गोल्डमैन सैक्स के अनुसार चीनी अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर इस साल तीसरी तिमाही में शून्य हो जाएगी। वित्तीय संस्थाओं का पूर्वानुमान है कि चीनी अर्थव्यवस्था में ब्रेक लग रहे हैं। कार्बन-उत्सर्जन और कोविड-19 को लेकर किए गए सख्त फैसलों की वजह से कोयले और गैस की सप्लाई में कमी आ गई है। इसके कारण बिजली-संकट पैदा हो गया है। कारखानों में उत्पादन गिरने लगा है। यह संकट शायद बहुत लम्बा नहीं चले, पर दीर्घकालीन खतरे दूसरे हैं।
प्रॉपर्टी
कारोबार
हाल में चीन की
सबसे बड़ी रियलिटी फर्म एवरग्रैंड के दफ़्तरों के बाहर नाराज़ निवेशकों की भीड़
जमा हो गई। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें भी हुईं। जनता का विरोध?
एवरग्रैंड, चीन में सबसे ज़्यादा देनदारियों के
बोझ से दबी संस्था बन गई है। कम्पनी पर 300 अरब अमेरिकी डॉलर की देनदारी है। कर्ज़
के बोझ ने कम्पनी की क्रेडिट रेटिंग और शेयर भाव ने उसे रसातल पर पहुँचा दिया।
तमाम निर्माणाधीन इमारतों का काम अधूरा है। करीब 10 लाख लोगों ने मकान खरीदने के
लिए इस कम्पनी को आंशिक-भुगतान कर दिया था।
एक यही कम्पनी
नहीं है। प्रॉपर्टी डेवलपरों के ऊपर 2.8 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज है। चीनी समाज में
पैसे के निवेश के ज्यादा रास्ते नहीं हैं। काफी लोगों के मन में अच्छे से घर का
सपना होता है। इस झटके से उन्हें धक्का लगा है। चीनी अर्थव्यवस्था के तेज विकास के
पीछे तेज शहरीकरण का हाथ भी है।
गगनभेदी इमारतों
और शानदार राजमार्गों ने एकबारगी पूरी व्यवस्था को चमका दिया, पर इससे रियलिटी सेक्टर पर कर्जे का बोझ बढ़ता चला गया। अब
राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस तेज बदलाव को थामने पर जोर दे रहे हैं। दूसरी तरफ
उन्होंने प्रदूषण, असमानता और वित्तीय जोखिमों को दूर
करने पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है।
अमीरी
की विसंगतियाँ
चीनी अर्थव्यवस्था के विस्तार ने कुछ और विसंगतियों को जन्म दिया है। देश में असमानता का स्तर बढ़ा है। एक तरफ तुलनात्मक गरीबी है, वहीं एक नया कारोबारी समुदाय तैयार हो गया है, जो सरकारी नीतियों के बरक्स दबाव-समूहों का काम करने लगा है। निजी कारोबार ने लोगों की आमदनी बढ़ाई है। ऐशो-आराम और मौज-मस्ती का हामी यह समूह कम्युनिस्ट-व्यवस्था से बेमेल है। जनवरी 2021 में पोलित ब्यूरो की बैठक में ‘पूँजी के बेतरतीब विस्तार को रोकने’ की बातें हुईं। शी चिनफिंग कम से कम पाँच मौकों पर इसे रोकने की बात कह चुके हैं।
वस्तुतः वे
पूँजीवादी-विकास के पहिए को उल्टी दिशा में घुमाना चाहते हैं। बढ़ते कर्ज, सट्टेबाजी और धन्नासेठों की बढ़ती संख्या से उन्हें डर लगने लगा है। डर
है कि जिस कारोबार को राज-व्यवस्था चला रही थी, कहीं
वह राज-व्यवस्था को चलाने न लगे। लोकतंत्र और तानाशाही को लेकर जिस वैचारिक बहस का
अंदेशा सत्तर के दशक में तब था, जब चीन पूँजीवाद के रास्ते पर जा रहा
था, शायद वह अब शुरू होगी।
शुरूआत पिछले
साल तब हुई थी, जब सरकार ने तकनीकी कारोबार के महारथी
अलीबाबा के शेयरों की सार्वजनिक बिक्री पर रोक लगा दी थी। और अब जबर्दस्त कर्ज में
डूबी प्रॉपर्टी डेवलपर कम्पनी एवरग्रैंड डूब रही है। क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार पर
रोक लगा दी गई है। बच्चों के गेमिंग पर नियंत्रण लगाए जा रहे हैं। चीन को अब बड़े
परिवारों और बच्चों की जरूरत महसूस हो रही है।
देशभक्ति और
राष्ट्रवाद फिर से केन्द्रीय विषय बन रहा है। स्कूली बच्चों को अब शी चिनफिंग के
विचारों को पढ़ाया जा रहा है। सबसे बड़ी चिन्ता बढ़ती असमानता को लेकर है। आर्थिक
प्रगति से असमानता बढ़ी है। नया नारा है ‘समृद्धि में भागीदारी।’ देश की 45 फीसदी
आय 20 फीसदी समृद्ध परिवारों के हिस्से में जा रही है। सबसे ऊपर के एक फीसदी तबके के
पास 30 फीसदी सम्पदा है।
महाकाय
कम्पनियाँ
सबसे बड़ी
चिन्ता तकनीकी कम्पनियों को लेकर है, जिनके पास डेटा और
दूसरी जानकारियाँ है। साम्यवादी व्यवस्था में यह सब सरकार के पास होना चाहिए। यह
समस्या पश्चिमी देशों की भी है। सरकारों के समान्तर तकनीकी कम्पनियों की सत्ता
स्थापित होती जा रही है। पर पश्चिम की पद्धति और चीनी व्यवस्था में फर्क है। चीन
में सरकार डंडा चलाएगी, तो महल ढहने लगेगा। इस महल की बुनियाद
उतनी गहरी नहीं है, जितनी पश्चिमी देशों में है।
इस समृद्धि के
सहारे चीन ने गरीबों की दशा सुधारी है, पर अब पुरानी व्यवस्था के बिखर जाने का
खतरा है। इसे बचाने के प्रयास में शी चिनफिंग सत्ता को अपने हाथों में केन्द्रित
करते जा रहे हैं। हालांकि उन्हें
2018 में अनिश्चित अवधि के लिए राष्ट्रपति चुना गया है, यानी कि वे दूसरा कार्यकाल
पूरा होने के बाद हटाए नहीं जाएंगे। इसका मतलब है कि अगले साल पार्टी की 20वीं
कांग्रेस में सम्भवतः वे तीसरे कार्यकाल के लिए चुन लिए जाएंगे। शायद कुछ बड़े
पदाधिकारियों पर गाज गिरे। इतना तय है कि लम्बे अरसे तक वे जमे रहे, तो सत्ता का
हस्तांतरण मुश्किल होगा। माओ-जे-दुंग के बाद परेशानियाँ हुई थीं।
बिजली
संकट
एवरग्रैंड संकट
के बीच एक नया संकट और खड़ा हो गया है। देश में बिजली का संकट पैदा होने लगा है।
देश के बीस से ज्यादा प्रान्तों में जबर्दस्त कटौती चल रही है। यह संकट खासतौर से
जियांग्सू, झेजियांग और ग्वांग्डोंग में सबसे ज्यादा है,
जो औद्योगिक क्षेत्र हैं। चीनी अर्थव्यवस्था का करीब एक तिहाई योगदान
इन क्षेत्रों से आता है। एक तरफ औद्योगिक माँग है और दूसरी तरफ कोयले और गैस की
कीमतें चढ़ रही हैं।
जलवायु परिवर्तन
के सिलसिले में चीन ने बड़े वैश्विक लक्ष्यों को स्वीकार कर लिया है, और सन 2060 तक कार्बन न्यूट्रैलिटी का वायदा किया है। उत्सर्जन के
लिए सरकार ने जो लक्ष्य निर्धारित किए हैं, उन्हें
देखते हुए कोयले पर आधारित बिजलीघरों पर अवलम्बन कम किया जा रहा है। फरवरी में
बीजिंग में विंटर ओलिम्पिक खेल आने वाले हैं। राष्ट्रपति शी चिनफिंग चाहते हैं कि
उस दौरान आसमान नीला दिखाई पड़े। ताकि दुनिया को लगे कि हम जलवायु-संरक्षण में भी
सबसे आगे हैं। पर खतरे दूसरे हैं, उनकी आहट सुनिए।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-10-2021) को चर्चा मंच "फिर से मुझे तलाश है" (चर्चा अंक-4216) पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--श्री दुर्गाष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
ReplyDeleteडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteजानकारियों से भरा बहुत ही सार्थक लेख!
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