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Sunday, November 22, 2020

‘लव जिहाद’ प्रेम नहीं, राजनीति

देश में भाजपा-शासित कम से कम पाँच राज्यों ने धर्मांतरण के लिए किए जा रहे अंतर-धर्म विवाहों यानी लव जिहाद पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने की तैयारी कर ली है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और असम ने इसमें पहल की है और संभव है कि कुछ और राज्यों के नाम सामने आएं। इन कानूनों की परिणति क्या होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है, पर इतना साफ लगता है कि अगले साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा।

सिद्धांततः अंतर-धर्म विवाहों पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है, पर यह बहस विवाह की नहीं धर्मांतरण की है। अंतर-धर्म विवाहों का यह झगड़ा आज का नहीं है। यह उन्नीसवीं सदी से चला आ रहा है। यह मामला केवल भाजपा-शासित राज्य उठा रहे हैं, दूसरी तरफ राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित राज्यों ने इस किस्म के कानून की संभावनाओं को अनुचित ठहराया है। देखना होगा कि राजनीतिक दल जनता तक इसका संदेश किस रूप में ले जाते हैं।

अंतर-धर्म विवाह हमारे यहाँ आम नहीं हैं, पर होते तो हैं। हरेक विवाह में धर्मांतरण होता भी नहीं, पर काफी में होता है। आमतौर पर लड़कियों का धर्म बदला जाता है। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हों, तो कानूनी संरक्षण होता है। वास्तव में इस समस्या के मूल में विवाह नहीं धर्मांतरण है। देश के दस राज्यों में कमोबेश धर्मांतरण पर पाबंदियाँ हैं। इस बहस के कम से कम तीन पहलू हैं। पहला धर्म या धार्मिकता से जुड़ा है। दूसरा, राजनीतिक और तीसरा संविधानिक या कानूनी है। जहाँ तक धोखाधड़ी से धर्म-परिवर्तन कराने की बात है, आईपीसी में इसके लिए कानूनी व्यवस्थाएं हैं। शादी में धोखाधड़ी के खिलाफ भी व्यवस्थाएं है। धर्मों की सामाजिक भूमिका और मान्यताओं को कानूनों से बदला नहीं जा सकता। फिर भी देखना होगा कि किस प्रकार के कानून सरकारें लाना चाहती हैं। 

विस्मय की बात है कि इक्कीसवीं सदी में, जब धर्मों की व्यक्ति के जीवन में भूमिका कम होनी चाहिए, धार्मिक विस्तार हमारी चिंता का विषय है। मोटे तौर पर यह सब मानते हैं कि दबाव में, लोभ-लालच देकर या धमकी देकर धर्मांतरण कराना अनुचित है। संविधान के अनुच्छेद 25(1) के अनुसार ‘लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।’

इसमें प्रचार शब्द को लेकर संविधान सभा में काफी बहस हुई। इसे हटाने का प्रस्ताव किया गया, पर अंततः यह शब्द कायम रहा। प्रश्न है कि प्रचार का अधिकार क्या धर्मांतरण की स्वतंत्रता है? धर्मांतरण यदि लोभ-लालच, भय, दबाव वगैरह के कारण हुआ है तब वह अनुचित है। पर यदि कोई कहे कि केवल मेरे धर्मावलम्बी ही स्वर्ग जाएंगे या फलां काम को करने से फलां नुकसान होगा, तब उसे क्या मानेंगे? अस्पताल खोलना क्या लोभ-लालच के दायरे में आएगा? और अब कहा जा रहा है कि प्रेम-पाश में फँसाना भी लुभाने का एक तरीका है। सन 1977 में सुप्रीम कोर्ट ने स्टैनिस्लास बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में स्पष्ट किया था कि धर्मांतरण अपने आप में मौलिक अधिकार नहीं है और राज्य उसका नियमन कर सकता है।

राज्यों को कानून बनाने के पहले यह परिभाषित करना होगा कि लव जिहाद क्या है। इस साल 4 फरवरी को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने संसद को बताया कि वर्तमान कानूनों के तहत लव जिहाद परिभाषित नहीं है। आमतौर पर इसका अर्थ मुस्लिम पुरुष और हिंदू स्त्री के प्रेम या वैवाहिक रिश्तों से लगाया जाता है। उन्होंने बताया, अलबत्ता केरल के दो मामलों की जाँच राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले का हवाला भी इस सिलसिले में दिया है। ताजा खबर यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार पहले इस विषय पर अध्यादेश लाने वाली है, जो जल्द ही सामने होगा। देखना होगा कि अध्यादेश में लव जिहाद का नाम है या नहीं और है, तो उसे किस तरह से परिभाषित किया गया है।  

उत्तर भारत में इसे हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक समस्या के रूप में देखा जा रहा है, पर यह केरल में हिंदू-मुस्लिम के साथ ईसाई-मुस्लिम समस्या का रूप भी धारण कर चुकी है। सन 2017 में हादिया का मामला केरल से ही आया था, जिसमें अखिला नाम की एक हिंदू लड़की ने धर्म-परिवर्तन कर इस्लाम को स्वीकार किया (और अपना नाम हादिया रखा)। बाद में उसने एक मुस्लिम लड़के से शादी भी की। लड़की के माता-पिता इसके लिए तैयार नहीं थे। उनकी याचिका पर केरल हाईकोर्ट ने उस शादी को रद्द कर दिया था।

अंत में वह मामला सुप्रीम कोर्ट तक या, जिसने शादी को वैध माना और पति-पत्नी को साथ जाने दिया। महत्वपूर्ण बात यह है कि केरल की पुलिस बाकायदा लव जिहादको साजिश मानकर चल रही थी। यह साजिश है या नहीं है, इसे लेकर राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को जाँच भी सौंपी गई थी। केरल में वाममोर्चे की सरकार है। यह नहीं कह सकते कि वहाँ की पुलिस राजनीतिक दृष्टि से इन मामलों को देख रही थी। उसे देश के सबसे प्रगतिशील राज्यों में गिना जाता है, पर इस राज्य में सांप्रदायिक वर्चस्व के सवाल उठ रहे हैं।

इस साल 15 जनवरी को प्रेस ट्रस्ट ने खबर दी कि कार्डिनल जॉर्ज ऐलनचैरी की अध्‍यक्षता वाली पादरियों की एक संस्‍था ने दावा किया है कि बड़ी तादाद में राज्य की ईसाई महिलाओं को लुभाकर इस्लामिक स्टेट और आतंकवादी गतिविधियों में धकेला जा रहा है। संस्था का कहना था कि लव जिहाद वास्तविकता है। पादरियों की धर्मसभा ने एक पुलिस रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि जिन 21 लोगों को आईएस में भरती किया गया था, उनमें से आधे ईसाई थे जिन्होंने अपना धर्म बदला था।

पिछले साल नवंबर में उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें जबरन धर्मांतरण पर नया कानून बनाने की सिफारिश की गई है। इस रिपोर्ट के साथ उत्तर प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2019का प्रारूप भी सौंपा गया है।  मुख्यमंत्री को यह रिपोर्ट आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदित्यनाथ मित्तल और सपना त्रिपाठी ने सौंपी।  आयोग का मत है कि मौजूदा कानूनी प्रावधान धर्मांतरण रोकने के लिए पर्याप्त नहीं हैं और इस गंभीर मसले पर दस अन्य राज्यों की तरह नए कानून की आवश्यकता है। देश और पड़ोसी देशों मसलन नेपाल, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान के कानूनों के अध्ययन के बाद रिपोर्ट को राज्य सरकार के विचारार्थ भेजा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में जबरन धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के विशेष कानून बन चुके हैं।

हरिभूमि में प्रकाशित

 

 

1 comment:

  1. सारा निचोड इतने में है "विस्मय की बात है कि इक्कीसवीं सदी में, जब धर्मों की व्यक्ति के जीवन में भूमिका कम होनी चाहिए, धार्मिक विस्तार हमारी चिंता का विषय है।"

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