वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 11 प्रतिशत और सांकेतिक जीडीपी वृद्धि दर 15.4 प्रतिशत रहेगी
देश में शुद्ध एफपीआई प्रवाह नवम्बर 2020 में 9.8 अरब डॉलर के सार्वकालिक मासिक उच्चतम स्तर पर रहा
आज संसद में पेश की गई वित्त वर्ष 2020-21 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर 11 प्रतिशत और सांकेतिक जीडीपी वृद्धि दर 15.4 प्रतिशत रहेगी। व्यापक टीकाकरण अभियान, सेवा क्षेत्र में तेजी से हो रही बेहतरी और उपभोग एवं निवेश में त्वरित वृद्धि की संभावनाओं की बदौलत देश में ‘V’ आकार में आर्थिक विकास संभव होगा। केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने आज संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश की जिसमें कहा गया है कि पिछले वर्ष के अपेक्षा से कम रहने वाले संबंधित आंकड़ों के साथ-साथ कोविड-19 के उपचार में कारगर टीकों का उपयोग शुरू कर देने से देश में आर्थिक गतिविधियों के निरंतर सामान्य होने की बदौलत ही आर्थिक विकास फिर से तेज रफ्तार पकड़ पाएगा। देश के बुनियादी आर्थिक तत्व अब भी मजबूत हैं क्योंकि लॉकडाउन को क्रमिक रूप से हटाने के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत मिशन के जरिए दी जा रही आवश्यक सहायता के बल पर अर्थ-व्यवस्था बड़ी मजबूती के साथ बेहतरी के मार्ग पर अग्रसर हो गई है। इस मार्ग पर अग्रसर होने की बदौलत वर्ष 2019-20 की विकास दर की तुलना में वास्तविक जीडीपी में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होगी जिसका मतलब यही है कि अर्थव्यवस्था दो वर्षों में ही महामारी पूर्व स्तर पर पहुंचने के साथ-साथ इससे भी आगे निकल जाएगी। ये अनुमान दरअसल आईएमएफ के पूर्वानुमान के अनुरूप ही हैं जिनमें कहा गया है कि भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-22 में 11.5 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022-23 में 6.8 प्रतिशत रहेगी। आईएमएफ के अनुसार भारत अगले दो वर्षों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
महामारी का सामना
भारत ने नियंत्रण, राजकोषीय, वित्तीय और दीर्घकालिक
ढांचागत सुधारों के चार स्तम्भों वाली अनूठी रणनीति अपनाई। देश में उभरते आर्थिक
परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए सुव्यवस्थित ढंग से राजकोषीय और मौद्रिक सहायता
दी गई। इसके साथ ही इस दौरान क्रमिक रूप से अनलॉक करते समय संबंधित सरकारी उपायों
के राजकोषीय प्रभावों और कर्जों की निरंतरता को भी ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन के
दौरान सर्वाधिक असुरक्षित पाए गए लोगों को आवश्यक सहायता दी गई और इसके साथ ही
विभिन्न वस्तुओं के उपभोग एवं निवेश को काफी बढ़ावा मिला। अनुकूल मौद्रिक नीति से
पर्याप्त तरलता सुनिश्चित हुई। इसी तरह मौद्रिक नीति के कदमों का लाभ प्रदान करते
समय कर्जदारों को अस्थायी मोहलत के जरिए तत्काल राहत प्रदान की गई।
आर्थिक समीक्षा
में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की जीडीपी
वृद्धि दर (-) 7.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है। प्रथम छमाही में
जीडीपी में 15.7 प्रतिशत की तेज गिरावट और दूसरी छमाही में 0.1 प्रतिशत की अत्यंत कम गिरावट को देखते हुए ही यह अनुमान
लगाया गया है। विभिन्न क्षेत्रों पर नजर डालने पर यही पता चलता है कि कृषि
क्षेत्र अब भी आशा की किरण है, जबकि लोगों के आपसी
संपर्क वाली सेवाओं, विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र बुरी तरह
प्रभावित हुए थे जिनमें धीरे-धीरे सुधार देखे जा रहे हैं। सरकारी उपभोग और शुद्ध
निर्यात के बल पर ही आर्थिक विकास में और ज्यादा गिरावट देखने को नहीं मिल रही
है।
जैसा कि अनुमान लगाया गया था, लॉकडाउन के कारण प्रथम तिमाही में जीडीपी में (-) 23.9 प्रतिशत की भारी गिरावट दर्ज की गई। वहीं, बाद में ‘V’ आकार में वृद्धि यानी निरंतर अच्छी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है जो दूसरी तिमाही में जीडीपी में 7.5 प्रतिशत की अपेक्षाकृत कम गिरावट और सभी महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों में हो रही बेहतरी में प्रतिबिंबित होती है। गत जुलाई माह से ही ‘V’ आकार में आर्थिक बेहतरी निरंतर जारी है जो प्रथम तिमाही में भारी गिरावट के बाद दूसरी तिमाही में जीडीपी में दर्ज की गई अपेक्षाकृत कम गिरावट में परिलक्षित होती है। भारत में महामारी के प्रकोप के बाद बढ़ती गतिशीलता पर ध्यान देने पर यह पता चलता है कि विभिन्न संकेतक जैसे कि ई-वे बिल, रेल माल भाड़ा, जीएसटी संग्रह और बिजली की मांग बढ़कर न केवल महामारी पूर्व स्तरों पर पहुंच गई है, बल्कि पिछले वर्ष के स्तरों को भी पार कर गई है। राज्य के भीतर और एक राज्य से दूसरे राज्य में आवाजाही को फिर से चालू कर देने और रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए मासिक जीएसटी संग्रह से यह पता चलता है कि देश में औद्योगिक एवं वाणिज्यिक गतिविधियों को किस हद तक उन्मुक्त कर दिया गया है। वाणिज्यिक प्रपत्रों की संख्या में तेज वृद्धि, यील्ड में कमी आने और एमएसएमई को मिले कर्जों में उल्लेखनीय वृद्धि से यह पता चलता है कि विभिन्न उद्यमों को अपना अस्तित्व बनाए रखने और विकसित होने के लिए व्यापक मात्रा में कर्ज मिल रहे हैं।
कृषि क्षेत्र का
सहारा
विभिन्न
क्षेत्रों में बेहतरी के रुख को ध्यान में रखते हुए आर्थिक समीक्षा में कहा गया
है कि वित्त वर्ष के दौरान विनिर्माण क्षेत्र में भी उल्लेखनीय मजबूती देखी गई, ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती मांग से समग्र आर्थिक
गतिविधियों को आवश्यक सहारा मिला और इसके साथ ही तेजी से बढ़ते डिजिटल लेन-देन के
रूप में उपभोग संबंधी ढांचागत बदलाव देखने को मिले। समीक्षा में कहा गया है कि
कृषि क्षेत्र की बदौलत वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था
को कोविड-19 महामारी से लगे तेज झटकों के असर काफी कम हो
जाएंगे। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर पहली तिमाही के साथ-साथ दूसरी तिमाही में भी 3.4 प्रतिशत रही है। सरकार द्वारा लागू किए गए विभिन्न
प्रगतिशील सुधारों ने जीवंत कृषि क्षेत्र के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है
जो वित्त वर्ष 2020-21 में भी भारत की विकास
गाथा के लिए आशा की किरण है।
वित्त वर्ष के
दौरान औद्योगिक उत्पादन में ‘V’ आकार में बेहतरी देखने को
मिली विनिर्माण क्षेत्र ने फिर से तेज रफ्तार पकड़ी। इसी तरह औद्योगिक मूल्य या
उत्पादन फिर से सामान्य होने लगा। भारत का सेवा क्षेत्र महामारी के दौरान गिरावट
दर्शाने के बाद फिर से बेहतरी के मार्ग पर निरंतर अग्रसर हो गया है। दिसम्बर में
पीएमआई सेवाओं के उत्पादन और नए कारोबार में लगातार तीसरे महीने बढ़ोतरी दर्ज की
गई।
बैंक ऋणों में धीमापन
जोखिम न उठाने की
प्रवृत्ति और कर्जों की घटती मांग के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में बैंक कर्जों का स्तर निम्न स्तर पर बना रहा।
हालांकि, कृषि एवं संबंधित गतिविधियों के लिए दिए गए
कर्ज अक्टूबर 2019 के 7.1 प्रतिशत से बढ़कर अक्टूबर
2020 में 7.4 प्रतिशत के स्तर पर
पहुंच गए। अक्टूबर 2020 के दौरान निर्माण, व्यापार एवं आतिथ्य जैसे क्षेत्रों में कर्ज प्रवाह में
उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई, जबकि विनिर्माण क्षेत्र
में बैंक कर्ज का प्रवाह धीमा ही बना रहा। सेवा क्षेत्र को कर्ज प्रवाह अक्टूबर 2019 के 6.5 प्रतिशत से बढ़कर अक्टूबर
2020 में 9.5 प्रतिशत हो गया।
खाद्य पदार्थों
की बढ़ती कीमतों के कारण ही वर्ष 2020 में महंगाई उच्च स्तर
पर बनी रही। हालांकि, दिसम्बर 2020 में महंगाई दर गिरकर 4+/-2 प्रतिशत की लक्षित रेंज
में आकर 4.6 प्रतिशत दर्ज की गई, जबकि नवम्बर में यह 6.9 प्रतिशत थी। खाद्य
पदार्थों विशेषकर सब्जियों, मोटे अनाजों और प्रोटीन
युक्त उत्पादों की कीमतों में गिरावट होने और पिछले वर्ष के अपेक्षाकृत कम
आंकड़ों से ही संभव हो पाया।
विदेशी मुद्रा भंडार
बाह्य क्षेत्र से
भी भारत में विकास को काफी सहारा मिला। दरअसल,
चालू खाते में
अधिशेष वर्ष की प्रथम छमाही के दौरान जीडीपी का 3.1 प्रतिशत रहा, जो सेवा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि और कम मांग की बदौलत
संभव हुआ। इस वजह से निर्यात (वाणिज्यिक निर्यात में 21.2 प्रतिशत की गिरावट के साथ) की तुलना में आयात (वाणिज्यिक
आयात में 39.7 प्रतिशत की गिरावट के साथ) में तेज गिरावट
दर्ज की गई। इसके परिणामस्वरूप देश में विदेशी मुद्रा भंडार इतना अधिक बढ़ गया
जिससे 18 माह के आयात को कवर किया जा सकता है।
जीडीपी के अनुपात
के रूप में बाह्य या विदेशी ऋण मार्च 2020 के आखिर के 20.6 प्रतिशत से मामूली बढ़कर सितम्बर 2020 के आखिर में 21.6 प्रतिशत के स्तर पर
पहुंच गया। हालांकि, विदेशी मुद्रा भंडार में उल्लेखनीय वृद्धि की
बदौलत विदेशी मुद्रा भंडार और कुल एवं अल्पकालिक ऋण (मूल एवं शेष) का अनुपात
बेहतर हो गया।
विदेशी निवेश
भारत वित्त वर्ष 2020-21 में भी पसंदीदा निवेश गंतव्य बना रहा, जो वैश्विक निवेश को शेयरों में लगाने और उभरती अर्थव्यवस्थाओं
में तेजी से बेहतरी आने की संभावनाओं के मद्देनजर संभव हो पाया है। देश में शुद्ध
एफपीआई प्रवाह नवम्बर 2020 में 9.8 अरब डॉलर के सर्वकालिक मासिक उच्चतम स्तर पर पहुंच गया
जो निवेशकों में फिर से जोखिम उठाने की प्रवृत्ति बढ़ने, वैश्विक स्तर पर मौद्रिक नीति को उदार बनाने और घोषित किए
गए राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेजों के मद्देनजर अनुकूल यील्ड हासिल करने पर विशेष
जोर देने और अमेरिकी डॉलर के कमजोर होने से संभव हुआ। भारत वर्ष 2020 में विभिन्न उभरते बाजारों में एकमात्र ऐसा देश रहा जहां
इक्विटी में एफआईआई का प्रवाह हुआ।
तेजी से ऊंची
छलांग लगाते सेंसेक्स और निफ्टी की बदौलत भारत ने बाजार पूंजीकरण और सकल घरेलू
उत्पाद (जीडीपी) अनुपात अक्टूबर 2010 के बाद पहली बार 100 प्रतिशत के स्तर को पार कर गया। हालांकि, इससे वित्तीय बाजारों और वास्तविक क्षेत्र में कोई सामंजस्य
न होने पर चिंता जताई जाने लगी है।
वित्त वर्ष की
दूसरी छमाही में निर्यात में 5.8 प्रतिशत और आयात में 11.3 प्रतिशत की गिरावट होने की संभावना है। भारत में चालू खाते
में अधिशेष वित्त वर्ष 2021 में जीडीपी का 2 प्रतिशत रहने की संभावना है जो 17 वर्षों के बाद ऐतिहासिक उच्चतम स्तर है।
जहां तक आपूर्ति
से जुड़ी स्थिति का सवाल है, सकल मूल्य वर्धित
(जीवीए) की संवृद्धि दर वित्त वर्ष 2020-21 में (-) 7.2 प्रतिशत रहने की संभावना है, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में यह 3.9 प्रतिशत आंकी गई थी।
कोविड-19 महामारी के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था को लगे तेज झटकों का असर कृषि
क्षेत्र की बदौलत कम हो जाने की संभावना है क्योंकि इसकी वृद्धि दर 3.4 प्रतिशत रहने की आशा है, जबकि वित्त वर्ष
के दौरान उद्योग एवं सेवा वृद्धि दर क्रमश: (-) 9.6 तथा (-) 8.8 प्रतिशत रहने की संभावना है।
वैश्विक
अर्थव्यवस्था
आर्थिक समीक्षा
में यह बात रेखांकित की गई है कि वर्ष 2020 के दौरान जहां एक ओर
कोविड-19 महामारी ने व्यापक कहर ढाया, वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती गहरा जाने
की आशंका है जो वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सर्वाधिक गंभीर स्थिति को दर्शाती है।
लॉकडाउन और सामाजिक दूरी से जुड़े विभिन्न मानकों के कारण पहले से ही धीमी पड़
रही वैश्विक अर्थव्यवस्था और भी अधिक सुस्त हो गई। वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर आर्थिक उत्पादन में 3.5 प्रतिशत (आईएफएम ने जनवरी 2021 में यह अनुमान
लगाया है) की गिरावट आने का अनुमान है, जो पूरी शताब्दी में
सर्वाधिक गिरावट को दर्शाती है। इसे ध्यान में रखते हुए दुनिया भर की सरकारों और
केन्द्रीय बैंकों ने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था को आवश्यक सहारा देने के लिए अनेक
नीतिगत उपाय किए जैसे कि महत्वपूर्ण नीतिगत दरों में कमी की गई, मात्रात्मक उदारीकरण उपाय किए गए, कर्जों पर गारंटी दी गई,
नकद राशि हस्तांतरित
की गई और राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज घोषित किए गए। भारत सरकार ने महामारी से उत्पन्न
विभिन्न व्यवधानों को पहचाना और इसके साथ ही कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों
द्वारा भारत के लिए निराशाजनक विकास अनुमानों को व्यक्त किए जाने के बीच देश की
विशाल आबादी, उच्च जनसंख्या घनत्व और अपेक्षा से कम स्वास्थ्य
संबंधी बुनियादी ढांचागत सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए अपने देश के लिए विशिष्ट
विकास मार्ग पर चलना सुनिश्चित किया।
आर्थिक समीक्षा
में इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि देश में महामारी का प्रकोप शुरू होने के समय
(जब भारत में कोविड के केवल 100 पुष्ट मामले ही थे) ही
जिस तरह से काफी सख्त लॉकडाउन लागू किया गया वह यह दर्शाता है कि इससे निपटने के
लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम कितने मायनों में अनूठे थे। पहला, महामारी विज्ञान और आर्थिक अनुसंधान दोनों से ही प्राप्त
निष्कर्षों को ध्यान में रखकर नीतिगत उपाय किए गए। विशेषकर महामारी के फैलने को
लेकर व्याप्त अनिश्चितता को ध्यान में रखते हुए सरकारी नीति के तहत हैनसन और
सार्जेंट के नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले अनुसंधान (2001) को लागू किया गया जिसके तहत ऐसी नीति अपनाने की सिफारिश की
गई है जिसमें बेहद विषम परिदृश्य में भी कम-से-कम लोगों की मृत्यु हो। अप्रत्याशित
महामारी को ध्यान में रखते हुए इस बेहद विषम परिदृश्य में अनेकों जिंदगियां
बचाने पर विशेष जोर दिया गया। इसके अलावा, महामारी विज्ञान संबंधी
अनुसंधान में विशेषकर ऐसे देश में शुरू में ही अत्यंत सख्त लॉकडाउन लागू किए
जाने के महत्व पर प्रकाश डाला गया है जहां अत्यधिक जनसंख्या घनत्व के कारण
सामाजिक दूरी के मानकों का पालन करना काफी कठिन होता है। अत: लोगों की जिंदगियां
बचाने पर फोकस करने वाली भारत के नीतिगत मानवीय उपाय के तहत यह बात रेखांकित की गई
कि शुरू में ही सख्त लॉकडाउन लागू किए जाने से भले ही लोगों को थोड़े समय तक कष्ट
हों, लेकिन इससे लोगों को मौत के मुंह से बचाने और
आर्थिक विकास की गति तेज करने के रूप में दीर्घकालिक लाभ प्राप्त होंगे।
दीर्घकालिक लाभ हेतु अल्पकालिक कष्ट उठाने के लिए हमेशा तैयार रहने वाले भारत
द्वारा किए गए विभिन्न साहसिक उपायों से ही देश में अनेकों जिंदगियों को बचाना और
‘V’ आकार में आर्थिक विकास संभव हो पाया है।
दूसरा, भारत ने इस बात को भी अच्छी तरह से काफी पहले ही समझ लिया
कि महामारी से देश की अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति और मांग दोनों ही
प्रभावित हो रही हैं। इसे ध्यान में रखते हुए अनेक सुधार लागू किए गए, ताकि लॉकडाउन के कारण वस्तुओं की आपूर्ति में लंबे समय तक
कोई खास व्यवधान न आए। इस दृष्टि से भी भारत का यह कदम सभी प्रमुख देशों की तुलना
में अनूठा साबित हुआ है। वस्तुओं की मांग बढ़ाने वाली नीति के तहत इस बात को ध्यान
में रखा गया कि विभिन्न वस्तुओं, विशेषकर गैर-आवश्यक वस्तुओं
की कुल मांग के बजाय बचत पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए जो व्यापक अनिश्चितता की
स्थिति में काफी बढ़ जाती है। अत: महामारी के आरंभिक महीनों, जिस दौरान अनिश्चितता बेहद ज्यादा थी और लॉकडाउन के तहत
आर्थिक पाबंदियां लगाई गई थीं, में भारत ने अनावश्यक
वस्तुओं के उपभोग पर बहुमूल्य राजकोषीय संसाधन बर्बाद नहीं किया। इसके बजाय नीति
में सभी आवश्यक वस्तुओं को सुनिश्चित करने पर फोकस किया गया। इसके तहत समाज के
कमजोर तबकों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरित करने और 80.96 करोड़ लाभार्थियों को लक्षित करने वाले विश्व के सबसे
बड़े खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम पर ध्यान केन्द्रित किया गया। भारत सरकार ने
संकटग्रस्त सेक्टरों को आवश्यक राहत प्रदान करने के लिए आपातकालीन ऋण गारंटी
योजना भी शुरू की जिससे कि विभिन्न कंपनियों को अपने यहां रोजगारों को बनाए रखने
और अपनी देनदारियों की अदायगी में मदद मिल सके।
‘अनलॉक’ चरण,
जिस दौरान
अनिश्चितता के साथ-साथ बचत करने की जरूरत कम हो गई और आर्थिक आवाजाही बढ़ गई, में भारत सरकार ने अपने राजकोषीय खर्च में काफी वृद्धि कर
दी है। अनुकूल मौद्रिक नीति ने पर्याप्त तरलता या नकदी सुनिश्चित की और मौद्रिक
नीति का लाभ लोगों को देने के लिए अस्थायी मोहलत के जरिए कर्जदारों को तत्काल
राहत दी गई। अत: भारत की मांग बढ़ाने संबंधी नीति के तहत यह बात रेखांकित की गई है
कि केवल बर्बादी को रोकने पर ही ब्रेक लगाया जाए और विभिन्न गतिविधियों में तेजी
लाने का काम निरंतर जारी रखा जाए।
वर्ष 2020 ने नोवल कोविड-19 वायरस का व्यापक कहर
पूरी दुनिया पर ढाया जिससे लोगों की आवाजाही,
सुरक्षा और
सामान्य जीवन यापन सभी खतरे में पड़ गया। इस वजह से भारत सहित समूची दुनिया पूरी
शताब्दी की सबसे कठिन आर्थिक चुनौती का सामना करने पर विवश हो गई। इस महामारी का
कोई इलाज या टीका न होने के मद्देनजर इस व्यापक संकट से निपटने की रणनीति सरकारों
की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति पर ही केन्द्रित हो गई। जहां एक ओर महामारी के
बढ़ते प्रकोप को नियंत्रण में रखने की अनिवार्यता महसूस की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर इसे काबू में रखने के लिए लागू किए गए
लॉकडाउन के तहत विभिन्न आर्थिक गतिविधियों पर लगाई गई पाबंदियों से उत्पन्न
आर्थिक सुस्ती से लोगों की आजीविका भी संकट में पड़ गई। आपस में जुड़ी इन समस्याओं
के कारण ही ‘जान भी है, जहान भी है’ की नीतिगत
दुविधा उत्पन्न हो गई।
वाह।।। आज की आर्थिक समीक्षा पर विस्तृत विवेचना बहुत ही प्रभावशाली व पूर्व है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ। ।।।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को "कंकड़ देते कष्ट" (चर्चा अंक- 3963) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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सुन्दर प्रस्तुति
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