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Monday, September 21, 2020

साइबर-सूराखों के रास्ते ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’

इस हफ्ते ‘हाइब्रिड वॉरफेयर’ से जुड़ी दो सनसनीखेज खबरें हैं। सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी एक चीनी कंपनी ‘विदेशी निशाने’ नाम से डेटाबेस तैयार कर रही है, जिसमें बड़ी संख्या में दुनियाभर के लोगों पर नजरें रखी जा रहीं हैं। जिन पर निगाहें हैं उनमें भारत के दस हजार से ज्यादा व्यक्ति शामिल हैं। ज्यादातर महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं। उनके बारे में चीन क्या जानना चाहता है, क्यों जानना चाहता है ऐसे सवालों के जवाब बाद में मिलेंगे, पर जब इस सिलसिले में पूछताछ की गई तो पूरी वैबसाइट डाउन कर दी गई। इससे लगता है कि इसके पीछे कोई रहस्य जरूर है। कम से कम दुनिया में साइबर शक्ति के बढ़ते इस्तेमाल का पता इससे जरूर लगता है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ज़ेंज़ुआ डेटा इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनी की ओर से जिन भारतीयों पर नज़र रखी जा रही है, उनमें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, गांधी परिवार, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, नवीन पटनायक जैसे बड़े नेता, राजनाथ सिंह-पीयूष गोयल जैसे केंद्रीय मंत्री, सीडीएस विपिन रावत समेत कई बड़े सेना के अफसर शामिल हैं। समाज के हरेक वर्ग के लोगों पर चीन की निगाहें हैं।

जून के आखिरी हफ्ते में सायबर इंटेलिजेंस फर्म सायफर्मा के हवाले से खबर थी कि पिछले एक महीने में चीन से होने वाले साइबर हमलों में 200 फीसदी की वृद्धि हुई है। आमतौर पर चीनी हमलों के निशाने पर अमेरिका, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया होते हैं, पर गलवान के टकराव के बाद चीनी हमलों का निशाना भारत के सार्वजनिक रक्षा उपक्रम और कुछ संवेदनशील ठिकाने हैं। जून के आखिरी हफ्ते की खबर थी कि चीनी हैकरों ने पाँच दिन में भारत पर 40,000 सायबर हमले किए। चीनी हैकर विदेश और रक्षा जैसे संवेदनशील मंत्रालयों, बड़े उद्योगों के आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर को टार्गेट कर रहे हैं। बैंकों, न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन और एचएएल जैसी संस्थाओं के डेटा में सेंध लगाने का प्रयास भी। भारतीय कंप्यूटर इमर्जेंसी रेस्पांस टीम (सीईआरटी-इन) ने गत 21 जून को एडवाइज़री जारी की कि देश के लाखों व्यक्ति साइबर हमले के शिकार हो सकते हैं।

चीन की इस नवीनतम तहकीकात का उद्देश्य और निहितार्थ आने में कुछ समय लगेगा। हमें उसका इंतजार करना होगा। इस दौरान अमेरिका में चल रहे चुनाव अभियान में बढ़ते विदेशी साइबर हस्तक्षेप की खबरों ने भी दुनिया का ध्यान खींचा है। हाल में माइक्रोसॉफ्ट ने चेतावनी दी है कि रूस के साथ चीन और ईरान के हैकर अमेरिकी चुनाव में हस्तक्षेप कर रहे हैं। इसके पहले अमेरिका की खुफिया एजेंसियों, फेसबुक और ट्विटर पर पहले से ऐसी सूचनाओं की बाढ़ है। ये हैकर डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी के कैम्पेन स्टाफ, कंसल्टेंट और थिंक टैंकों को निशाना बना रहे हैं।

चुनाव में हैकिंग

माइक्रोसॉफ्ट ने जो सूचना दी है उसमें विस्मय की बात यह है कि चीनी हैकर ट्रम्प से ज्यादा जो बायडन को निशाना बना रहे हैं। वहीं ईरानी हैकर ट्रम्प के प्रचार अभियान को प्रभावित करना चाहते हैं।  रूसी हैकर दोनों पार्टियों को निशाना बना रहे हैं। रूस की मिलिटरी इंटेलिजेंस यूनिट (जीआरयू) का मकसद है कैम्पेन से जुड़े लोगों के मेल हैक करो और उसे लीक करो। 2016 में हिलेरी क्लिंटन के कैम्पेन के ईमेल भी हैक करके लीक किए गए थे। उस वक्त रूस सरकार ने तमाम ट्रॉल फार्मों को पैसा देकर तैयार किया था, जिन्होंने चुनाव के दौरान गलत सूचनाओं का प्रसार किया।

माइक्रोसॉफ्ट ने रूसी ग्रुप स्त्रोनियम का विशेष रूप से उल्लेख किया है, जिसने 200 से ज्यादा संगठनों पर हमला बोला है। इसी तरह चीनी ग्रुप जिर्कोनियम ने चुनाव से जुड़े उच्च पदस्थ लोगों के कम्प्यूटरों को निशाना बनाया है। ईरानी ग्रुप फॉस्फोरस खासतौर से ट्रंप के सहयोगियों को निशाना बना रहा है। रूसी हैकर सॉफ्टवेयर इसबार टॉर की मदद से अटैक कर रहे हैं। इससे हैकरों की पहचान आसानी से नहीं होती है।

अगस्त के महीने में अमेरिका के नेशनल काउंटर-इंटेलिजेंस एंड सिक्योरिटी सेंटर ने कहा था कि रूसियों का झुकाव इसबार भी ट्रंप के पक्ष में लग रहा है जैसाकि 2016 के चुनाव में था। माइक्रोसॉफ्ट ने जिस रूसी ग्रुप को ट्रैक किया है, वह रूसी मिलिटरी इंटेलिजेंस ग्रुप से सम्बद्ध वही ग्रुप है, जो 2016 में भी सक्रिय था। हाल में ट्रंप के कुछ सहयोगियों का कहना था कि इसबार रूसी ग्रुपों की तुलना में चीनी ग्रुपों से खतरा ज्यादा है।

माहौल में ज़हर घोलने का काम

माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि रूसियों, चीनियों और ईरानियों की ज्यादातर कोशिशों को हमने ब्लॉक कर दिया है, पर यह नहीं बताया कि क्या कुछ कोशिशें सफल भी हुई हैं। इन आरोपों के जवाब में वॉशिंगटन स्थित रूसी दूतावास ने कहा है कि निरर्थक और गलत बातों का प्रचार नहीं करना चाहिए, जिससे दोनों देशों के बीच जहरीला माहौल बने। चीनी और ईरानी दूतावासों ने इस सिलसिले में कोई बयान जारी नहीं किया है।

इसबार के अमेरिकी चुनाव में साइबर सिक्योरिटी एक महत्वपूर्ण विषय इसलिए भी है, क्योंकि कोविड-19 के कारण काफी लोग ‘मेल-इन बैलट’ की मदद से मतदान करेंगे। इतना ही नहीं चुनाव से जुड़े ज्यादातर लोग, चाहे वे सरकारी हों या पार्टियों से जुड़े, अपने घरों से काम कर रहे हैं। घरों के कंप्यूटरों की सुरक्षा अपेक्षाकृत कमजोर होती है। ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों  ने गलत और भ्रामक जानकारियों को रोकने के लिए अतिरिक्त व्यवस्थाएं की हैं, पर वैब प्लेटफॉर्मों पर कोई सूचना कुछ मिनटों तक भी ठहर जाए, तो उसका प्रसार होता जाता है, भले ही उसे फौरन हटा दिया जाए।

अमेरिका की राजनीति और कारोबार का विश्वव्यापी प्रभाव होता है, इसलिए वहाँ के चुनावों में दुनियाभर की दिलचस्पी होती है। सन 2016 के चुनाव के दौरान रूसी हस्तक्षेप साफ नजर आया। अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों के अनुसार रूसी समूहों ने डेमोक्रेटिक पार्टी की हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ माहौल बनाने में भूमिका निभाई। ऐसा ही निष्कर्ष विशेष जाँच अधिकारी रॉबर्ट म्यूलर ने निकाला और हाल में सीनेट इंटेलिजेंस कमेटी की एक रिपोर्ट में भी यह बात कही गई है।

खुला रूसी हस्तक्षेप

सीनेट की इंटेलिजेंस कमेटी में रिपब्लिकन सदस्यों का वर्चस्व है, फिर भी जुलाई 2019 की उसकी पहली रिपोर्ट में कहा गया था कि जनवरी 2017 की इंटेलिजेंस कमेटी का रूसी हस्तक्षेप के बाबत निष्कर्ष सही था। करीब तीन साल की जाँच और पड़ताल के बाद कमेटी की रिपोर्ट का पाँचवाँ खंड 18 अगस्त, 2020 को जारी हुआ है। इसमें साफ कहा गया है कि 2016 के चुनाव में रूसी सरकार ने ट्रंप के पक्ष में हस्तक्षेप किया और चुनाव प्रक्रिया को सैबोटाज किया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस काम में ट्रंप के कुछ सहयोगियों ने रूसियों की मदद भी की।

उस चुनाव के दौरान सेंट पीटर्सबर्ग की इंटरनेट रिसर्च एजेंसी (आईआरए) ने, जिसे ट्रॉल फार्म कहा जा रहा है, अमेरिकी नागरिकों के नाम से हजारों सोशल मीडिया एकाउंट तैयार किए। इनके संदेश सोशल मीडिया से जुड़े लाखों लोगों तक पहुँचाए गए। झूठे आलेख और मनगढ़ंत बातें जमकर फैलाई गईं। इनके अलावा रूसी मिलिटरी इंटेलिजेंस से जुड़े कम्प्यूटर हैकरों ने डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी (डीएनसी) और डेमोक्रेटिक कांग्रेसनल कैम्पेन कमेटी (डीसीसीसी) और क्लिंटन के अभियान से जुड़े पदाधिकारियों के सिस्टम्स में प्रवेश करके उनकी फाइलें चुराईं और उनका प्रचार किया।

2016 के चुनाव के दौरान रूसी हरकतों से नाराज होकर तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राष्ट्रपति पुतिन को सीधी चेतावनी भी दी और रूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा की। चुनाव जीतने के बाद ट्रंप ने रूसी हस्तक्षेप की बातों को गलत बताया और कहा कि हिलेरी हार रही थीं, इसलिए सारी कहानियाँ गढ़ी गईं।

रूसी हस्तक्षेप की जानकारी सबसे पहले 22 सितंबर 2016 को सबसे पहले अमेरिकी कांग्रेस में सामने आई। उसकी पुष्टि अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसियों ने 7 अक्तूबर, 2016 को की। नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी के डायरेक्टर ने जनवरी, 2017 में इसके बारे में विस्तार से विवरण भी दिया। अमेरिकी एजेंसियों के अनुसार इस रूसी ऑपरेशन के पीछे सीधे व्लादिमीर पुतिन के निर्देश थे। और यह भी कि ट्रंप का अभियान चलाने वालों और रूस सरकार के बीच सीधा समन्वय था। ट्रंप के पिछले चार साल इन आरोपों के बीच गुजरे और उन्होंने इसी किस्म के कुछ दूसरे आरोपों के साथ एक महाभियोग का सामना भी किया। एकबार फिर से वही हालात पैदा हो रहे हैं। देखना होगा कि अमेरिकी मतदाता इस खुले वैश्विक हस्तक्षेप पर अपनी राय किस तरह दर्ज कराएगा। 

नवजीवन में प्रकाशित

 

 

2 comments:

  1. बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति

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