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Tuesday, December 1, 2020

क्या है भाग्यलक्ष्मी मंदिर और भाग्यनगर की पृष्ठभूमि?


शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह ने हैदराबाद के भाग्यलक्ष्मी मंदिर में दर्शन किए। उनके साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने इस शहर का नाम बदल कर भाग्यनगर रखने का सुझाव दिया। क्या इन दोनों का कोई आपसी संबंध है?

क्या है भाग्यलक्ष्मी मंदिर की पृष्ठभूमि? हैदराबाद की प्रसिद्ध चारमीनार की दक्षिण पश्चिम मीनार की दीवार से लगा यह देवी महालक्ष्मी का मंदिर है। यह कोई प्राचीन इमारत नहीं है। इसकी छत टीन की है और इसकी पिछली दीवार वस्तुतः मीनार की दीवार है। इस बात का कोई आधिकारिक विवरण उपलब्ध नहीं है कि यह मंदिर कब बना, पर ज्यादातर लोग मानते हैं कि यह साठ के दशक में पहली बार देखा गया था।


एंड्रयू पीटरसन की डिक्शनरी ऑफ इस्लामिक आर्किटेक्चर के अनुसार हैदराबाद शहर का पुराना नाम बाग़नगर यानी बगीचों का शहर था। मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने इसका नाम बदलकर हैदराबाद कर दिया। किंवदंती यह भी है कि कुली कुतुब शाह की प्रेमिका (और रानी, जो हिंदू थी) भागमती के नाम पर यह नाम पड़ा। इस आशय के किस्से काफी प्रचलन में हैं। लिखित इतिहास के अनुसार कुली कुतुब शाह ने अपनी राजधानी को गोलकुंडा से बाहर ले जाने के लिए इस शहर का निर्माण किया था।

सिकंदराबाद के सांसद जी किशन रेड्डी का कहना है कि यह मंदिर चार मीनार बनने से पहले का है। चारमीनार का निर्माण 1591 में शुरू हुआ था। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार भारतीय पुरातत्व विभाग से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यह चारमीनार की जमीन पर कब्जा करके बनाया गया है। साठ के दशक में पहले इन मीनारों की रक्षा के लिए बने एक खंभे पर भगवा रंग पुता देखा गया। फिर वहाँ किसी ने आरती शुरू कर दी।

एकबार राज्य परिवहन निगम की एक बस खंभे से टकरा गई, जिससे वह क्षतिग्रस्त हो गया। इसके बाद रातोंरात वहाँ बाँस की सहायता से एक कक्ष बना दिया गया जिसके भीतर प्रतिमा रख दी गई। इसके बाद यहाँ एक सालाना समारोह होने लगा, जिसके दौरान हर साल एक-दो फुट जमीन को घेरकर मंदिर के दायरे में शामिल किया जाने लगा।

तेलंगाना विधान परिषद में विपक्ष के नेता मोहम्मद शब्बीर अली के अनुसार सन 2013 में हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि इस विस्तार को रोका जाए। इस इलाके के बाजार में कारोबार करने वाले हिंदू व्यापारी हर रोज इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं। विभिन्न समारोहों, खासतौर से दीपावली के अवसर पर यहाँ काफी भीड़ लगती है और दर्शनार्थियों की कतार लग जाती है।

सन 1979 में मक्का की पवित्र मस्जिद अल हराम पर कुछ सशस्त्र लोगों ने कब्जा कर लिया, जो सऊदी शाह को अपदस्थ करना चाहते थे। उसकी प्रतिक्रिया दुनियाभर में हुई और हैदराबाद में बंद आयोजित किया गया। उस दौरान इस मंदिर में तोड़फोड़ भी हुई। नवंबर 2012 में पता लगा कि मंदिर का प्रबंधन इसका विस्तार करना चाहता है, तब यह मामला हाईकोर्ट गया।

 

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