भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने सारी दुनिया का ध्यान खींचा है। दो महीने पहले जिस लड़ाई में भारत को दुनियाभर से बधाई-संदेश मिल रहे थे, उसमें तीन हफ्ते के भीतर भारी बदलाव आने से चिंता के बादल हैं। स्कूल खुलने लगे थे, बाजारों में रंगीनी वापस लौट रही थी, मित्रों की लम्बे अरसे बाद मुलाकातें होने लगी थी, वैवाहिक समारोहों से लेकर बर्थडे पार्टियाँ फिर से सजने लगी थीं। मार्च के महीने में हमारे यहाँ हर रोज होने वाले नए संक्रमणों की संख्या घटकर 13,000 के आसपास पहुँच गई थी। जर्मनी और फ्रांस से भी कम। ज्यादातर मामले महाराष्ट्र और दक्षिण में थे। इन उपलब्धियों पर पिछले तीन हफ्ते से चली दूसरी लहर और पिछले हफ्ते खड़े हुए ऑक्सीजन-संकट ने पानी फेर दिया है।
ऑक्सीजन
की किल्लत
सामान्य परिस्थितियों
में देश में मेडिकल-ऑक्सीजन का उपलब्धता को लेकर दिक्कत नहीं है। स्वास्थ्य
मंत्रालय की 15 अप्रेल की प्रेस-विज्ञप्ति के अनुसार कोविड-19 अधिकार प्राप्त
समूह-2 ने ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर घबराहट पैदा न हो, इसके लिए पहले से कार्रवाई शुरू कर दी
थी। 15 अप्रेल को समूह-2 की बैठक में हुए तीन महत्वपूर्ण फैसलों में से सभी
ऑक्सीजन की उपलब्धता को लेकर थे।
देश में प्रतिदिन लगभग 7,127 एमटी ऑक्सीजन की उत्पादन क्षमता है और जरूरत पड़ने पर इस्पात संयंत्रों के पास उपलब्ध अतिरिक्त ऑक्सीजन को भी उपयोग में लाया जा रहा है। 12 अप्रैल को मेडिकल-ऑक्सीजन की खपत 3,842 एमटी थी। कोविड-19 के सबसे ज्यादा सक्रिय मामलों वाले 12 राज्यों को 20, 25 और 30 अप्रैल की अनुमानित मांग को पूरा करने के लिए क्रमशः 4880 एमटी, 5619 एमटी और 6593 एमटी मेडिकल ऑक्सीजन का आबंटन किया गया। पर जरूरत इससे भी काफी आगे निकल गई। एक हफ्ते में अचानक बढ़कर करीब तिगुनी हो गई।
15 अप्रेल को
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने राज्य सरकारों को पत्र लिखा था कि 12
राज्यों ने 20 अप्रेल के लिए ऑक्सीजन की जिस सम्भावित आवश्यकता जताई है, वह 4,880 मीट्रिक टन है। ये 12 राज्य
हैं दिल्ली, उत्तर प्रदेश,
गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, राजस्थान, पंजाब, केरल, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र। इन 12
राज्यों में देश के 83 फीसदी कोविड-19 के मामले हैं। खासतौर से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में माँग और आपूर्ति
में काफी अंतर आ गया।
प्रधानमंत्री
का हस्तक्षेप
संकट की इस स्थिति
में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हस्तक्षेप किया। उन्होंने कैबिनेट
सचिव, गृह तथा स्वास्थ्य
सचिव के साथ भी बात की। उसके बाद गृह-मंत्रालय ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के तह आदेश
जारी किया कि कोई भी राज्य दूसरे राज्य की सप्लाई रोक नहीं सकेगा। राज्यों के बीच
मेडिकल-ऑक्सीजन के परिवहन पर किसी प्रकार के प्रतिबंध लगाए नहीं जा सकेंगे और
परिवहन अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए गए कि वे ऑक्सीजन लेकर जा रहे वाहनों के
निर्बाध अंतर-राज्य आवागमन को सुनिश्चित करें।
वास्तव में यह
आपातकाल है। किसी तरह से सप्लाई आनी चाहिए। इसमें खामी क्या है और यह व्यवस्था
कैसे सुधरेगी, इसपर
विचार कुछ समय बाद करना चाहिए। लोग अदालतों के दरवाजे खटखटा रहे हैं, पर वे समझ नहीं पा रहे हैं कि अदालती
हस्तक्षेप से भी ऑक्सीजन चमत्कारिक तरीके से उपलब्ध नहीं होगी। इतनी भारी किल्लत
का अनुमान किसी को नहीं था। दूसरी तरफ पिछले साल केंद्र सरकार ने अतिरिक्त क्षमता
बनाने के सिलसिले में जो फैसले किए भी थे, तो उन्हें लागू होने में विलंब हुआ।
परिवहन
व्यवस्था
देश में करीब 500
कारखाने हवा से ऑक्सीजन साफ करके उसे तरल रूप में अस्पतालों को देते हैं।
मेडिकल-ऑक्सीजन को ले जाने के लिए विशेष क्रायोजेनिक टैंकरों की जरूरत होती है।
क्रायोजेनिक टैंकर में तरल ऑक्सीजन को माइनस 183 डिग्री सेल्सियस पर रखा जाता है।
एक टैंकर को भरने में करीब दो घंटे का समय लगता है। फिर इनके परिवहन में समय लगता
है। इन्हें बहुत तेज गति से नहीं चलाया जा सकता।
सामान्य परिस्थितियों
में यह व्यवस्था चल रही थी, पर
इस तेज माँग के सामने सारा सिस्टम चरमराने लगा। ज्यादातर अस्पतालों में गैस के
टैंक होते हैं, जहाँ
से पाइपों के माध्यम से गैस वार्डों तक जाती है। लोहे और अल्युमिनियम के सिलेंडरों
से भी काम होता है। देखते ही देखते सब खाली हो गए।
स्वास्थ्य मंत्रालय
ने 50,000 टन मेडिकल ऑक्सीजन आयात करने की घोषणा भी की है। सरकार ने तरल मेडिकल
ऑक्सीजन खरीदने के लिए भारतीय दूतावासों को काम पर लगाया है। विदेश मंत्रालय को
ऑक्सीजन की तत्काल आपूर्ति के लिए गठजोड़ करने के लिए कहा गया है। इस निविदा की
आखिरी तारीख 28 अप्रैल है। दूतावासों ने उन देशों की कंपनियों को पत्र दिए हैं,
जहां वे काम कर रहे हैं। इस रास्ते से
सप्लाई आने में समय लगेगा।
कठोर
सवाल
मान लिया कि इतनी तेज
लहर का अनुमान हमें नहीं था। यह भी मान लिया कि लोगों की लापरवाही के कारण इस लहर
को बढ़ने का मौका मिला, पर
बीमारों को अस्पतालों में जगह न मिलने और ऑक्सीजन के लिए तड़पते लोगों की बेबसी की
अनदेखी कैसे की जा सकती है? सच
है कि 16 जनवरी को शुरू हुए टीकाकरण के बाद भारत ने पहले 10 करोड़ टीके लगाने में
दुनिया के सभी देशों की तुलना में समय कम लगाया, पर टीकों की आपूर्ति में सुस्ती क्यों
आई? मार्च के तीसरे
सप्ताह तक चीजें सही राह पर जा रही थीं।
अब उन कारणों को
खोजना होगा कि दूसरी लहर को रोका क्यों नहीं जा सका। सेरोसर्वे से लेकर जीन
सीक्वेंसिंग के काम में सुस्ती क्यों आई? जीन सीक्वेंसिंग से ही पता लगेगा कि वायरस का विस्तार क्यों हो
रहा है। पिछले साल अप्रेल में जब सरकार ने देश में ऑक्सीजन की किल्लत को स्वीकार
कर लिया था, तब हालात को सुधारा
क्यों नहीं गया? गलियों,
मोहल्लों, बस्तियों और अपार्टमेंटों में ही इस
बीमारी को परास्त किया जा सकता था। उसे आईसीयू, वेंटीलेटरों और ऑक्सीजन सिलेंडरों पर
हावी होने का मौका क्यों मिला?
त्रासदी की जिम्मेदारी
भी किसी को लेनी होगी। ये प्रशासनिक सवाल हैं और इनके जवाब प्रशासनिक-ईमानदारी से
मिलने चाहिए। हाल की रिपोर्ट बता रही हैं कि देश में ऑक्सीजन उत्पादन संयंत्रों की
तादाद बढ़ाने संबंधी आदेश को निविदा तक का सफर तय करने में आठ माह लग गए। केंद्रीय
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 162 प्रेशर स्विंग एड्जॉर्प्शन (पीएसए) संयंत्रों
की योजना थी, लेकिन केवल 33 संयंत्र स्थापित किए गए। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार
मई के अंत तक मात्र 80 प्लांट ही चालू हालत में होंगे। अब सरकार ने 100 अतिरिक्त
प्लांट लगाने का फैसला किया है। इसमें देर नहीं होनी चाहिए।
राजनीतिक
रोटियाँ
इस सुस्ती की पड़ताल
का मतलब यह भी नहीं कि त्रासदी की आँच पर राजनीतिक रोटियाँ सेंकी जाएं। यह समय
हालात पर काबू करने के लिए हो रहे प्रयासों को समर्थन देने का है। जब हालात सुधर
जाएंगे, तब विवेचन करने का
समय मिलेगा। इस समय लोगों को डराने और आतंक का माहौल बनाने की जरूरत नहीं है।
अच्छी बात है कि तमाम सामाजिक संगठन मदद के लिए सामने आए हैं, पर ऑक्सीजन से लेकर दवाओं तक की
चोर-बाजारी भी इसी दौरान हुई है।
भारत के वैक्सीनेशन
कार्यक्रम की सफलता का डंका दुनियाभर में बजने लगा था। इस सफलता पर कोरोना की
दूसरी लहर ने कुछ सवालिया निशान लगाए ही थे कि ऑक्सीजन-संकट खड़ा हो गया। अब सवाल
है कि कोविड-19 के इस तेज हमले का क्या हम सामना कर पाएंगे? क्या भारत का स्वास्थ्य-इंफ्रास्ट्रक्चर
इस हमले का जवाब दे पाएगा? ज्यादा
बड़े सवाल भारत के उस आर्थिक-पुनरोदय से जुड़े हैं, जिसपर देश को बहुत उम्मीदें हैं। पिछले
एक साल में देश ने जो सफलता हासिल की थी, उसपर पानी फिरना नहीं चाहिए।
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