्कृति, रक्षा
और तकनीक समेत विभिन्न क्षेत्रों में समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। रक्षा के
क्षेत्र में सहयोग पर सूत्रों ने बताया कि दोनों पक्ष सैन्य-उपकरणों और प्लेटफॉर्मों
के सह-उत्पादन और सह-विकास पर ध्यान केंद्रित करेंगे। निवेश संबंधों का हवाला देते
हुए उन्होंने बताया कि 2018 में 30 अरब डॉलर का लक्ष्य पहले ही पूरा कर लिया गया
और अब 2025 तक 50 अरब डॉलर का लक्ष्य है।
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