हाल में एक अदालत ने नशेड़ी ड्राइवरों की तुलना पिदायी बॉम्बर से की थी। दिल्ली पुलिस इन दिनों नशेड़ी ड्राइवरों के खिलाफ विशेष
अभियान चला रही है। इसमें बड़े-बड़े लोग भी जाल में फँसेंगे, पर इससे पीछे नहीं
हटना चाहिए। केवल नशे के बारे में ही नहीं लेन ड्राइविंग और सीमा के भीतर की गति
से वाहन चलाने के अभियान चलने चाहिए। दिल्ली की सड़कों पर डेढ़ सौ किलोमीटर की स्पीड
से बीएमडब्ल्यू चलाने के प्रसंग हम देख चुके हैं। इसके पहले कि ये सब बातें खतरनाक
मोड़ तक पहुँचें इनपर काबू पा लिया जाना चाहिए। दुखद सत्य है कि नरेंद्र मोदी
सरकार को पिछले साल सड़क दुर्घटना में अपने काबिल मंत्री गोपीनाथ मुंडे को खोना
पड़ा था।
दश में सड़कों पर मोटर
वाहनों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। उतनी ही तेजी से सड़कों पर अराजकता बढ़ रही
है। ट्रैफिक जाम हर शहर की कहानी है। उससे ज्यादा भयावह है दुर्घटनाओं का बढ़ते
जाना। हर साल तकरीबन 1,40,000 लोगों की मौत सड़क दुर्घटना से होती है। इससे ज्यादा
बड़ी संख्या घायलों की होती है। इन्हें दुर्घटना कहना गलत है क्योंकि बहुसंख्यक
मामले अनाड़ी, जानबूझकर या शराब पीकर ड्राइविंग के कारण होते हैं। पहली वजह
ट्रैफिक सेंस का न होना और दूसरी वजह है नियमों का पालन कराने वाली एजेंसियों का
शिथिल होना। एक और कारण है नियमों का न होना या अपर्याप्त होना।
संयुक्त राष्ट्र
ने ऐसे 10 देशों की पहचान की है जहां सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें
भारत का नाम सबसे ऊपर है।
दुनियाभर की दस
फीसदी दुर्घटनाएं भारत में होती हैं। हमारे देश को विश्व में ‘सड़क दुर्घटनाओं की
राजधानी’ कहा जाने लगा है। सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के मुताबिक भारत में
हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 1.38 लाख लोगों की मौत होती है, जिसकी कुल
सामाजिक लागत लगभग एक लाख करोड़ रुपए बैठती है। दुर्घटनाओं के कारण होने वाली 63
फीसदी मौतें राष्ट्रीय और राजमार्गों पर होती हैं। इसका मतलब है कि राजमार्गों के
निर्माण में खामी है या वाहन चालकों का व्यवहार अनुशासित नहीं है। इसके पीछे शराब
पीकर गाड़ी चलाना, नो एंट्री नियमों
का पालन न करना और रैश ड्राइविंग सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं।
दिक्कत यह है कि
इन अपराधों के लिए मामूली सजाओं की व्यवस्था है। लोग आसानी से छूट जाते हैं। हल्की
सजा देने को न्याय का मजाक बताते पिछले हफ्ते 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने कानून
निर्माताओं से कहा है कि सजा को सख्त बनाया जाए। अदालत ने कहा कि भारत का रोड
एक्सीडेंट में अपमानजनक रिकार्ड है। नशे में गाड़ी चलाने वाले सबसे ज्यादा लोगों
की जान लेते हैं। कानून निर्माताओं को आईपीसी की धारा 304 ए के तहत मिलने वाली सजा
पर फिर से विचार करना चाहिए। क्योंकि इसमें मिलने वाली सजा बहुत कम है। धारा 304 ए लापरवाही से किए गए
कृत्य के कारण मौत होने पर दी जाने वाली सजा दो वर्ष या जुर्माना या दोनों है। अदालत ने ये टिप्पणियाँ हरियाणा सरकार की
अपील पर किए गए एक फैसले में की थीं। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के उस फैसले का
चुनौती दी थी जिसमें दो लोगों को गाड़ी से टक्कर मारकर मारने वाले को कुछ दिन जेल
में गुजारने को ही सजा मानकर माफ कर दिया गया था।
अदालत का यह फैसला ऐसे वक्त
आया है जब सरकार ने नए सड़क यातायात अधिनियम का प्रारूप तैयार किया है। यह पुराने
कानून का स्थान लेगा। सरकार का कहना है कि नया मोटर वाहन अधिनियम सड़क क्षेत्र से
जुड़े अंतरराष्ट्रीय अधिनियमों के अनुरूप होगा। इसमें अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर, जापान, जर्मनी और
ब्रिटेन में अपनाए जा रहे सर्वोत्तम तरीकों की खास बातों को शामिल किया जा रहा है।
यह कानून मोटर वाहन अधिनियम-1988 की जगह लेगा। प्रस्तावित कानून में शराब पीकर वाहन चलाने वालों पर शिकंजा कसना
जरूरी माना गया है जिनके कारण दुर्घटनाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी गई है।
राजमार्गों पर शराब की दुकानों को भी प्रतिबंधित करने पर विचार किया जा रहा है।
एक तरफ अदालत का
रुख कड़ा है वहीं मीडिया में प्रकाशित खबरें बता रहीं है कि प्रस्तावित कानून के
कड़े उपबंधों को सरकार नरम बना रही है। मूल दस्तावेज में कहा गया था कि रैश
ड्राइविंग के कारण मौत होने पर तीन लाख रुपए तक का जुर्माना और सात साल तक की सज़ा
होगी। पर अब जानकारी मिल रही है जुर्माना घटाकर 50,000 रुपए और सज़ा की अवधि एक
साल की जा रही है। ओवरस्पीडिंग के लिए पाँच हजार से बारह हजार रुपए तक के जुर्माने
और दो से आठ हफ्ते तक ड्राइविंग लाइसेंस को रद्द करने की व्यवस्था थी, जबकि नए
प्रारूप में एक हजार से छह हजार रुपया जुर्माना और एक से तीन महीने तक लाइसेंस
रद्द करने की पेशकश है।
मूल ड्राफ्ट में
नशा करके ड्राइव करने वाले पर 30,000 रुपए जुर्माने, 12 से 18 महीने की जेल और 18 महीने
तक लाइसेंस रद्द करने की व्यवस्था थी। जबकि इसे 10,000 से 20,000 का जुर्माना, एक
से छह महीने की कैद और कई बार अपराध करने वाले का लाइसेंस छह महीने तक रद्द करने
की व्यवस्था है। हालांकि सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी मीडिया रिपोर्टों को सही
नहीं मानते हैं। उनके अनुसार कानून को नरम बनाए जाने की खबर गलत है।
एक तर्क यह दिया
जा रहा है कि कानून उस हद तक ही कड़ा होना चाहिए, जिस हद तक वह लागू हो सके। कानून
का उद्देश्य डर पैदा करना होना चाहिए। रैश ड्राइविंग के अनेक कारण हैं। हमारे यहाँ
ड्राइविंग लाइसेंस देने के पहले की परीक्षा आसान है और वह आसानी से हासिल किया जा
सकता है। हाइवे पर शराब पीकर चलाने वाले ट्रक ड्राइवर उन शहरी नौजवानों के मुकाबले
बेहतर वाहन चलाते हैं जिनपर अमीरी सवार है। सड़कों पर दुर्घटनाएं केवल रैश
ड्राइविंग के कारण ही नहीं होतीं। शहरों में सड़कों के किनारे अवैध कब्जे, रेड
लाइटों तथा ट्रैफिक पुलिस की कमी और नागरिकों की समझ में कमी भी इसके कारण हैं। जहाँ
ट्रैफिक संचालन नहीं होता वहाँ वाहनों की अफरा-तफरी देखने लायक होती है। ऐसे मौकों
पर क्या करें यह बताने के लिए जन-जागरूकता अभियान भी जरूरी है। सरकार की ओर से
प्रस्तावित कानून के चार प्रारूप सामने आ चुके हैं। इनपर काफी गहराई से विमर्श
होना चाहिए।
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