अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के पराभव के साथ नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने कार्यभार संभाल लिया है और उसके साथ ही यह सवाल पूछा जा रहा है कि भारत के साथ अमेरिका के रिश्ते कैसे रहेंगे। बहरहाल शुरुआत अच्छी हुई है और संकेत मिल रहे हैं कि भारत और अमेरिका की मैत्री प्रगाढ़ ही होगी। उसमें किसी किस्म की कमी आने के संकेत नहीं हैं। अलबत्ता नए प्रशासन की आंतरिक और विदेश नीति में काफी बड़े बदलाव देखने में आ रहे हैं। जो बाइडेन ने जो फैसले किए हैं, उनमें भारत को लेकर सीधे कोई बात नहीं है, पर उनके रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने जो कहा है, वह जरूर महत्वपूर्ण है।
जैसा कि पहले से ही माना जा रहा था कि बाइडेन शपथ लेने के बाद डोनाल्ड ट्रंप के कुछ फैसले पलट देंगे, वैसा ही हुआ। कामकाज संभालते ही बाइडेन एक्शन में आ गए और कम से कम नए आदेश एक झटके में दे डाले। उन्होंने कई ऐसे आदेशों पर दस्तखत किए हैं, जिनकी लंबे समय से मांग चल रही थी। खासतौर से कोरोना वायरस, आव्रजन और जलवायु परिवर्तन के मामले में उनके आदेशों को अमेरिका की नीतियों में बड़ा बदलाव माना जा सकता है।
जो बाइडेन ने
कार्यभार संभालते ही ‘ग्लोबल वॉर्मिंग' कम करने की वैश्विक लड़ाई
में अमेरिका को फिर से शामिल कर दिया है। उन्होंने अपने पहले भाषण में कहा, पृथ्वी ग्रह खुद को बचाने
की गुहार लगा रहा है। उन्होंने कहा, यह गुहार पहले कभी इतनी
हताशा भरी और स्पष्ट नहीं थी। उन्होंने शपथ ग्रहण करने के कुछ घंटे बाद ही ‘पेरिस
जलवायु' समझौते में अमेरिका को पुन: शामिल करने के लिए
एक शासकीय आदेश पर हस्ताक्षर किए और अपने एक बड़े चुनावी वादे को पूरा किया। पूर्व
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इस समझौते से बाहर कर लिया था। पेरिस
समझौते में शामिल 195 देशों और अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं के लिए कार्बन प्रदूषण को कम
करने और उनके जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन की निगरानी करने तथा उसकी जानकारी देने का
लक्ष्य रखा गया है। चीन के बाद अमेरिका दुनिया का दूसरे नंबर का सबसे बड़ा कार्बन
उत्सर्जक देश है।
बाइडेन ने कोरोना
महामारी पर नियंत्रण के लिए मास्क को जरूरी कर दिया था। इसके साथ ही विश्व
स्वास्थ्य संगठन से हटने के फैसले पर भी रोक लगा दी है। देश के बाहर से आ रहे
लोगों को रोकने के लिए ट्रंप प्रशासन सीमा पर जो दीवार खड़ी कर रहा था, उसे रोक दिया गया है। जिन मुस्लिम देशों के लोगों के आगमन
पर ट्रंप ने रोक लगाई थी, उस आदेश को वापस लेने का
फैसला किया है। बाइडेन ने अपने भाषण में नस्ली भेदभाव को खत्म करने की भी बात कही
है।
रक्षामंत्री का
बयान
अमेरिका के
रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा है कि 'जो बाइडेन प्रशासन का
उद्देश्य भारत के साथ अमेरिका की रक्षा साझेदारी को बढ़ाना रहेगा।' राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह के एक दिन पहले अपने
नामांकन पर सुनवाई के दौरान सीनेट की एक समिति से ऑस्टिन ने कहा, यदि मेरे नाम की पुष्टि होती है, तो भारत के साथ हमारे रक्षा संबंधों के मामले में मेरा
उद्देश्य दोनों देशों के बीच साझेदारी और सहयोग को और मज़बूत करना रहेगा, ताकि भारत और अमेरिका,
दोनों देशों के
सैन्य हित सुरक्षित रह सकें। उन्होंने कहा,
हम क्वॉड सुरक्षा
वार्ता और अन्य क्षेत्रीय बहुपक्षीय कार्यक्रमों के माध्यम से भारत और अमेरिका के
बीच रक्षा सहयोग को और गहरा, और व्यापक बनाने की भी
कोशिश करेंगे। ऑस्टिन ने इस बातचीत में पाकिस्तान से अमेरिका के रिश्तों के बारे
में भी बात की। उन्होंने कहा, मैं पाकिस्तान को यह
संदेश ज़रूर देना चाहूँगा कि वह चरमपंथियों और हिंसक समूहों को अपने यहाँ ज़मीन
तलाशने ना दे। हालांकि उसने भारत विरोधी समूहों, जैसे
लश्करे-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के ख़िलाफ़ कुछ क़दम उठाए हैं, पर इस मामले में प्रगति अभी अधूरी है।
ट्रंप का हिंसक
अवसान
अंततः ट्रंप युग
का अवसान हुआ। वे नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गए। अमेरिकी राजनीति
में यह एक नई परंपरा है। हालांकि ट्रंप की पहचान सिरफिरे व्यक्ति के रूप में जरूर
थी, पर उनकी विदाई इतनी कटुता भरी और हिंसक होगी, इसका अनुमान नहीं था। पहले से कहा जा रहा था कि वे हटने से
इनकार कर सकते हैं। उन्हें हटाने के लिए सेना लगानी होगी वगैरह। पर लोगों को इस
बात पर विश्वास नहीं होता था। कहना मुश्किल है कि 20 जनवरी को देश में उत्पात होगा
या नहीं। इस दौरान खबरें मिल रहीं हैं कि वहाँ मिलियन मिलीशिया मार्च निकालने की
तैयारियाँ चल रही हैं।
अमेरिका के
इतिहास में डोनाल्ड ट्रंप पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं, जिनपर दो बार
महाभियोग चलाया गया। बुधवार 13 जनवरी अमेरिका की प्रतिनिधि सभा ने 232-197 के
बहुमत से उनके विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव पास कर दिया। यह महाभियोग गत 6 जनवरी को
देश की संसद कैपिटल हिल पर हुए हमलों को भड़काने के आरोप में लगाया गया है।
हालांकि इस प्रस्ताव के आधार पर ट्रंप को हटाया नहीं जा सकेगा, पर इस बात का सांकेतिक महत्व है। महत्व इस बात का भी है कि
इस प्रस्ताव के पक्ष में ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के 10 सदस्यों ने भी वोट
दिया।
तकनीकी दृष्टि से
फिलहाल इस प्रस्ताव का कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि ट्रंप को पद से
हटाना अभी संभव नहीं। उन्हें हटाने के लिए इस प्रस्ताव को सीनेट से दो तिहाई बहुमत
से पास कराना जरूरी है। यह काम 20 जनवरी के पहले संभव नहीं हो पाया। इतना जरूर
लगता है कि ट्रंप को लेकर रिपब्लिकन पार्टी के भीतर दरार है। यह दरार कितनी गहरी
और व्यापक है, इसका पता कुछ समय बाद ही लगेगा।
ट्रंप के विरोधी
उनके खिलाफ कारवाई की कोशिशें फिर भी करते रहेंगे। सवाल है कि क्या उनपर भविष्य
में मुकदमा चलाया जा सकता है? क्या उनकी गिरफ्तारी संभव
है? ऐसे कई सवाल सामने हैं, जिनका जवाब समय ही देगा। देखना यह भी होगा कि क्या ट्रंप
राजनीति में सक्रिय रहेंगे। क्या वे राष्ट्रपति के 2024 के चुनाव में भी कूदेंगे? ट्रंप की हार के बाद
अमेरिका का परंपरागत समाज बेचैन है। उनके आह्वान पर जिस तरह से भीड़ कैपिटल हिल के
संसद भवन में प्रवेश कर गई थी, वह अभूतपूर्व घटना है।
कुल मिलाकर कहा
जा सकता है कि अमेरिकी लोकतांत्रिक संस्थाएं दुखद स्थिति पर नियंत्रण पाने में सफल
हुईं, पर अमेरिकी समाज में जैसा ध्रुवीकरण हो गया है, वह मामूली बात नहीं है। राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए भी देश
की परिस्थितियाँ आसान नहीं होंगी। जॉर्जिया के सीनेट चुनाव में दो सीटें मिल जाने
के बाद कम से कम प्रशासनिक दृष्टि से वे बेहतर स्थिति में आ गए हैं, अन्यथा उनके सामने राजनीतिक चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं।
संसद पर हमला
गत 6 जनवरी को
अमेरिकी संसद पर ट्रंप समर्थकों ने इस माँग के साथ धावा बोला था कि ट्रंप की पराजय
को खारिज करो। पर संसद ने जो बाइडेन के चुनाव पर अपनी मोहर लगा दी। इस सत्र की
अध्यक्षता ट्रंप के उपराष्ट्रपति माइक पेंस कर रहे थे। उन्होंने ही संसद के भीतर
ट्रंप समर्थकों की आपत्तियों को नामंजूर किया। ध्यान देने वाली बात है कि इस
प्रसंग में ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के तमाम सीनेटरों ने अपने ही राष्ट्रपति का
विरोध किया। आखिर में ट्रंप ने हार मानी। पर उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति के
पद-ग्रहण कार्यक्रम में मैं शामिल नहीं होऊंगा।
कई मामलों में
हमारे लिए अमेरिकी लोकतंत्र आदर्श-प्रणाली है,
पर पिछले कुछ
वर्षों से उसकी कमजोरियाँ भी सामने आई हैं। फिर भी बहुत सी बातें उल्लेखनीय हैं।
गत 6 जनवरी को देश ने अराजकता का समर्थन नहीं किया। रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटरों
और उपराष्ट्रपति माइक पेंस की भूमिका पर ध्यान दीजिए। उन्होंने व्यक्तिगत और
पार्टी के हितों को त्यागकर देश के हितों को महत्वपूर्ण माना। हमें अमेरिकी
न्याय-व्यवस्था पर भी ध्यान देना चाहिए। ट्रंप ने नीचे से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक
60 आपत्तियाँ दर्ज कराईं, पर अदालतों ने केवल एक को
छोड़ किसी आपत्ति को नहीं माना।
अमेरिकी चुनाव
प्रणाली पेचीदा है, जिसमें तमाम छिद्र हैं। राज्यों के पास कई
प्रकार के अधिकार हैं। चुनाव के लिए ताकतवर और स्वतंत्र चुनाव आयोग भी नहीं है।
देश में रंग-भेद और जाति-भेद की भावनाएं खत्म नहीं हुईं हैं। कैपिटल हिल पर धावा
बोलने वाले बहुत से लोगों के हाथों में कॉन्फेडरेट ध्वज थे, जो खासतौर से दक्षिण के राज्यों में प्रचलित ‘ह्वाइट
सुप्रीमेसी’ की भावना को व्यक्त करते हैं। अमेरिका में सामाजिक आधार पर जो
ध्रुवीकरण हो रहा है, वह ज्यादा बड़ी चिंता का
विषय है। यह सामाजिक विभाजन खत्म नहीं हो जाएगा, बल्कि अंदेशा है
कि बढ़ेगा।
नए राष्ट्रपति जो
बाइडेन के सामने ज्यादा बड़ी चुनौती उस सामाजिक टकराव को रोकने की है, जो अब शुरू होगा। अमेरिका के गोरे बाशिंदे, जो खेती या औद्योगिक मजदूर हैं अपने देश में बाहर से आए
लोगों को लेकर परेशान हैं। उनके सामने रोजगार की समस्याएं भी खड़ी हुईं हैं। चीन
के उदय का कारण अमेरिका का काफी कारखाने चीन चले गए हैं।
No comments:
Post a Comment