निकिता जैकब, दिशा रवि और ग्रेटा थनबर्ग |
बेंगलुरु की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को 14 फरवरी को दिल्ली की एक अदालत ने पांच दिनों की पुलिस-रिमांड में भेज दिया है। दिल्ली पुलिस ने उन्हें टूलकिट केस में गिरफ्तार किया था। दिशा पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया है। उसकी गिरफ्तारी का अब देशभर में विरोध हो रहा है। सोशल मीडिया पर लोग इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने भी दिशा की गिरफ्तारी की आलोचना की है और कहा है कि जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि राष्ट्र के लिए खतरा बन गई है, तो इसका मतलब है कि भारत बहुत ही कमजोर नींव पर खड़ा है। गिरफ्तारी का समर्थन करने वालों की संख्या भी काफी बड़ी है। कोई नहीं चाहेगा कि लोकतांत्रिक तरीके से आवाज उठाने वालों का दमन किया जाए, पर यह तो समझना ही होगा कि उन्हें गिरफ्तार करने के पीछे के कारण क्या हैं।
यह हैरान करने
वाली घटना है। पर्यावरण से जुड़े मसलों पर काम करने वाली दिशा ने रुंधे गले से
अदालत को कहा कि मैं किसी साजिश में शामिल नहीं थी और कृषि कानूनों के खिलाफ चल
रहे आंदोलन में किसानों का सिर्फ समर्थन कर रही थी। दिल्ली पुलिस का आरोप है कि
दिशा टूलकिट में संपादन करके खालिस्तानी ग्रुप को मदद कर रही थी। कुछ और
गिरफ्तारियाँ हो रही हैं। अंततः अदालत के सामने जाकर बातें साफ होंगी। केवल आंदोलन
का समर्थन करने या प्रचार सामग्री का प्रसारण किसी को देशद्रोही साबित नहीं करता,
पर यह भी साफ है कि किसी अलगाववादी
आंदोलन को लाभ पहुँचाने की मंशा से कोई काम किया गया है, तो पुलिस कार्रवाई करेगी। पुलिस कार्रवाई हमेशा सही
होती रही हों, ऐसा भी नहीं,
पर वह गलत ही होगी ऐसा क्यों माना
जाए।
तमाम सम्भावनाएं हैं। हो सकता है कि दिशा रवि या ग्रेटा थनबर्ग को इस बात का अनुमान ही नहीं हो कि वे किसके हित साध रही हैं। हो सकता है कि यह सब गलत हो। दिशा को ज्यादा-से-ज्यादा सरकारी नीतियों का विरोधी माना जा सकता है, लेकिन सरकार का विरोध करना देशद्रोह नहीं होता। उसकी गिरफ्तारी और हिरासत में रखने की प्रक्रिया को लेकर भी आरोप हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट या दिल्ली हाई कोर्ट को इस बात का परीक्षण करना चाहिए कि उनकी गिरफ्तारी के सिलसिले में सारी प्रक्रियाएं पूरी की गई थी या नहीं। सरकारी मशीनरी के मुकाबले देश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की भी पूरी मशीनरी है। वह भी अदालती कार्रवाई कर ही रही होगी। इस मामले में मुम्बई की वकील निकिता जैकब और शांतनु मुलुक ने मुम्बई हाईकोर्ट की शरण ली है, जो उनकी अर्जी पर 17 फरवरी को फैसला सुनाएगी।
दिशा रवि ने
बेंगलुरु के एक प्राइवेट कॉलेज से बीबीए की डिग्री ली है और पर्यावरण के लिए काम
करने वाली संस्था 'फ्राइडेज़
फॉर फ्यूचर' के संस्थापक सदस्यों
में से एक हैं। दिशा गुड वेगन मिल्क नाम की एक संस्था में भी काम करती हैं। इस
संस्था का उद्देश्य प्लांट बेस्ड फूड (वेजीटेरियन) को सस्ता और सुलभ बनाना है। यह
संस्था खेतीबारी में पशुओं के इस्तेमाल को खत्म कर उन्हें भी जीने का अधिकार देने
पर भी काम करती है।
दिशा ने किसान
आंदोलन से जुड़े जो टूलकिट एडिट और सोशल मीडिया पर शेयर किया, उसे सबसे पहले स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता
ग्रेटा थनबर्ग ने 3 फरवरी को सोशल मीडिया पर शेयर किया था। हालांकि बाद में ग्रेटा
ने उसे डिलीट कर दिया था। अगले दिन 4 फरवरी को ग्रेटा ने अपडेटेड टूलकिट सोशल
मीडिया पर शेयर किया था और कहा था कि यह अपडेटेड टूलकिट है, जिसे भारत में जमीन पर काम कर रहे लोगों ने अपडेट
किया है। आरोप है कि दिशा ने ही उसे एडिट कर अपडेट किया था।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि दिशा रवि उस टूलकिट की एडिटर हैं और उस दस्तावेज़ को तैयार
करने से लेकर उसे सोशल मीडिया पर साझा करने वाली मुख्य साजिशकार हैं। आरोप है कि
दिशा ने एक वॉट्सएप ग्रुप भी बनाया हुआ था जिसमें निकिता जैकब भी जुड़ी थीं।
निकिता भी पर्यावरण से जुड़े मुद्दे उठाती रही हैं। वे वकील हैं। दिल्ली पुलिस
उन्हें भी तलाश रही है। दिशा से जुड़ा एक और नाम है शांतनु मुलुक। दोनों यूके के
एक एनजीओ एक्सटिंक्शन रिबैलियन (XR) के लिए काम करते हैं। पुलिस की स्पेशल सैल के सूत्रों ने बताया है कि उन्होंने
दिशा और ग्रेटा के चैट को हासिल कर लिया है, जिससे पता लगता है कि 3 फरवरी को थनबर्ग के पहले
ट्वीट के बाद दिशा ने उन्हें संदेश दिया कि उसे डिलीट कर दें। पुलिस सूत्रों के
अनुसार एक संदेश में कहा गया है कि क्या ऐसा हो सकता है कि आप टूलकिट को ट्वीट न
करें। फिलहाल कुछ भी नहीं कहें। मुझे वकील से बात करनी होगी। माफ कीजिए, हमारे नाम इसमें हैं और पुलिस हम पर यूएपीए
लगा सकती है।
पुलिस सूत्रों के
अनुसार उन्हें लगता है कि निकिता और शांतनु ने दिशा को इसमें शामिल होने के लिए
कहा, क्योंकि वे जानते थे कि
उसका ग्रेटा से सम्पर्क है। उनका उद्देश्य इस मसले को वैश्विक स्तर पर उछालना था।
टूलकिट को प्राइवेट रखने का इरादा था, पर ग्रेटा ने उसे ट्विटर पर पोस्ट कर दिया। उन्होंने बाद में उसे डिलीट करने
का अनुरोध किया। डिलीट के बाद दिशा ने उसे एडिट किया और वह फिर से अपलोड किया
गया।
पुलिस इस मामले
में अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता पीटर फ्रेडरिक की भूमिका की जाँच भी कर रही है।
डीसीपी (स्पेशल सैल) मनीष चंद्रा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि टूलकिट में एक
सेक्शन है, किसे फॉलो करें।
इसमें स्थापित मीडिया हाउसों, प्रतिष्ठित फैक्ट चैकरों, कुछ एनजीओ के नाम हैं। इनमें एक नाम इन सबसे अलग किस्म का मिला। वह था पीटर
फ्रेडरिक का। चंद्रा के अनुसार फ्रेडरिक सन 2006 से सुरक्षा प्रतिष्ठानों के रेडार
पर है। इस एक्टिविस्ट को भजन सिंह भिंडर उर्फ इकबाल चौधरी की संगत में पाया गया है,
जो पाकिस्तानी आईएसआई की के-2 (कश्मीर
और खालिस्तान) डेस्क का प्रमुख समर्थक है।
इंडियन एक्सप्रेस
ने जब फ्रेडरिक से सम्पर्क किया, तो उन्होंने कहा, यह बात
हास्यास्पद है कि आज मेरे जैसे गोरे ईसाई लेखक से लेकर बारबेडस की अश्वेत गायिका
रिहाना तक को एक अलगाववादी कल्पित सिख राज्य का समर्थक मान लिया गया है। मैंने भजन
सिंह के साथ मिलकर दो किताबें लिखी हैं, जिनमें से एक इस बात पर है कि सिख आंदोलन
किस तरह जाति-विरोधी आंदोलन में से निकला है। दक्षिण एशिया मूल के अनेक मित्रों
में वह भी शामिल है, जिनमें सिख, हिन्दू, मुसलमान, दलित और हर तरह की पृष्ठभूमि के
लोग हैं। हमारी दोस्ती समानता, स्वतंत्रता और इंसान-परस्ती के प्रति साझा समझदारी
पर केंद्रित है। मैंने कभी भजन के खालिस्तान-समर्थन का संकेत भर पाया होता, तो मैं
रास्ता बदल लेता, पर उसने कभी ऐसा इशारा नहीं किया…।
इसके पहले दिल्ली पुलिस
के जॉइंट सीपी (स्पेशल सैल) प्रेम नाथ ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, टूलकिट के
रचनाकारों का उद्देश्य भारत की छवि को बिगाड़ने का था। उन्होंने कहा, शांतनु ने जो
ई-मेल बनाया था, वह गूगल डॉक्यूमेंट का एडमिन एकाउंट है। निकिता और दिशा टूलकिट के
एडिटर हैं। दिशा ने उस डॉक्यूमेंट को ग्रेटा के साथ टेलीग्राम पर भी शेयर किया।
उन्होंने दूसरे एडिटरों के साथ मिलकर काम करने के लिए एक वॉट्सएप ग्रुप भी बनाया,
जिसे बाद में डिलीट कर दिया गया। बहरहाल दिशा ने इन आरोपों को अदालत में गलत
बताया।
पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन की बैठक
पुलिस का यह भी
कहना है कि जैकब और शांतनु गत 11 जनवरी को खालिस्तान-समर्थक ग्रुप पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन
और उसके एक संस्थापक एमओ धालीवाल के साथ ज़ूम मीटिंग में भाग भी लिया। एक अधिकारी
के अनुसार उस बैठक में 60-70 लोग शामिल थे। हमारी जानकारी में कनाडा की एक महिला
पुनीत ने इन एक्टिविस्टों का धालीवाल से संपर्क कराया। इन लोगों ने गणतंत्र दिवस
के कार्यक्रम की तैयारी पर बातचीत की। इस मीटिंग के बाद टूलकिट तैयार की गई।
सूत्रों के अनुसार
सायबर क्राइम सैल ने गूगल से टूलकिट के रचनाकारों का विवरण माँगा। गूगल से विवरण
मिलने के बाद पुलिस ने निकिता जैकब के खिलाफ गैर-ज़मानती वारंट जारी किया और
मुम्बई में उसके घर पर छापा मारा गया। तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम पुलिस
अधिकारियों के साथ गई और उसके लैपटॉप और फोन को स्कैन करने के बाद पाया कि उस
डॉक्यूमेंट के पाँच एडिटर थे। इनमें निकिता, उनके सहयोगी शांतनु, दिशा रवि और दो
अन्य हैं, जिनमें एक व्यक्ति हैदराबाद का है।
पुलिस का कहना है
कि गणतंत्र दिवस पर लालकिले में जो हुआ वह टूलकिट में बताए गए एक्शन प्लान की
हूबहू नकल था। गत 4 फरवरी को पुलिस ने टूलकिट के रचनाकारों के खिलाफ देशद्रोह,
शत्रुता को बढ़ावा देने और आपराधिक साजिश करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की। प्रेम नाथ
के अनुसार 11 फरवरी को पुलिस ने निकिता जैकब के घर की तलाशी ली। दिल्ली पुलिस ने
मुम्बई पुलिस को जानकारी देकर निकिता के घर से दो लैपटॉप, एक आईफोन बरामद किया। वह
टीम शाम को घर से वापस चली गई और निकिता से कहा कि आप अगले दिन भी उपलब्ध रहिए।
उसके बाद वे लापता हो गईं और पड़ताल में शामिल नहीं हुईं।
पुलिस के अनुसार
टूलकिट में एक हाइपरलिंक है, जो एक वैबसाइट से जोड़ता है, जिसमें खालिस्तान समर्थक
सामग्री है। डीसीपी (स्पेशल सैल) अन्येश रॉय के अनुसार टूलकिट ऐसा सक्रिय डॉक्यूमेंट
है, जिसमें बड़ी संख्या में हाइपरलिंक हैं। एक महत्वपूर्ण वैबसाइट है askindiawhy.com। इस वैबसाइट में खालिस्तान समर्थक काफी
सामग्री है।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 17 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteचिंतनीय आलेख ।
ReplyDeleteसटीक आलेख
ReplyDeleteबहुत सही और सटीक विश्लेषण !
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