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Thursday, December 4, 2014

बांग्लादेश पर यू-टर्न एकदम उचित है


मोदी सरकार केवल आर्थिक उदारीकरण के मामले में ही नहीं विदेश नीति और रक्षा नीति में भी पिछली यूपीए सरकार के कदमों पर चल रही है. फर्क केवल तौर-तरीकों का है. व्यक्तिगत रूप से नरेंद्र मोदी का अंदाज़ मुकाबले मनमोहन सिंह के ज्यादा आक्रामक है और ज्यादा खुलकर है. खासतौर से विदेश नीति के मामले में. इधर कांग्रेस ने '6 महीने पार, यू-टर्न सरकार' शीर्षक से जो पुस्तिका जारी की है उसमें सरकार की 22 'पलटियों' का जिक्र किया गया है. इनमें विदेश नीति से जुड़े दो मसले महत्वपूर्ण हैं. पहला सिविल न्यूक्लियर डैमेज एक्ट जिसे लेकर भाजपा ने खूब हंगामा किया गया था. अब मोदी जी इसे नरम करना चाहते हैं ताकि नाभिकीय तकनीक लाने में अड़चनें खड़ी न हों.
नरेंद्र मोदी ने हाल में गुवाहाटी में कहा कि बांग्लादेश के साथ हम ‘लैंड स्वैपिंग डील’ कर रहे हैं. अरुण जेटली ने यूपीए सरकार के दौर में इसे देश-विरोधी बताया था. अब नरेंद्र मोदी ने नरम रुख अख्तियार करते हुए भूमि सीमा समझौता (एलबीए) को पूरी तरह लागू करने की इच्छा व्यक्त कर यह स्पष्ट किया है कि संकीर्ण राजनीतिक बयानबाज़ियों को वे राष्ट्रीय हितों पर हावी होने नहीं देंगे. इस समझौते के तहत भारत और बांग्लादेश में 162 छोटे टुकड़ों (अंतः क्षेत्रों) की अदला-बदली की जानी है, जो विभाजन के समय की चूक के कारण एक-दूसरे के इलाके में रह गए हैं. सन 1974 के इंदिरा-गांधी शेख मुजीब समझौते में इस दोष को दूर करने पर सहमति हो गई थी. बांग्लादेश की संसद ने इसकी तभी पुष्टि कर दी थी, पर भारतीय संसद अभी तक नहीं कर पाई थी.

सितम्बर 2011 में यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लैंड बाउंडरी एग्रीमेंट पर दस्तखत किए थे. चूंकि इसे लागू करने के लिए संविधान संशोधन की जरूरत होती, इसलिए 119 वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया. भाजपा के कड़े रुख के कारण यह विधेयक पास नहीं हो सका और मामला संसद की एक स्थायी समिति को सौंप दिया गया. बहरहाल मोदी के वक्तव्य के बाद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली स्थायी समिति ने अपनी सिफारिशें भी सर्वानुमति से पास कर दीं. स्थायी समिति भी इस समझौते को लागू करने के पक्ष में है. सन 2011 में हुए एलबीए और तीस्ता जल समझौते को लागू करने में नाकाम रहने के वजह से बांग्लादेश की अवामी लीग सरकार को काफ़ी शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा था जो भारत के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की कोशिश कर रही थी. तीस्ता समझौता तृणमूल कांग्रेस की हठ का शिकार हुआ और एलबीए भाजपा के विरोध का.

मोदी सरकार अब भारत-बांग्लादेश संबंधों को नए स्तर पर ले जा रही है, जिसके निहितार्थ अच्छे ही होंगे। अब उन्हें तीस्ता समझौता भी लागू करके बांग्लादेश की वाजिब चिंताओं को दूर करना चाहिए. दोनों देश नदी के जल को लेकर समझौता कर लेंगे तो चीन पर मिलकर दबाव बना सकेंगे। चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाने की तैयारी कर रहा है. भारत और बांग्लादेश में इस बात को लेकर फिक्र है कि चीनी इलाके में बाँध बनने से नदी का रुकेगा या बदल जाएगा. मोदी सरकार के पास बांग्लादेश के साथ रिश्तों को बेहतर बनाने का एक सुन्दर मौका है. दोनों देश सड़क मार्ग से आवागमन बढ़ा रहे हैं. भारत अपने पूर्वोत्तर को रेलमार्ग से अच्छी तरह जोड़ देना चाहता है. साथ ही म्यांमार के रास्ते दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिणी चीन से जुड़ने की योजनाएं भी हैं.
हाल में भारत और बांग्लादेश ने परमाणु तकनीक के क्षेत्र में सहयोग करने पर बात शुरू की है. किसी पड़ोसी देश के साथ भारत पहली बार नाभिकीय सहयोग पर बात कर रहा है. भारत-बांग्लादेश सलाहकार समिति की बैठक में हाल में इस मसले पर चर्चा हुई थी. भारत ने बांग्लादेश से पूछा है कि वह किस तरह का परमाणु सहयोग चाहेगा. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और बांग्लादेश के विदेश मंत्री महमूद अली की संयुक्त-अध्यक्षता में सलाहकार समिति की दिल्ली में हुई बैठक में विभिन्न क्षेत्रों में आपसी रिश्तों को गहरा बनाने के लिए कई साझा कार्यक्रमों पर सहमति हुई. बांग्लादेश के साथ चीन ने परमाणु सहयोग के क्षेत्र में 2005 में समझौता किया था. इसके बाद रूस के साथ भी बांग्लादेश का समझौता है. अब बांग्लादेश ने भारतीय परमाणु तकनीक से भी लाभ उठाने का फैसला किया है.

इन सब बातों से अलग एक और क्षेत्र उभर कर सामने आ रहा है, जो इन दोनों देशों को करीब लाने में ही नहीं, बल्कि इस इलाके की अर्थ-व्यवस्था में भारी बदलाव लाने का जरिया बनेगा. इस साल जुलाई में भारत और बांग्लादेश के बीच तकरीबन चार दशक से चला आ रहा समुद्री सीमा विवाद खत्म होने के बाद इस बात पर रोशनी पड़ी है कि इस क्षेत्र में आर्थिक विकास के लिए विवादों का निपटारा कितना जरूरी है. संयुक्त राष्ट्र के हेग स्थित न्यायाधिकरण ने विवादित क्षेत्र का लगभग 80 फीसदी हिस्सा बांग्लादेश को देने का फैसला किया है. तकरीबन 25,000 वर्ग किलोमीटर के विवादित समुद्री क्षेत्र में से तकरीबन 20,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर ट्रायब्यूनल ने बांग्लादेश का क्षेत्राधिकार स्वीकार किया.

इसके पहले सन 2012 में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच भी इसी प्रकार का निपटारा हुआ था. अब स्थिति यह है कि बंगाल की खाड़ी से जुड़े तीनों देश सागर के आर्थिक दोहन के लिए मिलकर काम कर सकेंगे. माना जाता है कि बांग्लादेश के इलाके में तकरीबन 200 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस का भंडार है. यह दुनिया के सबसे बड़े गैस भंडारों में से एक है. सन 2006 में भारत ने अपने इलाके में लगभग 100 ट्रिलियन घन फुट प्राकृतिक गैस होने का पता लगाया था. माना जाता है कि यहाँ का गैस भंडार कृष्णा कावेरी बेसिन में उपलब्ध गैस का लगभग दुगना है. हालांकि इस क्षेत्र का बड़ा हिस्सा बांग्लादेश के पास है, पर प्राकृतिक गैस जमीन के भीतर है, पर जो पहले दोहन करेगा वह फायदे में रहेगा, क्योंकि प्राकृतिक को जब निकाला जाता है, तब वह जमीन के भीतर किस इलाके से आ रही है, इसे पहचाना नहीं जा सकता. बांग्लादेश के पास गहरे सागर में तेल खोज की तकनीक नहीं है. वह बाहरी सहयोग से यह काम करने का प्रयास कर रहा है. भारत के पास यह तकनीक है. यह काम तीनों देश मिलकर भी कर सकते हैं.

पिछले हफ्ते की खबर है कि बांग्लादेश ने ऊर्जा के क्षेत्र में भारतीय पेशकश को तरज़ीह दी है. बिजली आपूर्ति के मुद्दे पर चीन बांग्लादेश को अपनी ओर लाना चाहता था. लेकिन बांग्लादेश ने फैसला किया है कि वह भारत, नेपाल और भूटान के साथ चतुर्भुज बनाएगा, जो तेल-गैस क्षेत्र में आपस में सहयोग करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओएनजीसी त्रिपुरा कंपनी लिमिटेड पावर प्लांट की दूसरी इकाई का लोकार्पण करते वक्त बताया कि इस प्लांट की बिजली बांग्लादेश को भी दी जाएगी। बांग्लादेश को 100 मैगावाट बिजली चाहिए। बांग्लादेश ने प्लांट के लिए मशीनों को लाने का रास्ता दिया, जिसे भारत के रास्ते लाने में महीनों लग जाते।

बांग्लादेश गेल की कोलकाता पाइपलाइन, एलएनजी टर्मिनल और समुद्री सीमा में नए ब्लॉक पर काम चाहता है. पेट्रोलियम सचिव सौरभ चंद्रा ने कहा कि हम बांग्लादेश के साथ डीजल पाइपलाइन पर अध्ययन कर रहे हैं। 200 करोड़ रुपए की लागत से सिलीगुड़ी-नुमालीगढ़ (असम) से पार्वतीपुर (बांग्लादेश) तक पाइपलाइन पड़ेगी. बंगाल की खाड़ी में आर्थिक विकास के नए रास्ते खुल रहे हैं जिससे दोनों देशों को फायदा होगा. बांग्लादेश अपने लिए उपग्रह हासिल करने की बात भी सोच रहा है. इसमें भी भारतीय सहयोग सम्भव है. मोदी सचमुच बांग्लादेश के साथ संबंधों का नया अध्याय शुरू करना चाहते हैं तो उन्हें और बीजेपी को अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को लेकर तीखे राजनीतिक बयानों से परहेज़ करना होगा.
प्रभात खबर में प्रकाशित

1 comment:

  1. राजनीति‍ में यू टर्न जैसी कोई बात होती ही नहीं ...

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