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Sunday, September 19, 2021

राहुल-प्रियंका नेतृत्व की परीक्षा की घड़ी


पंजाब में जो राजनीतिक बदलाव हुआ है, उसका श्रेय राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को दिया जा रहा है। पिछले कुछ समय से दोनों पार्टी को दिशा दे रहे हैं, इसलिए आने वाले समय में इन दोनों की परीक्षा होगी। पंजाब में नेतृत्व का सवाल हल होने के बाद चुनाव और उसके बाद की परिस्थितियों से जुड़े फैसले अब उन्हें ही करने होंगे। उसके साथ-साथ पर्यवेक्षक यह भी कह रहे हैं कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मसले भी सिर उठाएंगे।

ऐसा लगता है कि कांग्रेस हाईकमान सबसे पहले अपने ऊपर लगे कमजोर-नेतृत्व के विशेषण को हटाना चाहती है। इसके लिए जरूरी है कि फैसले होने चाहिए। सही या गलत का निर्णय समय करेगा। पंजाब के फैसले को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर बहस शुरू हो गई है, पर ज्यादातर लोग मानते हैं कि राहुल और प्रियंका ने अपनी उपस्थिति को दिखाना शुरू किया है। एक तरह से यह जी-23 के नाम भी संदेश है।

लगता यह भी है कि पार्टी ने होमवर्क किए बगैर अमरिंदर को हटाने का फैसला कर लिया गया है। अन्यथा अबतक नए मुख्यमंत्री का नाम सामने आ जाता। तार्किक रूप से नवजोत सिद्धू को यह पद दिया जाना चाहिए।  

राजनीतिक दृष्टि

नेतृत्व की उपस्थिति साबित होने के अलावा देखना यह भी होगा कि इसके पीछे की राजनीतिक-दृष्टि क्या है और दूरगामी विचार क्या है। बताते हैं कि कांग्रेस के महामंत्री अजय माकन ने चंडीगढ़ में पार्टी के ऑब्ज़र्वर के रूप में जाने के पहले शुक्रवार की शाम को राहुल गांधी से भेंट की।

इसके बाद वे अभिषेक सिंघवी से भी मिले और यह जानकारी ली कि यदि अमरिंदर सिंह विधानसभा भंग करने की सिफारिश करें या केंद्रीय नेतृत्व का निर्देश मानने के बजाय इस्तीफा देने से इनकार कर दें, तब क्या होगा। उस समय तक 60 से ज्यादा विधायकों के हस्ताक्षरों से एक पत्र हाई कमान के पास आ चुका था। यानी पार्टी ने कानूनी व्यवस्थाएं भी कर ली थीं।

क्या यह परिवर्तन हाल में भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्रियों में हुए बदलाव से प्रेरित है? ऐसा लगता नहीं। पंजाब के मामले में पार्टी ने महीनों पहले मन बना लिया था। इंडियन एक्सप्रेस में जीसी मनोज ने लिखा है कि पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षण से पता लगा है कि अमरिंदर सिंह बहुत ज्यादा अलोकप्रिय हो चुके हैं और पार्टी को अगले चुनाव में दिक्कतें होंगी।

सिद्धू फैक्टर

जुलाई में पार्टी के अध्यक्ष पद पर नवजोत सिंह सिद्धू की नियुक्ति के बाद से पार्टी और सरकार के बीच में दूरी और बढ़ गई थी। इस लिहाज से अमरिंदर सिंह की छुट्टी पर हैरत नहीं होती है। जिस समय सिद्धू की नियुक्ति हो रही थी, पार्टी ने उस समय भी इसपर विचार किया था।

पार्टी के काफी विधायकों ने अमरिंदर सिंह की कार्यशैली को लेकर शिकायतें की थीं, पर हाईकमान अपने परम्परागत तरीके से काम कर रही थी। शायद गांधी परिवार में भी इस विषय पर एक राय नहीं थी। सम्भवतः सोनिया गांधी उन्हें हटाने के पक्ष में नहीं थीं। उधर अमरिंदर ने भी अपने तौर-तरीकों को बदला नहीं।

कहा यह भी जा रहा है कि विधायकों के नवीनतम पत्र को हाई कमान ने ही लिखवाया है, क्योंकि अमरिंदर को हटाने का मन बना लिया गया था। राहुल और प्रियंका का मत था कि अमरिंदर के नेतृत्व में चुनाव लड़ने से हमारा काम बहुत मुश्किल हो जाएगा।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अमरिंदर सिंह ने शनिवार को सोनिया गांधी से फोन पर कहा कि विधायक दल की बैठक एक-दो दिन के लिए टाल दें। इसपर एक नेता ने कहा कि इस दौरान उन्हें अपने लिए समर्थन हासिल करने का मौका मिल जाता, पर पार्टी उन्हें इसका मौका देना नहीं चाहती थी।

उधर अमरिंदर सिंह ने इस्तीफा देने के ठीक पहले सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अपने मन की व्यथा व्यक्त की और यह भी बताया कि पिछले साढ़े नौ साल में पंजाब ने किस प्रकार की स्थिरता हासिल की। 

पारिवारिक दोस्ती

विद्यार्थी जीवन में राजीव गांधी के साथी रहे अमरिंदर सिंह परिवार के करीबी मित्रों में एक हैं। दोनों के बीच स्कूल में एक साल का अंतर था। उन्होंने अब अपमानितशब्द का इस्तेमाल करके पार्टी के गणित को बिगाड़ दिया है। अब कुछ लोग कह रहे हैं कि वे पार्टी छोड़कर एक क्षेत्रीय दल बना सकते हैं।

आज के हिंदू में संदीप फूकन ने लिखा है कि अक्तूबर-नवम्बर 2015 में अपने इसी रसूख के सहारे उन्होंने प्रताप सिंह बाजवा के स्थान पर खुद को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष घोषित कराया, जिसके बाद वे 2017 के चुनाव में पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बने। हालांकि सोनिया गांधी उन्हें 2014 के चुनाव में अरुण जेटली के खिलाफ उतारना चाहती थीं, पर वे खुद पार्टी अध्यक्ष बनना चाहते थे।

उनके जीवनी लेखक खुशवंत सिंह ने लिखा है कि सोनिया गांधी उन्हें पार्टी अध्यक्ष बनाने को तैयार थीं, पर राहुल गांधी तैयार नहीं थे। उन्होंने यह भी लिखा है कि अक्तूबर 2015 में राहुल गांधी ने उनसे पूछा कि क्या आप अपनी कोई पार्टी बनाना चाहते हैं। इसपर अमरिंदर ने कहा, आपने सही सुना है। 2017 का चुनाव जीतने के बाद बताते हैं, यह खटास कम हो गई। पर नवजोत सिंह सिद्धू प्रकरण के बाद इस साल जून में जब अमरिंदर सिंह दिल्ली आए, तो गांधी परिवार से मुलाकात का समय उन्हें नहीं दिया गया।

बताया जा रहा है कि अमरिंदर सिंह ने समय के संकेतों को पढ़ने में देरी की। जब वे मुख्यमंत्री बने तब कुछ महीनों बाद 33 विधायकों ने उन्हें पत्र लिखकर माँग की कि अकाली दल के पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ नशे के एक मामले में जाँ कराएं। मुख्यमंत्री ने उसपर ध्यान नहीं दिया। जबकि उन्होंने शपथ लेने के बाद कहा था कि मैं राज्य से नशे के कारोबार को खत्म कर दूँगा। इसी तरह अनेक मामले उठते रहे। अंततः उन्हें हटाने की मुहिम में उनके ही पुराने सहयोगी शामिल हो गए।

राजस्थान और छत्तीसगढ़

क्या पंजाब जैसा ही कुछ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी होगा? ऐसा लगता नहीं। एक तो अमरिंदर सिंह अपने विधायकों के बीच जिस तरह से अलोकप्रिय हो गए थे, वैसा राजस्थान और छत्तीसगढ़ में नहीं है। अशोक गहलोत और भूपेश बघेल के समर्थन में पर्याप्त विधायक हैं।

अलबत्ता राहुल गांधी चाहते हैं कि भूपेश बघेल राज्य में मुख्यमंत्री बदलने के अलिखित समझौते का सम्मान करें। सन 2018 में जब पार्टी को भारी विजय मिली थी, तब उन्होंने टीएस सिंह देव के साथ ऐसा समझौता किया था। पर अब भूपेश बघेल अपने पीछे विधायकों का समर्थन दिखा रहे हैं।

उधर राहुल और प्रियंका ने सचिन पायलट को आश्वासन दिया था कि उन्हें विधानसभा चुनाव के एक साल पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया जाएगा। पर गहलोत के पीछे संख्याबल है। जब सचिन पायलट ने बगावती तेवर अपनाए, तब हाईकमान ने उनका साथ नहीं दिया, बल्कि पायलट का उप-मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष पद भी छिन गया।

 

 

 

 

 

1 comment:

  1. अब तो समय ही बताएगा कि यह सरकार चुनाव बाद किस पायदान पर होगी

    अच्छी राजनैतिक विचारणीय प्रस्तुति

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