इस
संयुक्त कार्रवाई की भनक अमेरिका को भी है। हालांकि अमेरिका की दिलचस्पी अब
अफगानिस्तान में बहुत ज्यादा नहीं लगता है, पर चीन की दिलचस्पी पर उसकी निगाहें
हैं और ब्लिंकेन के दिल्ली दौरे के पीछे यह भी एक महत्वपूर्ण कारण है। उधर पाकिस्तान
के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात की
है। तालिबान नेता बारादर की मुलाकात
भी चीनी विदेशमंत्री से हुई है। हाल में तालिबान के प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने
कहा था कि हम चीन को अफ़ग़ानिस्तान के एक दोस्त के रूप में देखते हैं। खबरें हैं
कि अफगानिस्तान में तालिबान का नियंत्रण चीन के शिनजियांग प्रांत से लगी
सीमा-क्षेत्र में हो गया है।
तालिबानी
टीम चीन में
तालिबान
नेता बारादर से चीनी विदेशमंत्री वांग की मुलाकात बुधवार 28 जुलाई को चीन के
उत्तरी नगर तियानजिन में हुई। उधर अफगानिस्तान में तालिबान की बढ़त लगातार जारी
है, पर हाल में अमेरिकी वायुसेना के हवाई हमलों से स्थिति में बदलाव आया है। इन
हमलों को लेकर तालिबान ने कहा है कि यह दोहा में हुए समझौते का उल्लंघन है। ज़ाहिर
है कि दिल्ली में भारत और अमेरिका के विदेशमंत्रियों की बातचीत का विषय भी
अफगानिस्तान और वहाँ चीन की बढ़ती दिलचस्पी है।
चीन ने अफगानिस्तान में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने का वायदा किया है। रॉयटर्स के अनुसार चीनमी विदेशमंत्री ने तालिबान प्रतिनिधियों से कहा कि उम्मीद है आप ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमंट (ईटीआईएम) के खिलाफ कार्रवाई करेंगे, क्योंकि यह संगठन चीन की सुरक्षा के लिए खतरा है। जून में चीनी विदेशमंत्री ने अफगानिस्तान और पाकिस्तान के विदेशमंत्रियों के साथ बातचीत में कहा था कि हम तालिबान को मुख्यधारा में वापस लाएंगे और अफगानिस्तान के सभी पक्षों के बीच मध्यस्थता करने को तैयार हैं। तालिबान नेताओं ने इशारा किया है कि उन्हें उम्मीद है कि चीन से अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में निवेश करने पर बातचीत होगी। एक तरह से यह चीन के बीआरआई कार्यक्रम से जुड़ने की मनोकामना है, जिसका एक हिस्सा पाकिस्तान-चीन आर्थिक कॉरिडोर यानी सीपैक है।
वीगरों
को अनुमति नहीं
बीबीसी
हिंदी की एक रिपोर्ट
के अनुसार तालिबान यह भी कह चुका है कि हम शिनजियांग से चीन के वीगर अलगाववादी
लड़ाकों को अफ़ग़ानिस्तान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देंगे। ये बयान ऐसे
वक़्त में आए हैं, जब अमेरिका, रूस के साथ-साथ अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच सुलह सफ़ाई के
लिए कई अलग-अलग प्रयास चल रहे हैं। दोहा और मॉस्को के अलावा शंघाई सहयोग संगठन
(एससीओ) की बैठक में भी अफ़ग़ानिस्तान मुद्दे पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन ठोस नतीजा
नहीं निकला है।
सवाल
है कि चीन, यदि
अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के साथ मिलकर 'संयुक्त कार्रवाई' की बात करता है, तो भारत के लिए इसमें चिंता की कोई बात
है या नहीं? क्या
चीन अफ़ग़ानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है? आमतौर पर मध्यस्थता वही करता है, जो विवाद में पड़े दोनों पक्षों का एक
बराबर दोस्त हो। चीन के क्या वाक़ई में अफ़ग़ान सरकार और तालिबान दोनों के साथ बराबरी
के दोस्ताना संबंध हैं?
चीन
में तालिबान नेता पहली बार नहीं आए हैं। सन 2019 में तालिबान का नौ सदस्यों का एक
प्रतिनिधिमंडल बीजिंग आया था और उन्होंने अफगानिस्तान में चीन के विशेष प्रतिनिधि
देंग शीजुन से मुलाकात की थी। ज़ाहिर है कि चीन और तालिबान ने काफी दूर तक की
सम्भावनाओं पर बातचीत की है और उसके पीछे कहीं पाकिस्तान भी है। पाकिस्तान चाहता
है कि चीन इस इलाके में दादा की भूमिका निभाए और वह खुद दादा के चमचे के रूप में
सक्रिय रहे।
भारत
की चिंता
चीन, तालिबान और पाकिस्तान का गठजोड़ भारत के लिए
चिंता का विषय है। इस लिहाज से अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी
ब्लिंकेन की भारत-यात्रा महत्वपूर्ण है। सवाल है कि भारत इस मामले में कितना
महत्वपूर्ण साबित होगा? अमेरिका ने
तालिबान के साथ बातचीत के दौरान भारत के साथ विमर्श जरूर किया था, पर भारत की इस
सलाह को नहीं माना था कि अमेरिकी सेना की पूरी तरह वापसी उचित नहीं है। अब लगता है
कि अमेरिका को भारत के महत्व का आभास हुआ है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वॉड के
सदस्य के रूप में दोनों देशों के हित आपस में जुड़ते हैं।
अफगानिस्तान भले ही प्रशांत क्षेत्र से दूर है,
पर चीनी उपस्थिति के कारण क्वॉड के दायरे में है। इस साल मार्च में राष्ट्रपति
बाइडेन ने क्वॉड देशों के शासनाध्यक्षों के साथ बातचीत की थी। उसमें बाइडेन ने चीन
की ‘आक्रामक’ और ‘लुभावनी’ मुद्रा का जिक्र किया था। पिछले महीने अमेरिकी
सीनेट ने एक प्रस्ताव पास करके चारों क्वॉड देशों के साथ एक अंतर-संसदीय कार्यदल
बनाने का फैसला किया है। अमेरिका ने भारत की वैश्विक-शक्ति के रूप में उभरती
भूमिका को स्वीकार किया है। साथ ही चीन के साथ प्रतिस्पर्धी की भूमिका को रेखांकित
किया है।
ब्लिंकेन की भारत-यात्रा के पहले उनकी सहायक
विदेशमंत्री वेंडी शर्मन चीनी परिधि के देशों का दौरा करके गई हैं। वेंडी शर्मन
मंगोलिया, जापान, दक्षिण कोरिया के नेताओं से मुलाकात करने के बाद चीनी शहर
तियानजिन भी गईं, जहाँ उन्होंने चीनी अधिकारियों से मुलाकात की। अमेरिका और चीन के
बीच इस दौरान राजनयिक-शिष्टाचार को लेकर भी टकराव चल रहा है। अमेरिका चाहता है कि
उसके अधिकारियों की पहुँच शी चिनफिंग के अंदरूनी घेरे के लोगों तक हो। ब्लिंकेन ने
भारत आने के पहले मंगलवार को दक्षिण एशिया में चीन के एक और मित्र देश चीन के नेपाल
के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से भी फोन पर बात की थी।
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