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Tuesday, March 23, 2021

पाकिस्तान के साथ शांति स्थापना की ठोस वजह


भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों में सुधार की सम्भावनाओं पर कुछ लेख मेरे सामने आए हैं, जिन्हें पढ़ने का सुझाव मैं दूँगा। इनमें पहला लेख है शेखर गुप्ता का, जिन्होंने लिखा है:

पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल कमर अहमद बाजवा ने बीते गुरुवार को इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग में 13 मिनट का जो भाषण दिया, उस पर भारत के जानकार लोगों की पहली प्रतिक्रिया तो उबासी की ही रही होगी। वह बस यही कह रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान को अपने अतीत को दफनाकर नई शुरुआत करनी चाहिए, शांति दोनों देशों के लिए जरूरी है ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्था पर ध्यान दे सकें वगैरह...वगैरह। हर पाकिस्तानी नेता ने चाहे वह निर्वाचित हो या नहीं, कभी न कभी ऐसा ही कहा है। इसके बाद वे पीछे से वार करते हैं तो इसमें नया क्या है?

म्यूचुअल फंड के विज्ञापनों में आने वाले स्पष्टीकरण से एक पंक्ति को लेकर उसे थोड़ा बदलकर कहें तो यदि अतीत भविष्य के बारे में कोई संकेत देता है तो पाकिस्तान के बारे में बात करना निरर्थक है। बेहतर है कि ज्यादा तादाद में स्नाइपर राइफल खरीदिए और नियंत्रण रेखा पर जमे रहिए। तो यह गतिरोध टूटेगा कैसे?

बमबारी करके उन्हें पाषाण युग में पहुंचाना समस्या का हल नहीं है। करगिल, ऑपरेशन पराक्रम और पुलवामा/बालाकोट के बाद हम यह जान चुके हैं। कड़ा रुख रखने वाले अमेरिकी सुरक्षा राजनयिक रिचर्ड आर्मिटेज जिन्होंने 9/11 के बाद इस धमकी के जरिए पाकिस्तान पर काबू किया था, वह जानते थे कि यह बड़बोलापन है। तब से 20 वर्षों तक अमेरिका ने अफगानिस्तान के बड़े हिस्से को बमबारी कर पाषाण युग में पहुंचा दिया। लेकिन अमेरिका हार कर लौट रहा है। सैन्य, कूटनयिक, राजनीतिक या आर्थिक रूप से कुछ भी ताकत से हासिल नहीं होगा। जैसा कि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने पिछले दिनों मुझसे बातचीत में कहा भी कि आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर या अक्साई चिन को सैन्य बल से हासिल करना संभव नहीं है। जहां तक क्षमता का प्रश्न है ऐसा कोई भी प्रयास वैश्विक चिंता पैदा करेगा और बहुत जल्दी युद्ध विराम करना होगा। बहरहाल, ये मेरे शब्द हैं न कि उनके।

बिजनेस स्टैंडर्ड में पढ़ें पूरा आलेख

पाकिस्तानी जनरल बाजवा का बयान

दुनियाभर में आतंकवाद पर घिरे और आर्थिक तंगी से जूझ रहे पाकिस्तान के सुर बदलने लगे हैं। इमरान सरकार के बाद अब इस देश की शक्तिशाली सेना ने भी शांति का राग अलापा है। सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा कि अतीत को भूलकर भारत और पाकिस्तान आगे बढ़ना चाहिए। उनका कहना है कि दोनों देशों के बीच शांति से क्षेत्र में संपन्नता और खुशहाली आएगी। इतना ही नहीं भारत के लिए मध्य एशिया तक पहुंच आसान हो जाएगा।

बाजवा ने कहा कि पूर्व और पश्चिम एशिया के बीच संपर्क सुनिश्चित करके दक्षिण और मध्य एशिया की क्षमता को खोलने के लिए भारत और पाक के बीच संबंधों का स्थिर होना बहुत जरूरी है। दोनों परमाणु संपन्न पड़ोसियों के बीच शांति कायम होने से दक्षिण और मध्य एशिया की क्षमता को अनलॉक करने में मदद मिलेगी। हालांकि बाजवा ने इस मौके पर भी कश्मीर का राग वअलापा और संबंधों को सामान्य बनाने की पहलकदमी भारत पर ही डाल दी। उन्होंने कहा कि हमारे पड़ोसी (भारत) को विशेष रूप से कश्मीर में एक अनुकूल वातावरण बनाना होगा।

जागरण में पढ़ें पूरा समाचार

 

अभ्यास के लिए पाकिस्तान जाएगी भारतीय सेना

इस साल शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) मिलिट्री एक्सरसाइज़ पाकिस्तान में होने जा रही है। इस बार एक्सरसाइज़ का नाम 'पब्बी-एंटी टेरर 2021' रखा गया है और यह पाकिस्तान के उस पब्बी इलाके में होने जा रही है जो खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत में है. वही जहां एबटाबाद और बालाकोट है। हालांकि, अभी तक ये साफ नहीं है कि भारतीय सेना इस आठ देशों वाली एक्सरसाइज़ में हिस्सा लेगी या नहीं।

शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) में भारत, पाकिस्तान, चीन, रूस, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान हिस्सा है. रूस के नेतृत्व में हर साल इन सभी देशों की सेनाएं साझा‌ युद्धाभ्यास में हिस्सा लेती आई हैं। अभी तक ये एक्सरसाइज़ रूस में ही होती आई थी। भारतीय सेना ने पहली बार वर्ष 2018 में इस युद्धाभ्यास में हिस्सा लिया था, जो रूस के चेबरकुल मिलिट्री बेस पर हुई थी। सन 1947 के विभाजन के बाद पहली बार भारत और पाकिस्तान की सेनाओं ने चेबरकुल में एससीओ देशों के साथ युद्धाभ्यास में हिस्सा लिया था।

एबीपी न्यूज में पढ़ें विस्तार से

 

भारत-पाकिस्तान के बीच नदियों के पानी पर बातचीत

नदियों के पानी के बंटवारे के लिए बने स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) की सालाना बैठक नई दिल्ली में शुरू हो चुकी है. दो दिन की वार्ता 24 मार्च तक चलेगी. आयोग की पिछली बैठक 29-30 अगस्त, 2018 को लाहौर में हुई थी. भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में की गई इंडस वाटर्स ट्रीटी के मुताबिक, आयोग की बैठक हर साल कम से कम एक बार जरूर होनी चाहिए. एक बैठक भारत में, तो अगली पाकिस्तान में होनी चाहिए.

लेकिन इस बार दो बैठकों के बीच का अंतराल ज्यादा लंबा हो गया है. 2019 में आयोग के पाकिस्तानी आयुक्त एक टीम ले कर चिनाब नदी के घाटी में निरीक्षण के लिए चले गए थे और 2020 में आयोग की बैठक कोरोना वायरस महामारी की वजह से नहीं हो पाई. 2021 की बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भारतीय सिंधु आयुक्त प्रदीप कुमार सक्सेना कर रहे हैं और पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व वहां के सिंधु आयुक्त सैयद मोहम्मद मेहर अली शाह कर रहे हैं.

जर्मन रेडियो की वैबसाइट पर पढ़ें विस्तार से

पाकिस्तान में बांग्लादेश की आज़ादी के ज़िक्र पर बंदिश

हाल ही में पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज में बांग्लादेश के पाकिस्तान से अलग होने की पचासवीं वर्षगांठ पर होने वाले एक पांचदिवसीय सम्मलेन को रद्द कर दिया गया. इस बारे में पाकिस्तान के पत्रकार वुसतुल्लाह ख़ान का नज़रिया.

लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (एलयूएमएस) में बांग्लादेश (पूर्व पूर्वी पाकिस्तान) की स्थापना (अलग होने) की पचासवीं सालगिरह पर प्रस्तावित पांच दिवसीय सम्मेलन के रद्द होने पर मैं तमाम देशभक्त पाकिस्तानियों को बधाई देता हूं.

इस सम्मेलन के पक्ष में ये तर्क बहुत ही कमज़ोर है कि कम से कम पचास साल बाद तो किसी घटना की बहुआयामी बौद्धिक समीक्षा की आज़ादी होनी चाहिए. ये लालबुझक्कड़ शायद नहीं जानते कि अगर एक बार इजाज़त दे दी गई तो सांपों का पिटारा खुल जाएगा.

कल को यही मुट्ठी भर देशद्रोही बुद्धिजीवी मांग करेंगे कि पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने के कारणों और ज़िम्मेदारों के निर्धारण के लिए सरकार द्वारा स्थापित हमुदुर्रहमान आयोग की आधी सदी पुरानी रिपोर्ट न केवल औपचारिक रूप से प्रकाशित की जाए बल्कि उसकी सिफ़ारिशों पर भी चर्चा करने की इजाज़त दी जाए.

फिर हो सकता है कि किसी तरफ़ से आवाज़ उठे कि हमें शैक्षणिक संस्थानों में 1965 की जंग के कारणों और पात्रों और फिर कारगिल युद्ध के कारणों और पात्रों पर भी खुलकर विश्लेषणात्मक विमर्श और वैज्ञानिक शोध की अनुमति दी जाए.

वायर हिंदी में पढ़ें पूरा आलेख

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