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Tuesday, April 6, 2021

भारत-अमेरिका और रूस के रिश्ते कसौटी पर


भारत के अमेरिका के साथ रिश्तों के अलावा रूस के साथ रिश्ते भी इस समय कसौटी पर हैं। रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव दो दिवसीय यात्रा पर सोमवार रात दिल्ली पहुंच गए। उनकी यह यात्रा तब हो रही है जब दोनों देशों के रिश्तों में तनाव के संकेत हैं। लावरोव के कुछ तीखे बयान भी हाल में सुनाई पड़े हैं। लावरोव की आज मंगलवार को विदेशमंत्री एस जयशंकर से मुलाकात हो रही है। इसमें तमाम द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा ब्रिक्स, एससीओ और आरआईसी (रूस, भारत, चीन) जैसे संगठनों की भावी बैठकों को लेकर भी चर्चा होगी। एयर डिफेंस सिस्टम एस-400 को लेकर भी चर्चा होगी।

सोमवार को ही अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन कैरी दिल्ली आए हैं। वे भारत सरकार, प्राइवेट सेक्टर व एनजीओ  के प्रतिनिधियों से मुलाकात करेंगे। कैरी 1 से 9 अप्रैल के बीच अबू धाबी, नई दिल्ली और ढाका की यात्रा पर निकले हैं। आगामी 22-23 अप्रैल के बीच जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका द्वारा आयोजित 'नेताओं के शिखर सम्मेलन' और इस वर्ष के अंत में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (सीओपी26) से पहले कैरी  विचार विमर्श के लिए इन देशों के दौरे पर हैं। 

इन दोनों विदेश मंत्रियों के दौरों के कारण आज दिल्ली में काफी गहमा-गहमी रहेगी। भारत की कोशिश होगी कि अफगानिस्तान में चल रही शांति समझौते की प्रक्रिया को लेकर रूस के पक्ष को समझा जाए। पिछले महीने मॉस्को में हुई बैठक में रूस ने भारत को नहीं बुलाया था। भारत की यात्रा के बाद लावरोव सीधे इस्लामाबाद जाएंगे। वर्ष 2012 के बाद रूस का कोई विदेश मंत्री पाकिस्तान की यात्रा पर जाएगा, लेकिन यह पहली बार है कि रूस का कोई बड़ा नेता भारत आने के बाद पाकिस्तान की यात्रा पर जा रहा है। ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने लावरोव की यात्रा का जो एजेंडा सोमवार को जारी किया, उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात का जिक्र नहीं है। ऐसा हुआ, तो यह बात हैरत वाली होगी, क्योंकि ज्यादातर देशओं के विदेशमंत्री दिल्ली आते हैं, तो प्रधानमंत्री से भी मिलते हैं।

अमेरिका में जो बाइडेन के चुनाव जीतने के बाद अंदेशा था कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चार देशों के समूह क्वाड पर अमेरिकी नीतियों में बदलाव आ सकता है। ऐसा हुआ नहीं। यानी के अमेरिका के दोनों राजनीतिक दल इस मामले में एक सतह पर हैं। मूलतः यह समूह चीन की लगाम कसने के लिए बना हुआ लगता है, पर इसकी औपचारिक घोषणाओं में ऐसी बात कभी नहीं कही गई। हाल में इस समूह से जुड़े चारों राष्ट्राध्यक्षों के वर्चुअल सम्मेलन के बाद संयुक्त बयान जारी किया गया, जिसमें एक दृष्टि है, पर चीन का जिक्र नहीं। दूसरी तरफ दक्षिण चीन सागर और हांगकांग में सफलता का स्वाद चखने के बाद चीन के हौसले बढ़े हैं। वह ताइवान को अपना निशाना बना सकता है। लद्दाख और पूर्वी चीन सागर में भी उसकी दुर्भावनाएं खत्म हुई नहीं हैं।

भारत के दृष्टिकोण से क्वाड को लेकर कुछ सवाल इन दिनों उठ रहे हैं। कुछ लोग इसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र का नेटो मान रहे हैं, पर इससे जुड़े चारों देश अभी तक ऐसी कोई बात कह नहीं रहे हैं। चीन से जितना बड़ा खतरा भारत और जापान को है, उतना अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को नहीं। चीन और रूस का आरोप है कि अमेरिका ने भारत को चीन के खिलाफ खड़ा किया है। पर इसके पीछे भारत के सामरिक हित भी जुड़े हैं।

अमेरिका का मुख्य उद्देश्य गैर-सामरिक है। वह चीन को काबू में रखना चाहता है। वह एक तरफ चीन पर दबाव बना रहा है, वहीं दूसरी तरफ उसके साथ रिश्ते सामान्य बनाने का प्रयास भी कर रहा है। क्वाड नेताओं से फोन पर वार्ता के बाद जो बाइडेन ने 10 फरवरी को चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से दो घंटे तक फोन पर बात की। इसके बाद अलास्का के एंकरेज शहर में दोनों देशों की बैठक हुई। इस बैठक में काफी कड़वी बातें हुईं, पर इंतजार करना होगा कि यह कहानी कहाँ तक जाती है।

भारत को सबसे पहले सामरिक नजरिए से चीन के साथ रिश्तों को देखना चाहिए। केवल क्वाड भारत की सुरक्षा का समाधान नहीं है। जापान और ऑस्ट्रेलिया की तरह भारत के ऊपर अमेरिका की सुरक्षा-छतरी नहीं है।  अमेरिका पर पूरी तरह भरोसा भी नहीं किया जा सकता। सन 2012 में चीन ने स्कारबोरो शो पर कब्जा कर लिया और फिलीपींस की मदद के लिए अमेरिका आगे नहीं आया। इससे चीन को कृत्रिम-द्वीपों के काम कार्यक्रम को आगे बढ़ाने और दक्षिण चीन सागर पर अपनी उपस्थिति को बेहतर बनाने में मदद मिली। भारत को अपनी सामर्थ्य को भी बनाकर रखना होगा। उधर कहा यह भी जा रहा है कि भारत को नेटो के साथ सामरिक रिश्ते बनाने चाहिए। फिलहाल आज लावरोव की यात्रा पर नजर रखने की जरूरत है।

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (07-04-2021) को  "आओ कोरोना का टीका लगवाएँ"    (चर्चा अंक-4029)  पर भी होगी। 
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    मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। परन्तु प्रसन्नता की बात यह है कि ब्लॉग अब भी लिखे जा रहे हैं और नये ब्लॉगों का सृजन भी हो रहा है।आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
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