खेल विशेषज्ञों
की दिलचस्पी इस बात में है कि इस बार का विश्व कप कौन जीतेगा। भारत के दर्शक मायूस
हैं कि ट्राई सीरीज़ में धोनी के धुरंधरों ने नाक कटा दी। अब 15 को पाकिस्तान के
साथ मैच है। हमारे मीडिया की चली तो इसे विश्व युद्ध के बाद की सबसे बड़ी घटना
बनाकर छोड़ेगा। पर क्रिकेट में अब खेल कम, मनोरंजन ज्यादा है। यह अब आईबॉल्स का खेल
है। संस्कृति, मनोरंजन, करामात, करिश्मा, जादू जैसी तमाम बातें क्रिकेट में आ चुकी
हैं जिनके बारे में किसी ने कभी सोचा भी नहीं था। विश्व कप के चालीस साल के इतिहास
में क्या से क्या हो गया। एक तरफ खेल बदला वहीं उसे देखने वाले भी बदल गए।
सन 1983 में जब कपिल
देव की टीम ने एकदिनी क्रिकेट का विश्व कप जीता था तब उन्हें इस बात का एहसास नहीं
रहा होगा कि वे दक्षिण एशिया में न सिर्फ खेल बल्कि जीवन, समाज, संस्कृति और
मनोरंजन की परिभाषाएं बदलने जा रहे हैं। बेशक क्रिकेट उस वक्त भद्र-लोक का खेल था।
रेडियो कमेंट्री ने उसे काफी लोकप्रिय बना रखा था, पर वह सिर्फ खेल था। तब तक वह
सफेद कपड़ों में और लाल गेंद से खेला जाता था। भारत उस वक्त कायदे से टीवी पर लाइव
प्रसारण भी बमुश्किल होता था। अब केवल प्रसारण की ताकत पर यह खेल आपके ड्राइंग रूम
से होता हुआ आपके बेडरूम तक पहुँच चुका है। इसे नकारात्मक तरीके से देखने की जरूरत
नहीं है। खेल को आर्थिक गतिविधियों से जोड़ने का फायदा भी मिला है और कुछ नुकसान
भी हुआ है।
कारोबार ने शक्ल
बदली
अक्सर सवाल किया
जाता है कि भारत में क्रिकेट को इतनी अहमियत क्यों दी जाती है? दूसरे खेलों पर
इतना ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? आपकी पुकार सुनकर देश के मीडिया उद्योग ने
पिछले कुछ वर्षों में हॉकी, फुटबॉल, कबड्डी, बैडमिंटन और टेनिस पर नजरे इनायत की
हैं। परिणाम भी सामने आएंगे। दक्षिण एशिया में इस बदलाव का नेतृत्व भारत ने किया
है, पर पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश को
मिली सफलताएं भी इसका कारण हैं। इसके पीछे कारोबार जगत का बड़ा हाथ है। पर सबसे
बड़ा कारण तो टीम को मिली सफलता है। सामान्य दर्शक को सफलता और हीरो चाहिए।
राष्ट्रीय-अभिमान, उन्माद और मौज-मस्ती के लश्कर इसके सहारे बढ़ते
गए हैं। इसके सहारे विकसित हुई हैं गीत-संगीत, कलाएं और जीवन-शैली। इसे
अच्छा या बुरा जो भी कहें वह जैसा हो सकता है वैसा है।
कैरी पैकर की पहल
क्रिकेट लम्बा और
उबाऊ खेल था। यह खत्म हो जाता अगर ऑस्ट्रेलिया के मीडिया-टायकून कैरी पैकर ने
क्रिकेट को नई परिभाषा न दी होती। एक दिनी क्रिकेट इंग्लैंड में 1962 से खेला जा रहा
था। वहाँ जिलेट ट्रॉफी लोकप्रिय भी थी। पर उसे सारी दुनिया के सामने रोचक बनाकर
पेश करने की पहल कैरी पैकर ने की। 1975 में पहले विश्व कप के
लिए आठ टीमें जुटाना मुश्किल था। उसमें श्रीलंका को शामिल किया गया, जिसे टेस्ट मैच
खेलने लायक नहीं समझा जाता था। पूर्वी अफ्रीका के देशों की एक संयुक्त टीम बनाई गई
थी।
दूसरे विश्व कप
के साथ आईसीसी ट्रॉफी भी शुरू हो गई। उसके सहारे श्रीलंका और कनाडा की टीमों को
प्रवेश मिला। 1975 या 1979 में कोई नहीं कहता था कि भारत की टीम भी विश्व
कप जीतेगी। बल्कि 1983 में प्रतियोगिता शुरू होने तक कोई नहीं कहता
था। प्रतियोगिता शुरू होने पहले इंग्लैंड के सट्टेबाज भारत की सम्भावना पर 66-1 का सट्टा लगा
रहे थे। 1982 के एशिया खेलों के कारण हमारा राष्ट्रीय टीवी नेटवर्क काम
करने लगा था, पर विश्व कप के टीवी प्रसारण की बात सोची भी नहीं गई थी। 1983के विश्व कप में
ग्लैमर भी नहीं था। 60 ओवर का मैच दिन की धूप में खेला जाता था। आज
की तरह खिलाड़ी रंगीन कपड़े नहीं पहनते थे। सफेद रंग के कपड़े पहनकर लाल रंग की
गेंद से मैच होता था।
1983 की सफलता के
बाद
1983 की जीत के बाद
भारतीय टीम को सफलता की कुछ और सीढ़ियाँ चढ़ने को मिलीं। कुछ और प्रतियोगिताएं टीम
ने जीतीं। फिर 1987 का विश्व कप भारत और पाकिस्तान में कराने की घोषणा हुई।
रिलायंस कप ने हमें देश के भीतर क्रिकेट का आधार-ढाँचा बनाने का मौका दिया। मीडिया
का ताना-बाना बदला। देश में प्राइवेट टीवी चैनलों का विकास नब्बे के दशक में हुआ, पर उसके पीछे भी
क्रिकेट के प्रसारण का विवाद था। सुप्रीम कोर्ट ने वायु-तरंगों की मुक्ति का फैसला
क्रिकेट प्रसारण के संदर्भ में ही सुनाया था। सन 1992 के विश्व कप के बाद से
इस खेल में रंगीन परिधान और जुड़ गए। प्रसारण की तकनीक बेहतर हो गई। स्टम्प तक में
कैमरा लग गया। थर्ड अम्पायर आ गया। छक्का लगने पर गेंद के पीछे आकाश में लकीर सी
खिंचती जाती है।
पहले क्रिकेट
माने अंग्रेजी होता था। अब सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री और कपिल देव हिन्दी में
उपलब्ध हैं। ज्यादा बड़ा बाजार हिन्दी में है। टी-20 ने तो और तकनीकी रंगीनियों का
इज़ाफा कर दिया। खेल की तकनीक बदल गई। रिवर्स स्वीप जैसा शॉट इसी खेल की देन है। जियो
खिलाड़ी वाहे-वाहे, बजा के चुटकी धूल चटा दे, गुत्थी-गुत्थम दे
घुमाके। सहवाग का ऊपर कट ऊपर से आने का, नीचे दबाने का, पीछे उठाने का
हा.., हा...हा...हा या भज्जी का उंगली में टिंगली रोचक है। धोनी
का हैलीकॉप्टर शॉट। टेस्ट क्रिकेट के दिग्गज बेकार, अब एकदिनी जाँबाज़ों का जलवा
है।
क्रिकेट मेरी
जिंदगी
फटाफट क्रिकेट ने
खेल के मैदान से ज्यादा हमारी जिंदगियों को बदल डाला है। इस खेल की लोकप्रियता के
पीछे के कारणों को खोजें तो आप पाएंगे कि इसे रोचक बनाने के साथ-साथ टीमों की
सफलता का ग्राफ भी चल रहा है। इसके समानांतर चल रहीं हैं आर्थिक गतिविधियाँ।
भारतीय कॉरपोरेट जगत ने इस खेल को जिस तरह हाथों-हाथ लिया है, उससे निष्कर्ष
निकलता है कि खेल तो सबसे चोखा धंधा है। इसे एक और उदाहरण से समझें। सन 1994 में अचानक भारत
की दो लड़कियों को मिस वर्ल्ड और मिस युनीवर्स के खिताब मिले। इन दो सफलताओं ने
देश के कॉस्मेटिक उद्योग में जान डाल दी। घर-घर ब्यूटी क्लिनिक खुल गए। सफलता ने
ट्रिगर का काम किया।
क्रिकेट की खबरें, क्रिकेट के
विज्ञापन। बॉलीवुड के अभिनेता, अभिनेत्री क्रिकेट में और सारे देश के नेता
क्रिकेट में। मैच फिक्सिंग वगैरह को भी इसमें शामिल कर लें तो सारे अपराधी क्रिकेट
में और सारे अपराध क्रिकेट में। इस खेल की लोकप्रियता ने राजनीति और राजनय के
दरवाजे भी खोले। भारत-पाकिस्तान के रिश्ते कितने भी बिगड़े हों, पर हमारे टीवी पर वसीम
अकरम, रमीज़ राजा, शोएब अख्तर और दूसरे पाकिस्तानी खिलाड़ी जब आते हैं तब हम
उन्हें बड़े प्यार से सुनते हैं। क्रिकेट में पैसा, इज्जत और शोहरत है। अकसर खिलाड़ी
का एक छक्का उसे शोहरत के दरवाजे पर खड़ा कर देता है।
मीडिया मसाला
क्रांति
ऑस्ट्रेलिया और
न्यूज़ीलैंड में होने जा रहा आईसीसी क्रिकेट विश्व कप पिछले संस्करणों की तुलना
में बहुत कुछ नया लेकर आएगा। क्रिकेट को रंगीन खेल ऑस्ट्रेलिया में ही बनाया गया
था। इस विश्व कप की मीडिया कवरेज अब तक के सभी संस्करणों में सबसे ज्यादा रहेगी। भारत
में इसे 12 चैनलों पर छह
भाषाओं में प्रसारित किया जाएगा। इन 12 चैनलों में से आठ स्पोर्ट्स चैनल हैं जिनमें चार स्टैंडर्ड
डेफिनिशन और चार हाई डेफिनिशन (एचडी) चैनल हैं। इस मौके पर दो और एचडी चैनल लांच
होने वाले हैं, जिनमें से एक हिंदी में है। स्पोर्ट्स नेटवर्क के अलावा, टूर्नामेंट को तमिल,
बांग्ला, मलयालम और कन्नड़ में भी प्रसारित करने की योजना है।
प्रसारण के बरक्स
मीडिया प्लानर और विज्ञापनदाता अपने नए उत्पादों को लेकर बैठे हैं कि जैसे ही
विश्व कप शुरू हो वे बाजार में अपना माल लेकर आएं। कार, मोबाइल फोन, बिस्कुट,
कोल्ड ड्रिंक, चाय, कॉफी, परिधानों से लेकर साबुन और टूथपेस्ट तक क्रिकेट के सहारे
बिकने वाले हैं।
सार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास