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Saturday, August 15, 2020

आशंकाएं और उम्मीदें

स्वतंत्रता दिवस की 73 वीं वर्षगाँठ के मौके पर देश तीन तरह की परेशानियों का सामना कर रहा है। सीमा पर चीन ने चुनौती दी है। दूसरी तरफ कोरोना वायरस की महामारी से भारत ही नहीं पूरी दुनिया परेशान है। तीसरी चुनौती है अर्थव्यवस्था की। भारत वैश्विक महाशक्तियों की कतार में शामिल जरूर हो चुका है, पर हम अभी संधिकाल में है। इस संधिकाल को पूरा करने के बाद ही खुशहाली की राह खुलेगी। आशंका है कि इस साल हमारी अर्थव्यवस्था की विकास-गति शून्य से भी नीचे चली जाएगी।

इन सब चुनौतियों के अलावा स्वतंत्रता दिवस के ठीक दस दिन पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू होने के साथ एक नए युग की शुरुआत हुई है। पर इसके साथ ही कुछ सवाल भी खड़े हुए हैं। क्या यह राष्ट्र निर्माण का मंदिर बन पाएगा? क्या यह एक नए युग की शुरुआत है? ये बड़े जटिल प्रश्न हैं। मंदिर का भूमि पूजन होने के एक दिन पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक लम्बे प्रेस नोट के साथ ट्वीट किया कि ‘बाबरी मस्जिद थी और हमेशा ही मस्जिद रहेगी। अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक और बहुसंख्यक तुष्टीकरण के आधार पर किया गया फैसला इसे नहीं बदल सकता।’

हालांकि बाद में वह ट्वीट वापस ले लिया गया, पर साफ है कि सामाजिक जीवन में जहर घोलने की कोशिशें खत्म होने वाली नहीं हैं। निश्चित रूप से आने वाले दौर की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था व्यापक सामाजिक विमर्श के दरवाजे खोलेगी और जरूर खोलेगी। यह विमर्श एकतरफा नहीं हो सकता। भारतीय समाज में तमाम अंतर्विरोध हैं, टकराहटें हैं, पर एक धरातल पर अनेक विविधता को जोड़कर चलने की सामर्थ्य भी है। हजारों साल पुरानी इस सभ्यता के पास टकराहटों के समाधान भी हैं।

बहुत से लोग राम मंदिर के निर्माण को भारत में ‘उदारवाद’ की पराजय के रूप में भी देख रहे हैं। पराजय उदारवाद की नहीं उदारवादियों की है। हमारे समाज की बुनियाद ही उदारता पर टिकी है, उससे वह हट नहीं सकता। हिंदू मानस भारत को धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में ही देखता है और इसकी रक्षा भी उसे ही करनी है। पर बीजेपी के राजनीतिक हिंदुत्व का विरोध करने की हड़बड़ी में लिबरल तबके ने अपनी कमीज पर ‘हिंदू-विरोध’ के दाग लगते नहीं देखे। शाहबानो से लेकर कश्मीर घाटी और ट्रिपल तलाक तक, उसकी छवि मुस्लिम कट्टरता के समर्थक की बनी।

इससे ज्यादा बड़ी चुनौती चीन की है। भूमि पूजन के एक महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लद्दाख की यात्रा पर गए। वहाँ से उन्होंने देश के शत्रुओं को बेहद कड़ा संदेश दिया। उनकी लद्दाख यात्रा जितनी सांकेतिक थी, उससे ज्यादा सांकेतिक था उनका वक्तव्य, जो विदेश-नीति में एक बुनियादी मोड़ का संकेतक भी था। गत 15 जून को गलवान क्षेत्र में हुई हिंसा के बाद उम्मीद थी कि चीन भी इस मामले की गंभीरता को समझेगा और तनाव और टकराव को आगे बढ़ाने की कोशिश नहीं करेगा। पर चीन अपनी सी पर अड़ा है और लगता है कि वह किसी दीर्घकालीन योजना पर काम कर रहा है।

लद्दाख में प्रधानमंत्री ने कहा, हम वे लोग हैं जो बांसुरी धारी श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं, और सुदर्शन चक्रधारी कृष्ण को भी आदर्श मानते हैं। इसी प्रेरणा से हर आक्रमण के बाद भारत और सशक्त होकर उभरा है। वीरता ही शांति की पूर्व शर्त होती है। प्रधानमंत्री का यह भाषण केवल सैनिकों को संबोधित नहीं था। संदेश साफ है कि चीन ने हमारी शांति-कामना का गलत अर्थ निकाल लिया है। चीनी कोशिशें में उसका बगल-बच्चा बना हुआ है पाकिस्तान। इस 5 अगस्त को कश्मीर से अनुच्छेद 370 की वापसी की पहली वर्षगाँठ भी थी। कश्मीर में एक नई कहानी लिखी जाने वाली है। फिलहाल चीन और पाकिस्तान दोनों का एकसाथ मुकाबला हमें करना है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि आज नहीं तो कल चीन के पुराने हिसाब-किताब भी चुकता हमें करने हैं।

तात्कालिक रूप से ज्यादा बड़ी समस्याएं हैं कोविड-19 और आर्थिक मंदी। भारत अब कोरोना का केंद्र बन गया है। दुनिया भर में सबसे ज्यादा नए मामले भारत में आ रहे हैं और फिलहाल गिरावट नजर नहीं आ रही है। अमेरिका और ब्राजील समेत दुनिया के अन्य तमाम देशों में गिरावट आने लगी है। बड़े शहरों में दबाव कम हुआ है लेकिन ग्रामीण इलाकों में बढ़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं, इसलिए यह समस्या गम्भीर है।

कोरोना केवल स्वास्थ्य संकट नहीं है। यह संक्रमण हमारी आर्थिक प्रगति पर हमला कर रहा है। लॉकडाउनों के कारण आर्थिक गतिविधियाँ अवरुद्ध हो रही हैं। अर्थव्यवस्था में गिरावट से हालात और बिगड़ेंगे। हालांकि रूस ने अपनी वैक्सीन को जारी कर दिया है, पर लगता नहीं कि भारत में वह आ पाएगी। भारत में जो संभावित टीके तैयार हो रहे हैं, उनके जारी होने में अभी कुछ महीनों की देरी है। यह दुविधा की स्थिति है। यहीं पर हमारी परीक्षा भी है।

मार्च में पहला लॉकडाउन होते ही देश में जो भगदड़ मची थी, उसके दुष्परिणाम अब सामने आ रहे हैं। उसके कारण एक तो संक्रमण का प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों तक हुआ, दूसरे आर्थिक गतिविधियों को चलाने के लिए श्रमिकों की संख्या कम पड़ने लगी। जब से सरकार का रुख आर्थिक गतिविधियों को अनलॉक करने का हुआ है, तब से कंपनियां श्रमिकों को वापस लाने पर जोर दे रही हैं। जिस तरह मजदूरों को उनके घरों तक पहुँचाने का काम चुनौतियों से भरा था, उसी तरह अब उन्हें वापस लाने की चुनौती सामने आएगी।

देश के कॉरपोरेट जगत ने उस समय श्रमिक वर्ग के बारे में नहीं सोचा और उन्हें मँझधार में छोड़ दिया। वे घबरा गए और अपने घरों की ओर भागे। अब विनिर्माण क्षेत्र को मजदूरों की तलाश है, जो कम पड़ रहे हैं। अभी नहीं, तो कुछ महीने बाद कोविड का असर कम होगा, तब अचानक मजदूरों की जरूरत बढ़ जाएगी। इस चुनौती का सामना हम किस तरह से करेंगे, इसके बारे में अभी से योजना बनानी चाहिए। प्रवासी कर्मचारियों को सुरक्षा का अहसास कराने की जिम्मेदारी कॉरपोरेट हाउसों पर है।

सबसे महत्वपूर्ण चुनौती अर्थव्यवस्था से जुड़ी है। यह समय पुनर्गठन का भी है। बहुत सी नीतियाँ बदल रही हैं। सरकार निवेश से जुड़ी रियायतों की घोषणाएं कर रही है। हालांकि इस वित्त वर्ष के पहले छह महीने ढीले ही रहेंगे, पर आखिरी छह महीनों में गति बढ़ाई जा सकती है। आर्थिक मामलों के सचिव तरुण बजाज ने हाल में कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि मौजूदा साल मुश्किलों भरा है, लेकिन मीडिया में कई ऐसी चीजें आ रही हैं, जो तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। कुछ क्षेत्रों की चाल सुस्त हो सकती है, वहीं कुछ क्षेत्रों में सुधार भी नजर आ रहा है। राजस्व के आंकड़े पिछले वर्ष के मुकाबले कमजोर हैं, मगर वे गंभीर स्थिति की ओर इशारा नहीं कर रहे हैं। वाहनों की बिक्री बढ़ी है। ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो रबी फसल अच्छी रही थी और खरीफ भी अच्छी रहने की संभावना है।

बुनियादी ढांचे पर सरकार का पहले से जोर है। जरूरत पड़ने पर सरकार इस क्षेत्र के लिए और रकम का प्रावधान कर सकती है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के साथ पीएम किसान सहित सभी दूसरी योजनाओं पर सरकार जोर दे रही है। मनरेगा के लिए सरकार ने रकम का आवंटन बढ़ाया है और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के जरिए भी ग्रामीण क्षेत्रों में ज़रूरतमंदों को वित्तीय मदद दी जा रही है। कमोबेश ग्रामीण क्षेत्र में हालात सुधर गए हैं। जरूरत औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ाने की है। उम्मीद है कि हम सफल होंगे और स्वतंत्रता दिवस पर नहीं, तो गणतंत्र दिवस पर खुलकर गले मिलेंगे।

हरिभूमि में प्रकाशित

1 comment:

  1. स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं।

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