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Friday, April 9, 2021

पाकिस्तान का कश्मीर पर पहला हमला अर्थात ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’

 


।।तीन।।

कश्मीर का विलय हो या नहीं हो और वह स्वतंत्र रहे या किसी के साथ जाए, इन दुविधाओं के कारण महाराजा हरिसिंह ने स्वतंत्रता के तीन दिन पहले 12 अगस्त 1947 को दोनों देशों के सामने एक स्टैंडस्टिल समझौते का प्रस्ताव रखा। पाकिस्तान ने इस समझौते पर दस्तखत कर दिए, पर भारत ने नहीं किए। भारत इसपर ज्यादा विचार चाहता था और इसके लिए उसने महाराजा को दिल्ली आकर बातचीत करने का सुझाव दिया। वीपी मेनन ने लिखा है, पाकिस्तान ने स्टैंडस्टिल समझौते पर दस्तखत कर दिए थे, पर हम इसके निहितार्थ पर विचार करना चाहते थे। हमने रियासत को अकेला ही रहने दिया …। भारत सरकार की तत्काल कश्मीर में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। राज्य के सामने अपनी कई तरह की समस्याएं थीं। सच पूछो तो हमारे हाथ भी घिरे हुए थे। कश्मीर के बारे में सोचने का वक्त ही कहाँ था।1

उधर पाकिस्तान ने स्टैंडस्टिल समझौते पर दस्तखत करने के बावजूद कुछ समय बाद ही जम्मू-कश्मीर की आर्थिक और संचार से जुड़ी नाकेबंदी कर दी। हर तरह की आवश्यक सामग्री खाद्यान्न, नमक, पेट्रोल वगैरह की सप्लाई रोक दी गई। उधर भारत कश्मीर के महाराजा से इस बाबत कोई विचार-विमर्श कर पाता, हमला शुरू हो गया। परिस्थितियाँ तेजी से बदल गईं।

24 अक्तूबर, 1947 को गवर्नर जनरल और स्याम के विदेशमंत्री नई दिल्ली में पंडित जवाहर लाल नेहरू के घर पर रात्रिभोज के लिए आ रहे थे। लॉर्ड माउंटबेटन को पंडित नेहरू ने बताया कि खबरें मिली हैं कि कश्मीर पर पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के कबायलियों ने हमला कर दिया है। स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए लॉर्ड माउंटबेटन ने अगली सुबह 11 बजे डिफेंस कमेटी की विशेष बैठक बुला ली। वहाँ भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ की आधिकारिक रिपोर्ट भी आ चुकी थी, जिन्हें पाकिस्तानी सेना के रावलपिंडी स्थित हैडक्वार्टर्स ने जानकारी दी थी, तीन दिन पहले पश्चिम से करीब 5000 कबायलियों ने कश्मीर में प्रवेश किया है और श्रीनगर की ओर बढ़ते हुए उन्होंने मुजफ्फराबाद शहर में लूटपाट और आगज़नी की है।2 सन 1947 में पाकिस्तानी हमले की यह पहली रिपोर्ट थी।

पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमले की योजना पर काफी तैयारी की थी। लगता यह है कि इसे स्वतंत्रता मिलने के पहले से ही तैयार किया जा रहा था। इस रणनीति को दो सतहों पर तैयार किया गया था। एक पश्चिमोत्तर के  कबायलियों के स्तर पर और दूसरी पाकिस्तानी सेना के स्तर पर। इस हमले का कोड नाम था ऑपरेशन गुलमर्ग। इस योजना का विवरण पाकिस्तान के कई लेखकों ने दिया है। इनमें ऐसे लोग भी हैं, जो इस योजना में भागीदार रहे। खासतौर से इनमें मेजर जनरल अकबर खान का नाम लिया जा सकता है, जिन्हें इस योजना के बनाने और संचालित करने का श्रेय दिया जा सकता है। इन्होंने रेडर्स इन कश्मीर नाम से किताब भी लिखी, जिसमें इन बातों का विवरण दिया है।

मेजर जनरल अकबर खान ने इसके लिए अपना उपनाम रखा जनरल तारिक।यह नाम हजार साल पुराने एक अरब सेनापति का था, जिसने स्पेन पर धावा बोला था। उस वक्त अकबर खान ब्रिगेडियर थे। उन्होंने लिखा है, बँटवारे के कुछ हफ्ते बाद की बात है, (प्रधानमंत्री) लियाकत अली की ओर मियाँ इफ्तिखारुद्दीन ने मुझे कश्मीर में कार्रवाई का एक प्लान बनाने को कहा। मैंने देखा कि सेना के पास नागरिक पुलिस के नाम पर 4,000 राइफलें थीं। इन्हें स्थानीय लोगों को सौंपा जा सके, तो कश्मीर में सही जगहों पर हथियारबंद बगावत हो सकती है। मैंने एक योजना बनाकर इफ्तिखारुद्दीन को सौंप दी। फिर मुझे लियाकत अली के साथ लाहौर में एक मीटिंग में बुलाया गया, जहाँ इस योजना को मंजूरी मिली, जिम्मेदारियाँ सौंपी गईं और आदेश जारी हुए। यह सब फौज से छिपाकर रखना था।3

1 V.P. Menon, The Story of the Integration of the Indian States (Calcutta: Orient Longmans, 1955), p.395.

2 H.V. Hodson, The Great Divide. Britain-India Pakistan (Karachi: Oxford University Press, 1969), p.446.

3 Brig.(retd.), A.R. Siddiqi, "Interview with Maj. Gen. Akbar Khan", Defence Journal (Karachi, June-July 1984), p.69.


कल पढ़ें क्या था ऑपरेशन गुलमर्ग

1 comment:

  1. मैंने अपनी इस पोस्ट को फेसबुक पर डाला, तो मित्र विनय श्रीकर ने जो प्रतिक्रिया दी उसे मैं नीचे लगा रहा हूँ। सम्भव हुआ, तो इस बात को भी आगे बढ़ाऊँगा, क्योंकि एक वस्तुनिष्ठ नजटरिया तैयार करने के लिए इसे भी सामने रखना जरूरी है। उन्होंने लिखा:

    कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि पाकिस्तान से आने वाले ये कबायली हमलावर थे या वो मुसलमानों की हिफ़ाज़त के लिए आये थे ? जम्मू-कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक थे, जबकि उसके शासक महाराजा हरि सिंह हिंदू थे। 1930 के बाद से अधिकारों के लिए मुसलमानों के आंदोलनों में बढ़ोतरी हुई। अगस्त 1947 में देश के बंटवारे के बाद भी यह रियासत हिंसा की आग से बच नहीं पायी। हिन्दुओं की रक्षा के लिए पंजाब से जम्मू गये हिंदू वहां हुए बलात्कारों की भयानक कहानियां बताते हैं। जम्मू में हिंदू समुदाय के लोग अपने मुसलमान पड़ोसियों के ख़िलाफ़ हो गये। कश्मीर सरकार में वरिष्ठ पदों पर रह चुके इतिहासकार डॉ. अब्दुल अहद बताते हैं कि पख़्तून कबायली पाकिस्तान से मदद के लिए आए थे, हालांकि उसमें कुछ 'दुष्ट लोग' भी शामिल थे। वह कहते हैं, "15 अगस्त के बाद मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाओं में तेज़ी हुई।" इसके आगे अहद बताते हैं, "पाकिस्तान की ओर से मुजाहिदीन, जनजाति, फ़रीदी, पठान और पेशावरी लोग आज़ाद सरकार की मदद करने आए थे। पुंछ और मुज़फ़्फ़राबाद के लोगों ने आज़ाद सरकार की घोषणा की थी।" उधर, प्रोफ़ेसर सिद्दीक़ वाहिद इस बात पर सहमत होते हैं कि पाकिस्तानी कबायलियों का हमला जम्मू में जारी अशांति का जवाब था। वह कहते हैं, "पाकिस्तान बेचैन हो गया था और उसने सेना की वर्दी में मुजाहिदीन या पठानों को भेजा जिसे तथ्यात्मक रूप से सही माना जाता था लेकिन बाद में परिस्थितियां अस्पष्ट हो गईं।" परिस्थितियां अस्पष्ट हो सकती हैं लेकिन बदनामी के कारण पाकिस्तानी कबायलियों की कार्रवाई के बारे में कभी ज़्यादा चर्चा नहीं हुई।
    स्रोत− बीबीसी

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