ई-ज़ी क्लीनर्स के मालिक डेविड
किम और उनकी पत्नी पिछले एक दशक से ज्यादा समय से बुशविक, ब्रुकलिन में क्लीनिंग
और एक्सपर्ट टेलरिंग सर्विस चलाते रहे हैं।
ऐसा केवल भारत में ही नहीं हुआ, दुनिया भर में हुआ। अमेरिकी
अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने ‘सेव न्यूयॉर्क्स स्मॉल बिजनेस’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जो खासी रोचक
है। इस रिपोर्ट के अनुसार यों भी न्यूयॉर्क में छोटा धंधा करना आसान नहीं था। ऊँचे
किराए, ऊँचे टैक्स, नगरपालिका की जबर्दस्त पाबंदियों और बड़े कॉरपोरेट हाउसों के
बिग-बॉक्स स्टोरों के अलावा अपने जैसे गली-मोहल्लों के छोटे स्टोरों
के साथ जबर्दस्त प्रतियोगिता के कारण छोटे
कारोबारी का जीना पहले से ही मुहाल था। पर वह तो तब था, जब कोरोना का प्रकोप नहीं
था।
वैश्विक महामारी ने दुनिया भर के कारोबारियों को नुकसान
पहुँचाया है। भारत में तमाम छोटे कारोबार तबाह हो गए। आमतौर पर घरेलू खरीदारी कम
हुई। लोगों ने अपने खर्चे कम किए हैं। दूसरी तरफ काफी लोग घर से बाहर नहीं निकल
रहे हैं। परचूनी की छोटी दुकानें, गली के नुक्कड़ पर चाट का ठेला लगाने वाले, पान
की गुमटियाँ, हेयर कटिंग सैलून, हलवाई की दुकानें, छोटे-बड़े रेस्त्रां
वगैरह-वगैरह सब बंद हो गए।
इस साल मार्च से जुलाई के बीच न्यूयॉर्क 2,800 छोटे स्टोर
हमेशा के लिए बंद हो गए। नवंबर का महीना आते-आते शहर के छोटे कारोबारियों का
राजस्व जनवरी के मुकाबले आधा भी नहीं रह गया। न्यूयॉर्क के बिजनेस ग्रुप
पार्टनरशिप फॉर न्यूयॉर्क सिटी का कहना है कि न्यूयॉर्क के 2,36,000 छोटे
कारोबारों में करीब 13 लाख लोग काम करते थे। इनमें से शायद एक तिहाई अब दुबारा
नहीं खुल पाएंगे। इस शहर के 24,000 से ज्यादा लोग महामारी में मौत का शिकार हुए
हैं।
महामारी के दौरान इन छोटे कारोबारियों ने ही शहर का साथ
दिया था। इसकी कॉफी शॉप्स, रेस्त्रां, ग्रोसरी शॉप्स और बेकरियों ने लाखों लोगों को सेवाएं
दीं। अब उन्हें बचाने की जरूरत है।
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