विदेशमंत्री एस जयशंकर रविवार को अमेरिका के दौरे पर पहुंचे। इस दौरान वे संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुटेरेश से आज सुबह (भारतीय समय से शाम) मुलाकात करेंगे और उसके बाद वॉशिंगटन डीजी जाएंगे जहां अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन से उनकी भेंट होगी। इस साल जनवरी में राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यभार संभालने के बाद भारत के किसी वरिष्ठ मंत्री का अमेरिका का यह पहला दौरा है। 1 जनवरी 2021 को भारत के संरा सुरक्षा का सदस्य बनने के बाद जयशंकर का पहला दौरा है। दौरे का समापन 28 मई को होगा।
भारत-चीन सम्बन्धों
में आती गिरावट, पश्चिम एशिया में पैदा हुई गर्मी, अफगानिस्तान से अमेरिका की
वापसी और भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर कई तरह के कयासों के मद्देनज़र यह दौरा
काफी महत्वपूर्ण है। इन बातों के अलावा वैश्विक महामारी और खासतौर से वैक्सीन
वितरण भी इस यात्रा के दौरान महत्वपूर्ण विषय होगा। शायद सबसे महत्वपूर्ण कारोबारी
मसले होंगे, जिनपर आमतौर पर सबसे कम चर्चा होती है।
कुल मिलाकर
भारत-अमेरिका के बीच द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक रिश्तों का यह सबसे
महत्वपूर्ण दौर है। चतुष्कोणीय सुरक्षा-व्यवस्था यानी क्वॉड ने एकसाथ तीनों आयामों
पर रोशनी डाली है। दोनों देशों के बीच जो नई ऊर्जा पैदा हुई है, उसके व्यावहारिक
अर्थ अब स्पष्ट होंगे। विदेशी मामलों के विशेषज्ञ सी
राजा मोहन ने आज के इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि अभी तक उपरोक्त तीन
विषयों को अलग-अलग देखा जाता था।
भारत की वैश्विक अभिलाषाओं के खुलने और राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा ट्रंप प्रशासन के एकतरफा नजरिए को दरकिनार करने के कारण ये तीनों मसले करीब आ गए हैं। दूसरी तरफ वैश्विक मामलों में पश्चिम के विरोध की भारतीय नीति अब अतीत की बात हो गई है। अब हम यूरोपियन गठबंधन और अमेरिका के साथ हैं।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र
को लेकर अमेरिका की नई समझ के कारण भारत और अमेरिका के बीच क्षेत्रीय सहयोग की
सम्भावनाएं पैदा हुई हैं। अतीत में क्षेत्रीय मसले ही, चाहे वे दक्षिण एशिया से जुड़े हों या
समूचे शिया से, दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बनते थे। अब चतुष्कोणीय सुरक्षा-व्यवस्था
क्षेत्रीय मसलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। विदेशमंत्री की इस यात्रा के
दौरान महामारी से लड़ाई भी एक महत्वपूर्ण विषय होगा।
अतीत में भारत और
अमेरिका के वैश्विक-दृष्टिकोणों में समानता नहीं रही है, पर अब दोनों एक-दूसरे के
करीब आ रहे हैं। दूसरी तरफ जो बाइडेन के नेतृत्व में अमेरिका की नीतियों में भी
बदलाव आ रहा है। जहाँ ट्रंप प्रशासन ने दुनिया की समस्याओं की तरफ पीठ कर ली थी,
वहीं बाइडेन ने बहुपक्षीय-संस्थाओं में अमेरिकी भूमिका को पुनर्स्थापित किया है। इस दौरान चीन ने इस
बात का प्रचार शुरू किया है कि अमेरिका का पराभव हो रहा है। बाइडेन ने घोषणा की है
कि अमेरिका अपनी सर्वोच्चता को कम नहीं होने देगा। चीन हमारी जगह नहीं ले सकेगा।
उनके इस मंतव्य को रिपब्लिकन पार्टी का समर्थन भी हासिल है। ट्रंप की नीतियों के
कारण पिछले चार वर्षों में अमेरिका के मित्र और सहयोगी उससे दूर होने लगे थे। अब
वे वापस आ रहे हैं।
भारत इस मामले में
बेहतर स्थिति में है। बाइडेन को लेकर भारत की समझ बेहतर है। उनके प्रशासन से जुड़े
काफी लोग भारत के साथ जुड़े रहे हैं। हालांकि शीत-युद्ध के दौर में भारत और
अमेरिका के विचार ज्यादातर वैश्विक मसलों पर एक-दूसरे के विपरीत होते थे।
शीत-युद्ध खत्म होने के बाद भारत ने वैश्विक प्रश्नों पर चीन और रूस के नजरिए पर
चलने की कोशिश की। यह कहा गया कि भारत और चीन के रिश्ते वैश्विक-मसलों में सहयोग
के सहारे विकसित होंगे, पर चीन ने जब न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप और सुरक्षा परिषद
की स्थायी सदस्यता के मामलों में अड़ेगा लगाया, तो स्थिति बदली।
इतना ही नहीं अगस्त,
2019 में जब भारत ने जम्मू-कश्मीर की सांविधानिक स्थिति में बदलाव किया, तो चीन ने
सुरक्षा परिषद के मार्फत हस्तक्षेप करने की कोशिश भी की। दूसरी तरफ वह सीमा-पार
आतंकी गतिविधियों को लेकर पड़ रहे वैश्विक दबाव से पाकिस्तान को बचाने की कोशिश भी
करता रहा। नाभिकीय-शक्ति के मामले में अमेरिका ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर
अलग-थलग पड़ने से बचाया और सुरक्षा परिषद में जब चीन ने कश्मीर का मामला उठाया, तब
फ्रांस ने भारत की सहायता की।
विदेशमंत्री की इस
यात्रा में जलवायु परिवर्तन और आपसी व्यापार दो महत्वपूर्ण विषय हैं। हाल में
बाइडेन के विशेष दूत जॉन कैरी की भारत यात्रा के दौरान इस विषय पर विमर्श हुआ था।
दूसरी तरफ समय आ गया है कि दोनों देश आपसी व्यापार को लेकर अपने मतभेदों को दूर
करें। राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (2001-09) ने दोनों देशों के रिश्तों के सुधारने के
लिए जबर्दस्त भूमिका निभाई थी। बराक ओबामा (2009-17) ने वैश्विक मसलों, खासतौर पर
जलवायु परिवर्तन के सवाल पर दोनों देशों के बीच सहमति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई थी। अब जो बाइडेन भी वैश्विक-प्रश्नों पर दोनों देशों का मतैक्य बनाने का
प्रयास कर रहे हैं।
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