अब लग रहा है कि कोविड-19 की दूसरी लहर उतार पर है। शुक्रवार की रात के 12 बजे तक दर्ज नए संक्रमणों की संख्या 1.73 लाख और कुल एक्टिव केसों की संख्या 22 लाख के आसपास आ गई है, जो 10 मई को 37 लाख के ऊपर थी। अभी कुछ समय लगेगा, पर उम्मीद है कि भयावहता कम होगी। अब ऑक्सीजन और अस्पतालों में खाली बिस्तरे उपलब्ध हैं। बहरहाल दुनिया के सामने बड़ा सवाल है कि इस महामारी को क्या हम पूरी तरह परास्त कर पाएंगे? या तीसरी लहर भी आएगी?
संख्या में गिरावट कई
राज्यों में लगाए गए लॉकडाउनों की वजह से है। अब अनलॉक होगा। हालांकि केंद्र ने
पाबंदियों को 30 जून तक जारी रखने के दिशा-निर्देश दिए हैं, पर यह राज्यों पर निर्भर है कि वे कितनी
छूट देंगे। दिल्ली में 31 मई के बाद कुछ गतिविधियाँ फिर से शुरू होंगी। अन्य
राज्यों में इस हफ्ते या अगले हफ्तों में ऐसा ही कुछ होगा। इनमें महाराष्ट्र भी
शामिल है, जहाँ कुछ समय पहले तक
भयावह स्थिति थी। शायद तमिलनाडु, झारखंड
और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में लॉकडाउन जारी रहेगा।
दूसरी
लहर क्यों आई?
लॉकडाउन खुलने के बाद क्या हम एहतियात बरतेंगे? पहली लहर के बाद हम बेफिक्र हो गए थे। अब क्या होगा? तीसरी लहर का भी अंदेशा है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरी लहर के पीछे केवल अनलॉक ही कारण नहीं है। पहली लहर के बाद अनलॉक पिछले साल जून-जुलाई में शुरू हुआ था। सितम्बर में गिरावट शुरू हुई, तबतक काफी अनलॉक हो चुका था। अनलॉक के बावजूद गिरावट जारी रही।
हम बेफिक्र थे,
पर दूसरी लहर के पीछे केवल यही एक कारण
नहीं था। दोबारा तेज़ी फ़रवरी के बाद आई। इसकी वजह वह नया वेरिएंट था, जो नहीं होता, तो बात कुछ और होती। इस साल मार्च के
महीने में खबर थी कि पंजाब में जीनोम टेस्टिंग के लिए राज्य से नेशनल सेंटर फार
डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) को भेजे गए 401 सैंपलों में से 326 में वायरस का यूके
वेरिएंट (बी.1.1.7) पाया गया। यह वेरिएंट कहाँ से आया?
वैक्सीन
ही बचाव है
तीसरी लहर आई,
तो उसे कैसे रोकेंगे? हम सावधान रहे, तो वह कभी नहीं आएगी।
उसे रोकने का एकमात्र रास्ता वैक्सीन है। पर हमने किया क्या? 16 जनवरी से हमारे यहाँ टीकाकरण की
शुरुआत हुई। सबसे पहले डॉक्टरों को टीका लगाने में प्राथमिकता दी गई, लेकिन आज तक सभी डॉक्टरों को वैक्सीन की
दोनों डोज़ नहीं लगी हैं। डॉक्टरों के अलावा दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिस वालों, सार्वजनिक परिवहन से जुड़े लोगों,
रेल कर्मियों, एयरलाइंस स्टाफ और उन सब लोगों को पहले
वैक्सीन लगनी चाहिए, जो
सार्वजनिक सेवा से जुड़े हैं। स्कूलों को खोलना है, तो अध्यापकों और सभी कर्मचारियों को
टीके लगने चाहिए।
सरकार ने दावा किया
है कि साल के अंत तक देश में 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन की
दोनों डोज लग जाएंगी। इसके लिए सरकार ने वैक्सीन की उपलब्धता का पूरा रोडमैप पेश
किया है। इसके मुताबिक 18 साल से अधिक उम्र के लगभग 95 करोड़ लोगों को दोनों डोज
देने के लिए जितनी चाहिए, उससे
ज्यादा यानी 216 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध होगी। इस दावे की व्यावहारिकता का पता अगले
महीने लगेगा, जब एकबारगी टीकाकरण
में तेजी आएगी।
ब्लैक
फंगस
भारत में ब्लैक फंगस
का खतरा भी बढ़ा है। स्टीरॉयड और अन्य दूसरी दवाओं के अंधाधुंध इस्तेमाल से ब्लैक,
ह्वाइट और यलो फंगस समस्या पैदा होती है। इसे लेकर कई तरह की भ्रामक जानकारियां फैल
रही हैं। जितना इन्हें खतरनाक बताया जा रहा है वैसा नहीं है। एहतियात बरतने से इससे
लड़ा जा सकता है। लोगों को मास्क को बदलते रहना जरूरी है। एक ही मास्क लंबे समय तक
लगाने से लोगों को म्यूकोर माइकोसिस हो रहा है। हाईजीन यानी स्वच्छता बरतें। खून
में शुगर की मात्रा अधिक हो और प्रतिरोधक क्षमता कम हो तो इस फंगस को शरीर में
भोजन मिल जाता है। यह हवा में, पौधों
में, बाथरूम में और हमारे
आसपास कहीं भी हो सकता है, पर संक्रमण उसी को होता है, जिसकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो।
वायरस
आया कहाँ से
अमेरिका के
राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले बुधवार को अपने देश की खुफिया एजेंसियों से कहा कि
वे कोरोना वायरस की उत्पत्ति पर जांच में तेजी लाएं। उन्होंने कहा कि खुफिया
जानकारी के अनुसार दो संभावित परिदृश्य हैं। एक, वायरस संक्रमित जानवर के संपर्क से
इंसानों तक फैला। दूसरे, यह
प्रयोगशाला में हुई दुर्घटना से लीक हुआ। उन्होंने चीन से अंतरराष्ट्रीय जांच में
सहयोग करने का आह्वान भी किया और 90 दिनों के भीतर जांच के नतीजे मिलने की उम्मीद
जताई है।
बाइडेन का आदेश ऐसे
मौके पर आया है जब कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि महामारी की शुरुआत के एक महीने
पहले वुहान की प्रयोगशाला में काम करने वाले कुछ शोधकर्ता बीमार पड़ गए थे। बाइडेन
की टिप्पणी के फौरन बाद, अमेरिका
में चीनी राजदूत ने लैब लीक थ्योरी को साजिश बताया। उन्होंने हालांकि अमेरिका का
नाम नहीं लिया गया, पर
इतना कहा कि कुछ राजनीतिक ताकतें वायरस के स्रोत का दोष हमारे मत्थे मढ़ने का खेल,
खेल रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने
इस साल के शुरू में वायरस की उत्पत्ति की जांच शुरू की थी और एक जांच दल को वुहान
भेजा गया था, लेकिन दल स्रोत को निर्धारित नहीं कर सका। लेकिन उस टीम ने जांच के
बाद कहा कि लैब से वायरस का प्रसार नामुमकिन है।
भारत ने पहली बार
आधिकारिक रूप से इस वायरस की उत्पत्ति की जाँच का समर्थन किया है। विदेश मंत्रालय
ने कहा है कि डब्लूएचओ की रिपोर्ट इस रिसर्च का पहला चरण था। किसी फैसले तक
पहुंचने के लिए और अध्ययन की जरूरत है। इस बीच यूरोपीय संघ ने इस विषय स्वतंत्र
जाँच का एक मसौदा तैयार किया है, जिसे डब्ल्यूएचओ में विचार के लिए भी बढ़ाया है।
महामारी
से छुटकारा
अंतरराष्ट्रीय
मुद्राकोष के रुचिर अग्रवाल और गीता गोपीनाथ ने महामारी के खात्मे का एक प्रस्ताव बनाया
है। इसके अनुसार इस साल के अंत तक दुनिया की 40 फीसदी और अगले साल जुलाई तक 60
फीसदी आबादी का वैक्सीनेशन हो जाना चाहिए। साथ ही बड़े स्तर पर टेस्टिंग और
ट्रेसिंग का काम चलाया जाए। इस अध्ययन के अनुसार इस काम की कुल लागत होगी करीब 9
अरब डॉलर यानी करीब प्रति व्यक्ति डेढ़ डॉलर या करीब 100 रुपये। यह निहायत छोटी
रकम है। इतने छोटे निवेश पर दुनिया में इतना बड़ा परिणाम कभी हासिल नहीं हुआ है।
आईएमएफ के अनुसार
अक्तूबर 2019 से अप्रेल 2021 के बीच कोविड-19 ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को 16
ट्रिलियन डॉलर की चोट लगी है। यदि महामारी जारी रही, तो इसकी कीमत और ज्यादा होगी।
देखें कि अतीत में महामारियाँ कैसे रुकीं। एक सदी पहले स्पेनिश फ्लू फैलाने वाला वायरस
कहीं गया नहीं था। उसका वंशज है आधुनिक एच1एन1 वायरस, जो शक्ल बदल कर आया है।
मनुष्यों ने अतीत में भी वायरसों के प्रकोप से अपनी रक्षा की। वायरस खत्म नहीं
हुए, पर उनका असर कम हो गया। वे मामूली बीमारियाँ ही फैला पाते हैं। इंसान और वायरसों
का यह द्वंद्व हमेशा चलेगा।
दुनिया में उच्च आय
वर्ग के देशों की कुल आबादी है 1.2 अरब, मध्य आय वर्ग के देशों की आबादी 1.2 अरब,
भारत और चीन की आबादी करीब-करीब बराबर यानी 1.4 और 1.4 यानी 2.8 अरब मानें और निम्न आय वर्ग के
92 देशों की आबादी 2.5 अरब यानी कुल मिलाकर 7.7 अरब लोगों को अगले साल के अप्रेल तक
वैक्सीन देने की योजना दुनिया को बनानी होगी। ऐसा सम्भव हुआ, तो इस महामारी से
छुटकारा मिल जाएगा। सवाल है कि जैसे मुद्राकोष के अर्थशास्त्री वैश्विक वैक्सीनेशन
की परिकल्पना कर रहे हैं क्या वैसा वैश्विक स्वास्थ्य के लिए नहीं किया जा सकता? किया जा सकता है, पर उसके लिए दुनिया की
समझ विकसित करनी होगी।
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