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Friday, December 11, 2020

किसान आंदोलन में लहराते पोस्टर

 


दिल्ली के आसपास चल रहे किसान आंदोलन के दौरान 10 दिसंबर की एक तस्वीर मीडिया में (खासतौर से सोशल मीडिया में) प्रसारित हुई है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 10 दिसंबर को हर साल संयुक्त राष्ट्र की ओर से सार्वभौमिक मानवाधिकार दिवसमनाया जाता है। इस मौके पर किसी किसान संगठन की ओर से देश के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं की तस्वीरों के पोस्टर आंदोलनकारियों ने हाथ में उठाकर प्रदर्शन किया। इन तस्वीरों में गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवर राव, अरुण फरेरा, आनन्द तेलतुम्बडे के साथ-साथ पिंजरा तोड़ के सदस्य नताशा नरवाल और देवांगना कलीता वगैरह की तस्वीरें शामिल थीं। इनमें जेएनयू के छात्र शरजील इमाम और पूर्व छात्र उमर खालिद की तस्वीरें भी थीं। ये सभी लोग अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए) के अंतर्गत जेलों में बंद हैं।    

इस समय आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र सिंघु बॉर्डर है और पिछले दो हफ्ते से काफी आंदोलनकारी टिकरी सीमा पर भी बैठे हैं। जो तस्वीरें सामने आई हैं, वे टिकरी बॉर्डर की हैं। आंदोलन के आयोजक शुरू से कहते रहे हैं कि इसमें केवल किसानों के कल्याण से जुड़े मसले ही उठाए जाएंगे, राजनीतिक प्रश्नों को नहीं उठाया जाएगा।

बहरहाल जोगिंदर सिंह उगराहां के नेतृत्व में बीकेयू (उगराहां) से जुड़े लोगों ने इन पोस्टरों का प्रदर्शन किया था। उगराहां का कहना है कि जेलों में बंद लोगों के पक्ष में आवाज उठाना राजनीति नहीं है। जो लोग जेलों में बंद हैं, वे हाशिए के लोगों की आवाज उठाते रहे हैं। हम भी आपके अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, जिन्हें सरकार ने छीन लिया है। यह राजनीति नहीं है।

इन पोस्टरों के बारे में क्रांतिकारी किसान यूनियन (पंजाब) के अध्यक्ष दर्शन पाल सिंह ने सिंघु बॉर्डर पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि इस प्रदर्शन को राजनीतिक प्रदर्शन नहीं कह सकते। आज विश्व मानवाधिकार दिवस है, टिकरी के प्रदर्शन का उद्देश्य मानवाधिकार उल्लंघन की ओर लोगों का ध्यान खींचना है। हम किसी किस्म की राजनीति नहीं कर रहे हैं।

टिकरी में उस मौके पर मौजूद समाज-विज्ञानी नंदिनी सुन्दर ने कहा कि जो लोग जेलों में बंद हैं, वे भी लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं। स्टैन स्वामी लोगों के अधिकारों के लिए लड़ते हैं, सुधा भारद्वाज आदिवासियों के लेए लड़ रही हैं। इस मौके पर मौजूद किसानों ने कहा कि हम किसी भी सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ हैं।

अलबत्ता इस घटनाक्रम के बाद 11 दिसंबर को 32 संगठनों ने बीकेयू एकता (उगराहां) की इस कोशिश को गलत बताया और प्रस्ताव पारित किया कि केवल किसानों की माँग के अलावा दूसरी कोई माँग इसके साथ नहीं होनी चाहिए। 

 

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