गुरुवार 25 फरवरी को जब भारत और पाकिस्तान की सेना ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर युद्धविराम को लेकर सन 2003 में हुए समझौते का मुस्तैदी से पालन करने की घोषणा की, तब बहुतों ने उसे मामूली घोषणा माना। घोषणा प्रचारात्मक नहीं थी। केवल दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशंस (डीजीएमओ) ने संयुक्त बयान जारी किया। कुछ पर्यवेक्षक इस घटनाक्रम को काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। उनके विचार से इस संयुक्त बयान के पीछे दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व की भूमिका है, जो इस बात को प्रचारित करना नहीं चाहता।
दोनों के बीच बदमज़गी
इतनी ज्यादा है कि रिश्तों को सुधारने की कोशिश हुई भी तो जनता की विपरीत
प्रतिक्रिया होगी। इस घोषणा के साथ कम से कम तीन घटनाक्रमों पर हमें और ध्यान देना
चाहिए। एक, अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन की भूमिका, जो इस घोषणा के फौरन
बाद अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता के बयान से स्पष्ट दिखाई पड़ती है।
अफगानिस्तान में बदलते हालात और तीसरे भारत और चीन के विदेशमंत्रियों के बीच
हॉटलाइन की शुरुआत।
उत्साहवर्धक
माहौल
सन 2003 के जिस समझौते का जिक्र इस वक्त किया जा रहा है, वह इतना असरदार था कि उसके सहारे सन 2008 आते-आते दोनों देश एक दीर्घकालीन समझौते की ओर बढ़ गए थे। पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुर्शीद कसूरी ने अपनी किताब में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में हुई बैठकों का हवाला दिया है। भारतीय मीडिया में भी इस आशय की काफी बातें हवा में रही हैं। नवंबर 2008 के पहले माहौल काफी बदल गया था।
सुधरते रिश्तों का
पहिया उल्टा क्यों चला और भविष्य में बेहतर रिश्तों की संभावना कैसी होगी है, इसे
लेकर कयास हैं। एलओसी पर गोलाबारी रुकने से रिश्तों में चमत्कारिक सुधार भले ही
नहीं हो, पर दोनों ओर रहने वाली आबादी को काफी राहत मिलेगी। भरोसा बढ़ाने वाली दो
बातें और हैं। दोनों देशों के बीच किसी स्तर पर बैक-चैनल बातें चल रही हैं। दूसरे,
डीजीएमओ का फैसला दोनों देशों की एजेंसियों के बीच चर्चा हुए बगैर लागू नहीं हुआ
होगा। और यह चर्चा भी शीर्ष नेतृत्व की अनुमति के बगैर नहीं हुई होगी।
इतना काफी नहीं
समझौते के पीछे
कोई सोच है, तो कुछ और होगा। दोनों देशों में इस समय उच्चायुक्त स्तर के अधिकारी
नहीं हैं। पहले उच्चायुक्तों की नियुक्ति होनी चाहिए। अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370
की वापसी के बाद पाकिस्तान ने अपने उच्चायोग को डाउनग्रेड कर दिया था। अब अपग्रेड
होना बेहतरी का एक संकेत होगा। कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान
सहित 10 पड़ोसी देशों के साथ कोविड-19 प्रबंधन पर एक कार्यशाला में कहा था कि
दक्षिण एशिया का एकीकरण होना चाहिए। बैठक में मौजूद पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने भारत
के रुख का समर्थन किया था।
पाकिस्तान ने भारत
में बनी एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को सबसे पहले अनुमति दी है। खबर यह भी है कि
पाकिस्तान सरकार भारतीय कपास के आयात को जल्द स्वीकृति देने वाली है। यह कपास सड़क
के रास्ते पाकिस्तान जाएगी। पाकिस्तानी वस्त्रोद्योग काफी समय से इसकी माँग कर रहा
है। तमाम पाबंदियों के बावजूद जीवन-रक्षक दवाएं वहाँ भारत से जा रही हैं।
युद्धविराम की
घोषणा के कुछ घंटों के भीतर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि
भारत, पाकिस्तान के साथ
सामान्य पड़ोसी जैसे रिश्ते चाहता है और शांतिपूर्ण तरीके से सभी मुद्दों को
द्विपक्षीय ढंग से सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। खबर है कि पिछले तीन महीने से
बैक-चैनल बातचीत चल रही थी। रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री
के रक्षा मामलों के विशेष सलाहकार मोईद युसुफ के बीच किसी तीसरे देश में मुलाकात
भी हुई है।
बताया यह भी जाता है कि अजित डोभाल और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद
बाजवा के बीच भी सम्पर्क है। लगता है कि दोनों सरकारें इस सम्पर्क को धीरे-धीरे ही
सामने लाना चाहती हैं। वस्तुतः 2003 का युद्धविराम एक महत्वपूर्ण प्रस्थान-बिंदु
था, जहाँ से रिश्तों में बदलाव आना शुरू हुआ था। इसकी पृष्ठभूमि में दोनों देशों
की आगरा-शिखर वार्ता के संकेत थे। वह शिखर सम्मेलन फौरी तौर पर विफल था, पर उसके
सहारे कुछ उम्मीदें जन्म ले गई थीं।
ठहरी गाड़ी
अंतरराष्ट्रीय
घटनाक्रम कुछ इस प्रकार घूमा है कि दक्षिण एशिया की घड़ी की सूइयाँ अटकी रह गई
हैं। मोदी सरकार ने 2014 में
शुरुआत पड़ोस के आठ शासनाध्यक्षों के स्वागत के साथ की थी। पर दक्षिण एशिया में
सहयोग का उत्साहवर्धक माहौल नहीं बना। नवम्बर, 2014 में काठमांडू के दक्षेस शिखर सम्मेलन के बाद से
दक्षेस की नाम के लिए गतिविधि भी नहीं है। काठमांडू के बाद अगला शिखर सम्मेलन
नवम्बर, 2016 में पाकिस्तान
में होना था। भारत, बांग्लादेश
और कुछ अन्य देशों के बहिष्कार के कारण वह शिखर सम्मेलन नहीं हुआ और उसके बाद से
गाड़ी जहाँ की तहाँ रुकी पड़ी है।
बहरहाल बीमारी से
लड़ने की मुहिम इस इलाके में राजनीतिक रिश्तों को बेहतर बना सके, तो इसे उपलब्धि माना जाएगा। पिछले साल
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि दक्षिण एशिया के देशों
के साथ भारत का व्यापार उसके सकल विदेशी व्यापार का 4 फीसदी से भी कम है। यह
स्थिति अस्सी के दशक से है। जबकि इस दौरान चीन ने इस इलाके में अपने निर्यात में
546 फीसदी की वृद्धि की है। सन 2005 में इस इलाके के देशों में उसका निर्यात 8 अरब
डॉलर का था, जो 2018 में 52 अरब डॉलर हो गया था।
दक्षिण एशिया
दुनिया का सबसे कम जुड़ाव वाला (इंटीग्रेटेड) क्षेत्र है। कुछ साल पहले श्रीलंका
में हुई सार्क चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की बैठक में कहा गया कि दक्षिण
एशिया में कनेक्टिविटी न होने के कारण व्यापार सम्भावनाओं के 72 फीसदी मौके गँवा
दिए जाते हैं। इस इलाके के देशों के बीच 65 से 100 अरब डॉलर तक का व्यापार हो सकता
है। यह क्षेत्र बड़ी आसानी से एक आर्थिक ज़ोन के रूप में काम कर सकता है। पर इसकी
परम्परागत कनेक्टिविटी राजनीतिक कारणों से खत्म हो गई है। यह जुड़ाव आज भी सम्भव
है, पर धुरी के बगैर यह जुड़ाव सम्भव नहीं। यह धुरी भारत ही हो सकता है, चीन नहीं।
कभी हाँ, कभी ना
मुम्बई हमले के पहले तक हालात शांति के लिए मुफीद नजर आने लगे थे। फिर 2015
में उफा सम्मेलन के हाशिए पर जो बातचीत हुई थी, उससे सम्भावनाएं फिर बनीं, जो
जनवरी 2016 में पठानकोट प्रकरण के बाद टूटीं, सो अबतक टूटी पड़ी हैं। हालांकि
मुम्बई हमले के एक साल पहले 13 ग्रुपों ने मिलकर तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का गठन कर लिया था,
पर वह पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान के
लिए बड़ा खतरा बनकर नहीं उभरा था।
पाकिस्तानी सिविल सोसायटी हालांकि आज भी बहुत प्रभावशाली नहीं है, पर दिसम्बर 2014 में आर्मी पब्लिक स्कूल, पेशावर के हत्याकांड ने नागरिकों के मन में
खून-खराबे को लेकर वितृष्णा पैदा हुई है। भारत से व्यापार बढ़ाने की कोशिशें वहाँ
का व्यापारी समुदाय एक अरसे से करता रहा है, पर 2019 के पुलवामा-बालाकोट प्रकरण के
बाद दोनों का व्यापार भी ठप हो गया।
भारत-पाकिस्तान
सम्बन्ध अंधेरे रास्ते की तरह हैं। इसमें कई बार समतल जमीन मिलती है और कई बार गड्ढे।
कभी आक्रामक उन्माद और कभी खामोशी। काफी सुधार व्यापारियों के आपसी रिश्तों,
सिनेमा, संगीत, क्रिकेट और ‘ट्रैक टू’ सम्पर्कों
के कारण आता है। संयोग से मई 2014 के बाद से एक देश के पत्रकार की दूसरे देश में
नियुक्ति भी बंद है। अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं का आदान-प्रदान भी खत्म है। फिर भी
जहाँ सम्बंधों को सामान्य बनाने वाली ताकतें काम करती हैं, वहीं रिश्तों को खराब
करने वाले भी सक्रिय रहते हैं। मुम्बई हमले के फौरन बाद 28 नवम्बर 2008 को एक फर्जी फोन करने वाले ने खुद को भारतीय विदेश
मंत्रालय का प्रतिनिधि बताते हुए पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़रदारी को फोन करके युद्ध
की धमकी दे डाली थी।
सेना और सरकार
मुशर्रफ के बाद से
पाकिस्तान में सरकार और सेना एक पेज पर नहीं रहे हैं। पर इस वक्त लगता है कि दोनों
में एकता है। पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा के गत 2 फरवरी के एक बयान का हवाला
भी दिया जा रहा है। जनरल बाजवा ने पाकिस्तानी एयरफोर्स एकेडमी में कहा कि यह वक्त
है कि हमें हरेक दिशा में शांति के प्रयास करने चाहिए। पाकिस्तान और भारत को लम्बे
अरसे से चले आ रहे कश्मीर विवाद का समाधान कर लेना चाहिए। पर्यवेक्षक कहते हैं कि
अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 की वापसी के बाद से पाकिस्तान की ओर से आया सद्भावना
से भरा यह सबसे बड़ा बयान है।
उसके बाद 11 फरवरी
को मोईद युसुफ ने कहा, यदि हमें शांति चाहिए, तो हमें आगे बढ़ना होगा। और यदि आगे
बढ़ना है, तो विवेकशील बनना होगा। उसके बाद 18 फरवरी की वह बैठक हुई, जिसमें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दक्षिण एशिया की एकता की ओर इशारा किया। उसके बाद
भारत ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को श्रीलंका जाने का हवाई रास्ता दिया।
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