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Monday, April 26, 2021

क्या वैक्सीन ताउम्र सुरक्षा की गारंटी है?


कोविड-19 का टीका लगने के बाद शरीर में कितने समय तक इम्यूनिटी बनी रहेगी? यह सवाल अब बार-बार पूछा जा रहा है। क्या हमें दुबारा टीका या बूस्टर लगाना होगा? क्या डोज़ बढ़ाकर इम्यूनिटी की अवधि बढ़ाई जा सकती है? क्या दो डोज़ के बीच की अवधि बढ़ाकर इम्यूनिटी की अवधि बढ़ सकती है? ऐसे तमाम सवाल हैं।

इन सवालों के जवाब देने के पहले दो बातों को समझना होगा। दुनिया में कोविड-19 के वैक्सीन रिकॉर्ड समय में विकसित हुए हैं और आपातकालीन परिस्थिति में लगाए जा रहे हैं। इनका विकास जारी रहेगा। दूसरे प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में इम्यूनिटी का एक स्तर होता है। बहुत कुछ उसपर निर्भर करेगा कि टीके से शरीर में किस प्रकार का बदलाव आएगा।

दुनिया में केवल एक प्रकार की वैक्सीन नहीं है। कोरोना की कम से कम एक दर्जन वैक्सीन दुनिया में सामने आ चुकी हैं और दर्जनों पर काम चल रहा है। सबके असर अलग-अलग होंगे। अभी डेटा आ ही रहा है। फिलहाल कह सकते हैं कि कम से कम छह महीने से लेकर तीन साल तक तो इनका असर रहेगा।

कम से कम छह महीने

हाल में अमेरिकी अखबार वॉलस्ट्रीट जरनल ने इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की, तो विशेषज्ञों ने बताया कि हम भी अभी नहीं जानते कि इसका पक्का जवाब क्या है। अभी डेटा आ रहा है, उसे अच्छी तरह पढ़कर ही जवाब दिया जा सकेगा। दुनिया में फायज़र की वैक्सीन काफी असरदार मानी जा रही है। उसके निर्माताओं ने संकेत दिया है कि उनकी वैक्सीन का असर कम से कम छह महीने तक रहेगा। यानी इतने समय तक शरीर में बनी एंटी-बॉडीज़ का क्षरण नहीं होगा। पर यह असर की न्यूनतम प्रमाणित अवधि है, क्योंकि परीक्षण के दौरान इतनी अवधि तक असर रहा है।

 

हाल में न्यू इंग्लैंड जरनल ऑफ मेडिसन (एनईजेएम) में मॉडर्ना वैक्सीन लेने वालों से जुड़े एक अध्ययन में पता लगा कि यह क्षमता छह महीने से ज्यादा समय तक भी बनी रहती है। इसका मतलब क्या यह हुआ कि असर छह महीने या उससे कुछ ज्यादा समय तक रहेगा? नहीं, ऐसा नहीं कह सकते। पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर स्कॉट हेंस्ले का कहना है कि हमारे पास छह महीने का डेटा ही है, इसलिए हम कह रहे हैं कि छह महीने तक एंटी-बॉडीज़ रहेंगी। हो सकता है कि अब से छह महीने बाद हम कहें कि साल भर तक असर रहेगा।

या ताउम्र?

वस्तुतः आने वाला समय बताएगा कि असर कितनी देर तक रहेगा। हाँ यह कहा जा सकता है कि वैक्सीन के कारण वायरस से शरीर का प्रतिरक्षण लम्बे समय तक बना रहेगा। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास मेडिकल ब्रांच में एक्सपैरिमेंटल पैथोलॉजी ग्रेजुएट प्रोग्राम के डायरेक्टर जेरे मैकब्राइड का कहना है कि ये वैक्सीन दो से तीन साल के लिए कोविड-19 संक्रमण के विरुद्ध इम्यूनिटी बढ़ा सकती हैं।

आपके शरीर में इम्यूनिटी वैक्सीन से आती है और वायरस के संक्रमण के कारण भी पैदा होती है। इम्यूनिटी ताउम्र रहेगी या संक्रमण दुबारा हो सकता है, इसके बारे में सुस्पष्ट डेटा नहीं है। दूसरे आपके शरीर में जो इम्यूनिटी है, वह वायरस के एक रूप से प्रतिरक्षण करती है, जबकि उसी वायरस का म्यूटेंट या बदला हुआ रूप जब आक्रमण करता है, तब भी संक्रमण सम्भव है। यह अलग बात है कि नए संक्रमण का असर उतना गहरा नहीं होगा, जितना पहला था।

क्या वायरस का नया वेरिएंट वैक्सीन को प्रभावहीन कर देगा? इस सवाल के जवाब में वर्सेस्टर, मैसाच्युसेट्स के होली क्रॉस कॉलेज की इम्यूनोलॉजिस्ट एन शीही के अनुसार कोई वेरिएंट वैक्सीन के प्रतिरक्षण को कम कर सकता है, पर पूरी तरह खत्म नहीं कर सकता। किसी को कोविड-19 का संक्रमण हुआ भी, तो वह उतना खतरनाक नहीं होगा।

कैलिफोर्निया विवि में मेडिसन की प्रोफेसर मोनिका गांधी वॉल स्ट्रीट जरनल को बताया कि सन 2020 में विज्ञान पत्रिका नेचर के एक अध्ययन में पता लगा कि कोविड-19 जैसे ही एक और वायरस सार्स से पीड़ित एक मरीज के शरीर में 17 साल बाद तक इम्यूनिटी थी। डॉ गांधी के अनुसार इस बात के साक्ष्य हैं कि यदि एंटी-बॉडीज़ क्षीण हो जाएं, तब भी शरीर में मेमरी बी सेल्स विकसित हो जाते हैं, जो दशकों बाद तक एंटी-बॉडीज़ तैयार करते रहते हैं।

सन 2008 में नेचर के एक और अध्ययन में पता लगा था कि 1918 की इनफ्लुएंज़ा महामारी के दौरान रोगमुक्त हुए व्यक्तियों के शरीर में नौ साल बाद उसी प्रकार का इनफ्लुएंज़ा होने पर मेमरी बी सेल्स एंटी-बॉडीज़ बना रहे थे। बहरहाल अभी विशेषज्ञ कोई भविष्यवाणी करने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि वे तथ्यों के आधार पर ही कोई बात कहना चाहते हैं।

वैक्सीन के बावजूद संक्रमण

हाल में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में 37 डॉक्टरों के संक्रमित होने की खबर मिली। ऐसा ही समाचार लखनऊ के मेडिकल कॉलेज से मिला। इन डॉक्टरों को कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज़ लग चुकी हैं। जो वैक्सीन दस-दस साल के शोध के बाद लगाई जाती हैं, उनपर भी यह बात लागू होती है। वैक्सीन लगने के बाद संक्रमित हो सकते है, लेकिन बीमारी अपेक्षाकृत कम खतरनाक होगी। टीका लगने के बाद भी मास्क पहनना, हाथ धोते रहना, भीड़ में कम जाना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना जरूरी है।

वैक्सीन में भी वायरस जैसे लक्षण होते हैं, जो आपके शरीर की इम्यून-प्रणाली को जगाते हैं। यह जाग्रति छह महीने या साल भर या आजीवन भी रह सकती है। यह व्यक्ति की अपनी इम्यून-प्रणाली पर भी निर्भर करेगा। दूसरे यह अलग-अलग वैक्सीनों पर भी निर्भर करेगा। इसीलिए विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वायरस पर नियंत्रण के लिए वैक्सीन अकेला उपकरण नहीं है।

एक सवाल यह भी पूछा जाता है कि यदि किसी पर कोविड-19 का संक्रमण हो चुका हो, तो क्या उसे भी वैक्सीन लेनी चाहिए? विशेषज्ञों का कहना है कि हाँ। इससे शरीर की प्रतिरक्षा बेहतर होगी। संक्रमण के कारण जो प्रतिरक्षा प्राकृतिक रूप से पैदा हुई है, वह वैक्सीन की मदद से सुदृढ़ होगी। अलबत्ता जिनकी चिकित्सा मोनोक्लोनल एंटी-बॉडीज़ यानी प्लाज़्मा से हुई है, उन्हें अपने इलाज के बाद वैक्सीन लेने के लिए 90 दिन तक रुकना चाहिए।

युवा हो या बुजुर्ग दोनों को कोरोनावायरस से बचाव के लिए वैक्सीन लगवाना जरूरी है। हालांकि, बुज़ुर्गों को पहले टीका लगाया जाना उचित है, क्योंकि उनकी इम्यूनिटी युवाओं की तुलना में कम होती है।

दो डोज़ में अंतराल

इस दौरान एक और सवाल पूछा गया है कि यदि वैक्सीन की दो डोज़ देनी हैं, तो उनके बीच अंतराल कितना होना चाहिए और यदि अंतराल बढ़ाया जाए, तो क्या इससे उसकी प्रभावोत्पादकता बढ़ जाती है? इस सवाल के जवाब में भारत की प्रसिद्ध वैक्सीन विशेषज्ञ डॉ गगनदीप कांग का कहना है कि यह भी वैक्सीन पर निर्भर करता है और इस बात पर भी कि व्यक्ति के शरीर में पहले से एंटी-बॉडीज़ थे या नहीं।

कई बार नवजात शिशुओं के शरीर में माता के गर्भ से ही एंटी-बॉडीज़ होते हैं। ऐसे में शिशु को लाइव वैक्सीन (एक्टिवेटेड) देने का ज्यादा लाभ नहीं होता। इसीलिए हम नवजात शिशु को खतरे का वैक्सीन देने में विलंब करते हैं और इंतजार करते हैं कि नवें महीने तक माँ के शरीर से प्राप्त एंटी-बॉडीज़ खत्म हो जाएं। जहाँ तक एक से ज्यादा डोज़ वाली वैक्सीन का मामला है, आमतौर पर इम्यून सिस्टम को विकसित होने में करीब तीन हफ्ते लगते हैं, पर एंटी-बॉडीज़ को पूरी तरह विकसित होने में आठ हफ्ते तक लग सकते हैं।

वैक्सीन की दूसरी डोज़ के लिए सिद्धांततः अधिकतम समय की कोई सीमा नहीं है। अलबत्ता न्यूनतम तीन या चार सप्ताह होने चाहिए। दोनों डोज़ों के बीच के बीच अंतर ज्यादा होने से बेहतर सुरक्षा मिलती है, तो इसके दो लाभ हैं। एक तो सुरक्षा और दूसरे यदि वैक्सीन की उपलब्धता कम है, तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को टीका मिल सकता है। अभी तमाम बातों पर अध्ययन नहीं हुए हैं। मसलन जिन्हें एक डोज़ मिली है, उनके शरीर में वायरस म्यूटेट कर रहा है या नहीं, इसकी जाँच जटिल विषय है।

हाल में भारत सरकार ने कोवीशील्ड के दोनों डोज़ के बीच के अंतराल को बढ़ाया है। ऐसा दूसरे देशों में भी हुआ है। कनाडा ने सभी वैक्सीनों के लिए अंतराल चार महीने का कर दिया है। चूंकि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन से जुड़े साक्ष्य बता रहे हैं कि दो डोज़ के बीच अंतर बढ़ाने से परिणाम बेहतर आ रहे हैं, इसलिए कई देशों ने अंतर बढ़ा दिया है।

यूके की सिंगल डोज़ स्टडी से पता लगा है कि एक डोज़ ही काफी अच्छा काम कर रही है, इसलिए दूसरी डोज़ को 12 हफ्ते तक बढ़ाया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आठ हफ्ते से ज्यादा के अंतराल की सिफारिश की है। डॉ कांग मानती हैं कि इनएक्टिवेटेड वैक्सीन (जिनमें निष्क्रिय वायरस का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि कोवैक्सीन, उनमें छोटी समयावधि के बाद दो या तीन डोज़ या बूस्टर डोज़ उपयोगी होंगी।

नवजीवन में प्रकाशित

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