पृष्ठ

Friday, December 5, 2014

रामलला से दूर जाती भाजपा


राम मंदिर के मुद्दे से भाजपा ने कब किनाराकशी शुरू की यह कहना मुश्किल है, पर इतना साफ है कि नरेंद्र मोदी की सरकार पार्टी के हिंदुत्व को सिर-माथे पर लेकर नहीं चल रही है। सन 1992 के बाद 6 दिसम्बर की तारीख कई बार आई और गई। भाजपा ने इस मसले पर बात करना ही बंद कर दिया है। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद से केंद्र में यह तीसरा सरकार है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी की प्रभावी भूमिका है। 1998 और 1999 में बनी सरकारें एनडीए की थीं। मान लिया उनमें सहयोगी दलों की सहमति मंदिर बनाने को लेकर नहीं थी। पर इस बार भाजपा अपने बूते बहुमत हासिल करके आई है। फिर भी वह राम मंदिर पर मौन है। क्या वजह है कि यह मसला भाजपा की राजनीति में टॉप से बॉटम पर आ गया है?


जिस मंदिर-राजनीति ने भाजपा को दिल्ली के दरवाजे तक पहुँचाया उसके प्रणेता लालकृष्ण आडवाणी के ब्लॉग पर 23 अप्रैल 2014 के बाद से कोई पोस्ट नहीं है। लगता है उनकी सारी कहानी दिल्ली की गद्दी तक सीमित थी या है। सन 1989 के चुनाव में आडवाणी जी की मंदिर राजनीति ने पहली बार भाजपा को भारी जीत का रास्ता दिखाया, जिसकी परिणति 1996 में 13 दिन की और फिर 1998 में एक साल की सरकार के रूप में हुई थी। 1989 से 2009 तक भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने का वादा करती रही। यह वादा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उतरी भाजपा ने भी किया, पर उस शिद्दत के साथ नहीं। सन 2014 के 42 पेजों के चुनाव घोषणापत्र में 41 वें पेज पर महज दो-तीन लाइनों में यह वादा किया गया। वह भी मंदिर निर्माण के लिए संभावनाएं तलाशने का वादा। यह भी कि यह तलाश सांविधानिक दायरे में होगी।

नरेंद्र मोदी को हार्ड हिंदुत्व का नेता माना जाता है, पर अपने पूरे चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने मंदिर की बात नहीं की। उन्होंने तो गिरिराज सिंह और तोगड़िया जैसे नेताओं को कड़वे बयानों से बचने की सलाह दी। लगता है कि भाजपा ने सन 2009 की पराजय के बाद मान लिया था कि दिल्ली की कुर्सी पर बैठना है तो जनता के सवालों को उठाना होगा। सन 2009 में पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद नितिन गडकरी ने दिसम्बर में अपने पहले संवाददाता सम्मेलन में विकास की बात की मंदिर की नहीं। उन्होंने पार्टी के भीतर की अनुशासनहीनता और गुटबाजी पर फिक्र जताई, हिंदुत्व की नहीं। उल्टे उन्होंने अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जाति, जन जाति, और असंगठित मजदूरों में पार्टी के प्रति विश्वास का निर्माण करने तथा गलतफहमियों को दूर करने की बात कही।

इसके बाद उन्होंने इंदौर में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में कहा कि अगर मुस्लिम विवादित भूमि पर दावा छोड़ देते हैं तो मंदिर के पास ही मस्जिद भी बनवाई जाएगी। उनकी भाषा में विनम्रता थी। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से अपील की कि हिंदुओं की भावनाओं के प्रति वे उदार रुख़ अपनाएं और भव्य राम मंदिर बनाने के लिए सहयोग दें। उन्होंने कहा, अगर विवादित भूमि पर आप अपना दावा छोड़ते हैं तो हम मंदिर के पास ही एक शानदार मस्जिद बनाने में आपका सहयोग करेंगे।" एक संवाददाता सम्मेलन में पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद से मंदिर के मुद्दे पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, पार्टी की राय है कि इसे चुनावी मुद्दे के रूप में न देखा जाए। हम अपेक्षा करते हैं कि वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण हो। इसके लिए भाजपा सभी धर्म और वर्ग के लोगों से सहयोग की अपील करती है।

पिछले मंगलवार को बाबरी मस्जिद मुकदमे के पैरोकार और मुद्दई हाशिम अंसारी अब इस मामले को नया रंग दे दिया है। उन्होंने कहा कि मैं रामलला को आजाद देखना चाहता हूँ। मैं छह दिसंबर को मुस्लिम संगठनों के यौमे गम में भी शामिल नहीं होऊँगा। दरवाजा बंद कर घर में रहूँगा। वे बाबरी मस्जिद पर हो रही सियासत से दुखी हैं। उन्होंने कहा कि रामलला तिरपाल में रह रहे हैं और उनके नाम की राजनीति करने वाले महलों में। लोग लड्डू खाएं और रामलला इलायची दाना। यह नहीं हो सकता...अब रामलला को आजाद देखना चाहता हूं। मुकदमा हम लड़ें और फायदा आजम उठाएं!

पिछले 64 वर्षों से इस मुकदमे की पैरवी कर रहे हाशिम ने दुख और आक्रोश के साथ मीडियाकर्मियों से कहा, 'बाबरी मस्जिद हो या राम जन्मभूमि, यह राजनीति का अखाड़ा है। मैं हिंदुओं या मुसलमानों को बेवकूफ बनाना नहीं चाहता। अब हम किसी कीमत पर बाबरी मस्जिद मुकदमे की पैरवी नहीं करेंगे। जब मैंने सुलह की पैरवी की थी तब हिन्दू महासभा सुप्रीम कोर्ट चली गई। महंत ज्ञानदास ने पूरी कोशिश की थी कि हम हिंदुओं और मुस्लिमों को इकट्ठा करके मामले को सुलझाएं, लेकिन अब मुकदमे का फैसला कयामत तक नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लेकर सभी नेता अपनी रोटियां सेंक रहे हैं....बहुत हो गया अब।


पिछले 21 साल से 6 दिसम्बर की तारीख हर साल पेचीदगियों के साथ आती और चली जाती है। हाशिम अंसारी की बातों में छह दशकों का आक्रोश छिपा है। उन्होंने इस मसले का फायदा उठाने वाले हिंदू और मुसलमान दोनों तरफ के नेताओं को कोसा है। हो सकता है उनका गुस्सा शांत हो जाए। वे मान जाएं। पर उन्होंने नरेंद्र मोदी के बारे में कुछ बातें कहकर मुसलमानों के एक वर्ग की राय को भी व्यक्त किया है। उन्होंने मोदी को 'सियासी फायदा न उठाने वाला' और 'कौम की मदद करने वाला अच्छा इंसान' बताया है। शायद वाराणसी में बुनकरों के लिए 200 करोड़ के पैकेज के कारण उनकी यह राय बनी है। उन्होंने कहा, बनारस में अंसारियों (बुनकरों) के लिए वे बहुत कुछ कर रहे हैं। मैं भी अंसारी हूं। अंसारी मोदी का साथ दे रहे हैं तो मैं भी मोदी का साथ दूंगा। बहरहाल इन भावुक बातों से इतने पेचीदा मसले को सुलझाया नहीं जा सकता। पर सवाल यह है कि क्या मोदी सरकार हल निकालने की पहल करेगी? इस बार की 6 दिसम्बर की तारीख इस माने में कुछ फर्क लगती है।
नवोदय टाइम्स में प्रकाशित

No comments:

Post a Comment